निबंध -लेखन| Definition | Format | Solved Examples | Writng Skillsfg
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निबंध -लेखन
बाल दिवस
बाल दिवस (14 नवम्बर)
14 नवम्बर हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन होता है, उनके इस जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है | पं. जवाहर लाल नेहरू बच्चों से बहुत प्यार करते थे, तथा वे अक्सर बच्चों को खिलौने तथा गुब्बारे दिया करते थे और बच्चें उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारा करते थे |
बाल दिवस बच्चों के लिए समर्पित एक राष्ट्रिय त्यौहार है, जिसे भारत में हर जगह बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है | बाल दिवस बच्चों के लिए महत्वपूर्ण दिन है, इस दिन वे सज-धज कर विद्यालय जाते है और चाचा नेहरू को याद कर उन्हें फुल-माला अर्पित करते है | इस दिन बच्चें बहुत ही उत्साहित और खुश दिखाई देते है | बाल दिवस पर सभी विद्यालयों में खास कार्यक्रम आयोजित किये जाते है, जिसमें बच्चें भाग लेते हैं | इस दिन विद्यालयों में सांकृतिक कार्यक्रम आयोजित की जाती है इसके अलावा कई कार्यक्रम जैसे - निबंध प्रतियोगिता, संगीत का कार्यक्रम, नाट्य प्रस्तुति, कला प्रदर्शन, दौड़ तथा भाषण आदि का आयोजित किया जाता है | इन आयोजनों के माध्यम से लोगों को सन्देश दिया जाता है |
बच्चें हमारे देश के भविष्य है, आज हमें इनके लिए कुछ करने की जरुरत है | ये जितने अच्छे एवं शिक्षित होंगे | हमारा देश उतना ही महान एवं विकसित होगा | हमें इनके जीवन-स्तर को और ऊँचा एवं विचारवान बनाना होगा, इनकी शिक्षा एवं स्वास्थ्य में सुधार लाना होगा | वीर, साहसी, धैर्यवान के साथ-साथ निर्भीक बनाना होगा | यही है बाल दिवस का सन्देश जो हर समाज एवं माता पिता तक पहुँचाना चाहिए |
आज बाल-श्रम जैसे सामाजिक कुरीतियों को ख़त्म किये जाने की आवश्यकता है | बाल-श्रम बच्चों के जीवनस्तर के सुधार में बाधक है | इस कुरीति से हजारों बच्चों के जीवन अन्धेरामय हो चूका है, जिन बच्चों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य मिलना चाहिए उनसे काम कराया जाता है | बाल दिवस के अवसर पर केंद्र और राज्य सरकारें कई योजनायें बच्चों के लिए घोषणा करती है | हर माता-पिता अपने जीवन की सारी जमा-पूँजी अपने बच्चों के भविष्य बनाने के लिए लगा देते है, ताकि वे जीवन में कभी-दुखी एवं निराश नहीं हो | ये चाचा नेहरू के सपनों का भारत है जहाँ वे यहाँ के हर बच्चें एक आधुनिक भारत का नागरिक के रूप में देखना चाहते थे | हमें अपने बच्चों को इसी तरह बनने की प्रेरणा देना चाहिए |
व्यायाम का महत्त्व
संकेत बिंदु –
• भूमिका
• पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक
• व्यायाम के लाभ
• व्यायाम का उचित समय
• ध्यान रखने योग्य बातें
• उपसंहार
भूमिका – गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ अर्थात् मानव शरीर बड़ी किस्मत से मिलता है। इस शरीर से सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने के लिए इसका स्वस्थ एवं नीरोग होना अत्यावश्यक है। यूँ तो स्वस्थ शरीर पाने के कई तरीके हो सकते हैं पर व्यायाम उनमें सर्वोत्तम है।
पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक – मानव जीवन के चार पुरुषार्थ माने जाते हैं। ये हैं-धर्म अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हें पाने का साधन है- स्वास्थ्य। अर्थात् यदि मनुष्य का जीवन नीरोग है तभी इन पुरुषार्थों के माध्यम से जीवन को सफल बनाया जा सकता है। रोगी और अस्वस्थ व्यक्ति न तो धर्मचिंतन कर सकता है और न उद्यम करके धनोपार्जन कर सकता है, न वह काम की प्राप्ति कर सकता है और न मोक्ष की प्राप्ति। अतः उत्तम स्वास्थ्य की ज़रूरत निस्संदेह है और उत्तम स्वास्थ्य पाने का सर्वोत्तम साधन हैव्यायाम। वास्तव में व्यायाम स्वास्थ्य का मूलमंत्र है।
