Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Political Science-II class 12 exercise page 3
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Political Science-II class 12 exercise page 3 ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय-समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- सन 1947 के 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को हिदुस्तान आजाद हुआ | स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधनमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस रात संविधान सभा के एक विशेष सत्र को संबोधिक किया था | उनका यह परषिद भाषण ' भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेट या तिर्स्त विद डेस्टिनी के नाम से जाना गया |
- हिदुस्तान की जनता इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी |आपने इतिहास की पाठयपुस्तको में पढ़ा है कि हमारी आजादी की लड़ाई में कई आवाजें बुलंद थीं | बहरहाल दो बातो पर सबकी सहमति थी-पहली बात यह कि आजादी के बाद देश का शासन लोकतंत्रीक सरकार के जरिए चलाया जाएगा और दुसरे यह कि सरकार सबके भले के लिए काम करेगी |इस शासन में गरीबों और कमजोरों का खास ख्याल रखा जाएगा |देश अब आजाद हो चूका था और आजादी से जुड़े इन सपनों को साकार करने का वक्त आ गया था |
- यह कोई आसन काम नही था | आजाद हिदुस्तान का जन्म कठिन परिस्थितियों में हुआ | हिंदुस्तान सन 1947 में जिन हालत के बीच आजाद हुआ शायद उस वक्त तक कोई वैसे हालत में आजाद नहीं हुआ था | आजादी मिली लेकिन देश के बंटवारे के साथ सन 1947 का साल अभूतपूर्व हिसा और विस्थापना की त्रासदी का साल था | आजाद हिंदुस्तान को इन्ही परिस्थितियों में अपने बहुविध लक्ष्यों को हासिल करने की यात्रा शुरू करनी पड़ी | आजादी के उन उथल-पुथल भरे दिनों में हमारे नेताओ का ध्यान इस बात से नही भटका कि यह न्य राष्ट्र चुनौतियों की चपेट में है |
- तीन चुनौतियं थी | पहली और तात्कालिक चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक इसे भारत को गढने की थी जिसमे भारतीय समाज की सारी विविधताओ के लिए जगह हो भारत अपने आकर और विविधता में किसी महादेश के बराबर था| यहाँ अलग-अलग बोलने वाले लोग थे उनकी संस्कृति अलग थी | और वे अलग-अलग धर्मो के अनुयायी थे | उस वक्त आमतौर पर यही माना जा रहा था कि इतनी विविधताओ से भरा कोई देश ज्यादा दिनों तक एकजुट नही रहा सकता | देश के विभाजन के साथ लोगो के मन में समाई यह आशंका एक तरह से सच साबित हुई थी | भारत के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े थे : क्या भारत एक रहा पाएगा ? क्या ऐसा करने के लिए भारत सिर्फ राष्ट्रीय एकता की बात पर सबसे ज्यादा जोर देगा और बाकी उदेश्यों को तिलांजली दे देगा ? क्या ऐसे में हर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान को ख़ारिज कर दिया जाएगा ?उस वक्त का सबसे तीखा और चुभता हुआ एक सवाल यह भी था भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कैसे हासिल किया जाए ?
