9. महिलाएँ, जाती एवं सुधार History class 8 exercise महत्वपूर्ण-प्रश्नोत्तर
9. महिलाएँ, जाती एवं सुधार History class 8 exercise महत्वपूर्ण-प्रश्नोत्तर ncert book solution in hindi-medium
NCERT Books Subjects for class 8th Hindi Medium
मुख्य बिंदु
अभ्यास-प्रश्नोत्तर
अभ्यास - प्रश्न:
प्रश्न: निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया:
राममोहन रॉय
दयानंद
वीरेशलिंगम पंतुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज़ अली
ईश्वरचंद्र विघासहर
उत्तर:
राममोहन रॉय - ब्रह्रा समाज की स्थापना, सटी प्रथा का विरोध|
दयानंद - आर्य समाज को स्थापना, विधवा विवाह का समर्थन|
वीरेशलिंगम पंतुलु - विश्व पुनर्विवाह|
ज्योतिराव फुले - सत्यशोधक समाज संगठन, जाती आधारित समाज की आलोचना|
पंडिता रमाबाई - महिला अधिकार, विधवा गृह की स्थापना (पूना में)|
पेरियार - हिंदू धर्मग्रंथों के आलोचक, स्वाभिमान आन्दोलन|
मुमताज़ अली - मुसलिम लड़कियों की शिक्षा|
ईश्वरचंद्र विघासहर - महिला शिक्षा|
प्रश्न: निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ:
(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपति उत्तराधिकार आदि के बारे में ने कानून बना दिए|
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर - तरीकों के लिए प्राचीन ग्रन्थों से दूर रहना पड़ता था|
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलाता था|
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था|
उत्तर:
(क) सही|
(ख) गलत|
(ग) गलत|
(घ) सही|
प्रश्न: प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली ?
उत्तर:
सर्वप्रथम राजा राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने इस तरह के प्रयोग किये बाद में अन्य सुधारकों ने भी प्राचीन धर्म ग्रंथों का सहारा लिया | जब भी वे किसी हानिकारक प्रथा को वे चुनौती देना चाहते थे तो अक्सर प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के श्लोकों से ऐसे श्लोक या वाक्य खोजने का प्रयास करते थे जो उनकी सोंच का समर्थन करते हो | इसके बाद वे दलील देते थे कि संबंधित वर्त्तमान रीति-रिवाज प्रारंभिक परंपरा के खिलाफ है |
प्रश्नह: लड़कियों को स्कूल ना भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण थे ?
उत्तर:
(i) लोगों को भय था कि स्कूल वाले लड़कियों को घर से निकाल ले जायेंगे और उन्हें घरेलु कामकाज नहीं करने देंगे |
(ii) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से गुजरना पड़ता था | उनकी मान्यता थी कि लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रहना चाहिए |
(iii) बहुत सारे लोगों को लगता था कि इससे लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी |
प्रश्न: ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे ? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा ? यदि हाँ तो किस कारण ?
उत्तर:देश के कई भागों में लोगों ने ईसाई प्रचारकों पर हमला किया, क्योंकि उन्हें डर था कि ये प्रचारक जनजातीय समूहों तथा निम्न जाति के लोगों का धर्म परिवर्तित कर देंगे |
हाँ, कुछ लोगों ने ईसाई प्रचारकों का समर्थन भी किया होगा जिसका निम्न कारण थे |
(i) ये प्रचारक जनजातीय लोगों तथा निम्न जाति के लोगों के लिए स्कूलों की स्थापना कर रहे थे|
(ii) इन लोगों के बच्चों के पास इससे कुछ ज्ञान एवं निपुणतायें आ रही थी | जिनके सहारे वे बदलती दुनिया में अपने लिए रास्ता बना सकते थे |
प्रश्न: अंग्रेजों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो "निम्न" मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे ?