व्यायाम के लाभ – उत्तम स्वास्थ्य के लिए संतुलित पौष्टिक भोजन शुद्ध जलवायु, संयमित जीवन, स्वच्छता आदि आवश्यक है, परंतु इनमें सर्वोपरि है-व्यायाम। व्यायाम के अभाव में पौष्टिक भोजन पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाता है।
व्यायाम में चिरयौवन पाने का राज छिपा है। जो व्यक्ति नियमित व्यायाम करता है, बुढ़ापा उसके निकट नहीं आता है। इससे उसका शरीर ऊर्जावान बना रहता है और लंबे समय तक चेहरे या शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती हैं। व्यायाम हमारे शरीर की पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है। सही ढंग से पचा भोजन ही रक्त, मज्जा, माँस आदि में परिवर्तित हो पाता है। व्यायाम हमारे शरीर कर रक्त संचार भी ठीक रखता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी उत्तम बनता है। इसके अलावा शरीर सुगठित, फुरतीला, लचीला और सुंदर बनता है।
व्यायाम का उचित समय – व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय प्रातः काल है। इस समय पूरब की लालिमा शरीर में नवोत्साह भर देती है। इससे मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस समय बहने वाली शीतल मंद हवा चित्त को प्रसन्न कर देती है और शरीर को ऊर्जा से भर देती है। पक्षियों का कलख कुछ-कहकर हमें व्यायाम करने की प्रेरणा देता हुआ प्रतीत होता है। इस समय शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खाए व्यायाम करना चाहिए। ऋतु और मौसम को ध्यान में रखकर शरीर पर सरसों के तेल की मालिश व्यायाम से पूर्व करना अच्छा रहता है। दोपहर या तेज़ धूप में व्यायाम से बचना चाहिए। यदि किसी कारण सवेरे समय न मिले तो शाम को व्यायाम करना चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें – व्यायाम करते समय कुछ बाते अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। व्यायाम इस तरह करना चाहिए कि शरीर के सभी अंगों का सही ढंग से व्यायाम हो। शरीर के कुछ अंगों पर ही ज़ोर पड़ने से वे पुष्ट हो जाते हैं परंतु अन्य अंग कमजोर रह जाते हैं। इससे शरीर बेडौल हो जाता है। व्यायाम करते समय श्वास फूलने पर व्यायाम बंद कर देना चाहिए, अन्यथा शरीर की नसें टेढ़ी होने का डर रहता है। व्यायाम करते समय सदा नाक से साँस लेनी चाहिए, मुँह से कदापि नहीं। व्यायाम करने के तुरंत उपरांत कभी नहाना नहीं चाहिए। इसके अलावा व्यायाम ऐसी जगह पर करना चाहिए जहाँ पर्याप्त वायु और प्रकाश हो। व्यायाम की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए अन्यथा अगले दिन व्यायाम करने की इच्छा नहीं होगी।
उपसंहार – व्यायाम उत्तम स्वास्थ्य पाने की मुफ़्त औषधि है। इसके लिए बस इच्छाशक्ति और लगन की आवश्यकता होती है। हमें सवेरे देर तक सोने की आदत छोड़कर प्रतिदिन व्यायाम अवश्य करना चाहिए।
जनसंख्या विस्फोट अथवा जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• भारत में जनसंख्या की स्थिति
• जनसंख्या वृद्धि के कारण
• जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ
• जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – एक सूक्ति है–’अति सर्वत्र वय॑ते!’ अर्थात् अति हर जगह वर्जित होती है। यह सूक्ति हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि पर पूर्णतया लागू हो रही है। हाँ, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, अब उस पर अंकुश लगाने का समय आ गया है। इसमें विलंब करने का परिणाम अच्छा नहीं होगा।
भारत में जनसंख्या की स्थिति – हमारे देश की जनसंख्या में तीव्र दर से वृद्धि हुई है। आज़ादी के समय 50 करोड़ रहने वाली जनसंख्या दूने से अधिक हो चुकी है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या 120 करोड़ की संख्या पार गई थी। वर्तमान में यह बढ़ते-बढ़ते 122 करोड़ छूने लगी है। इतनी बड़ी जनसंख्या अपने आप में एक समस्या है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण – जनसंख्या वृद्धि के कारणों के मूल में जाने से ज्ञात होता है कि इस समस्या के एक नहीं अनेक कारण हैं। इनमें अशिक्षा मुख्य है। हमारे देश के ग्रामीण अंचलों की निरक्षर जनता आज भी अशिक्षा के कारण बच्चों को भगवान की देन मानकर इस पर नियंत्रण लगाने के लिए तैयार नहीं है। इन क्षेत्रों की धार्मिकता एवं धर्मांधता के कारण जनसंख्या वृद्धि हो रही है। हिंदू धर्म में पुत्र को मोक्षदाता माना जाता है।