- दुसरी चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी | आप भारतीय संविधान के बरी में पहले ही पढ़ चुके है आप जानते है कि संविधान में संविधान में मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है और हर नागरिक को मतदान का अधिकार दिया गया है | भारत ने शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व्मुल्क लोकतंत्र को अपनाया | इन विशेषताओ से यह सुनिश्चित हो गई कि लोकतांत्रिक ढाँचे के भीतर राजनीतिक मुकाबले होगे | लोकतंत्र को कायम करने के लिए लोकतात्रिंक संविधान जरूरी होता है लेकिन इतना भरा ही काफी नही होता चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार-बरताव चलन में आएँ|
- तीसरी चुनौती थी ऐसे विकास की जिससे समूचे समाज का भला होता हो न कि कुछ एक तबकों का | इस मोर्चे पर भए सविधान में यह बात साफ कर दी गई थी कि सबके साथ समानता का बरताव का किया जाए और अमजिक रूप से वचित तबको तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसख्यक समुदयेओ को विशेष सुरक्षा दी जाए | सविधान ने राज्य के नीति-निर्देशक सिदाद्हतो के अंतर्गत लोक-कल्याण के उन लक्ष्यों को भी स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीतिक को जरूर पूरा करना चाहिए | अब असली चुनौती आर्थिक विकास तथा गरीबी के खात्मे के लिए कारगर नीतियों को तैयार करने की थी |
- आजादी के तुरंत बाद राष्ट्र-निर्माण की चुनौती सबसे प्रमुख थी | इस पहले अध्याय में हम इसी चुनौती पर ध्यान केन्द्रित करेगें | शूरुआत में उन घटनाओं की चर्चा की जाएगी जिन्हेंने आजादी को एक सन्दर्भ प्रदान किया | इससे हमे समझेने में मदद मिलेगी कि अगले दो अध्यायों में हम लोकतंत्र कायम करने और बराबरी तथा इंसाफ पर आधारित आर्थिक - विकास हासिल करने की चुनौती पर विचार करेगें |
- सन 1947 में बड़े पैमाने पर एक जगह की आबादी दुसरी जगह जाने को मजबूत हुई थी | आबादी का यह स्थानातर्ण आक्स्निक अनियोजीत और त्रासदी से भरा था | मनवा-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बरे स्थानान्तारानो में से यह था |
- भारत और पाकिस्तान के लेखक कवि तथा फिल्मो- निर्मंताओ ने अपने उपन्यास लघुकथा कविता और फिल्मो में इस मर-काट की न्रीश्स्ता का जिर्क किया विस्थापना और हिंसा से पैदा दुखों को अभिव्यकित दी |
- बिर्टिश इण्डिया दो हिस्सों में था एक हिस्से में ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीयों प्राप्त थे तो दुसरे हिंसे में देसी रजवाड़े | ब्रिटिश पर्भुत्व वाले भारतीय प्रातो पर अंग्रेजी सरकार का सीधा नियन्त्रण था | दुसरे तरफ छोटे- बड़े आकरे के कुछ और राज्य थे |
- शंतिपोर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाडे जिनकी सीमाएं आजाद हिंदुस्तान की नई सीमाओं से मिलती थी | 15 अगस्त 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गया |
- हैदराबाद की रियासत बहुत बड़ी थी यह रियासत चारो तरफ से हिन्दुस्तानी इलाके से घिरी थी | पुराने हैदराबाद के कुछ हिस्से आज के महाराष्ट तथा कर्नाटक में और बाकी हिस्से आंध्रप्रदेश में है | निजाम ने सन 1947 के नवंबर में भारत के साथ स्थिति बाहल रखने का एक समझौता किया |
- आजादी के चंद रोज पहले मणिपुर के महाराज बोद्चन्द्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के एक सहमती -पत्र पर हस्ताक्षर किए थे | इसकी एवज में उन्हें यह आश्वासन दिया गया थी कि मणिपूर की आंतरिक स्वायत्तता बरकरार रहेगी | जनमत के दबाव में महाराजा ने 1948 के जून में चुनाव के फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधनिक राजतन्त्र कायम हुआ |
- हमारी राष्टीय सरकार ने ऐसे सीमांकन को बनावटी मानकर ख़ारिज कर दिया | उसने भाषा के आधार अपर राज्यों के पुनर्गठन का वायदा किया | सन 1920 में कांग्रेस का नागपुर अधिवेसन हुआ था |
- आंध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश ही के दुसरे हिन्स्सो में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठिन करने का संघर्स चल पड़ा | इन संर्घष से बंधे होकर केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया | इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ | इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र- शासित प्रदेश बनाये गये |
- भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटन को 50 साल से भी अधिक समय हो गया | राजनीतिक और सता में भागीदारी का रास्ता अब एक छोटे-से अंग्रेजी भाषी अभिजात तबके के लिय ही नही बाकियों के लिय भी खुल चूका था |
अभीयास
Q1.भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है ?