उत्तर:
(i) शहरों में नौकरी के नए-नए अवसर सामने आ रहे थे | नए स्थापित कारखानों तथा निगमों में नौकरियाँ मिल रही थी |
(ii) मजदूरों, कुलियों, खुदाई करने वालों, ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नाली की सफाई करने वालों, जमादारों, रिक्शा खींचने वालों की दिनों-दिन माँग बढ़ती जा रही थी |
(iii) असम, मारीशस तथा इंडोनेशिया के बागानों में भी नौकरी के अवसर बन रहे थे |
(iv) ईसाई प्रचारकों ने जनजातीय तथा निम्न जाति के बच्चों के लिए स्कूल की स्थापना की |
प्रश्न: ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज असमानताओं की आलोचना को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर: आलोचनाओं को उचित बताना-
(i) ज्योतिराव फुले ने ब्राह्रणों की इस बात को गलत ठहराया कि आर्य होने के कारण वे अन्य लोगों से श्रेष्ठ हैं| फुले का तर्क था कि आर्य उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को हरा कर गुलाम बना लिया तथा पराजित जनता को निम्न जाती वाला मनाने लगे|
(ii) पेरियार ने हिंदू वेड पुराणों की आलोचना की उनका मानना था कि ब्राह्रणों ने निचली जातियों पर सटी तथा महिलाओं पर पुरूषों का प्रभुत्त्व स्थापित करने के लिए इन पुस्तकों का सहारा लिया हैं|
(iii) हरिदास ठाकुर ने भी जाती व्यवस्था शि ठहराने वाले ब्राह्र्णवादी ग्रन्थों पर सवाल उठाया|
(iv) अम्बेडकर ने भी मन्दिर प्रवेश आदोंलन के द्वारा समकालीन समाज में उच्च जातीय संरचना पर सवाल उठाए| वह इस आन्दोलन के द्वारा पूरे देश को दिखाना चाहते थे कि समाज में जातीय पूर्वाग्रहों की जकड कितनी मजबूत हैं|
प्रश्न: फुले ने अपने पुस्तक गुलामगिरी को गुलामो की आजादी के लिए चल रहे अमेरिका आदोलंन को समर्पित क्यों किया?
उत्तर: 1873 में फुले ने गुलामगिरी नामक एक किताब लिखि गुलामगिरी का अर्थ होता है गुलामी | इस घटना के करीब 10 वर्ष पहले अमेरिकी गृहयुद्ध हुआ था जिसमें अंतत: अमेरिका में गुलामी प्रथा का अंत हुआ | यही कारण है कि फुले ने अपनी पुस्तक 'गुलामगिरी' को अमेरिका में गुलामी प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन करने वालों को समर्पित किया |
प्रश्न: मंदिर प्रवेश आन्दोलन के जरिये अंबेडकर क्या हासिल करना चाहते थे ?
उत्तर:
(i) 1927 से 1935 के बीच अम्बेडकर ने मदिरों में प्रवेश के लिए ऐसे तीन आन्दोलन चलाये, वे पूरे देश को दिखना चाहते थे कि समाज में जातीय पूर्वाग्रहों की जकड कितनी मजबूत है | वे अपने महार जाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश का हक दिलाना चाहते थे | समाजिक भेदभाव समाप्त करना उनका उद्देश्य था |
(ii) समकालीन समाज में उच्च जातीय सत्ता संरचना के कारण निम्न जातियों के साथ असमानता, बुरा व्यवहार तथा भेदभाव हो रहा था|
(iii) जिसके माध्यम से वह देश को दिखाना चाहते थे कि समाज पूर्वाग्रहों की जकड कितनी मजबूत हैं लेकिन लगातार विरोध करने पर इसकों कमजोर किया जा सकता हैं|
प्रश्न: ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आन्दोलन की आलोचना क्यों करते ठगे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय सघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
उत्तर: राष्ट्रीय संघर्ष में मदद:
(i) फुले ने जाती व्यवस्था की अपनी आन्दोलन को सभी प्रकार की गैर बराबरी से जोड़ दिया था, वह उच्च जाती महिलाओं की दुर्दशा, मजदूरों की मुसीबतों और निम्न जातियों के अपमानपूर्ण हालत के बारे में गहरे तौर पर चिंतित थे|