अपने एक मोक्षदाता को पाने के लिए वे कई-कई लड़कियाँ पैदा करते हैं और जनसंख्या वृद्धि रोकने को तैयार नहीं होते हैं। कई जातियों में व्याप्त बहुविवाह प्रथा के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो रही है। अशिक्षित तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता का अभाव एवं अज्ञानता के कारण जनसंख्या वृद्धि होती रही है। गर्भ निरोधन के साधनों की जानकारी उन तक नहीं पहुँच पाती हैं।
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ – वास्तव में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या न होकर अनेक समस्याओं की जड़ है। इसके कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह की समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। इनमें प्रमुख समस्या है-सुविधाओं का बँटवारा और कमी। देश में जितनी सुविधाएँ और संसाधन उपलब्ध हैं, वे देश की जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति करने में अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं। सरकार इन सुविधाओं को बढ़ाने के लिए योजना बनाती है और उनमें वृद्धि करती है, जनसंख्या में उससे अधिक वृद्धि हो चुकी होती है।
अतः संसाधनों की कमी बनी रह जाती है। बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, यातायात के साधनों की भीड़, सब जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हैं। जनसंख्या की अधिकता के कारण ही व्यक्ति को न पेट भरने के लिए रोटी मिल रही है और न तन ढंकने के लिए वस्त्र। हर हाथ को काम मिलने की बात करना ही बेईमानी होगी। अब भूखा और बेरोज़गार शांत बैठने से रहा। वह हर नैतिक-अनैतिक हथकंडे अपनाकर कार्य करता है और कानून व्यवस्था को चुनौती देता है। पर्यावरण प्रदूषण और वैश्विक ऊष्मीकरण भी जनसंख्या वृद्धि की देन है।
जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय – जनसंख्या की समस्या ने निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। सरकार कानून बनाकर उसे ईमानदारी से लागू करवाए तथा युवा वर्ग इसकी हानियों पर विचार कर स्वयं ही समझदारी दिखाएँ।
उपसंहार - जनसंख्या वृद्धि देश, समाज और विश्व सबके लिए हानिकारक है। इसे रोकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। इसके लिए आज से ही सोचने की ज़रूरत है, क्योंकि कल तक तो बहुत देर हो चुकी होगी।
समाज में नारी की बदलती भूमिका
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• प्राचीन काल में नारी की स्थिति
• मध्यकाल में नारी की स्थिति
• आधुनिक काल में नारी
• नारी में बढ़ी आत्मनिर्भरता
भूमिका – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। आदिकाल से ही ये दोनों पहिए मिलकर जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से खींचते आए हैं। समय बदलने के साथ ही स्त्री की स्थिति में बदलाव आता गया। उसकी सीमा अब घर के अंदर तक ही सीमित नहीं रही। वह घर-परिवार के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करती नज़र आती है।
प्राचीन काल में नारी की स्थिति – प्राचीन काल में नारी को मनुष्य के समान ही समानता का दर्जा प्राप्त था। भले ही उस समय शिक्षा का प्रचार-प्रसार अधिक नहीं था, परंतु स्त्रियों को दबाए रखने का प्रचलन भी नहीं था। उस समय स्त्रियाँ घर के काम-काज करती थीं। वे पुरुष द्वारा कमाए धन को सँभालती थी। खाना बनाने जैसे घरेलू कार्य तथा बच्चों की देखभाल का काम उनके जिम्मे रहता था। पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि में वे पुरुषों का साथ देती थीं।
