Chapter 5. न्यायपालिका Civics class 8 exercise अतिरिक्त - प्रश्न
Chapter 5. न्यायपालिका Civics class 8 exercise अतिरिक्त - प्रश्न ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय - समीक्षा
अध्याय - समीक्षा:
- भारत में, कानून के शासन को लागू करने के लिए, हमारे पास एक न्यायिक प्रणाली है, जो राज्य का एक अंग है।
- भारतीय लोकतंत्र के कामकाज में न्यायिक प्रणाली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- न्यायिक प्रणाली, यानी न्यायपालिका के महत्वपूर्ण कार्य हैं: विवाद समाधान, न्यायिक समीक्षा, कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना।
- भारत में, न्यायालय के तीन अलग-अलग स्तर हैं, अर्थात जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी है क्योंकि यह देश का सर्वोच्च स्तर का न्यायालय है।
- सुप्रीम कोर्ट का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश करते हैं। इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- भारत में, कानूनी प्रणाली की दो शाखाएँ हैं, अर्थात नागरिक कानून और आपराधिक कानून।
- हमारे देश में तीन अलग-अलग स्तर की अदालतें हैं। जिला स्तर पर, हमारे पास अधीनस्थ जिला न्यायालय हैं। राज्य स्तर पर, हमारे पास कई उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय किसी राज्य का सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण होता है। सबसे ऊपर सुप्रीम कोर्ट है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय हमारे देश का सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण है। यह नई दिल्ली में स्थित है और इसकी अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिए गए निर्णय भारत के अन्य सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं।
- हमारे पास एक एकीकृत न्यायिक प्रणाली है। इसका अर्थ है कि उच्च न्यायालयों द्वारा लिए गए निर्णय निचली अदालतों पर बाध्यकारी होते हैं।
- अदालतों के विभिन्न स्तर अपीलीय प्रणाली के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है यदि वे निचली अदालत द्वारा पारित निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं।
- आपराधिक मामले आमतौर पर पुलिस के साथ प्राथमिकी दर्ज करने के साथ शुरू होते हैं जो अपराध की जांच करते हैं जिसके बाद अदालत में मामला दायर किया जाता है। दोषी पाए जाने पर आरोपी को जेल भेजा जा सकता है।
- सिद्धांत रूप में, भारत के सभी नागरिक देश की अदालतों में जा सकते हैं और मांग कर सकते हैं न्याय। लेकिन वास्तव में, अदालतें आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। भारत में अधिकांश गरीबों के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना बहुत मुश्किल है। कानूनी प्रक्रियाओं में बहुत पैसा लगता है और कागजी कार्रवाई में बहुत समय लगता है। इसलिए अक्सर गरीब लोग न्याय पाने के लिए कोर्ट जाने से बचते हैं।
- न्यायिक प्रणाली: यह अदालतों का एक तंत्र है कि एक नागरिक कानून का उल्लंघन होने पर संपर्क कर सकता है।
- न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका के पास संसद द्वारा पारित विशेष कानूनों को संशोधित करने या रद्द करने की शक्ति है यदि यह पाता है कि वे संविधान का पालन नहीं करते हैं। इसे न्यायिक समीक्षा के रूप में जाना जाता है।
- उल्लंघन: इसका अर्थ है किसी कानून को तोड़ना या किसी के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण करना।
- शक्ति का पृथक्करण: इसका अर्थ है कि राज्य की शक्तियाँ और न्यायपालिका की शक्तियाँ अलग-अलग हैं।
- स्वतंत्र न्यायपालिका: इसका अर्थ है कि न्यायपालिका सरकार के अधीन नहीं है और अपनी ओर से कार्य नहीं करती है।
- अपील करना: उच्च न्यायालय में याचिका दायर करना।
- बरी करना: अदालत ने घोषणा की कि एक व्यक्ति उस अपराध का दोषी नहीं है जिसके लिए अदालत ने उस पर मुकदमा चलाया था।
- नागरिक कानून: यह धन, संपत्ति, विवाह विवाद आदि जैसे मामलों से संबंधित है।'
- आपराधिक कानून: यह चोरी, डकैती, धोखाधड़ी, हत्या आदि के मामलों से संबंधित है।
अध्याय - प्रश्न
अभ्यास - प्रश्न:
प्रश्न: आप पढ़ चुके है कि 'कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना' न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है | आपकी राय में इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरुरी है ?
