1. पौधों में पोषण Science class 7 exercise सहजीवी संबंध
1. पौधों में पोषण Science class 7 exercise सहजीवी संबंध ncert book solution in hindi-medium
NCERT Books Subjects for class 7th Hindi Medium
पोषण और पोषण के प्रकार
पाठ 1. पौधे में पोषण
पोषण तत्व (Nutrients): भोजन के वे घटक जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक हैं उन्हें पोषक तत्व कहते हैं।
पोषण (Nutrition): सजीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने एवं इसके उपयोग की विधि को पोषण कहते हैं ।
पोषण के प्रकार :
पोषण दो प्रकार के होते हैं -
(i) स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition): पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं, स्वपोषण कहलाती है।
इस प्रकार का पोषण सभी हरे पौधे करते हैं !
(ii) विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Nutrition): जंतु एवं अधिकतर अन्य जीव पादपों द्वारा संश्लेषित भोजन ग्रहण करते हैं। उन्हें विषमपोषी कहते हैं। जैसे - मनुष्य, जानवर, किट-पतंग, अमीबा, कवक, फंजाई, और मशरूम |
इत्यादि |
पौधों में विषमपोषी पोषण के प्रकार -
विषमपोषी पोषण दो प्रकार का होता है -
(A) मृतजीवी पोषण (Saprophytic Mode of Nutrition): पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपना भोजन सड़े-गले पदार्थों से करता है, इस प्रकार के पोषण को मृतजीवी पोषण कहते हैं | जैसे - मशरूम, कवक और फंजाई आदि इसके उदाहरण हैं |
(B) परजीवी पोषण (Parasitic Mode of Nutrition): पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपना भोजन अन्य जीवों (परपोषी) के बनाए भोजन पर निर्भर रहता है, इस प्रकार के पोषण को परजीवी पोषण कहते हैं |
इसका उदाहरण अमरबेल (Cuscuta) है |
परजीवी और मृतजीवी में अंतर :
परजीवी :
(i) ये अपना भोजन अन्य जीवों से प्राप्त करते हैं |
(ii) परजीवी समान्यत: परपोषी के शरीर के ऊपर या भीतर रहते हैं |
मृतजीवी :
(i) मृतजीवी अपना पोषण जीवो के मृत और सड़े-गले जेविक पदार्थों से प्राप्त करते है|
(II)मृतजीवी मृत और सड़े-गले पदार्थों के ऊपर रहते है|
जीवों को भोजन/खाद्य की आवश्यकता :
जीवों को खाध्य की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है :
(i) काम करने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है |
(ii) शरीर निर्माण के लिए |
(iii) शरीर के टूट-फुट की मरम्मत के लिए |
(iv) कोशिकाओं को नियमित उर्जा प्रदान करने के लिए |
प्रकाश संश्लेषण (Photo Synthesis): हरे पौधें अपना भोजन सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिती में स्वयं बनाते हैं । इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं |
प्रकाश संश्लेषण के दौरान होने वाली अभिक्रिया का समीकरण :
पत्तियाँ पादपों की खाद्य फैक्ट्री : केवल पादप ही ऐसे जीव हैं, जो जल, कार्बन डाइऑक्साइड एवं खनिज की सहायता से अपना भोजन बना सकते हैं। ये सभी पदार्थ उनके परिवेश में उपलब्ध् होते हैं। चूँकि पादपों में खाद्य पदार्थों का संश्लेषण उनकी पत्तियों में होता है इसलिए पत्तियाँ पादप की खाद्य फैक्ट्रियाँ हैं ।
रंध्र (Stomata) : पत्तियों की सतहों पर छोटे-छोटे छिद्र पाए जाते है जिससे गैसों का आदान-प्रदान होता है | इन्ही छिद्रों को रंध्र कहते हैं |
पत्तियों में रंध्र
पत्तियों में रंध्र का कार्य :
(i) पौधों में गैसों का आदान-प्रदान रंध्रों के द्वारा होता है |
(ii) पौधों में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी रंध्रों के द्वारा होती है |
(iii) पौधों में प्रकाश उर्जा का अवशोषण भी रंध्रों के द्वारा होता है |
क्लोरोफिल : पत्तियों में एक हरा वर्णक होता है जिसे क्लोरोफिल कहते है |
क्लोरोफिल का कार्य : यह पत्तियों को हरा रंग प्रदान करता है |