मध्यकाल में नारी की स्थिति – मध्यकाल आते-आते नारी की स्थिति में बदलाव आता गया। इस समय देश को आक्रमण और युद्धों का सामना करना पड़ रहा था। नारी को आतताइयों के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए उस परदे में रखा जाने लगा। उसे घर की चार दीवारी में कैद कर दिया गया। मुगलकाल में परदा प्रथा और बाल-विवाह की कुप्रथा की वृद्धि हुई। इस काल में नारी को शिक्षा से वंचित रखकर उसे उपभोग की वस्तु बना दिया गया।
आधुनिक काल में नारी – अंग्रेज़ी शासनकाल के उत्तरार्ध से नारी की स्थिति में सुधार आना शुरू हो गया। सावित्री बाई फुले एवं ज्योतिबा फुले ने नारी की शिक्षा के लिए जो प्रयास किया था, वह स्वतंत्रता के बाद रंग लाने लगा। सरकारी प्रयासों से नारी शिक्षा एवं उसके स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए अनेक ठोस कदम उठाए गए और योजनाबद्ध तरीके से काम किया गया। इसका परिणाम भी सामने आने लगा।
आधुनिक काल में नारी पुरुषों की भाँति उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। वह विभिन्न कौशलों का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। आज नारी घर की सीमा लाँघकर स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, अस्पताल, बैंक, उड्डयन क्षेत्र आदि में अपनी योग्यतानुसार कार्य कर रही है। इतना ही नहीं, राजनीति, वैज्ञानिक संस्थान खेल जगत, सेना, पुलिस, पर्वतारोहण, विमानन, पर्यटन आदि कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ नारी के कदम न पहुँचे हों। आज स्थिति यह है कि नारी द्वारा नौकरी करने के कारण पुरुष बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।
नारी में बढ़ी आत्मनिर्भरता – नारी की शिक्षा और नौकरी ने उसके आत्मविश्वास में वृधि की है। इससे वह पुरुषों की निरंकुशता से मुक्त हो रही है। नौकरी के कारण वेतन उसके हाथ में आया है। इस आर्थिक स्वावलंबन ने उसके आत्मविश्वास में वृद्धि की है। अब पुरुषों के समान ही अपनी कार्यक्षमता से समाज को प्रभावित कर रही है। कुछ रुढ़िवादी और परंपरागत सोच-विचार वाले पुरुष जिन्हें उसकी कार्यक्षमता और कौशल पर विश्वास न था, वे चकित होकर उसे देख ही नहीं रहे हैं, बल्कि उसकी योग्यता के कायल भी हो रहे हैं।
अब तो सरकार ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में पुरुष और महिला का वेतनमान बराबर कर दिया है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहाँ महिलाएं पुरुषों से भी दो कदम आगे बढ़कर काम कर रही हैं। उनकी कार्यकुशलता देखकर पुरुष समाज नारी के प्रति अपनी बनी-बनाई परंपरागत सोच में बदलाव लाना शुरू कर दिया है।
उपसंहार-इसमें कोई संदेह नहीं कि आज समाज में नारी की स्थिति उन्नत हुई है। अब पुरुषों को यह ध्यान रखना है कि कार्यालय में काम करने के बाद उसे घर की चक्की में पिसने के लिए विवश न करे। यथासंभव घर में नारी का साथ देकर घरेलू कार्यों और जिम्मेदारियों में हाथ बटाएँ तथा उसे सम्मान की दृष्टि से देखने का प्रयास करें।
कंप्यूटर के लाभ अथवा कंप्यूटर-आज की आवश्यकता
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र
• शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर
• बैंकों में कंप्यूटर
• विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर
• व्यक्तिगत उपयोग
• कंप्यूटर से हानियाँ
• उपसंहार
भूमिका - विज्ञान ने मुनष्य को ऐसे अनेक उपकरण प्रदान किए हैं जिनकी कभी वह कल्पना किया करता था। इन उपकरणों ने मानव-जीवन को नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। ये उपकरण इनते उपयोगी हैं कि वे मनुष्य की आवश्यकता बनते जा रहे हैं। इन्हीं उपकरणों में एक है-कंप्यूटर। कंप्यूटर विज्ञान का चमत्कारी यंत्र है।
कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र – कंप्यूटर का आविष्कार विज्ञान के चमत्कारों में से एक है। यह ऐसा यंत्र है जिसका उपयोग लगभग हर जगह किया जाता है। यह व्यक्तिगत उपयोग में लाया जा रहा है। शायद ही ऐसा कोई कार्यालय हो जहाँ किसी न किसी रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। अब इसे लाना-ले जाना भी सुगम होता जा रहा है, क्योंकि इसके मॉडल में बदलाव आता जा रहा है।
शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर – आने वाले समय में शिक्षण का अधिकांश कार्य कंप्यूटर से किया जाने लगेगा। यद्यपि प्रोजेक्टर के माध्यम से आज भी वभिन्न कोसों की पढ़ाई कंप्यूटर से करवाई जा रही है तथा छात्र-छात्राएँ इसकी मदद से प्रोजेक्ट बनाने आदि का काम कर रहे हैं, पर आने वाले समय में छात्रों को बस्ते के बोझ से मुक्ति मिल जाएगी। उनकी सारी पुस्तकें और पाठ्यसामग्री कंप्यूटर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। अब वह समय भी दूर नहीं जब शिक्षक भी कंप्यूटर ही होगा। वह छात्रों को निर्देश देकर विभिन्न विषयों की पढ़ाई करवाएगा। आज भी छात्र अपनी मोटी-मोटी पुस्तकें पी.डी.एफ.फार्म में करके कंप्यूटर से पढ़ाई कर रहे हैं।
बैंकों में कंप्यूटर – कंप्यूटर बैंकिंग क्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। अब कंप्यूटर के कारण क्लर्कों को न हाथ से काम करना पड़ रहा है और न फाइलें और लेजर सँभालने का झंझट रहा। सभी ग्राहकों के खाते अब कंप्यूटर की फाइलों में सिमट आए हैं। कंप्यूटर में न इनके खोने का डर है और न चूहों के काटने का। इसके अलावा एक कंप्यूटर कई-कई क्लर्कों का काम बिना थके करता है। कंप्यूटर न तो हड़ताल करता है और वेतन बढ़ाने के लिए कहता है। यह ऐसा यंत्र है जो बिना गलती किए अधिकाधिक कार्य कम से कम समय में पूरा कर देता है।
विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर – कंप्यूटर अपनी उपयोगिता के कारण हर सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों में प्रयोग किया जाने लगा है। आज इसे वैज्ञानिक, आर्थिक युद्ध, ज्योतिष, मौसम विभाग, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जा रहा है। इसका प्रयोग बिल बनाने, कर्मचारियों के वेतन, पी.एफ. का हिसाब रखने, खातों के संचालन आदि में खूब प्रयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार रेलवे, वायुयान, समुद्री जहाजों के संचालन के लिए भी कंप्यूटर की मदद ली जा रही है।
व्यक्तिगत उपयोग – आज कंप्यूटर का व्यक्तिगत उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। छात्र इसका उपयोग पढ़ाई के लिए कर रहे हैं, तो चित्रकार और कलाकार इसका प्रयोग अपनी कला को निखारने के लिए कर रहे हैं। गीत-संगीत की रिकॉर्डिंग और संकलन का कार्य कंप्यूटर से बखूबी किया जा रहा है। कंप्यूटर से हानियाँ-कंप्यूटर का एक पक्ष जितना उजला है, दूसरा पक्ष उतना ही श्याम भी है। ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ की उक्ति इस पर पूरी तरह लागू होती है। इसका अधिक उपयोग मोटापा बढ़ाता है। इस पर ज़्यादा देर काम करना आँख और कमर के लिए हानिकारक होता है। इसके अलावा इस पर सारी गणनाएँ सरलता से हो जाने के कारण अब मौखिक दक्षता और याद करने की क्षमता में कमी आने लगी है।
उपसंहार – कंप्यूटर अद्भुत तथा अत्यंत उपयोगी यंत्र है, पर इसका अधिक प्रयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसका प्रयोग व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बनाता है। इसका आवश्यकतानुसार सोच-समझकर प्रयोग करना चाहिए।
सबसे प्यारा देश हमारा अथवा भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• पावन एवं गौरवमयी देश
• प्राकृतिक सौंदर्य
• ऋतुओं का अनुपम उपहार
• स्वर्ग से भी बढ़कर
• उपसंहार
भूमिका – हमारे देश का नाम भारत है। दुनिया इसे हिंदुस्तान, इंडिया, आर्यावर्त आदि नामों से जानती है। यह देश एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसकी संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। अपनी विभिन्न विशेषताओं के कारण यह देश, दुनिया में विशिष्ट स्थान रखता है। भारत की सभ्यता बहुत ही प्राचीन है | यह देश प्राचीन काल से ही काव्य, ग्रन्थ, ज्ञान, विज्ञान और प्रद्योगिकी में संसार में अव्वल रहा है |
