Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Political Science-II class 12 exercise राज्यों का पुनर्गठन
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Political Science-II class 12 exercise राज्यों का पुनर्गठन ncert book solution in hindi-medium
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राष्ट्र-निर्माण
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ : राष्ट्र निर्माण मुख्य तौर पर तीन चुनौतियाँ थी -
(i) तात्कालिक चुनौतियाँ :
(ii) लोकतंत्र को कायम करने की :
(iii) सबके भलाई के लिए विकास :
भारतीय राष्ट्र की विशेषताएँ : भारतीय राष्ट्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
(i) सामान्य मातृभूमि : भारतीय लोग अपने जन्मभूमि को मातृभूमि मानते है, एक ही स्थान में या प्रदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते है और इस प्यार के कारण सभी लोग भावनात्मक रूप से एक दुसरे से जुड़ जाते हैं और भावना में बंध जाते हैं | बहुत से विदेशों में रहने वाले भारत के लोग खुद को भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते है |
(ii) सामान्य इतिहास : सामान्य इतिहास भी भारतीय राष्ट्र की एक प्रमुख विशेषता है | सामान्य इतिहास होने के कारण सभी में एकता की भावना होती है |
(iii) समान्य हित : भारतीय राष्ट्र के लिए समान्य हित एक महत्वपूर्ण तत्व है | यदि लोगों के समाजिक, आर्थिक, राजनितिक तथा धार्मिक हित समान हो तो उन उनमें एकता रहना स्वाभाविक बात है |
(iv) भौगोलिक एकता : भारतीय राष्ट्र भौगोलिक रूप से स्वयं को एक समझता है, जिससे राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न होती है | यही राष्ट्रवाद भारत को एक सूत्र में बाँधता है | जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से पूर्वोत्तर के राज्यों तक भारत एक राष्ट्र है |
राष्ट्र निर्माण की तात्कालिक चुनौतियाँ :
(i) एकता के सूत्र में बंधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की जिसमें भारतीय समाज की सारी विविधताओं के लिए जगह हो |
(ii) यहाँ अलग-अलग भाषा-बोली, अलग अलग संस्कृति और अलग-अलग धर्मों और मतों के अनुयायी थे जिनकों एकजुट रखना था |
(iii) भारत को अखंडता को बनाये रख पाना |
राष्ट्र निर्माण की लोकतान्त्रिक चुनौतियाँ :
(i) देश पहली बार लोकतान्त्रिक शासन में कार्य करने जा रहा था | ऐसी स्थिति जिसका अनुभव किसी भी राष्ट्र निर्माता को नहीं था |
(ii) भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधिमुलक लोकतंत्र को अपनाया जिससे यह सुनिश्चित हो गयी कि लोकतान्त्रिक ढाँचे के भीतर राजनितिक मुकाबले होंगे |
(iii) इस लोकतंत्र को कायम रखने के लिए सर्वहितकारी और सभी द्वारा मान्यता प्राप्त एक लोकतांत्रिक संविधान की आवश्यकता थी |
(iv) चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार-बरताव चलन में आयें |
राष्ट्र निर्माण में सबके विकास की चुनौती :
(i) राष्ट्र निर्माता एक ऐसे विकास की कल्पना करते थे जिसमें समूचे समाज का भला हो न कि कुछ तबकों का | उनके समक्ष सबके विकास की चुनौती थी |
(ii) इसके लिए संविधान में यह बात साफ कर दी गई थी कि सबके साथ समानता का बरताव किया जाए और समाजिक रूप से वंचित तबकों तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए |
(iii) लोक-कल्याण के लिए संविधान ने "राज्य के निति-निर्देशक सिंद्धांतों" को भी स्पष्ट किया गया | इसे पूरा करने की जिम्मेवारी राजनितिक बिरादरी को दी गई |
(iv) इसके बाद असली चुनौती आर्थिक विकास तथा गरीबी के खात्में के लिए कारगर नीतियों को तैयार करने की थी |
द्वि-राष्ट्र सिद्धांत : इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि 'हिन्दू' और 'मुसलमान' नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की |
कांग्रेस द्वारा पाकिस्तान की माँग मानने का कारण :
(i) सन 1940 के दशक में राजनितिक मोर्चे पर कई बदलाव आए |