(क) भारत-विभाजन दरी-राष्ट्र सिद्धांत का परिणाम था |
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों-पंजाब और बंगाल- का बंटवारा हुआ |
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगती नही थी |
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशो के बीच आबादी की अदला-बदली
होगी |
उत्तर :
(घ) |
Q2. निन्मलिखित सिदान्तो के साथ उचित उदाहरनो का मेल करे :
(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ख) विभिन्न भाषाओ के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण 2. भारत और पाकिस्तान
(ग) भौगोलिक आधार अपर किसी देश के क्षेत्रो का सीमांकन 3. झारखंड और छतीसगढ़
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रो का सीमाकं 4. हिमाचल प्रदेश और उतराखंड
उत्तर :
(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण (2) भारत और पाकिस्तान
(ख) विभिन्न भाषा के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण (1) पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ग) भौगोलिक आधार पर देश की सीमा का निर्धारण (4) हिमाचल प्रदेश और उतराखंड
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनितिक (3) झारखण्ड और छतीसगढ़ |
आधार पर क्षेत्रो का सीमांकन |
Q3. भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमे राज्यों की सीमाएँ दिखाए गए हों ) और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिन्हित कीजिए -
(क) जूनागढ़ (ख) मणिपुर
(ग) मैसूर (घ) ग्वालियर
उत्तर :
Q4. नीचे दो तरह की राय लिखी गई है :
विस्मय : रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्मय हुआ |
इन्द्रप्रीत : यह बात दावे के साथ नही कह सकता | इसमे बल प्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतंत्र में आम सहमती से सहमती से काम लिया जाता है | देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है ?
उत्तर :
इस बात में पूर्ण सच्चाई है कि रियासतों को भारतीय संघ में मिलने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ अर्थात इन रियासतों के लोग अब स्वमं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने लगे तथा उन्हें अपने विचार व्यक्त करने तथा सरकार की आलोचना का भी आधिकार हो गया | यद्दपि कुछ रियासतों को भारत में मिलने के लिए कुछ बल प्रयोग किया गया, परन्तु तात्कालिक परिस्थितियों में इन रियासतों पर बल प्रयोग करना आवश्यक था, क्योंकि इन रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया था तथा इनकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी, कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को सदैव खतरा बना रहता | दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जो बल प्रयोग किया गया, वह इन रियासतों की जनता के विरुद्द किया गया, और जब ये रियासते भारत में शामिल हो गई, तब इन रियासतों के लोगो को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार प्रदान कर दिए गए |
Q5. नीचे 1947के अगस्त के कुछ बयान दिए गए है जो अपनी प्रकृति अत्यंत भिन्न है : आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है |सता का आसन एक बुरी चीज है इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा ... आपको और ज्यादा विन्रम और धैर्यवान बनाना होगा ... अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी |
मोहनदास करमचंद गाँधी
भारत आजादी की जिदगी के लिए जागेगा हम पुराने से नए की और कदम बढ़ेंगे ... आज दुर्भाग्य के एक दौर का खत्म होगा हिदुस्तान अपने को फिर से पा लेगा ... आज हम जो जश्न मना रहे है वह कदम भर है संभवनाओ के द्वारा खुल रहे है ...
जवाहरलाल नेहरू
इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेडा ध्वनित होगा है उसे लिखिए | आपको कौन -सा एजेंडा जँच रहा है और क्यों ?
उत्तर :
मोहनदास करमचन्द गांधी एवं पं जवाहर लाल नेहरु दोनों के बयान राष्ट्र- निर्माण से सम्बंधित हैं, परन्तु प्रकृति में सर्वथा भिन्न हैं | जहां गाँधी जी ने देश के नये शासकों को यह कहकर आगाह किया हैं, कि भारत पर स्वमं शासन करना आसान नहीं होगा, क्योंकि भारत में कई प्रकार की समस्याएं हैं, जिन्हें हल करना होगा, वहीं पं नेहरु के बयान में भविष्य के राष्ट्र की कल्पना की गई है जिसमे उन्होंने वक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की है, जो आत्म-निर्भर एवं स्वाभिमानी बनेगा | हम यह पर पं नेहरु के बयान से आधिक तौर पर सहमत हैं, क्योंकि उनके बयान में भविष्य के सम्रद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के दर्शन होते हैं |
Q6.भारत को धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्को का इस्तेमाल किया | क्या आपको लगता है कि वे केवल भवनात्मक और नैतिक तर्क है अथवा इनमे कोई तर्क युवितपरक भी है ?
