Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय Political Science-II class 12 exercise page 3
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय Political Science-II class 12 exercise page 3 ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय-समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- इस अध्याय के शुरूआती चित्र पर ध्यान दीजिए | आप इसमे क्या देख रहे हैं ?गाँव की महिलाओ ने सचमुच पेड़ो को अपनी बाँहों में बांध रखा है | क्या ये लोग कोई खेल खेल रहे है या, ये लोग कोई पर्व-त्यौहार मना रहे है ? दरअसल चित्र में नजर आ रहे लोग ऐसा कुछ नही कर रहे है.| यहाँ जो तसवीर दी गई है उसमे सामूहिक कार्रवाई की एक असाधारण घटना को दर्ज किया गया है | यह घटना 1973 में घटी जब मौजूदा उतराखंड के एक गाँव के स्त्री-पुरूष एकजुट हुए और जंगलो की व्यावसायिक कटाई का विरोध किया |
- जंगलो की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नही दिया जाना चाहिए और स्थानीय लोगो का जल जंगल जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनो पर कारगर नियन्त्रण होना चाहिए | लोग चाहते थे कि सरकार लघु- उधोगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए और इस क्षेत्र के परिस्थितियों संतुलन को नुकसान पहुंचाए बगैर यहाँ का विकास सुनिश्चित करे|
- चिपको आन्दोलन में महिलाओ ने सक्रिय भागीदारी की | यह आन्दोलन का एकदम नया पहलू था | इलाके में सक्रिय जंगल कटाई के ठेकेदार यहाँ के पुरूषों को शराब की आपूर्ति का भी व्यवसाय करते थे | महिलाओ ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी लगातार आवाज उठ्यी | इससे आन्दोलन काका दायरा विस्तरीत हुआ और उसमे कुछ और सामाजिक मसले आ जुड़े |
- जन आन्दोलन कभी सामाजिक तो कभी राजनीतिक आन्दोलन का रूप ले सकते है और अकसर ये आन्दोलन दोनों ही रूपों के मेल से बने नजर आते है | लेकिन हम जनते है कि ओपनिवेशिक दौर में सामाजिक-आर्थिक मसलो पर भी विचारो मथन चला जिससे अनेक स्वतंत्र सामाजिक आन्दोलन का जन्म हुआ जैसे -जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठनों के आंदोलन |ये आंदोलन बीसवी सदी के शुरूआती दशको में अस्तित्व में आए |
- आजादी के बाद के शुरूआती सालो में आंध्रप्रदेश के तेलगाना क्षेत्र के किसान कम्युनिस्ट पार्टीयो के नेतित्व में लामबंद हुए | काश्तकारो के बीच जमीन के पुनविर्तर्ण की मांग की | आंध्रप्रदेश पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागो में किसान तथा खेतिहर मजदूरों ने मार्क्सवादी - लिनिन्वादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्य के कार्यकर्ताओ के नेत्रित में अपना विरोध जरी रखा |
- सतर' और अस्सी ' के दशक में समाज के कई तबको का राजनीतिक दलों के आचार -व्यवहार से मोहभंग हुवा | इसका तत्कालीन कारण तो यही था कि जनता पार्टी के रूप में गैर -कांग्रेसवाद का प्रयोग कुछ खास नही चल पाया और इसकी असफलता से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल भी कायम हुआ था | लेकिन अगर कारणों की खोज जरा दूर तक करे तो पता चलेगा कि सकारो की आर्थिक नीतिओ से भी लोगो का मोहभंग हुआ था |
- आजादी के शुरूआती 20 सालो में अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में उलेखनीय स्न्व्रीदी हुई , लेकिन इसके इसके बावजूद गरीबी और असमानता बड़े पैमाने पर बरकरार रही स्न्वीरिदे के लाभ समाज के हर तबके को समान मात्रा में नही मिले |
- दलित हितो की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओ का एक संघठन दलित पैथर्स बना | आजादी के बाद के सालो में दलित समूह मुख्यतया जाती-आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे |
- सतर के दशक से भारतीय समाज में कई तरह के असंतोष पैदा हुआ | यहाँ तक कि समाज के जिन तबको को विकास में कुछ लाभ हुआ था उनमे भी सरकार और राजनीतिक दलों के प्रति नाराजगी थी 1988 के जनवरी में उतरप्रदेश के एक शहर मेरठ में लगभग बीस हजार किसान जमा हुए |किसान सरकार द्वारा बिजली की डर में की गई बढ़ोतरी का विरोधी कर रहे थे |
- तीसरी अध्याय में आपने पढ़ा था कि सरकार ने जब हरिंत क्रांति की नीति अपनाई तो 1960 के दशक के अंतिम सालो से हरियाणा पंजाब और पश्चिमी उतर प्रदेश के किसानो को फायदा होना शुरू हो गया | 1980 के दशक के उतरार्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के प्रयास हुए और इस कर्म में नगदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा |
- 1990के दशक के शुरूआती सालो तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रख थे यह अपने सदस्यों के संख्या बल के डीएम पर राजनीतिक में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था |1980 के दशक के मध्यवर्ती वर्षो में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआती हुई तो बाध्य होकर मछुआरो के स्थानीय संगठनों ने अपना एक राष्ट्रीय मंच बनाया |
