Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति Political Science-II class 12 exercise page 3
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति Political Science-II class 12 exercise page 3 ncert book solution in hindi-medium
NCERT Books Subjects for class 12th Hindi Medium
अध्याय- समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढी तो निवेश के निवेश के लिहाज से उडीसा एक महत्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा उडीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था और अभी इसका दोहन बाकी थे |उडीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा | उसने अन्तराष्ट्रीय इस्पात-निर्माताओ के साथ सहमति -पत्र हस्ताक्षर किए | सरकार सोच रही थी कि इससे राज्य में जरूरी पूंजी- निवेश भी हो जाएगी और रोजगार के अवसर भी संख्या में सामने आएँगे |
- इन सवालों के जवाब कोई विशेषज्ञ नही डे सकता | इस तरह के फैसलों में एक सामाजिक-समूह के हितों को दूसरे सामाजिक -समूह के हितो की तुलना में तौला जाता है | साथ ही मौजूदा पीढी के हितो और आने वाली पीढी के हितो को भी लाभ हानी की तुलना पर मापना पड़ता है | किसी भी लोकतंत्र में ऐसे फैशले जनता द्वारा लोए जाने चहिए या कम-से-कम इन फैसलों पर विशेषज्ञ की स्वीकृति की मुहर जरूर चहिए खनना, और अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञो की राय जाना महत्वपूर्ण है ,
- आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए | इनमे से कोई भी बाकी फैसलों से मुँह फेरकर नही जा सकता था | सारे के सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक माँडल या यो कहे कि एक विजन से बदंधे हुए थे | लगभग सभी इस बात पर सहमत थे भारत के विकास का अर्थ आर्थिक स्न्व्रिदी और आर्थिक न्याय दोहा इस बात पर भी सहमती थी कि इस मामले को व्यवस्था उधोगपति किया जाता गई है
- अकसर इन टकरावो के पीछे विकास की धरनाओ का हाथ होता है | उडीसा के उदाहरण से हमे पता चलता है इतना ख देने भर से बात भी से बात नही बनती कि हर कोई विकास चाहता है | जनता के विभिन्न तबको के तबको के लिए विकास के अर्थ अलग-अलग होते हैं ?
- आजादी के बाद के पहले दशक में इस सवाल पर खूब बहसे हुई | उस वक्त लोग -बाग वीकास की बात आते ही पश्चिम का हवला देते थे का पैमाना पश्चिमी मुल्क है | आज भी एक अर्थ में हम इस बात को लक्ष्य कर सकते है |
- आजादी के वक्त हिंदुस्तान के सामने विकास के दो माडल थे | पहला उदारवादी -पूंजीवादी मांडल था | यूरोप के अधिकतर हिन्सो और संयुक्त राज्य अमरीका में यही मांडल अपनाया गया था | दूसरा समाजवादी मांडल था | इसे सोवियत संघ ने अपनाया था|
- योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में, भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिए की | यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशे तभी प्रभावकारी हो पाती है जब मंत्रिमंडल उन्हें मंजूर करे |
- नीति - निर्देशिक तत्वों के अंतगर्त यह भात विशेष रूप से कही गई है कि राज्य एक ऐसे समाज -रचना को बनाते - बचाते हुए ....लोगो की भलाई के लिए प्रयास करेगा जहाँ राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाएं सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक होता है | (क) स्त्री और पुरूष सभी नागरिको को आजीविका के पर्याप्त साधनों का बराबर-बराबर अधिकार हो (ख)समुदाय के भौतिक संसाधनों की मिल्कियत और नियन्त्रण को इस तरह बंटा जाएगा कि उससे सर्वसामान्य की भलाई हो : और (ग) अर्थव्यवस्था का संचलन इस तरह नही किया जाएगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एकाध जगह केंदित हो जाएँ और जनसामान्य की भलाई बाधिक हो
- मतभेदों के बावजूद एक बिन्दु पर सभी सहमत थे विकास का काम निजी हाथो में नही सोफा जा सकता और साकार के लिए जरूरी है कि वह विकास का एक खाका अथवा योजना तैयार करे | दरअसल अर्थव्यवस्था के पुननिर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे पूरे विश्वे में जनसमर्थन मिला था |
- जापान और जर्मनी ने योद्ध की विभीषिक झेलने के बाद अपनी अर्थव्यस्था फिर खडी कर ली थी और सोवियत संघ ने 1930 तथा 1940 के दशक में भारी कठिनाई के बीच शानदार आर्थिक प्रगति की थी |