पावन धरती एवं सुन्दर देश – हमारी धरती संसार की सबसे पावन एवं सुन्दर धरती है। इस देश का इतिहास गौरवमयी रहा है। इस गौरवमयी देश में जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवताओं का जब पुण्य फल समाप्त हो जाता है तो उन्हें पुन: धरती पर जन्म लेना पड़ता है| यदि ऐसा कहा जाए कि वो धरती पर जन्म लेने के लिए लालायित रहते है तो इसमें कोई अति श्योक्ति नहीं होगी | लेकिन पुरे विश्व में वे भारत की पावन भूमि को ही अपना जन्म स्थली और कर्म स्थली के रूप में चुनते हैं | जैसे- श्रीराम, कृष्ण, नानक, कबीर, बुद्ध, गुरुगोविंद सिंह, रामकृष्ण देव, चैतन्य महाप्रभु, श्री श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी आदि ने इसी पावन भूमि पर जन्म लिया है। यहीं उन्होंने अपनी लीलाएँ रची और दुनिया को ज्ञान और सदाचार का सन्मार्ग दिखाया।
प्राकृतिक सौंदर्य – प्राचीन काल में इसी देश में दुष्यंत नामक राजा राज्य करते थे। दुष्यंत और शकुंतला का पुत्र भरत अत्यंत वीर एवं प्रतापी था। उसी के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। भौगोलिक दृष्टि से इस देश का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत मोहक है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय है जिसकी हिमाच्छादित चोटियाँ भारत के मुकुट के समान प्रतीत होती है। इसके दक्षिण में हिंद महासागर है। ऐसा लगता है जैसे सागर इसके चरण पखार रहा है।
इसके सीने पर बहती गंगा-यमुना इसका यशगान करती-सी प्रतीत हो रही हैं। भारत भूमि शस्य श्यामला है। नभ में उड़ते कलरव करते पक्षी इस देश का गुणगान दुनिया को सुनाते हुए प्रतीत होते हैं। भारत के दक्षिणी भाग में समुद्री किनारे नारियल के पेड़ हैं, तो मध्य भाग में हरे-भरे वन और फलदायी वृक्ष। इनसे भारत का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है। इसके उत्तरी भाग जम्मू-कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ स्थित डलझील और उसमें तैरते शिकारे, शालीमार बाग, निशात बाग हमें धरती पर स्वर्ग की अनुभूति कराते हैं।
ऋतुओं का अनुपम उपहार – हमारे देश भारत को ऋतुओं का अनुपम उपहार प्रकृति से मिला है। यहाँ छह (6) ऋतुएँ-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत बारी-बारी से आती हैं और अपना सौंदर्य बिखरा जाती हैं। यह दुनिया का इकलौता देश है, जहाँ ऋतुओं में इतनी विविधता है। गरमी की ऋतु हमें शीतल पेय और तरह-तरह के फलों का आनंद देती है, तो वर्षा ऋतु धरती पर सर्वत्र हरियाली बिखरा जाती है। शरद ऋतु संधिकाल होती है।
शिशिर और हेमंत हमें सर्दी का अहसास करवाते हैं, तो वसंत ऋतु अपने साथ हर्षोल्लास लेकर आती है और सर्वत्र खुशियों के फूल खिला जाती है। इस ऋतु में धरती का सौंदर्य अन्य ऋतुओं से बढ़ जाता है। स्वर्ग से भी बढ़कर हमारी भारत भूमि स्वर्ग से बढ़कर है। इसी भूमि के बारे में कहा गया है-‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। इसका भाव यह है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। इसी भूमि के बारे में श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव से कहा था
ऊधौ! मोहि ब्रज बिसरत नाहीं।
हंससुता की सुंदर कगरी और कुंजन की छाहीं।
भगवान राम ने भी अयोध्या की सुंदरता के बारे में कहा है –
अरुण यह मधुमय देश हमारा,
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
ऐसे अनेक महापुरुषों ने इस भारत की पावन धरती की सराहना की है और इसकी रक्षा के लिए अनेकों बलिदान दिए है |
उपसंहार-भारत देश अत्यंत विशाल है। यह जितना विशाल है उससे अधिक सुंदर एवं पावन है। पर्वत, सागर, नदी, रेगिस्तान का विशाल मैदान आदि इसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं। इसकी प्राकृतिक सुंदरता इसे स्वर्ग-सा सुंदर बनाती है। हम भारतीयों को भूल से भी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे इसकी गरिमा एवं सौंदर्य को ठेस पहुँचे। हमें अपने देश पर गर्व है।
बाल मजदूरी-एक अभिशाप
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• समस्या का स्वरूप
• घर में बालश्रम
• कारखानों-उद्योगों में बालश्रम
• बाल मजदूरी क्यों?