उत्तर: 'कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकार को लागू करना' इन कार्यों को पूरा करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना जरुरी है | इससे किसी को भी चाहे वे सरकारी अधिकारी हो या सेठ या अत्यंत गरीब हों, अगर यह लगता है की उनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वे अदालत में जा सकते हैं |
प्रश्न: अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है| उसे फिर पढ़े| आपको ऐसा क्यों लगता है| की संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
उत्तर: संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा से जुड़ा है क्योंकि दोनों ही विचार इस बात से सहमत हैं कि संसद द्वारा पारित किया गया कोई कानून संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है तो वह उस कानून को रद्द कर सकती है|
प्रश्न: नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है| प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस नयायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलाकर देखें|
उत्तर: सुधा गोयल के मामले में तीनों स्तर के न्यायलय द्वारा दिए गए फैसले इस प्रकार हैं - (i) निचली अदालत-लक्ष्मण, उसकी माँ शकुंतला और सुधा के जेठ सुभाष चन्द्र को दोषी करार दिया और तीनों को मौत की सजा सुनाई|
(ii) उच्च न्यायालय - लक्षमण. शकुन्तला और सुभाष चन्द्र तीनो को बरी कर दिया|
(iii) सर्वोच्य न्यायालय - लक्ष्मण, शकुंतला को उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन सुभाष चन्द्र को आरोपों से बरी कर दिया क्योंकि उसके खिलाफ ज्यादा साबुत नहीं थे|
प्रश्न: सुधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िये| जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत है उन को ठीक कीजिए|
(क) आरोपी इन मामलों को उच्च न्यायालय लेकर गए क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे|
(ख) वे सर्वोच्य न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए|
(ग) अगर आरोपी सर्वोच्य न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं|
उत्तर:
(क) सही|
(ख) गलत, वे निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए|
(ग) सर्वोच्य न्यायालय का फैसला सबको मानना पड़ता है| यह देश का सबसे बड़ा न्यायालय है| इसके फैसले से असंतुष्ट होकर दोबारा निचली अदालत में नहीं जा सकते|
प्रश्न: आपको ऐसे क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी?
उत्तर: 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी| क्योंकि इस तरह सर्वोच्य न्यायालय ने न्याय तक ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुच स्थापित करने का प्रयास किया|
प्रश्न: ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अशों को दोबारा पढ़िये| इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है| अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था?
उत्तर: आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जीने के साधनों के बिना जीवित नहीं रह सकता| ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम के मुकदमे के अंर्तगत लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते है और उन्हें वहाँ से हटाएँ जाने की माँग की जा रही है | जो लोग झुग्गियों और पटरियों पर रहते हैं, वे शहर में छोटे मोटे काम करते हैं और उनके पास रहने की कोई और जगह नहीं होती है| अगर उन्हें झुग्गियों या पटरियों से हटा दिया जाए तो उनका रोजगार ख़त्म हो जायगा|
प्रश्न: 'इंसाफ में देरी यानि इंसाफ का क़त्ल' इस विषय पर कहानी बनाइए|
उत्तर: श्रीमान शंकर एक सरकारी कर्मचारी थे| सेवानिवृति के पश्चात् वे अपने पुश्तैनी मकान में रहने आए जो उन्होंने अब तक किराये पर दिया हुआ था उन्होंने किराएदारों से मकान खली करने को कहा लेकिन उन्होंने मकान खाली नही किया| किराएदारों ने श्रीमान शंकर को कहा कि यदि वह मकान खली कराना चाहते हैं तो कोर्ट से नोटिस लाएं| श्रीमान शंकर को मज़बूरी में किराये पर रहना पड़ा और उन्होंने किरायएदारों के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया| 5 साल तक केस लड़ने के बाद जिला अदालत ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया और वे मुकदमा जीत गए| किराएदारों ने जिला अदालत के फैसले के प्रति असहमति व्यक्त करते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर कर दी| लगातार तारीखें पड़ने लगीं और न्याय होने में 10 साल और गुजर गए| श्रीमान शंकर सेवानिवृति के बाद 15 साल तक किराए के मकान में रहें, अदालतों के चक्कर लगते रहे| उन्होंने महसूस किया कि न्याय में विलंब एक प्रकार से न्याय का निषेध ही था|
प्रश्न: पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या 65 पर शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए?
उत्तर:
(i) बरी करना - श्याम के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण अदालत ने उसे चोरी के इल्जाम से बरी कर दिया |
(ii) अपील करना - सुरेश अधीनस्थ न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं था इसलिए उने उच्च न्यायालय में अपील कर दी |
(iii) मुआवज़ा - कविता को एक कर दुर्घटनाग्रस्त करने के कारण उसकी मरम्मत हेतु मुआवजा देना पड़ा |
(iv) बेदखली - रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहने वालों को वहाँ से बेदखल कर दिया गया |
(v) उल्लंघन - ट्रक चालक ने लाल बत्ती होने पर ट्रक नहीं रोका, इस प्रकार उसने यातायात के नियमों का उल्लंघन किया |
अतिरिक्त - प्रश्न
अतिरिक्त - प्रश्न:
प्रश्न: न्यायपालिका क्या है ?