(ii) कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनितिक प्रतिस्पर्धा
(iii) ब्रिटिश-शासन की भूमिका जैसी कई बातों का जोर रहा नतीजन, पाकिस्तान की माँग मन ली गई |
भारत विभाजन की प्रक्रिया :
(i) विभाजन की प्रक्रिया में तय हुआ कि जिस भू-भाग को अबतक इंडिया के नाम से जाना जाता था उसे 'भारत' और पाकिस्तान नाम के दो देशों के बीच बाँट दिया जायेगा |
(ii) यह विभाजन दर्दनाक के साथ-साथ अमल में लाना और भी कठिन भी था |
(iii) यह भी तय हुआ कि धार्मिक बहुसंख्या को विभाजन का आधार बनाया जायेगा | इसका अर्थ यह था कि जिस इलाके में हिन्दू बहुसंख्यक है वह भारत में होगा और जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है वह पाकिस्तान में होगा |
भारत विभाजन में समस्यायें :
(i) ब्रिटिश इंडिया में कोई एक भी इलाका ऐसा नहीं था जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हो | ऐसे दो इलाके थे जहाँ मुसलमानों की आबादी ज्यादा थी | एक इलाका पश्चिम में और दूसरा पूर्व में था |
(ii) ऐसा कोई तरीका नहीं था इन दो अलग-अलग इलाकों को जोड़कर एक में कर दिया जाए | इस पराक्र तय हुआ कि पाकिस्तान में दो इलाके शामिल होंगे पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान |
(iii) समस्या यह भी थी कि हर मुसलमान बहुल इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था |
(iv) 'ब्रिटिश इंडिया' के मुस्लिम-बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे | ऐसे में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा इसमें निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार माना जायेगा |
(v) विभाजन की सबसे अबूझ कठिनाई 'अल्पसंख्यकों' की थी | सीमा के दोनों और अल्पसंख्यक थे | भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक थे तो पाकिस्तान में हिन्दू और सिख लाखों की संख्या में थे | ये लोग अपने ही देश में विदेशी बन गए थे |
(vi) विभाजन की खबर के बाद से ही हिंसा शुरू हो गई और बाद में यह हिंसा नियंत्रण से बाहर हो गयी |
भारत का एकीकरण और राज्यों का निर्माण
इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन : अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के लिए एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए | इस सहमति पत्र को ही 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन' कहा जाता है | इस पर हस्ताक्षर का अर्थ का कि रजवाड़े भारतीय संघ में शामिल होने के लिए सहमत हैं |
राष्ट्र-निर्माण की अवधारणा : राष्ट्र-निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रिय चेतना प्रकट होती है | राष्ट्र-निर्माण राजनितिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है | इसके अनुसार एक राष्ट्र को ऐसी सभी आवश्यक प्रक्रियाओं से गुजरा जाए जिसमें सभी को न्याय, राजनितिक भागीदारी, विकास, रोजी-रोटी सुलभ हो |
1947 के भारत विभाजन के परिणाम :
(i) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान जैसे देशों का अस्तित्व में आना |
(ii) हिंसा और लाखों की जान-माल की हानि |
(iii) दोनों तरफ शरणार्थियों की समस्याएँ पैदा हुई |
(iv) विभाजन के परिणामस्वरुप कश्मीर की समस्या पैदा हुई |
स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष चुनौतियाँ :
(i) शरणार्थियों का पुनर्वास की समस्या :
(ii) राज्यों के पुनर्गठन की समस्या :
(iii) देश को आर्थिक रूप से खड़ा करना
देशी रियासत जिन्होंने भारत संघ में शामिल होने का विरोध किया था :
(i) जूनागढ़
(ii) हैदराबाद
(iii) कश्मीर
(iv) मणिपुर
देशी रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल करने में सरदार पटेल की भूमिका :
भारत संघ में देशी रजवाड़ों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है | उन्होंने एकीकरण के लिए निम्नलिखित कार्य किए |
(i) सरदार पटेल ने एकीकरण अधिनियम तथा प्रजातंत्रीकरण की विधियों द्वारा अधिकांश रियासतों को भारत में मिलाया |