पादपों में खाद्य संश्लेषण की प्रक्रिया : पादपों में खाद्य पदार्थों का संश्लेषण उनकी पत्तियों में होता है | पौधे मृदा में उपस्थित जल और खनिज पदार्थों को अवशोषित कर तनों के माध्यम से पत्तियों तक पहुँचाया जाता है | पत्ती की सतह पर उपस्थित सूक्ष्म रंध्र वायु में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड को लेते है | प्रकाश संश्लेषण पत्तियों में होने वाला एक रासायनिक अभिक्रिया है जिसमें जल और कार्बन डाइऑक्साइड कच्चे पदार्थ के रूप में पौधे उपयोग करते है यह अभिक्रिया सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में होता है | इस अभिक्रिया के उपरांत कार्बों हाइड्रेट (ग्लूकोस) और ऑक्सीजन बनता है | कार्बों हाइड्रेट को पौधे अपनी उर्जा के लिए संचित कर लेते है जबकि ऑक्सीजन रंध्र द्वारा वापस बाहर आ जाता है |
पत्तियों के आलावा पादपों के अन्य भागों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया :
पत्तियों के आलावा, पादपों के दूसरे हरे भागों जैसे कि हरे तने एवं हरी शाखाओं में भी प्रकाश संश्लेषण होता है। मरुस्थलीय पादपों में वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल क्षय को कम करने के लिए पत्तियाँ शल्क अथवा शूल रूपी हो जाती हैं। इन पादपों के तने हरे होते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं।
शैवाल : आपने गीली दीवारों पर, तालाब अथवा ठहरे हुए जलाशय में हरे अवपंकी (काई जैसे पादप) देखे होंगे। ये सामान्यतः कुछ जीवों की वृद्धि के कारण बनते हैं, जिन्हें शैवाल कहते हैं।
शैवाल में हरा रंग : शैवाल भी प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपन भोजन बनाते है | शैवाल में क्लोरोफिल पाया जाता है | जिसके कारण यह कारण दिखाई देता है |
पादपों में वाहिकाओं का कार्य :
(i) जल एवं खनिज, वाहिकाओं द्वारा पत्तियों तक पहुँचाए जाते हैं।
(ii) ये वाहिकाएँ नली के समान होती हैं तथा जड़, तना, शाखाओं एवं पत्तियों तक फैली होती हैं।
(iii) पोषकों को पत्तियों तक पहुँचाने के लिए ये वाहिकाएँ एक सतत् मार्ग बनाती हैं।
कोशिका
कोशिका : सजीवों के संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते है |
यह सूक्ष्म इकाई है जिससे केवल सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है |
कुछ जीव एक कोशिका के बने होते है जिन्हें एक कोशिकीय जीव कहा जाता है - जैसे अमीबा और कुछ जीवाणु |
कोशिका के प्रमुख भाग :
(i) कोशिका भित्ति : पादप कोशिकाओं में सबसे बाहरी दीवार जटिल कार्बो
हाइड्रेट की बनी होती है जिसे कोशिका भित्ति कहते है |
(ii) कोशिका झिल्ली : कोशिका एक पतली बाह्य संरचना द्वारा घिरी होती है, जिसे कोशिका झिल्ली कहते हैं।
(iii) केन्द्रक : कोशिका के केंद्र में स्थित एक सुस्पष्ट संरचना होती है, जो केन्द्रक कहलाती है|
(iv) कोशिका द्रव्य : केन्द्रक चारों ओर से जेली के समान एक पदार्थ से घिरा होता है,
जिसे कोशिका द्रव्य कहते हैं।
कोशिका का आरेख
पती में मंड (स्टार्च) की उपस्थित का परिक्षण:
यदि पत्तियों में स्टार्च है तो यह दर्शार्ता है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हुई है | स्टार्च भी एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है | इसकी जांच के लिए हम एक ही प्रकार के दो पादपों का गमला लेंगे और एक को 72 घंटों के लिए अँधेरे में रखेंगे और दुसरे को सूर्य के प्रकाश में दोनों पौधों की पातियो पर आयोडीन बिलियन की बूंदे गिराकर हम मंड की उपस्थित का परीक्षण कर सकते है| जब आयोडीन बिलियन मंड (स्टार्च) के संपर्क में आता है तो एक गहरा नीला रंग आता है | इससे पत्तियों में स्टार्च की उपस्थिति का पता चलता है |
पादपों में खाद्य पदार्थों का संश्लेषण :
(i) कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण : पादपों में कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण प्रकाश संश्लेषण के द्वारा होता है जो कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिलकर बनता है |