- नेशनल फिश्वर्क्र्स फोरन ने 1997 में केंद्र सरकार के साथ अपनी पहली क़ानूनी लड़ाई लडी और इसमे उसे सफलता मिली | इस कर्म में इसके कामकाज ने एक ठोस रूप भी ग्रहण किया |पूरे 1990के दशक में एनएफएफ ने केंद्र सरकार के साथ अनेक कानूनी लड़ाईया लडी और सार्वजनिक संघर्ष किया हैं |
- वर्ष 1992 के सितम्बर और अक्टूबर माह में इस तरह की खबरे तेलुगु प्रेस में लगभग रोज दिखती थी | गाँव का नाम बदल जाता खबर वैसे ही होती ग्रामीण महिलाओ ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी |
- आठवें दशक के प्रारंभ में भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्य प्रदेश गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायता नदियों पर 30 बड़े 135 मझोले तथा 300 छोटे बांध बनाने का प्रस्तवा रखा गया |
अभीयास
Q1. चिपको आन्दोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से कथन गलत है :
(क) यह पेड़ो की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आन्दोलन था |
(ख) इस आन्दोलन ने पर्रिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए |
(ग) यह महिलाओ द्वारा शुरू किया शराब-विरोधी आन्दोलन था |
(घ) इस आन्दोलन की माँग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राक्रितिक संसाधनो होना चाहिए |
उत्तर :
(ग) |
Q2. नीचे लिखे कुछ कथन गलत है इनकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरूस्त करके
दोबारा लिखे :
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे है |
(ख) सामाजिक आंदोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गो के बीच व्याप्त उनका जनाधार है |
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुदो को नही उठाया | इसी कारण सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ |
उत्तर :
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतंत्र को बढावा देरहे है |
(ख) यह कथन पूर्ण रूप से सही है |
(ग) यह कथन पूर्ण रूप से सही है |
Q3. उतर प्रदेश के कुछ भागों में (अब उतराखंड)1970 के दशक कारणों से चिपको आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
भारत में पर्यावरण से सम्बंधित सर्वप्रथम आन्दोलन चिपको आन्दोलान के रूप में माना जाता है | चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ | | चिपको आन्दोलन का अर्थ है - पेड़ से चिपक जाना अर्थात पेड़ को आलिंगनबद्ध कर लेना | चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप पड़ने वाले जंगल के पेड़ो को कटने का फैसला किया | लेकिन गाँव वालो ने इसका विरोध किया | परन्तु जब एक दिन गांव के सभी पुरुष गाँव के बाहर गए हुए थे, तब ठेकेदारों ने पेड़ो को काटने के लिए अपने कर्मचरियों को भेजा | इसकी जानकारी जब गांव की महिलाओं को मिली, तब वह एकत्र होकर जंगल पहुच गई तथा पेड़ो से चिपक गई | इस कारण ठेकेदार के कर्मचारी पेड़ो को न काट सके | इस घटना की जानकारी पुरे देश में समाचार- पत्रों के द्वारा फ़ैल गई | पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित इस आन्दोलन को भारत में विशेष स्थान प्राप्त है | इस आन्दोलन की सफलता ने भारत में चलाये गए अन्य आन्दोलनों को भी प्रभावित किया | इस आन्दोलन से ग्रामीण क्षेत्रो में व्यापक जागरूकता के आन्दोलन चलाये गए |
Q4. भारतीय किसान यूनियन किसानो दूरदर्शन की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन
है | नब्बे के दशक में इसके किन मुदों को उठाया और ऐसे कहाँ तक सफलता मिली ?
उत्तर :
भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ के सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोतरी कृषि उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही पर लगी रोक को हटाने, समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने, किसानों के बकाया कर्ज माफ़ करने तथा किसानो के लिए पेंशन आदि जैसे मुद्दे को उठाया | इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी कुछ मांगो को मनवाने में सफलता प्राप्त की |
Q5. आंध्रप्रदेश में चले शराब-विरोध आन्दोलन ने देश का ध्यान कुछ गभीर मुदो की तरफ खीचा | ये
मुदे क्या थे ?
उत्तर :
आंध्र प्रदेश में चले शराब- विरोधी आन्दोलन में निम्नलिखित मुद्दे उभरे -
(1) शराब पिने से पुरुषो का शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होना |
(2) ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना |
(3) शराबखोरी के कारण ग्रामीणों पर कर्ज का बोझ बढना |
(4) पुरुषो द्वारा अपने कम से गैरहाजिर रहना |
(5) शराब माफिया के सक्रिय होने से गांवों में अपराधों का बढ़ना |
(6) शराबखोरी से परिवार की महिलाओं से मारपीट एवं तनाव होना |
Q6. क्या आप शराब-विरोधी आन्दोलन को महिला - आन्दोलन का दर्जा देगे ? कारण बटाएँ |
उत्तर :
शराब- विरोधी आन्दोलन को महिला आन्दोलन का दर्जा दिया जा सकता है, क्योंकि अब तक जितने भी शराब-विरोधी आन्दोलन हुए हैं, उनमे महिलाओं की भूमिका सबसे अधिक रहीं है |
Q7. नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बांध परियोजनाओ का विरोध क्यों लिया ?
