Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर Political Science-II class 12 exercise page 3
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर Political Science-II class 12 exercise page 3 ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय-समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- आपको अब अंदाजा लग चूका होगा कि स्वतंत्र भारत का जन्म किन कठिन परिस्थितियों में हुआ | अपने देश के सामने शुरूआत से राष्ट्र-निर्माण की चुनौती थे और इन गभीर चुनौतियों के बारे में आप पढ़ चुके है एसी चुनौती की चपेट में आकर कई एनी देशो के नेताओ ने फैसला किया कि उनके देश में अभी लोकतंत्र को नही अपनाया जा सकता है |इन नेताओ ने कहा कि राष्ट्रीय एकता हमारी पहली प्राथमिकता है और लोकतंत्र को अपनाने से मतभेद और संघर्ष को बढ़ावा मिलगा | उप्निविश्वाद के चंगुल से आजाद ही कई देशो में इसी कारन अलोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था कायम हुई | इस अलोकतांत्रिक शासन - व्यवस्था के कई रूप थे |
- पिछले साल अपने पढ़ा कि हमारा संविधान कैसे बना | आपको यद् होगा कि हमारा संविधान 26 नवम्बर 1949 को तैयार हो चूका था और इसी दिन इस पर हस्ताक्षर हुई | यह संविधान 26 जनवरी 1950 से अमल में आया | उस वक्त देश का शासन अंतरिम सरकार चला रही थी | वक्त का तकाजा था कि देश का शासन लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार द्वारा चलाया जाए | सविधान ने नियम तय कर दिय थे और अब इन्ही नियमो पर करने की जरूरत थी शुरू-शुरू में ख्याल था कि यह काम महज चंद महीनों का है | भारत के चुनाव की जा रही थी कि देशं का पहला आम चुनाव 1950 में ही किसी वक्त हो जायगी |
- मतदाता-सूचियों का जब पहला प्रारूप प्रकाशित हुआ तो पता चला कि इसमे 40 लाख महिलाओं के नाम दर्ज हिने रहा है |उस वक्त देश में 17 करोड़ मतदाता थे | इन्हे 3200 विधयक और लोकसभा के लिए 489सांसद चुनने थे | इन मतदाताओ में महज 15 फिसदी साक्षर थे |
- चुनावों को दो बार स्थगित करना पड़ा और आख़िरकार 1951 के अक्टूबर से 1952 के फरवरी तक चुनाव हुए | बहरहाल,इस चुनाव को अमूमन 1952 का चुनाव ही खा जाता है क्योकि देश के अधिकांश हिन्सो में मतदान 1952 में ही हुई |चुनाव अभियान, मतदान और मतगणना में कुल छह महीने लगे | चुनावों में उम्मेद्वारो के बीच मुकाबला भी हुआ |ओसतन हर शीट के लिए चार उम्मीदार चुनो में मैदान थे |लोगो ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की | कुल मतदाताओ में आधे से अधिक ने मतदान के अपना वोट डाला | चुनावों के परिणाम घोषित हुई तो हरने वाले उम्मीद्वारे ने भी इन परिणामों को निष्पक्ष बताया |
- यहाँ एक चुनावी मानचित्र दिया गया है | इस पर एक नजर दौरान से आपको अंदाजा लगा जाएगा कि 1952-1962 के बीच कांग्रेस पार्टी किस कदर हावी थी | दूसरा आम चुनाव 1957में और तीसरे 1962 में हुआ | इन चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पुरानी स्थिति बरक़रार रखी और उसे तीन-चौथाई सीटें मिली | कांग्रेस पार्टी ने जितनी सीटें जीती थीं उसका दशांश भी कोई विपक्षी पार्टी नही जीत सकी | विधासभा के चुनावों में कही-कही कांग्रेस को बहुमत नही मिला | ऐसा ही एक महत्वपूर्ण उदाहरण केरल का है |1957 में केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की अगुआई में एक गठबंधन सरकार बनी | ऐसे एकाध मामलों को अपवाद मान ली तो कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार और प्रांतीय सरकारों पर कांग्रेस पार्टी का पूरा नियन्त्रण था |
- मिसाल के लिए 1952 में कांग्रेश पार्टी को कुल वोटो में से मात्र 45 प्रतिशत वोट हासिल हुई थे लेकिन कांग्रेस को 74 फीसदी सीटें हासिल हुई | सोशलिस्ट पार्टी वोट हासिल करने के लिहाज से दुसरे नंबर पर रही | उसे 1952 के चुनाव में पूरे देश में कुल 10 प्रतिशत वूत मिले थे लेकिन यह पार्टी 3 प्रतिशत शीटे भी नही जीत पायी |
- 1957 में ही कांग्रेस पार्टी को केरल में हर का स्वाद चखना पड़ गया था 1957के मार्च महीने में जो विधानसभा के चुनाव हुए उसमे कम्युनिस्ट पार्टी को केरल की विधानसभा के लिए सबसे ज्यादा सीटें मिली | कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 126 में से 60 सीटें हासिल हुई और पांच स्वतंत्र उम्मेद्वारो को भी समर्थन इस पार्टी को प्राप्त था |
- कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन खुद कांग्रेस के भीतर 1934 में युवा नेताओ की एक टोली ने किया था | 1948 में कांग्रेस ने अपने संविधान में बदलाव किया | बदलाव कांग्रेस सदस्य दोहरी सदस्यता न धारण कर सके |
- आप यह बात पढ़ चुके हैं कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था | उस वक्त यह नवशिक्षित ,कामकाजी और व्यापारिक वर्गो का एक हित- समूह भर थी लिकिन 20वी सदी में इसने ज्नादोलन का रूप ले लिया | इस वजह से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक -व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ |
- 1920 के दशक के शुरूआती सालो में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी -समूह (कम्युनिस्ट ग्रुप ) उभरे |1935से साम्यवादी ने मुख्यतया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दायरे में रहकर काम किया |
- संगठनों और पार्टियों के अपने-अपने संविधान थे |इनका सांगठनिक ढाँचा भी अलग था |इनमे से कुछ (मसलन कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी) बाद में काग्रेस से अलग हो गए और विपक्षी दल बने | किसी खास पदति या नीति को लेकर मौजूद मतभेदों को कांग्रेस पार्टी सुलझा भले न पाए लेकिन उन्हें अपने आप में मिलाए रखती था और एक आम सहमति कायम कर ले जाती थी |
- कांग्रेस के गठबंधनो स्वभाव ने उसे एक असाधारण ताकत दी | पहली बात ति यही कि जो भी आए, गठबंधन उसे अपने में शामिल कर लेता है |इस कारण गठबंधन को अतिवादी रूख अपनाने से बचना होता है और हर मसले पर संतुलन को साधकर चलता पड़ता है | सुलह-समझौते के रस्ते पर चलना और सर्व-समावेशी होना गठबंधन की विशेषता होती है इस रणनीति की वजह से विपक्ष कठिनाई में पड़ा |विपक्ष कोई बात कहना चाहे तो कांग्रेस की विचारधारा और कार्यक्रम रहता है |
- भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था |श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक -अध्यपक थे |इस दल की जड़े आजादी के पहले के समय से सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिन्दू महासभा में खोजी सकती है चीन ने 1964 में अपना आनिवक -परीक्षण किया था | इसके बाद से जनसंघ ने लगातार इस की पैरोकारी की भारत भी अपने आनिवक हथियार तैयार करो | 1950 के दशक में जनसंघ चुनावी राजनीति के हाशिए पर रहा |इस पार्टी को 1952 के चुनाव में लोकसभा की तीन सीटें पर मिलती और 1957 के आम चुनाव में इसने लोकसभा की 4 सीटें जीती |
- कांग्रेस की अधिकतर प्रांतीय इकाइयों विभिन्न गुटों को मिलकर बनी थी | ये गुट अलग-अलग विचारधारात्मक रूख अपनाते थे और कांग्रेस एक भारी - भरकर मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आती थी | दुसरी पार्टीयाँ मुख्यत: काग्रेस के इस या उस गुट को प्रभवित करने की कोशिक करती थी |
- इस तरह अपने देश में लोकतांत्रीक राजनीति का पहला दौरे एकदम अनूठा था | राष्ट्रीय आन्दोलन का चरित्र समावेशी था | इसकी अगुआई कांग्रेस ने की थी | राष्ट्रीय आदोलन के इस चरित्र के कारण कांग्रेस की तरफ विभिन्न समूह वर्ग और हितों के लोग आकर्षित 1948 में चर्कवर्ती राज्गोपलाच्र्री के गवर्नर-जनरल के पद की शपथ ग्रहण के बाद नेहरू मंत्रिमंडल | बैठे हुई बाए से दाएं | रफी अहमद किदवई बलदेव सिंह मोलाना आजाद प्रधनमंत्री नेहरू चक्रवर्ती राजगोपालाचारी सरदार वल्लभभाई पटेल राजकुमारी अम्रित कौर जोंन मथाई और जगजीवन राम | खड़ेखरे हुए बाएँ और दाएं :श्री गड्गिल , श्री नियोगी, डा . अम्बेदकर , श्यामा प्रसाद मुखर्जी , गोपालस्वामी आयंगर और जयरामदास दौलतराम |
अभीयास
Q1. सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें :
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ -साथ .................. के लिए भी चुनाव
कराएगए
थे |(भारत के राष्ट्रपति पद /राज्य विधानसभा/राज्यसभा/प्रधनमंत्री)
(ख) ................ लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दुसरे स्थान पर रही | (प्रजा
सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय जनसंघ/ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी/ भारतीय जनता पार्टी )
(ग) ................. स्वतंत्र पार्टी का एक निर्देशक सिदार्त था |(कामगार तबके का हित/रियासतों का बचाव)
राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यस्था / संघ के भीतर राज्यों की स्वायत्तता)
उत्तर :
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ राज्य विधानसभा के लिए भी चुनाव कराए गए थे |
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जित कर दूसरे स्थान पर रही |
(ग) राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था स्वतंत्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्दांत था |
Q2. यहाँ दो सुचियाँ दी गई है | पहले में नेताओ के नम दर्ज है दिसरे में दलों के | दोनों सूचियों में मेल बैठेए :
(क) इस.ए,डांगे (i) भारतीय जनसंघ
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी (ii) स्वतंत्र पार्टी
(ग) मीनू नसानी (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
(घ) अशोक मेहता (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर :
(क) एस. ए. डांगे (1) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ख) डॉ. श्यामा प्रशाद मुखर्जी (2) भारतीय जनसंघ
(ग) मीनू मसानी (3) स्वतंत्र पार्टी
(घ) अशोक मेहता (4) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
Q3. एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहाँ चार बयान लिखे गए है | प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिन्ह लगाएँ :
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी-प्रभुत्व का कारण था |