(ii) पेरियार की दलीलों और आंदोलन से उच्च जातीय नेताओं के बीच कुछ आत्ममंथन और आत्मालोचना की प्रक्रिया शुरू हुई|
(iii) इनकी आलोचना से मसाज में समानता का भाव आया| जातीय बंधन ढीले पड़े, छुआछूत की भावना काम हुई, जिससे राष्ट्रीय आदोलन में एकता का भाव पैदा हुआ|
महत्वपूर्ण-प्रश्नोत्तर
अतिरिक्त - प्रश्न:
प्रश्न: चिंता का क्षेत्र कौन से थे जो अंधाविश्वास को बढावा देते थे|
उत्तर:
- चिंता का प्रमुख क्षेत्र उस समय भारत में लैंगिक भेदभाव था। महिलाओं को केवल वस्तुओं के समान माना जाता था।
- कम उम्र की लड़कियों को 10 साल की उम्र से पहले ही बुजुर्ग पुरुषों के साथ शादी करने के लिए मजबूर किया जाता था। हालाँकि, कई बार, दूल्हा मरता हुआ बूढ़ा हुआ करता था। पुरुषों की मृत्यु के बाद, विधवा महिलाओं को उनके पति की चिता पर बैठने और मरने के लिए मजबूर किया गया। निर्दोष महिलाओं को मौत के घाट उतारने की इस भयानक प्रथा को 'सती दह प्रथा' कहा गया।
- लोग जाति के आधार पर भी बंटे हुए थे। समाज की उच्च जातियाँ ब्राह्मण और क्षत्रिय थीं। व्यापारियों और साहूकारों को वैश्य कहा जाता था और उन्हें उच्च जातियों में रखा जाता था।
- सबसे निचली जाति को शूद्र कहा जाता था और बुनकर, कुम्हार जैसे कारीगर और किसान इस जाति के अंतर्गत आते थे।
- ऊंची जातियों द्वारा निचली जातियों को 'अछूत' माना जाता था। यह धर्म के भीतर एक भेदभावपूर्ण प्रथा थी।
- ये सुधार फिर से उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में शुरू किए गए थे और स्थिति बदलने लगी थी।
- हालाँकि, सुधार इतना आसान नहीं था। इसे बाद में इन प्रथाओं के समर्थकों के खिलाफ कई आंदोलनों के माध्यम से हासिल किया गया था।
प्रश्न: परिवर्तन के युग की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर:
- उन्नीसवीं सदी की शुरुआत के दौरान, सामाजिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में कई बहसें और तर्क दिए गए थे।
- नए प्रकार के संचार प्रकाशित हुए जिनमें किताबें, समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पत्रक और पर्चे शामिल थे।
- संचार के नए साधन काफी आसानी से सुलभ थे।
- आम लोग अब अपने विचार व्यक्त करने में सक्षम थे।
- एक नए और सुधारित विचार ने परिवर्तन की ओर अग्रसर किया।
- राजा राममोहन राय जैसे कुछ लोग आगे आए और आंदोलन को बदलाव की ओर ले गए।
- राजा राममोहन राय ने भी भारत में महिला शिक्षा के विस्तार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह पश्चिमी शिक्षा के विस्तार और भारत में महिला शिक्षा के पक्षधर थे।
- सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत राजा राममोहन राय ने की थी जिसे बाद में विलियम लॉर्ड बेंटिक ने प्रतिबंधित कर दिया था। यह भारत के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध आंदोलन था।
- इस अवधि के दौरान एक अन्य सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे जो विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के मुख्य वास्तुकार थे। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में कई प्राचीन संस्कृत ग्रंथ दिए।
- दक्षिणी भाग में विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध आंदोलन भारत में वीरसलिंगम पंतुलु द्वारा चलाया गया था।
- विधवा पुनर्विवाह का समर्थन स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी किया था, जो आर्य समाज के प्रसिद्ध समाज सुधारकों और संस्थापकों में से एक थे।
प्रश्न: भारत में महिला की शिक्षा को लेकर किस प्रकार की व्यवस्था थी?