• बाल मजदूरी के दुष्परिणाम
• रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – हमारे समाज में अनेक समस्याएँ व्याप्त हैं, जिनके कारण समाज की प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। इन समस्याओं में बालश्रम, छुआछूत, गरीबी, अशिक्षा, दहेज प्रथा आदि हैं। इनमें बालश्रम की समस्या ऐसी है जिससे बच्चों का वर्तमान ही नहीं बल्कि उनका भविष्य भी चौपट हो रहा है। यह समस्या किसी अभिशाप के समान है।
समस्या का स्वरूप -बच्चों द्वारा पढ़ना-लिखना, खेलना कूदना छोड़कर काम करने पर जाने के लिए विवश होना और काम करना ही बालश्रम कहलाता है। इसे बाल मजदूरी भी कहा जाता है। बचपन में काम करने से बच्चों का भविष्य नष्ट होता है, अतः इसे रोकने के लिए समय-समय पर आवाजें उठाई जाती रही हैं। ‘बचपन बचाओ’ नामक आंदोलन इसी दिशा में उठाया गया एक कदम था।
घर में बालश्रम – बालश्रम की समस्या किसी क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इसका दायरा विस्तृत है। पढ़े-लिखे और सभ्य कहलाने वाले लोग बच्चों को घरेलू नौकर रखकर काम करवाते हैं। इन बाल श्रमिकों को बहुत कम पारिश्रमिक दिया जाता है। उन्हें बचा खुचा भोजन और फटे-पुराने कपड़े पहनने को दिए जाते हैं। उनसे उनकी उम्र से अधिक काम लिया जाता है। इन बच्चों से एक गिलास टूटने मात्र पर ही उन्हें शारीरिक दंड दिया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है।
कारखाने एवं उद्योगों में बालश्रम – अनेक कारखाने एवं लघु उद्योगों में बच्चों से काम करवाया जाता है। गलीचे बुनना, चूड़ियाँ बनाना, अगरबत्तियाँ बनाना, पटाखे बनाना माचिस बनाना आदि से जुड़े उद्योगों में बालश्रम देखा जा सकता है। इन स्थानों पर बच्चों को शोचनीय दशाओं में काम करना पड़ता है। प्रायः देखा जाता है कि ये बच्चे जहाँ काम करते हैं, वहाँ बाहर से ताला लगा दिया जाता है ताकि पुलिस या किसी अन्य निरीक्षक की दृष्टि उन तक न पहुँच सके। इसके अलावा चाय की दुकानों और ढाबों पर भी बाल मज़दूरों को देखा जा सकता है।
बाल मज़दूरी क्यों? – बाल मजदूरी के लिए कई कारण उत्तरदायी हैं। पहला कारण यही है कि समाज में व्याप्त गरीबी के कारण जब माँ-बाप इन बच्चों का पेट नहीं भर पाते हैं, तो बच्चे बालश्रम करने के लिए विवश हो जाते हैं। इसे अलावा शिक्षा एवं जागरुकता के अभाव में न तो ये बच्चे स्कूल जाते हैं, और न इनके माता-पिता इन्हें स्कूल भेजते हैं।
दूसरा मुख्य कारण यह है कि समाज में फैली स्वार्थ एवं लालच की प्रवृत्ति जिसके कारण ठेकेदार एवं उद्योगपति मोटा लाभ कमाने के लिए बच्चों से ही काम करवाने को प्राथमिकता देते हैं। ये ठेकेदार एक प्रौढ मज़दूर को दी जाने वाली मज़दूरी में दो-तीन बाल श्रमिकों से काम करवाते हैं तथा अधिक देर तक काम लेते हैं। इसके अलावा ये बाल श्रमिक किसी तरह की हड़ताल, वेतनवृद्धि, छुट्टी आदि की माँग नहीं करते हैं।
बाल मज़दरी के दुष्परिणाम – बाल मजदूरी का सबसे भयंकर दुष्परिणाम यह है कि मज़दूरी करने के कारण इन बच्चों का वर्तमान और भविष्य दोनों अंधकारमय हो रहा है। आज मज़दूरी करने वाले बच्चे शिक्षण-प्रशिक्षण के अभाव में जीवनभर के लिए अकुशल मज़दूर बनकर रह जाते हैं। बाल मज़दूरी के कारण समाज में बेरोज़गारी बढ़ी है। इन बाल श्रमिकों को हटा देने से लाखों युवाओं को रोज़गार मिल सकता है। इसके अलावा बाल मजदूरी के कारण सरकार को अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य हासिल नहीं हो रहा है।
रोकने के उपाय – बाल मज़दूरी रोकने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए। इसके लिए जिन अधिकारियों तथा कर्मचारियों को यह उत्तरदायित्व दिया जाए, वे अपना काम ईमानदारीपूर्वक करें। समाज के लोगों को अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति त्यागकर ‘बाल मज़दूरों’ के भविष्य के बारे में सोच-विचार करना चाहिए।
उपसंहार - बाल मज़दूरी समाज के लिए अभिशाप है। इस अभिशाप को मिटाने के लिए समाज के संपन्न लोगों को आगे आना चाहिए तथा बाल मजदूरी करवाने वाले के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व