उत्तर: न्यायपालिका एक संवैधानिक संस्था है | जो भारतीय संविधान के अनुसार सबको न्याय देता है और कार्य करता है | यह सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग है |
प्रश्न: हमें न्यायपालिका की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: हमें निम्न कारणों से न्यायपालिका की आवश्यकता है -
(i) कानून का शासन स्थापित करने के लिए|
(ii) विवादों का निपटारा करने के लिए|
(iii) न्यायिक समीक्षा के लिए|
(iv) कानून की रक्षा और मौलिक अधिकारों का क्रियान्वयन के लिए|
(v) संविधान की व्याख्या के लिए|
प्रश्न: स्वतंत्र न्यायपालिका का क्या अर्थ है?
उत्तर: स्वतंत्र न्यायपालिका का अर्थ है कि कोई न्यायपालिका संविधान के अनुसार ही कार्य एवं न्याय दे उसके कार्यों में कोई राजनितिक या बाहरी हस्तक्षेप या दबाव न हो|
प्रश्न: न्यायपालिका की भूमिका क्या है?
उत्तर: न्यायपालिका के कार्यों को निम्नलिखित में विभाजित किया जा सकता है:
1. विवाद समाधान: न्यायिक प्रणाली नागरिकों के बीच, नागरिकों और सरकार के बीच, दो राज्य सरकारों के बीच और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए एक तंत्र प्रदान करती है।
2. न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका के पास संसद द्वारा पारित विशेष कानूनों को रद्द करने की शक्ति है, अगर यह मानता है कि ये संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हैं। इसे न्यायिक पुनरावलोकन कहते हैं।
3. कानून को बनाए रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना: भारत का प्रत्येक नागरिक सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है यदि उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
प्रश्न: एक स्वतंत्र न्यायपालिका क्या है?
उत्तर: न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है:
1. सरकार की अन्य शाखाएँ - विधायिका और कार्यपालिका - न्यायपालिका के काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। अदालतें सरकार के अधीन नहीं हैं और उनकी ओर से कार्य नहीं करती हैं।
2. न्यायपालिका की स्वतंत्रता अदालतों को यह सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाने की अनुमति देती है कि विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्ति का दुरुपयोग न हो।
3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रश्न: भारत में न्यायालयों की संरचना क्या है?
उत्तर: भारत में तीन अलग-अलग स्तर की अदालतें हैं:
1. जिला न्यायालय: जिन न्यायालयों से अधिकांश लोग बातचीत करते हैं उन्हें अधीनस्थ या जिला न्यायालय या तहसील स्तर का न्यायालय कहा जाता है।
2. उच्च न्यायालय: प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय होता है जो उस राज्य का सर्वोच्च न्यायालय होता है।
3. सुप्रीम कोर्ट शीर्ष स्तर पर है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिए गए निर्णय भारत के अन्य सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं। यह नई दिल्ली में स्थित है।
प्रश्न: क्या सभी की अदालतों तक पहुँचा सकते है?
उत्तर: भारत के सभी नागरिक इस देश में अदालतों तक पहुंच सकते हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को न्यायालयों के माध्यम से न्याय पाने का अधिकार है। अदालतें सभी के लिए उपलब्ध हैं लेकिन वास्तव में, भारत में अधिकांश गरीबों के लिए अदालतों तक पहुंच हमेशा मुश्किल रही है। कानूनी प्रक्रियाओं में बहुत सारा पैसा और कागजी कार्रवाई शामिल होती है और साथ ही इसमें काफी समय भी लगता है। इसके जवाब में, सुप्रीम कोर्ट ने 1980 के दशक की शुरुआत में न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए जनहित याचिका या जनहित याचिका का एक तंत्र तैयार किया। इसने किसी भी व्यक्ति या संगठन को उन लोगों की ओर से उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की अनुमति दी जिनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा था।
वाक्यांश 'न्याय में देरी न्याय से वंचित है' का प्रयोग अक्सर विस्तारित समय अवधि को दर्शाने के लिए किया जाता है जो अदालतें लेती हैं। हालांकि, इसके बावजूद, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि न्यायपालिका ने लोकतांत्रिक भारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों पर नियंत्रण के साथ-साथ नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में भी काम करती है।
प्रश्न: कानूनी प्रणाली की विभिन्न शाखाएँ क्या हैं?
उत्तर: आपराधिक और दीवानी कानून के बीच महत्वपूर्ण अंतर को समझने के लिए निम्न तालिका को देखें।
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Civics Chapter List
Chapter 1. भारतीय संविधान
Chapter 2. धर्मनिरपेक्षता की समझ
Chapter 3. हमें संसद क्यों चाहिए
Chapter 4. कानूनों की समझ
Chapter 5. न्यायपालिका
Chapter 6. हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली
Chapter 7. हाशियाकरण की समझ
Chapter 8. हाशियाकरण से निपटना
Chapter 9. जनसुविधाएँ
Chapter 10. कानून और सामाजिक न्याय
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