उत्तर:
- सुधारक अब तक नारी शिक्षा के महत्व को समझ चुके थे।
- विद्यासागर द्वारा कलकत्ता में और कुछ अन्य सुधारकों द्वारा बॉम्बे में लड़कियों के लिए कई स्कूल खोले गए।
- लड़कियों के लिए स्कूल प्राप्त करने का मुख्य विचार उनके परिवार के सदस्यों के सोचने का तरीका था। परिवार के अधिकांश सदस्यों ने सोचा कि स्कूल उनकी लड़कियों को उनसे छीन लेंगे।
- हालाँकि, बाहर जाने की प्रथा को अभी भी लड़कियों के परिवार के सदस्यों द्वारा समर्थित नहीं किया गया था। इस कारण से, उन्नीसवीं सदी के मध्य में लड़कियों को उनके पिता या पति द्वारा पढ़ाया जाता था।
- पंजाब में आर्य समाज और महाराष्ट्र में ज्योतिराव फुले ने अब तक लड़कियों के लिए कई स्कूल खोले हैं।
- उस समय महिलाओं द्वारा महिलाओं की शिक्षा लोकप्रिय हो गई थी।
- भोपाल की बेगमों ने भारत में मुस्लिम समुदाय में शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद की।
- बेगम रोकैया सखावत हुसैन द्वारा पटना और कलकत्ता में लड़कियों के लिए कई स्कूल खोले गए।
- 1880 के बाद महिला शिक्षा में वृद्धि हुई थी। तब से, महिलाओं ने विश्वविद्यालयों में प्रवेश करना शुरू कर दिया था, और उनमें से कुछ डॉक्टर भी बन गईं।
- 1900 की शुरुआत में, महिलाओं को अवसर प्रदान किए गए और वे अपनी शिक्षा को जारी रखने में सक्षम थीं।
- महिलाओं के परिवार के सदस्यों की रूढ़िवादी मानसिकता भारत में महिला शिक्षा की मुख्य समस्या थी।
- बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, महिलाओं द्वारा महिला मताधिकार (वोट का अधिकार) और बेहतर शारीरिक स्थिति और महिलाओं की शिक्षा के लिए कानून बनाने के लिए महिलाओं द्वारा राजनीतिक दबाव समूहों का निर्माण किया गया था।
प्रश्न: जाति और सामाजिक सुधार किस प्रकार हुआ था? तथा समाज में क्या परिवर्तन आए|
उत्तर:
- भारत के कई हिस्सों में जाति व्यवस्था अभी भी कायम है।
- प्रारंभ में राजा राममोहन राय और प्रार्थना समाज द्वारा जाति व्यवस्था में सुधार किया गया था।
- ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासी समूहों और निचली जाति के बच्चों के लिए स्कूल स्थापित किए गए थे।
- जैसे-जैसे शहरों का विस्तार होता गया श्रम की माँग बढ़ती गई। ज्यादातर मजदूर निचली जातियों के थे। इनमें से कुछ लोग ऊंची जातियों के उत्पीड़न से छुटकारा पाने के लिए विदेश गए थे।
- भारत में असमानता और जाति आधारित समाज को दूर भगाने के लिए आंदोलन हुए। घासीदास द्वारा शुरू किया गया सतनामी आंदोलन इनके लिए एक अच्छा उदाहरण था।
- हरिदास ठाकुर का मटुआ आंदोलन चांडाला काश्तकारों की सामाजिक स्थिति को उन्नत करने के लिए किया गया एक और आंदोलन था।
- प्रत्येक आंदोलन का नेतृत्व गैर-ब्राह्मण लोगों ने किया था। उनका मुख्य एजेंडा निचली जाति के लोगों में आत्म-सम्मान की भावना पैदा करना था।
- निचली जातियों के सबसे प्रसिद्ध आंदोलनों में से एक ज्योतिराव फुले द्वारा लाया गया था। आंदोलन में उनका उल्लेखनीय काम उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक 'गुलामगिरी' थी जो गुलामी पर आधारित थी। उनका नैतिक विचार भारत में निचली जातियों के लोगों और अमेरिका में अश्वेत गुलामों से जुड़ना था।
- जाति विरोधी आंदोलन के एक अन्य प्रसिद्ध कार्यकर्ता बी.आर. अम्बेडकर। वह निचली जातियों द्वारा मंदिरों में प्रवेश करने के लिए 1927 से 1935 के बीच कई आंदोलनों का हिस्सा थे।
महत्वपूर्ण-प्रश्नोत्तर
अतिरिक्त - प्रश्न:
प्रश्न: बदलाव की दिशा में काम करना किस प्रकार से हुआ?