विद्यार्थी और अनुशासन
अथवा
विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• अनुशासन का अर्थ
• अनुशासन का महत्त्व
• विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता
• अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम
• अनुशासनहीनता रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – यदि मनुष्य अपने आसपास दृष्टि दौड़ाए और फिर ध्यान से देखते हुए विचार करे तो उसे लगेगा हमारे चारों ओर एक बनी बनाई व्यवस्था है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से जुड़कर सभी कार्य कर रहे हैं। प्रकृति का ही उदाहरण लेते हैं। हम देखते हैं कि सूर्य समय पर निकल रहा है और तारे समय पर उदय होकर छिप रहे हैं। कुछ ऐसी ही व्यवस्था विद्यार्थियों के लिए भी आवश्यक होती है। इसी व्यवस्था का दूसरा नाम अनुशासन है।
अनुशासन का अर्थ – अनुशासन शब्द ‘शासन’ में ‘अनु’ उपसर्ग जोडने से बना है जिसका अर्थ है-शासन के पीछे चलना। इस शासन को व्यवस्था या नियम भी कहा जा सकता है। अर्थात् समाज और बड़े लोगों द्वारा निर्धारित किए गए नैतिक और सामाजिक नियमों का पालन करना ही अनुशासन कहलाता है।
अनुशासन का महत्त्व – अनुशासन का महत्त्व सर्वत्र है। जीवन में कदम-कदम पर अनुशासन का महत्त्व है। निरंकुश जीवन स्वेच्छाचारिता का शिकार होकर लक्ष्य से भटक जाता है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का विशेष महत्त्व है। यह जीवन का निर्माणकाल होता है। इस काल में अनुशासन की महत्ता सर्वाधिक होती है। इस समय घर में माता-पिता और बड़ों की बातें मानकर अनुशासित जीवन जीना चाहिए। विद्यालय में एक आदर्श विद्यार्थी कहलाने के लिए अनुशासन का पालन अनिवार्य है। इसके लिए विद्यालय के नियमों, अपने अध्यापक एवं प्रधानाचार्य की आज्ञा का पालन करना अत्यावश्यक हो जाता है। इतना ही नहीं, विद्यालय की संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना तथा अपने आसपास साफ़-सफ़ाई रखना अनुशासन के ही अंग हैं। दुर्भाग्य से विद्यार्थी अनुशासनहीनता पर उतरकर अवांछनीय कार्यों में शामिल हो जाते हैं।
विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता के कारण – समाचार पत्र, दूरदर्शन मीडिया आदि के प्रभाव के कारण विद्यार्थियों में यह सोच बढ़ी है कि अब वे बच्चे नहीं रहे। अब उन्हें अनुशासन में रहने की आवश्यकता नहीं रही। यह सोच उन्हें अनुशासनहीनता की ओर उन्मुख करती है। इसके अलावा छात्रों का राजनीति में प्रवेश करना भी इसका मुख्य कारण है।
अनुशासनहीनता का दुष्प्रभाव – अनुशासनहीनता का दुष्प्रभाव अलग-अलग रूपों में नज़र आता है। अनुशासनहीन विद्यार्थी का ध्यान पढ़ाई में नहीं लगता है। वह पढ़ाई में पिछड़ता जाता है। वह लक्ष्यभ्रष्ट होकर माता-पिता की अपेक्षाओं पर तुषारापात करता है। अनुशासनहीन छात्र विद्यालय परिसर में अपनी ताकत दिखाने के लिए छात्रों को अपने साथ मिलाने का प्रयास करते हैं। वे बात-बात में विद्यालय, कॉलेज या अन्य संस्थान बंद कराने के लिए तोड़-फोड़ का सहारा लेते हैं और सरकारी संपत्ति को क्षति पहुँचाते हैं। इसके अलावा लालच, बुरी संगत में पड़ना, आवश्यकता एवं पाकेटमनी से अधिक खर्च करने का शौक, दिखावे की प्रवृत्ति आदि भी छात्रों को अनुशासनहीनता की ओर उन्मुख करती है।
अनुशासनहीनता रोकने के उपाय – अनुशासनहीनता रोकने का पहला उपाय है-आत्मानुशासन में रहना। यदि व्यक्ति अपने शासन में रहता है तो यह समस्या नहीं आती है। इसके अलावा छात्रों को नैतिक शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए। छात्रों के साथ मित्रवत व्यवहार करना, उनकी बातें सुनकर उनकी समस्या का निवारण करने से अनुशासनहीनता रोकी जा सकती है।
उपसंहार-जीवन में सफलता पाने के लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है। अनुशासन हमें अच्छा मनुष्य बनने में सहायता करता है। हम सबको अनुशासनबद्ध जीवन जीना चाहिए।
Paragraphs
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