- 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ और इसी साल नवबर में इस योजना का वास्तविक दस्तावेज भी किया गया |नियोजन को लेकर देश में जो गहमागहमी पैदा हुई थी वह 1956 से चालू दूसरी पंचवर्षीय योजना के साथ अपने चरम पर पहुँच गई |1961 की तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय तक यह माहौल जरी | चौथी पंचवर्षीय योजना 1966 से चालू होना थी |
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956 की किशिश देश को गरीबी के मकडजाल से निकलने की थी | योजना को तैयारी करने में जुटे विशेषज्ञों में एक के.एन .राज थे | इस युवा अर्थशास्त्री की दलील थी कि अगले दो दशक तक भारत को अपनी चाल धीमी रखनी चहिए |
- प्रथम पंचवर्षीय योजना की शुरूआत में इससे कही ज्यादा बचत की उम्मीद की गई थी | बाद के दिनों में यानी 1960 के दशक से लेकर 1970 के दशक के शुरूआत सालो तक बचत की मात्रा में लगातार कमी आई |
- दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उधोगो के विकास पर जोर दिया गया | पी.सी. महलनोबिस के नेतृत्व में अर्थ्शास्त्रेयो और योजनाकारों की एक टोली ने यह योजना तैयार की थी | ज्यादा संसाधन लगाए जाने चाहिए | कियो का मानता था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में करीसी के विकास की रणनीति का अभाव था |
- 1960 के दशक के अंत में भारत के आर्थिक विकास की कथा में एक न्य मोड़ आती है | पाँचवे अध्याय में आप पढेगे कि नेहरू की मीरित्वी के बाद कांग्रेस -प्रणाली संकट से घिरने लगी | 1967 के बाद की अवधि में निजी क्षेत्र के उधोगो पर और बाधाएं आयद हुई |14 नीजी बैको का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया| सरकार ने गरीबी की भलाई के लिए अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की |
- 1950 से 1980 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था सालाना 3-3.5 प्रतिशत की धीमी रफ्तार से आगे बढी | सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उद्मो में भ्रष्टाचार और अकुशलता का जोर बढ़ा | जनता का भरोसा टूटता देखा नीती-निर्माताओ ने 1980 के दशक के बाद से अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम कर दिया |
अभीयास
Q1. बांम्बे प्लान' के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नही है |
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था |
(ख) इसमे उधोगो के उपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था |
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उधोगपतियों ने की थी |
(घ) इसमे नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था |
उत्तर :
(ख) |
Q2. भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमे निन्मलिखित में से कौन-सा विचार
शामिल नही था ?
(क) नियोजन | (ख) उदारीकरण |
(ग) सहकारी खेती |
(घ) आत्मनिर्भरता |
उत्तर : (ख) | |
|
Q3. भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार - ग्रहण किया गया था :
(क) बांम्बे प्लान से | (ख) सोवियत खेमे के देशो के अनुभवों से |
(ख) समाज के बारे में गांधीवादी विचार से | (ग) किसान संगठनो की मांगो से |
(क) सिर्फ ख और घ | (ख) सिर्फ क और ख |
(ग) सिर्फ घ और ग |
(घ) उपर्युक्त सभी |
उत्तर :
(घ) |
Q4. निम्नलिखित का मेल करे :
(क) चरण सिंह | (i) औधोगीकरण |
(ख) पी.सी. महालनोबिस | (ii) जोनिंग |
(ग) बिहार का अकाल | (iii) किसान |
(घ) वर्गीज कूरियन | (iv) सहकारी डेयरी |
Q5. आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे ? क्या इन मतभेदों को सुलझा
लिया गया ?
उत्तर :
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद कायम था | आजादी के समय भारत के सामने विकास के दो मोडल थे पहला पूंजीवादी मोडल और दूसरा समाजवादी मोडल |विकास के सम्बन्ध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मोडल अपनाया जाए ? पूंजीवादी मोडल के समर्थक देश के औद्दोगीकरण पर अधिक बल दे रहें थे, जबकि साम्यवादी मोदक के समर्थक कृषि के विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर आवश्यक समझते थे | इन परिस्थितियों में सरकार दुविधा में पड़ गई, की विकास का कौन- सा मोडल अपनाया जाए परन्तु आपसी बातचीत तथा सहमती का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया |
Q6. पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था ? दुसरी पंचवर्षीय योजना
पहली से किन अर्थो में अलग थी ?