(ii) प्रोटीन का संश्लेषण : प्रोटीन एक नाइट्रोजनी पदार्थ है जिनमें कार्बन, ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन की मात्रा भी होती है | मिटटी में कुछ विशेष राइजोबियम नामक जीवाणु होते है जो गैसीय नाइट्रोजन को उपयोगी यौगिकों में परिवर्तित कर मृदा में निर्मुक्त करते हैं। यह विलेय पदार्थ पादपों द्वारा जल के साथ अवशोषित कर लिए जाते हैं। ये जीवाणु इन वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर नाइट्रेट में बदल देते है | यही नाइट्रेट पादप प्रोटीन के संश्लेषण में उपयोग करते करते है |
सहजीवी संबंध
कीटभक्षी पादप : कुछ पादपों में घड़े जैसी संरचना होती है जो पौधे के पत्तियों के रूपांतरित भाग होते हैं और इसके पत्ते का शीर्ष भाग इस घड़े का ढक्कन का कार्य करता है | जब कोई कीट घड़े में प्रवेश करता है, तो यह उसके रोमों के बीच फंस जाता है | घड़े में उपस्थिति पाचक रस द्वारा फंसे हुए कीट का पाचन हो जाता है | कीटों के भक्षण करने वाले ऐसे पादपों को कीटभक्षी पादप कहते है |
उदाहरण : घाटपर्णी
कीटभक्षी पादप - घटपर्णी
सहजीवी संबंध (Symbiotic Relationship):
कुछ जीव एक-दूसरे के साथ रहते हैं तथा अपना आवास एवं पोषक तत्त्व एक-दूसरे के साथ बाँटते हैं। इसे सहजीवी सम्बंध् कहते हैं।
उदाहरणतः कुछ कवक वृक्षों की जड़ों में रहते हैं। वृक्ष कवक को पोषण प्रदान करते हैं, बदले में उन्हें जल एवं पोषकों के अवशोषण में सहायता मिलती है। वृक्ष के लिए इस संबंध् का विशेष महत्व है।
सहजीवी संबंध बनाने वाले जीव का उदाहरण : लाइकेन जो एक कवक प्रजाति का जीव है |
कवक और शैवाल में सहजीवी संबंध:
शैवाल में क्लोरोफिल उपस्थित होता है, जबकि कवक में क्लोरोफिल नहीं होता। कवक शैवाल को रहने का स्थान (आवास), जल एवं पोषक तत्त्व उपलब्ध् कराता है तथा बदले में शैवाल प्रकाश संश्लेषण द्वारा संश्लेषित खाद्य कवक को देता है।
फलीदार पौधों की जड़ों में जीवाणु : राइजोबियम नामक जीवाणु चना, मटर, मुंग, सेम तथा अन्य फलीदार पादपों की जड़ों में रहते है और उन्हें नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं | वे वायुमंडलीय नाइट्रोजन को विलय पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं। चूँकि पौधे नाइट्रोजन को विलेय रूप में ही अवशोषित कर सकते हैं। बदले में पादप राइजोबियम जीवाणु को आवास और खाद्य प्रदान करते हैं | इनमें भी सहजीवी संबंध होता है |
दालों की फसलों में नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती :
राइजोबियम नामक जीवाणु चना, मटर, मुंग, सेम तथा अन्य फलीदार पादपों की जड़ों में रहते है और उन्हें वायुमंडल से नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं | यही कारण है कि दालों की फसलों के लिए उन्हें मृदा में नाइट्रोजनी उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं
पड़ती। यही नहीं दाल की फसल उगाने के बाद अगली फसल के लिए भी सामान्यतः उर्वरकों की आवश्यकता नहीं रहती।
Select Class for NCERT Books Solutions
NCERT Solutions
NCERT Solutions for class 6th
NCERT Solutions for class 7th
NCERT Solutions for class 8th
NCERT Solutions for class 9th
NCERT Solutions for class 10th
NCERT Solutions for class 11th
NCERT Solutions for class 12th
sponder's Ads
Science Chapter List
1. पौधों में पोषण
2. जंतुओं में पोषण
3. तन्तु से वस्त्र तक
4. ऊष्मा
5. अम्ल, क्षार एवं लवण
6. भौतिक एवं रसायनिक परिवर्तन
7. मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुरूप जन्
8. पवन, तूफान और चक्रवात
9. मृदा
10. जीवों में श्वसन
11. जंतुओं और पादपों में परिवहन
12. पादपों में जनन
13. गति और समय
14. विद्युत् धारा एवं इसका प्रभाव
15. प्रकाश
16. जल : एक बहुमूल्य संसाधन
17. वन : हमारी जीवन रेखा
18. अपशिष्ट जल की कहानी
sponser's ads