उत्तर: उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, परिवर्तन देखे गए क्योंकि संचार के नए रूप विकसित हुए थे। किताबें, समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पत्रक और पर्चे उपलब्ध थे, और लोग उन्हें पढ़ते थे और सामाजिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में चर्चा और बहस करते थे और उन्हें बदलने के लिए विचारों के साथ आते थे।
ऐसे ही एक व्यक्ति थे राजा राम मोहन राय, जो विधवाओं की समस्याओं से व्याकुल थे। उन्होंने कलकत्ता में ब्रह्म समाज की स्थापना की। वह जाति, अंधविश्वास और सती प्रथा के आधार पर भेदभाव जैसी सामाजिक प्रथाओं के खिलाफ मुखर थे। वह पश्चिमी शिक्षा के ज्ञान का प्रसार करना चाहते थे और महिलाओं के लिए स्वतंत्रता और समानता लाना चाहते थे।
प्रश्न: लड़कियों ने स्कूल जाना शुरू किस प्रकार किया?
उत्तर: शिक्षा ही एक ऐसा जरिया है जिससे लड़कियों का भविष्य बेहतर हो सकता है। उन्नीसवीं सदी के मध्य में, स्कूल खोले गए। कई लोगों को डर था कि स्कूल लड़कियों को घर से दूर ले जाएंगे और उन्हें घर के काम करने से रोकेंगे। लड़कियों को स्कूलों तक पहुँचने के लिए सार्वजनिक स्थानों से होकर जाना पड़ता था जो कि ज्यादातर लोगों को पसंद नहीं था, इसलिए ज्यादातर महिलाओं को उनके तुलनात्मक रूप से उदार पिता या पतियों द्वारा घर पर पढ़ाया जाता था।
बाद में आर्य समाज ने पंजाब में लड़कियों के लिए स्कूलों की स्थापना की और ज्योतिराव फुले ने महाराष्ट्र में स्कूलों की स्थापना की। संपन्न मुस्लिम घरों में, महिलाओं को घर पर अरबी में कुरान पढ़ना सिखाया जाता था। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में, उर्दू उपन्यास पहली बार लिखे गए थे। इनका उद्देश्य महिलाओं को धर्म और घरेलू प्रबंधन के बारे में उस भाषा में समझने में सहायता करना था जिसे वे समझ सकती थीं।
प्रश्न: विधवाओं का जीवन में बदलाव किस प्रकार आया?
उत्तर: राजा राममोहन राय ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने सती के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। अंग्रेजों ने भारतीय रीति-रिवाजों और परंपराओं की निंदा की। उन्होंने राजा राममोहन का समर्थन किया और 1829 में सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को भी बढ़ावा दिया।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी सबसे प्रमुख सुधारकों में से एक थे, और प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखा। 1856 में, ब्रिटिश अधिकारियों ने विधवा पुनर्विवाह की अनुमति देने वाला विधेयक पारित किया।
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3. ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना
4. आदिवासी, दिकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना
5. जब जनता बगावत करती है |
6. उपनिवेशवाद और शहर
7. बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक
8. Desi Janta ko sabhya Banana aur Rashtra ko shikshit karna
9. महिलाएँ, जाती एवं सुधार
10. दृश्य कलाओं की बदलती दुनियाँ
11. राष्ट्रीय आन्दोलन का संघटन
12. स्वतंत्रता के बाद
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