(ii) जूनागढ़ तथा हैदराबाद जैसी रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया था, परन्तु सरदार पटेल के राजनितिक कौशल और सूझ-बुझ से इन दोनों रियासतों को भारत में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया गया |
(iii) कश्मीर को भी भारत में शामिल करने के लिए सरदार पटेल ने प्रस्ताव दिया जिसे कश्मीर के राजा हरि सिंह ने नहीं माना, परन्तु जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया उस स्थिति में उन्हें भारत की शर्तों पर शामिल होना पड़ा |
(iv) गोवा, दमन और दीयू को सैनिक करवाई द्वारा भारत में मिला लिया गया जिसे साधारण पुलिस करवाई की संज्ञा दी गई |
भारत में ब्रिटिश इंडिया की स्थिति : ब्रिटिश इंडिया दो हिस्सों में था |
(1) ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीय प्रान्त : भारत के इन प्रान्तों पर ब्रिटिश सरकार का सीधा नियंत्रण था |
(2) ब्रिटिश नियंत्रण वाले देशी रजवाड़े : ये छोटे-छोटे आकार के राज्य थे जिनपर अंग्रेजो का सीधा नियंत्रण नहीं था | इन्हें राजवाडा कहा जाता था | इन रजवाड़ों पर राजाओं का शासन था | इन राजाओं ने ब्रिटिश सरकार की अधीनता स्वीकार कर रखी थी और इसके अंतर्गत वे अपने राज्य के घरेलु मामलों का शासन चलाते थे |
देशी रजवाड़ों के विलय में समस्या : आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजी-शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से आजाद हो जायेंगे | इसका मतलब यह था कि सभी रजवाड़े जिनकी संक्या लगभग 565 थी ब्रिटिश-राज के समाप्ति के बाद क़ानूनी तौर पर आजाद हो जायेंगे |
(i) अंग्रेजी-सरकार चाहती थी कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते है अथवा अपनी स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते है |
(ii) भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला अथवा स्वतंत्र बने रहने का फैसला का अधिकार वहां के राजाओं को दिया गया था | यह फैसला वहां के जनता को नहीं करना था |
(iii) अंग्रेजों ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी जिससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था |
(iv) सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की | अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने ऐसी ही घोषणा की |
(v) कुछ शासन जैसे भोपाल के नवाब संविधान-सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे | देश कई हिस्सों में बंटने वाला था और भारतीय लोकतंत्र का भविष्य अंधकारमय दिखाई देने लगा था |
देशी रजवाड़ों के लेकर सरकार का नजरिया :
(i) छोटे-बड़े विभिन्न आकार के देशों में बंट जाने की सम्भावना के विरुद्ध अंतरिम सरकार ने कड़ा रुख अपनाया |
(ii) मुस्लिम लीग ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के इस कदम का विरोध किया | उसका मानना था कि रजवाड़ों को अपनी मनमर्जी का रास्ता चुनने के लिए छोड़ देना चाहिए |
(iii) रजवाड़ों के शासकों को मानाने-समझाने में सरदार पटेल ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई और अधिकतर रजवाड़े भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी हो गए |
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय :
हैदराबाद की रियासत बहुत बड़ी थी | यह रियासत चारों तरफ से हिन्दुस्तानी इलाकों से घिरी थी | पुराने हैदराबाद के कुछ हिस्से आज के महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में और बाकि हिस्से आध्रप्रदेश में है | हैदराबाद के शासक को निजाम कहा जाता था और वह दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों में शुमार किया जाता था | निजाम चाहता था कि हैदराबाद की रियासत को आजाद रियासत का दर्जा दिया जाए | इसी बीच भारत सरकार ने हैदराबाद के निजाम से बातचीत जारी राखी | इसी दौरान हैदराबाद के रियासत के लोगों ने निजाम के शासन