Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव Political Science-II class 12 exercise page 3
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव Political Science-II class 12 exercise page 3 ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय-समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- आपने पिछले अध्याय में पढ़ा था कि इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने इंदिरा गाँधी की हत्या के कुछ दिनों बाद ही 1984 में लोकसभा के चुनाव हुए | राजीव गाँधी की अगुवाई में कांग्रेस को इस चुनाव में भरी विजय मिली |1980 के दशक के आखिर के सालो में देश में ऐसे पांच बड़े बदलाव आए , जिनका हमारी आगे की राजनीति पर गहरा असर पड़ा |
- पहला इस दौर की एक महत्वपूर्ण घटना 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार है | जिस पार्टी ने 1984 में लोकसभा की 415 सीटें थीं वह इस चुनाव में हज 197 सीटें ही जीत सकी 1991में एक बार फिर मध्यावधि चुनाव हुए और कांग्रेस इस बार अपना आँकड़ा सुधरते हुए सता में आयी | बहरहाल 1989 में ही उस परिघटना की समाप्ति हो थी | 1989 के बाद भी देश पर किसी अन्य पार्टी के अजाय शासन ज्यादा दिनों तक रहा |
- इस तरह 1989 के चुनावों से भारत में गठबधन की राजनीतिक के एक लंबे दौर की शुरूआत हुई | इसके बाद से केंद्र में 9 सरकारों बनी यह बात 1989 के राष्ट्रीय मोर्चा सरकार 1996 और 1997 की संयुक्त मोर्चा सरकार 1998 और 1999 की राजग तथा 2004 की संप्रग सरकारों पर समान रूप से लागू होती है |
- पाँचवे अध्याय में हम यह बात पढ़ चुकी है कि 1960 के दशक से विभिन्न समूह कांग्रेस पार्टी से अलग होने लगे और इन्होने अपनी खुद की पार्टी बनायी | कि 1977 के बाद के सालों में कई क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ | इन सारे कारणों से कांग्रेस पार्टी कमजोर हुई लेकिन कोई दूसरी पार्टी इस तरह से नही उभरा पायी कि कांग्रेस का विकल्प बने सके |
- 1980के दशक में अन्य पिछड़ा वर्गो के बीच लोकप्रिय ऐसे ही राजनितिक समूहों को जनता दल ने एकजुट किया | राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फेशला किया | अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीती को सुगठित रूप देने में मदद मिली |
- दक्षिण के राज्यों में अगर बहुत पहले से नही तो भी कम-से-कम 1960 के दशक से अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान चला आ रहा था |1977-79 की जनता पार्टी की सरकार के समय उतर भारत में पिछड़े वर्ग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से आवाज उठिए गई |
- 1980 में भरतीय जनता पार्टी (भाजपा) बनाई | बहरहाल भाजपा को 1980और 1984 के चनावो में खास सफलता नही मिली | 1986 के बाद इस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिन्दू राष्ट्रवाद के तत्वों पर जोर देना शुरू किया |
- 1100 व्यक्ति जिनमे ज्यादातर मुसलमान थे इस हिसा में मारे गए |1984 के सिख -विरोधी दंगो के समान गुजरात के दंगा से भी यह जाहिर हुआ राजनितिक उदेश्यों के लिए धार्मिक भावानाओ को भडकाना खतरनाक हो सकता है | इससे हमारी लोकतांत्रीक राजनीतिक को खतरा पैदा हो सकता है |
- 1989 के बाद से उन्हें इतने वोट नही मिली कि वे कुला मतो के 50 फीसदी से ज्यादा हो आप देखेगे कि ये सीटे लोकसभा की कुल सीटों के 50 फीसदी से अधिक नही है तो बाकी वोट और सीटे कहाँ गए ?