उत्तर :
पं जवाहर लाल नेहरु जीवन की समस्याओं के प्रति सदैव धर्म-निरपेक्ष दृष्टीकोण रखते थे | उनकी मानसिक प्रवृति वैज्ञानिक थी | उन्होंने प्रथाओं तथा परम्पराओं का विरोध किया था | वह धर्म को राजनीती से दूर रखना चाहते थे वह प्रजा तंत्र को तभी सफल कहते थे जब उसका आधार धर्म-निरपेक्षता हो | उन्हें रहस्यवाद से चिढ थी क्योंकि उसे वह अस्पष्ट तथा परलौकिक समजते थे | उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक तथा यथार्थवादी था | उन्होंने आध्यात्मिक विषयों जैसे आत्मा व जीवन-म्रत्यु आदि को महत्व की दृष्टी से नहीं देखा था | उनकी धर्म- निरपेक्षता के प्रति गहन निष्ठा थी | उनका विचार था कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नही होना चाहिए, न ही उसे किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित करना चाहिए और न ही उसका विरोध करना चाहिए | राज्य को सभी धर्मो के साथ समान व्यवाहर करना चाहिए और सभी धर्मो को उनके क्षेत्र से पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए | अपनी आत्मकथा में वे लिखते हैं :- धर्म, विशेषत: एक संगठित धर्म, का जो रूप मै भारत में तथा अन्यत्र देखता हु वह मुझे भयभीत कर देता है, मैं प्रायः उसकी निंदा करता हूँ, और इसका उन्मूलन कर देना चाहता हूँ | धर्म ने सदैव अन्धविश्वास, मतान्धता, प्रतिक्रियावाद, शोषण तथा निहित स्वार्थो को पुष्ट किया जाता है | धर्म-निरपेक्षता पर विचार प्रकट करते हुए अपने एक भाषण में नेहरु जी ने कहा था कि भारत एक धर-निरपेक्ष राज्य है, इसका अर्थ धर्महीनता नहीं इसका अर्थ सभी धर्मो के प्रति समान आदर- भाव तथा सभी व्यक्तियों के लिए समान अवसर है - चाहे कोई भी व्यक्ति किसी धर्म का अनुयायी क्यों न हो | इसलिए हमे अपने दिमाग, अपनी संस्कृति के आदर्शमय पहलू को ही सदा दिमाग में रखना चाहिए जिसका आज के भारत में सबसे अधिक महत्व है | यद्दपि नेहरु जी धर्म-निरपेक्षता में पूर्ण विश्वास रखते थे परन्तु परन्तु वह धर्म विरोधी या नास्तिक नहीं थे | धर्म शब्द के उच्चतर अर्थ में तो उन्हें एक अत्यंत धार्मिक व्यक्ति समजा जा सकता है उनकी धर्म सम्बन्धी अवधारणा संकुचित न होकर अत्यधिक विशाल थी | उन्होंने स्वमं ही कहा कि मै कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं हूँ, परन्तु मैं किसी वस्तु में विश्वास अवश्य करता हूँ जो मनुष्य को उसके समान्य स्तर से ऊंचा उठाती है तथा मानव के व्यक्तित्व को आध्यात्मिक गुण तथा नैतिक गहराई का एक नवीन प्रमाण प्रदान करती है | हम इसे धर्म या जो चाहे कह सकते हैं | इसे ध्यान में रखकर ही वह भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाना पसंद करते थे |
Q7. आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर क्या थे ?
उत्तर :
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाको में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर निम्नलिखित थे -
1. पूर्वी क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में विकास की चुनौती थी |
2. पूर्वी क्षेत्र में भाषायी समस्या अधिक थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में धार्मिक एवं जातिवादी समस्याएं अधिक थीं |
Q8. राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था ? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी ?