उत्तर :
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र में अधिक जोर दिया गया | क्योंकि भारत के विभाजन का सबसे बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ा था, अतः प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्व दिया गया | प्रथम पंचवर्षीय एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अंतर यह था कि जहाँ प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि- क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भरी उद्दोगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया |
Q7. हरित क्रांति क्या थी ? हरित क्रांति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामो का उल्लेख
करें |
उत्तर :
1960 के दशक में भारत को रजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ा रहा था | पाकिस्तान से युद्ध के बाद भारत की आर्थिक स्थिति खराब हो गई और खाद्द पदार्थों में भी कमी होने लगी |अतः भारतीय नीति निर्धारको ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्दान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो जाए | यहीं से भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हुई | हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ा कर भारत को खाद्दान्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था | हरित क्रांति का सबसे ज्यादा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा |
हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव -
1. उत्पादन में वृद्धि :- हरित क्रांति से उत्पादन में वृद्धि हुई भारत में गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि बहुत तेजी से हुई | जिसके कारण भारत ने दूसरे देशों को निर्यात किया |
2. फसल क्षेत्र में वृद्धि :- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारत में फसल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई |
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव :-
1. हरित क्रांति के कारण भारत में चाहे खाद्दान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े दिनों के लिए ही था | आज भी भारत में खाद्दान्न संकट पैदा हो जाता है |
2. हरित क्रांति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उतरी राज्यों में ही दिखाई देती है |
Q8. दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान ओधोगिक विकास बनाम करीसी विकास का विवाद चला था
इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे |
उत्तर :
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया | क्योंकि भारत के विभाजन का सबसे बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ा था : अतः प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्व दिया गया | प्रथम पंचवर्षीय एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अंतर यह था कि जहां प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र में अधिक जोर दिया गया, वही दूसरी योजना में भारी उद्दोगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया |
आलोचकों का मत था कि नियोजित ढंग से कृषि को पीछे धकेलने के प्रयास किए जा रहे थे | इन योजनाओ में औद्दोगिकरण पर बल देने के कारण कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रो को क्षति पहुचाई गई |
औद्दोगिकरण के समर्थको का तर्क था कि औद्दोगीक उत्पादन में वृद्धि दर को तेज किए बिना भारत में विद्दमान गरीबी आवर बेरोजगारी को दूर नही किया जा सकता है | इन विचारकों ने औद्दोगीकरण को कृषि को अपेक्षा सर्वोच्य प्राथमिकता देने की नीति को निम्नलिखित आधारो पर उचित ठहराया था -
(1) राष्ट्रिय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि के लिए औद्दोगिक विकास आवश्यक है |
(2) कृषि की तुलना में औद्दोगिक विकास कि दर अधिक तीव्र है |
(3) औद्दोगिक वस्तुओं की मांग कि आय लोच बहुत अधिक है और निर्मित वस्तुओं में निर्यात के अवसर अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते है |
(4) विदेशी निवेशक, कृषि की अपेक्षा उद्द्योगो में निवेश को प्राथमिकता देते है |
(5) भारत में विद्दमान गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के ओद्दोगिकीकरण महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है |
(6) कृषि के क्षेत्र में हम अभी आत्मनिर्भर नहीं है और इससे अभी हम अपनी आवश्कता के लिए ही अनाज उत्पन्न नही कर पते हैं तो विदेशी में खाद्दान्न का निर्यात करके कैसे विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते है |
Q9. अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति - निर्माताओ ने गलती की |
अगर शुरूआत से ही निजी क्षेत्र को खुला छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेतर तरीके
से होता | इस विचार के पक्ष विचार के पक्ष या में अपने तर्क दीजिए |
उत्तर :
आजादी के समय अर्थव्यवस्था पर राज्य की भूमिका पर अधिक जोर दिया गया था, अर्थात् आर्थिक गतिविधियों को राज्य नियंत्रित करता था | अतः कई विद्वानों द्वारा यह तर्क दिया जाता है, कि भारत को शुरुआत में ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जनि चाहिए थीं | परन्तु इस कथन से सहमत नही हुआ जा सकता, क्योंकि आजादी के समज देश की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ ऐसी नहीं थी कि सरकार निजी क्षेत्र को खुली छूट दे देती | उस समय कृषि क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम सर्वप्रथम था तथा कृषि क्षेत्र का विकास राज्य के नियन्त्रणाधीन ही अधिक ठीक ढंग से हो सकता है |
Q10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उतर दे :
आजादी के बाद के आरंभिक वर्षो में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवीर्तिया पनपीं एक
तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिधात अपनाया ,उत्पादकता
को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनो के संकेंद्र्ण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण
क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया | दुसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय की राष्ट्रीय सरकार ने नीजी
निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए | ऐसे
उत्पादन में अधिकतम व्रीदी की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया |
(क) यहाँ लेखक किस अन्त्वीर्रोध की चर्चा करे रहा है ? ऐसे अन्त्वीर्रोध के राजनीतिक परिणामो क्या
होगा ?
(ख) अगर लेखक की बात सही है सही है तो फिर बताएं कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेत्रित्व और इसके प्रांतीय नेताओ के बीच भी कोई अंतर्विरोध था ?
उत्तर :
(क) लेखक कांग्रेस पार्टी के अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी समाजवादी सिद्धांतो में विश्वास रखती थी, व्ही कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार निजी निवेश को बढावा दे रही थी | इस प्रकार के अंतर्विरोधी से देश में राजनितिक अस्थिरता फैलने की सम्भावना रहती है |
(ख) कांग्रेस इस नीति पर इसलिए चल रही थी क्योकि कांग्रेस में सभी विचारधाराओ के लोग शामिल थे तथा सभी लोगो के विचारो को ध्यान में रख कर ही कांग्रेस पार्टी इस प्रकार का कार्य कर रही थीं | इसके साथ-साथ कांग्रेस पार्टी ने इस प्रकार की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि विपक्षी दलों के पास आलोचना का कोई मुद्दा न रहे |
(ग) कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व एवं प्रान्तीय नेताओ में कुछ हद तक अन्तर्विरोध पाया जाता था | जहाँ केन्द्रीय नेतृत्व राष्ट्रिय एवं अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों को महत्व देता था, वही प्रान्तीय नेता प्रान्तीय एवं स्थानीय मुद्दों को महत्व देते थे |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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