- 2004 के चुनावों में एक हद तक कांग्रेस का पुनरुत्थान भी हुआ | 1991 के बाद इस पार्टी की सीटों की सख्या एक बार फिर बढी | 1990 के बाद से हमारे सामने जो राजनीतिक प्रकिर्या आकर ले रही है ,
- जन आन्दोलन और संगठन विकास के नए रूप स्वप्न और तरीको की पहचान कर रहे है गरीबी विश्थापन न्यूनतम मजदूरी आजीविका और सामाजिक सुरक्षा के मसले जन आन्दोलन के जरिए राजनीतिक एजेंडे के रूप में सामने आ रहे है |
अभीयास
Q1. उन्नी-मुन्नी ने अख़बार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है | इन्हे कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें :
(क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ख) जनता दल का गठन
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(घ) इंदिरा गाँधी की हत्या
(ड.) राजग सरकार का गठन
(च) संप्रग सरकार का गठन
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
उत्तर :
(क) इंदिरा गांधी की हत्या (सन 1984)
(ख) जनता दल का गठन (सन 1988)
(ग) मंडल आयोग की सिफारिशें और आरक्षण विरोधी हंगामा (सन 1990)
(घ) बाबरी मस्जित का विध्वंस (सन 1992)
(ङ) राजग सरकार का गठन (सन 1999)
Q2. निम्नलिखित में मेल करें :
(क) सर्वानुमति की राजनीति | (i) शाहबानो मामला |
(ख) जाति आधारित दल | (ii) अन्य पिछड़े वर्ग का उभार |
(ग) पर्सनल लाँ और लैगिन न्याय | (iii) गठबंधन सरकार |
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकता |
(iv) आर्थिक नीतियों पर सहम |
उत्तर :
(क) सर्वानुमति की राजनीति 4. आर्थिक नीतियों पर सहम
(ख) जाति आधारित दल 2. अन्य पिछड़े वर्ग का आधार
(ग) पर्सनल लॉ और लैगिन न्याय 1. शाहबानो मामला
(ख) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत 3. गठबंधन सरकार
Q3.1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुदे क्या रहे है ? इन मुदों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं ?
उत्तर :
1989 के बाद भारतीय राजनीति में जो मुद्दे उभरे, उनमे कांग्रेस का कमजोर होना, मंडल आयोग की सिफारिशें एवं आन्दोलन, आर्थिक सुधारो को लागू करना, राजीव गांधी की हत्या तथा अयोध्या मामला प्रमुख है | इन सभी मुद्दों ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की तथा भारत में गठ्बंधन्वादी सरकारों का युग शुरू हुआ जो वर्तमान समय में भी जारी है | 1989 में वी.पी. की सरकार को आश्चर्यजनक ढंग से वाममोर्चा एवं भारतीय जनता पार्टी दोनों ने ही समर्थन दिया | इसी तरह आगे चलकर अपने रजनीतिक हितो की पूर्ति के लिए कई ऐसे दलों ने आपस में समझौता किया, जोकि परस्पर कट्टर विरोधी थे | उदहारण के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी एवं बहुजन समाज पार्टी का समझौता, भारतीय जनता पार्टी एवं डी.एम.के. पार्टी का समझौता इत्यादि | ये सभी समझौते 1989 के बाद उभरी गठबंधन सरकारों के कारण ही हुई |
Q4. गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नही करते हैं | इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-से तर्क देंगे |
उत्तर :
भारतीय राजनीति का वर्तमान दौर गठबंधन राजनीति का दौर है | वर्तमान समय में कोई भी रजनीतिक दल अपने दम पर सरकार नहीं बना सकता | अतः वह अन्य दलों से गठबंधन करता है | इस गठबंधन का कोई वैचारिक या नैतिक आधार नही होता, बल्कि सत्ता प्राप्ति होता है | इस प्रकार के गठबंधन की शुरुआत 1989 के पश्चात शुरू हुई |
1989 के चुनाव के अवसर पर जनता दल ने मार्क्सवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया |
Q5. आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी | इस दौर में इस पार्टी के विकास -कर्म का उल्लेख करें |
उत्तर :
आपातकाल के बाद निस्संदेह भाजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी | सन 1980 में अपनी स्थापना के बाद भाजपा भारतीय राजनीति में सदैव आगे बढ़ती रही | 1989 के नौवीं लोकसभा चुनाव में इसे 88 सीटें प्राप्त हुई तथा इसके समर्थन से जनता दल की सरकार बनी | 1996 में हुए 11वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई तथा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व के केन्द्र में पहली बार सरकार का निर्माण किया | 1998 में हुए 12वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने सर्वाधिक 181 सीटें जीतकर पुनः वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई | 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनाव भाजपा ने राजग के घटक के रूप में लड़ा तथा इस गठबंधन में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया | अतः एक बार फिर वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने राजग के घटक के रूप में लड़ा तथा इस गठबंधन ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया अतः एक बार फिर वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई | इस पार्टी ने अप्रैल- मई 2004 में हुए 14वे लोकसभा चुनाव में 138 एवं अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा चुनाव में 116 सीटें जीतकर, दोनों बार लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी | अप्रैल-मई 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनावों में तो भारतीय जनता पार्टी ने अकेले ही 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया तथा श्री नरेंद मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया | केन्द्र के अतिरिक्त भाजपा ने समय-समय पर उत्तर प्रदेश , गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, दिल्ली, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गोवा तथा हरियाणा में अपने दम पर सरकारे बनाई तथा पंजाब महाराष्ट्र तथा ओडिशा जैसे राज्यों में गठबंधन सरकार का निर्माण किया |