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ |
(ग) एकल की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ |
(घ) एकल पार्टी-प्रभुत्व से देश में लोकतंत्रिक आदर्शो के अभाव की झलक मिलती है |
उत्तर :
(क) सही (ख) गलत (ग) सही (घ) गलत |
Q4. अगर पसले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार
बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती ?इन दोनों दलों द्वारा
अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अन्तरो का उल्लेख करें |
उत्तर :
Q5. कांग्रेस किन अर्थो में एक विचारधारात्मक गठबंधन थी ? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न
विचारधारात्मक उपस्थितियो का उल्लेख करें |
उत्तर :
कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबंधन थी, क्योंकि कांग्रेस में ऐसे बहुत व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह थे, जो अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ मिला नहीं पाए, तथा अपने- अपने विचारो एवं मूल्यों को मानते हुए भी कांग्रेस में बने रहें | कांग्रेस में नरमपंथी, गरमपंथी, दक्षिणी पंथी, वामपंथी, क्रांतिकारी और शांतिवादी तथा कंजरवेटिव एवं रेडिकल जैसे विचारधारात्मक गठबंधन पाए जाते हैं |
Q6. क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर
हुआ ?
उत्तर :
इस कथन में सच्चई है कि एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीती के लोकतान्त्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ | क्योंकि इस कारण कोई भी अन्य विचारधारात्मक गठबंधन या पार्टी उभर कर सामने नहीं आ पाई तथा मतदाताओ के पास भी कांग्रेस को समर्थन देने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं है |
Q7. समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बटाएँ | इसी तरह भारतीय जनसंघ
और स्वतंत्र पार्टी के बीच के तीन अन्तरो का उल्लेख करें |
Q8. भारत और मैक्सिको दोनों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा | बताएं कि
मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था ?
उत्तर :
भारत और मैक्सिको में दोनों देशों में एक खास समय में एक ही दल का प्रभुत्व था | परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था | जहां भारत में लोकतान्त्रिक आधार पर एक दल का प्रभुत्व कायम था वहीं मैक्सिको में एक दल की तानाशाही पाई जाती है, तथा लोगों को अपने रखने का अधिकार नहीं था |
Q9. भारत का एक रजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हो ) और
उसमे निम्नलिखित को चिहित कीजिए :
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67के दौरान कांग्रेस सता में नही थी |
(ख) दो ऐसे राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में काग्रेस सता में रही |
Q10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उतर दीजिए :
कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दुसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वाग्स्म
तथा अनुश्सित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे | वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने
वाला स्वभाव छोड़े और अनुश्षित काडर से युक्त एक सगुफित पार्टी के रूप में उभरे | यथार्थवादी
होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुश्सन को ज्यादा तरजीह देते थे अगर ''आन्दोलन को
चलाते चले जाने के बारे में गांधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक
विचारधारा पर चलने वाले अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदले की पटेल की
धारणा भी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चुक गई जिसे कांग्रेस को
आने वाले दशको में निभाना था |
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को सर्वागसम तथा अनुशासित पार्टी नही होना चहिए ?
(ख) शुरुआती सैलून में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए |
उत्तर :
(क) लेखक का यह विचार है, कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नही होनी चाहिए, क्योंकि एक एक अनुशासित पार्टी में किसी विवादित विषय पर स्वस्थ विचार-विमर्श सम्भव नहीं हो पाता, जोकि देश एवं लोकतंत्र के लिए अच्छा होता है | लेखक का यह विचार है कि कांग्रेश पार्टी में सभी धर्मो, जातियों, एवं विचारधाराओ के नेता शामिल हैं | उन्हें अपनी बात कहना का पूरा हक़ है, तभी देश का वास्तविक लोकतंत्र उभर कर सामने आएगा | इसलिए लेखक कहता है कि कांग्रेस पार्टी को सर्वांगसम एवं अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए |
(ख) कांग्रेस पार्टी की स्थापना 1885 में हुई | अपने शुरुआती वर्षों में इस पार्टी ने कई विषयों में महतवपूर्ण समन्वयकारी भूमिका निभाई | इस पार्टी ने देश के नागरिकों एवं ब्रिटिश सरकार के मध्य एक कड़ी का कार्य किया |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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