उत्तर :
नर्मदा बाँध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओं आन्दोलन चलाया गया | आन्दोलन के समर्थको का यह मत है, कि बाँध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएँगे |
Q8. क्या आन्दोलन और विरोध की कार्रवाईयों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है ? अपने उतर की
पुष्टि में उदहारण दीजिए |
उत्तर :
जन अथवा सामाजिक आन्दोलन भारतीय लोकतंत्र को सुद्रढ बनाते हैं | जन-आन्दोलन अथवा सामाजिक आन्दोलन का अर्थ केवल सामूहिक कार्यवाही ही नहीं होता, बल्कि आन्दोलन का एक काम सम्बंधित लोगों को अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी बनता है | भारत में चलने वाले विभिन्न सामाजिक आन्दोलनों ने लोगों को इस सम्बन्ध में जागरूक बनाया है तथा लोकतंत्र को मजबूत किया है | भारत में समय-समय पर चिपको आन्दोलन, ताड़ी विरोधी आन्दोलन,नर्मदा बचाओं आन्दोलन तथा सरदार सरोवर परियोजना से सम्बंधित आन्दोलन चलते रहें हैं | इन आन्दोलनों ने कहीं-कहीं भारतीय लोकतंत्र को मजबूत किया हैं इन सभी आन्दोलनों का उद्देश्य भारतीय दलीय राजनीती की समस्या को दूर करना था सामाजिक आन्दोलन ने उन वर्गों के सामाजिक आर्थिक हितो को उजागर किया, जोकि समकालीन रजनीतिक के द्वारा नहीं उभरे जा रहें थे इस प्रकार सामाजिक आन्दोलनों ने समाज के गहरे तनाव और जनता के क्रोध को एक सकारात्मक दिशा देकर भारतीय लोकतंत्र को सुद्र्ण किया हैं | इसके साथ-साथ सक्रिय रजनीतिक भागीदारी के नये- नये रूपों के प्रयोगों ने भी भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है | ये आन्दोलन जनसाधारण की उचित मांगो को उभार कर के सरकार के सामने रखते हैं तथा इस प्रकार जनता के एक बड़े भाग को अपने साथ जोड़ने में सफल रहते हैं | अतः जिस आन्दोलन में इतनी बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं, उसको समाज की स्वीकृति भी प्राप्त होती है तथा इससे देश में लोकतंत्र को मजबूती भी मिलती है |
Q9. दलित-पैथर्स ने कौन -से मुदे उठाए ?
उत्तर :
दलित पैंथर्स ने दलित समुदाय से सम्बंधित सामाजिक आसमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दे उठाए |
Q10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उतर दे :
.....लगभग सभी नए सामाजिक आन्दोलन नयी समस्याओ जैसे-पर्यावरण का विनाश,महिलाओ की बदहाली आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन .........के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे | इनमे से कोई भी अपनेआप में समाजव्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नही जुड़ा था | इस अर्थ में ये आन्दोलन अतीत की कान्तिकारी विचारधाराओ से एकदम अलग है | लेकिन ये आन्दोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए है और यही इनकी कमजोरी है ..... सामाजिक आन्दोलन का एक बड़ा दायरा एसी चीजो की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आन्दोलन का रूप नही ले पाता और न ही वचितो और गरीबो के लिय प्रासंगिक हो पाता है | ये आन्दोलन बिखरे-बिखरे है प्रतिक्रिया के तत्वों से भरे है अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नही है | इस या उस के विरोध (पश्चिम-विरोधी, पूँजीवादी विरोधी,आदि) में चलाने के कारण इनमे कोई संगती आती हो अथवा दबे- कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हो-एसी बात नही |
(क) नए सामाजिक आन्दोलन और क्रांतिकारीविचारधाराओ में क्या अंतर है ?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आन्दोलनों की सीमाएं क्या-क्या हैं ?
(ग) यदि सामाजिक आन्दोलन विशिष्ट मुदों को उठाते हैं तो आप उन्हें विखरा हुआ कहेगे या मांगे
कि वे अपने मुदा पर कही ज्यादा केन्द्रित हैं | अपने उतर की पुष्टि में तर्क दीजिए |
उत्तर :
(क) क्रान्तिकारी विचारधाराएँ समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के साथ जुडी हुई होती हैं, जबकि नये सामाजिक आन्दोलन समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के साथ जुड़े हुए नहीं हैं |
(ख) सामाजिक आन्दोलन बिखरे हुए हैं तथा उनमें एकजुटता का आभाव है | सामाजिक आन्दोलन के पास सामाजिक बदलाव के लिए कोई ढांचागत योजना नहीं है |
(ग) सामाजिक आन्दोलन द्वारा उठाए गए विशिष्ट मुद्दों के कारण यह कहा जा सकता हैं की ये आन्दोलन अपने मुद्दे पर अधिक केन्द्रित हैं |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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