Q6.कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है | इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है | क्या आप इस बात से सहमत हैं ? अपने उतर के पक्ष में तर्क दीजिए |
उत्तर :
देश की राजनीति पर से,यद्दपि कांग्रेश का प्रभुत्व समाप्त हो गया है, परन्तु अभी कांग्रेस का असर कायम है | क्योंकि अब भी भारतीय राजनीती कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूम रही है तथा सभी रजनीतिक दल अपनी नीतियाँ एवं योजनाएं कांग्रेस को ध्यान में रख कर बनाते है | 2009 के 15वीं लोकसभा के चुनावों में इसने अन्य दलों के सहयोग से केन्द्र माँ सरकार बनाई | इसके साथ-साथ जुलाई, 2007 तथा 2012 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में भी इस दल की महत्वपूर्ण भूमिका रही | हालांकि 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस दल को केवल 44 सीटें ही मिल पाई | अतः कहा जा सकता है की कमजोर होने के बावजूद भी कांग्रेस का असर भारतीय राजनीति में कायम है |
Q7. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दलीय व्यवस्था जरूरी है |पिछले बीस सालो के भरतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमे बताए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं |
उत्तर :
भारत में बहुदलीय प्रणाली है | कई विद्वानों का विचार है कि भारत में बहुदलीय प्रणाली उचित ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है तथा यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बढ़ा उत्पन्न कर रही है अतः भारत के द्वि- दलीय प्रणाली अपनानी चाहिए | परन्तु पिछले बीस सालों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली से भारतीय रजनीतिक व्यवस्था को निम्नलिखित फायदे हुए है -
1. विभिन्न मतों का प्रतिनिधित्व - बहु- दलीय प्रणाली के कारण भारतीय राजनीती में सभी वर्गों तथा हितो को प्रतिनिधित्व मिल जाता हैं | इस प्रणाली से सच्चे लोकतंत्र की स्थापना होती है |
2. मतदाताओं को अधिक स्वतंत्रता - अधिक दलों के कारण मतदाताओं को अपने वोट का प्रयोग कराने के लिए अधिक स्वतंत्रताए होती हैं | मतदाताओं के लिए अपने विचारों से मिलते-जुलते दल को वोट देना आसान हो जाता है |
3. राष्ट्र दो गुटों में नहीं बंटता - बहुदलीय प्रणाली होने के कारण भारत कभी भी दो विरोधी गुटों में विभाजित नहीं हुआ |
4. मंत्रिमंडल की तानाशाही स्थापित नहीं होती - बहुदलीय प्रणाली के कारण भारत में मंत्रिमंडल
Q8. निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उतर दें :
भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया हैं | कांग्रेस -प्रणाली ने अपना खात्मा ही नही किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म -प्रतिनिधित्व की नयी प्रव्रीती का भी जोर बढ़ा | इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे | राजव्यवस्था के सामने एक महत्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खडी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढने की है ,जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें ....
(क) इस अध्याय को पढने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?
(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमे एकजुटता का होना क्यों जरूरी है |
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा | इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की ?
उत्तर :
(क) इस अध्याय में दलगत व्यवस्था की निम्नलिखित चुनौतियां उभर कर सामने आती है -
1. गठबंधन राजनीति को चलाना
2. कांग्रेस के कमजोर होने से खाली हुए स्थान को भरना
3. पिछड़े वर्गों की राजनीति का उभारना
4. अयोध्या विवाद का उभारना
5. गैर-सैद्धांतिक रजनीतिक समझौते का होना
6. गुजरात दंगो सांप्रदायिक दंगे होना |
(ख) विभिन्न हितो का समाहार और उनमे एकजुटता का होना जरुरी हैं, क्योंकि तभी भारत अपनी एकता और अखंडता को बनाये रखकर विकास कर सकता है |
(ग) अयोध्या विवाद ने भारत के रजनीतिक दलों के सामने सांप्रदायिकता की चुनौती पेश की तथा भारत में सांप्रदायिक आधार पर रजनीतिक दलों की राजनीति बढ़ गई |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश सम्बन्ध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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