के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया और जल्द ही इस आन्दोलन ने जोर पकड़ा | आज के तेलंगाना इलाके के किसानों ने निजाम के दमनकारी शासन से दुखी थे निजाम के खिलाफ उठ खड़े हुए | महिलाएं भी निजाम के शासन में जुल्म की शिकार हुई थी | वो भी इस आन्दोलन से बड़ी संख्या में जुड़ गई और हैदराबाद आन्दोलन का गढ़ बन गया | इस आन्दोलन के अग्रीम पंक्ति में कुछ कांग्रेस के लोग भी थे | आन्दोलन को दबाने के लिए निजाम ने अपनी अर्द्ध-सैनिक बल जिसे रजाकार कहा जाता है को रवाना कर दिया | रजाकार अव्वल दर्जे के सांप्रदायिक और अत्याचारी थे जिन्होंने जमकर गैर मुस्लिमों को खासतौर पर अपना शिकार बनाया और लूटपाट की | 1948 के सितम्बर में भारतीय सेना ने सैनिक करवाई के तहत निजाम की सेना पर काबू कर लिया और निजाम को आत्मसमर्पण करना पड़ा | और इसी के साथ हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हो गया |
मणिपुर का भारत में विलय :
आजादी के चाँद रोज पहले मणिपुर के महराजा बोध्चंद्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय का एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे | इसकी एवज में उन्हें यह आशाव्सन दिया गया था की आन्त्ररिक स्वायत्तता बरक़रार रहेगी | जनमत के दबाव में महाराजा ने 1948 के जून में चुनाव करवाया और इस चुनाव के फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधानिक राजतन्त्र कायम हुआ | मणिपुर भारत का पहला भाग जहाँ सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार को अपनाकर चुनाव हुए थे | मणिपुर विधानसभा भारत में विलय को लेकर गहरे मतभेद थे | मणिपुर कांग्रेस रियासत का भारत में विलय चाहती थी जबकि दुसरे राजनितिक दल इसके खिलाफ थे | भारत सरकार ने महाराजा पर डाला कि वे रियासत का भारत संघ में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दे और भारत सरकार को इसमें सफलता भी मिली और मणिपुर रियासत का भारत में विलय हो गया |
राज्यों का पुनर्गठन
राज्यों के पुनर्गठन की समस्या : भारतीय प्रान्तों की आतंरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती महज एक प्रशासनिक विभाजन का मामला नहीं था अपितु देश की भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता की झलक मिले साथ ही राष्ट्रिय एकता भी खंडित न हो |
(i) हमारे नेताओं को चिंता हुई कि अगर भाषा के आधार पर प्रान्त बनाए गए तो इससे अव्यवस्था फ़ैल सकती है तथा देश के टूटने का खतरा पैदा हो सकता है |
(ii) भाषावार राज्यों के गठन से दूसरी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से ध्यान भटक सकता है जबकि देश इन चुनौतियों के चपेट में है |
(iii) राज्यों में भाषाई आधार पर अलग प्रान्त की माँग पर आन्दोलन शुरू कर दिया ! विशाल आन्ध्र आन्दोलन ने माँग की कि मद्रास प्रान्त के तेलगू भाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आन्ध्र प्रदेश बनाया जाए | तेलगू भाषी क्षेत्र लगभग साडी राजनितिक शक्तियाँ मद्रास प्रान्त के भाषाई पुनर्गठन के पक्ष में थे |
(iv) देश में बड़ी अव्यवस्था फैली और आंध्र प्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुई | लोग बड़ी संख्या में सडकों पर निकल आए | मद्रास में अनेक विधायकों ने इस्तीफा दे दिया | 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आन्ध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की |
राज्य पुनर्गठन आयोग और उसका कार्य : केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया |
कार्य :
इस आयोग का कार्य राज्यों का सीमांकन के मामले पर गौर करना था | इससे अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहां बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए | इस आयोग के रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ | इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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