उत्तर :
राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना 1953 में की गई थी | इस आयोग का मुख्य कार्य राज्यों के सीमांकन के विषय पर गौर करना था | इस आयो ने सिफ़ारिश की कि राज्यों की सीमओं का निर्धारण वहां बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए |
Q9.कजतहा है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थमे कलिप्त समुदाय होता है और सर्वसामान्य विश्वास , इतिहास राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओ से एकसूत्र में बंधा होता है | उन विशेषताओ की पहचान करे जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है |
उत्तर :
भारतीय राष्ट्र की निम्नलिखित विशेषताए हैं :-
1. भौगोलिक एकता :- भौगोलिक एकता में राष्ट्रवाद का विकास होता है |जब मनुष्य कुछ समय के लिए एक निश्चित प्रदेश में रह जाता है तो उसे उस प्रदेश से प्रेम हो जाता हैं और यदि उसका जन्म भी उस प्रदेश में हुआ हो तो प्यार की भावना और तीव्र हो जाती है | खानाबदोश कबीलों में राष्ट्रीय भावनाए उत्पन्न नहीं होती क्योंकि वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते- फिरते रहते है |
2. सामान्य हित :- भारतीय राष्ट्र के लिए सामान्य हित महत्वपूर्ण तत्व है | यदि लोगो के सामाजिक, आर्थिक, और रजनीतिक तथा धार्मिक हित समान हों तो उनमे एकता की उत्पति होना स्वाभाविक ही है | 18वीं शताब्दी में अपने आर्थिक हितो की रक्षा के लिए अमेरिका के विभिन्न राज्य आपस में संगठित हो गए और उन्होंने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी |
3. सामान्य मातृभूमि :- प्रत्येक मनुष्य को अपनी मातृभूमि अर्थात् अपे जन्म स्थान से प्यार होना स्वाभाविक ही है | एक ही स्थान या प्रदेश पर जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इया प्यार के कारण आपस में एक भावना के अन्दर बंध जाते है | भारत से लाखो की संख्या में सिख इंग्लैंड, कनाडा आदि दूसरे देशों में गए हुए हैं परन्तु मातृभूमि के प्यार के कारण वे अपने आपको सदा भारतीय राष्ट्रयता का अंग मानते है |
4. सामान्य इतिहास :- सामान्य इतिहास भी भारतीय राष्ट्र का महत्वपूर्ण तत्व है | जिन लोगो का सामान्य इतिहास होता है, उनमे एकता की भावना का आना स्वभाविक हैं |
5. लोक इच्छा :- भारतीय राष्ट्र में एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व लोगों में राष्ट्रवाद बनने की इच्छा है | मैजिनी ने लोक इच्छा को राष्ट्र का आधार बताया हैं |
6. सामान्य रजनीतिक आकांक्षाएं :- भारतीय राष्ट्र में सामान्य रजनीतिक आकांक्षाएं महत्वपूर्ण तत्व है | स्वतंत्रता की भावना तथा अपनी सरकार की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होती है | जब लोगो के समूह में विदेशी राज्य को समाप्त करने की भावना होती है तो राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न होती है | भारत अंग्रेजो के अधीन था, परन्तु स्वतंत्रता की इच्छा इतना बल पकड़ गई कि विभिन्न धर्मो तथा विभिन्न भाषाओ के लोग भी इकटठे हो गए और एक राष्ट्रीयता में बंध गए और इकटठे होकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी | आज भी भारतियों में राष्ट्रीयता की भावना का एक कारण रजनीतिक आकांक्षाएं हैं |
Q10. नीचे लिखे अवतरण को पढिए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उतर दीजीए -
राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की हा सकती है | सोवियत संघ ने भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह धर्म भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गो के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा | जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखे या जनसख्या वैविध्य के लिहाज से वह अपनाप में बहुत व्यापक कहा जाएगा | दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरूआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी | लोग धर्म के आधार पर बंटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे|
(क) यहाँ लिखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओ का उल्लेख किया है , उनकी एक सूची बनिए |इनमे से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदहारण दीजीए |
(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रकियाओ के बीच की असमानता का उल्लेख नही किया है क्या आप दो असमानताएँ बता सकते है ?
(ग) अगर पीछे मुड़कर देखे तो आप क्या पते है ? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों ?
उत्तर :
(क) सोवियत संघ की तरह भारत में भी जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गो में एकता का भाव पाया जाता है |
(ख) (1) सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण हुआ,जबकि भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण हुआ |
(2) सोवियत संघ में राष्ट्र- निर्माण के लिए आत्म-निर्भरता का सहारा लिया था जबकि भारत ने कई तरह से बाहरी मदद से राष्ट्र-निर्माण के कार्य को पूरा किया |
(ग) अगर हम पीछे मुड़कर देखे, तो पाएँगे कि भारत में किए राष्ट्र- निर्माण के प्रयोग बेहतर रहें,परन्तु 1991 में सोवियत संघ के विघटन ने उसके राष्ट्र-निर्माण के प्रयोगो पर प्रश्न- चिह्न लहै दिया |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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