9. सविधान-एक जीवंत दस्तावेज | भारतीय संविधान की विशेषताएँ Political Science class 11
9. सविधान-एक जीवंत दस्तावेज | भारतीय संविधान की विशेषताएँ Political Science class 11
भारतीय संविधान की विशेषताएँ
अध्याय 9. संविधान-एक जीवंत दस्तावेज
भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है:
भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है इसका तात्पर्य यह है कि हमारे संविधान में समय की जरूरतों को देखते हुए इसके अनुकूल संविधान में संशोधन किये जा सकते है | यही कारण है कि भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज कहा जाता है |
यह निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट हो जाता है |
(i) यह भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ चलने वाला संविधान है | यदि कभी भविष्य में किसी विषय को लेकर यदि कोई परिवर्तन करना हो तो हमें अन्य संविधान की आवश्यकता नहीं है वरन हम इसी संविधान में संशोधन कर इसे जीवंत बना सकते है |
(ii) हमारा संविधान कुछ मामलों में लचीला है तो कुछ में कठोर है |
(iii) अदालती फैसले और राजनीतिक व्यवहार-बरताव दोनों ने संविधान के अमल में अपनी परिपक्वता और लचीलेपन का परिचय दिया है। इन्हीं वजहों से हमारा संविधान कानूनों की एक बंद और जड़ किताब न बनकर एक जीवंत दस्तावेश के रूप में विकसित हो सका है।
(iv) समय के एक खास मोड़ पर अपने समाज के लिए संविधान तैयार कर रहे लोगों को एक आम चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसलिए, किसी भी संविधान को भविष्य में पैदा होने वाली चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करने में भी सक्षम होना चाहिए। हमारा संविधान ऐसे मामलों में बिलकुल सक्षम है |
(v) हमारे संविधान निर्माता ये जानते थे कि भविष्य में इस दस्तावेज में संशोधन की आवश्यकता पड़ सकती है इसलिए संविधान बनाते समय दोनों बातों का ध्यान रखा गया अर्थात इसे पवित्र दस्तावेज मानने के साथ-साथ इतना लचीला भी बनाया गया कि समय की आवश्यकता के अनुरूप इसमें बदलाव किया जा सके |
भारतीय संविधान की विशेषताएँ :
(i) भारतीय संविधान में समय के साथ-साथ एवं सामाजिक परिवर्तनों को देखते हुए भविष्य के सामना के लिए इसमें संशोधन किया जा सकता है |
(ii) हमारा संविधान लचीला है और अदालती फैसले और राजनीतिक व्यवहार-बरताव दोनों ने संविधान के अमल में अपनी परिपक्वता और लचीलेपन का परिचय देता है |
(iii) यह एक जड़ और अपरिवर्तनीय दस्तावेज न होकर एक जीवंत दस्तावेज है जिसे जब चाहे समय और परिस्थिति के साथ अपडेट रख सकते है |
(vi) इसमें किसी स्थिति के बारे में अंतिम निर्णय देने से बचा गया है। यह कोई अपरिवर्तनीय चीज नहीं है।
(v) इसे भविष्य की सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाया गया है |
संशोधन:
भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया :
भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को तीन आधार पर बाँटा गया है |
(i) संसद में सामान्य बहुमत के आधार पर :
(ii) संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत के आधार पर :
(iii) विशेष बहुमत तथा कुल राज्यों की आधी विधायिकायें के आधार पर :
(i) संसद के सामान्य बहुमत के आधार पर: इसमें संसद के दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों की कुल संख्या का आधा से अधिक बहुमत किसी एक संसोधन के मिलता है तो इसे सामान्य बहुमत के आधार पर संसोधन कहा जाता है | यह संशोधन एक सामान्य कानून जैसा होता है | इस मामले में कोई विशेष प्रक्रिया अपनाने की जरुरत नहीं होती है | जैसे अनुच्छेद अनुच्छेद 2 "नए राज्यों को प्रवेश की अनुमति" तथा अनुच्छेद 3 जिसमें किसी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ाने की अनुमति" से संबंधित संशोधन आदि शामिल है |
(ii) संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत के आधार पर : विशेष बहुमत का तात्पर्य है संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई से अधिक बहुमत के आधार पर कोई संशोधन कराना | इस विधि में संसद में उपस्थित कुल सदस्यों की संख्या के दो तिहाई से अधिक बहुमत की आवश्यकता होती है | इसका वर्णन संविधान के अनुच्छेद 368 में वर्णित है |
(iii) विशेष बहुमत तथा कुल राज्यों की आधी विधायिकायें के आधार पर : इस प्रकार के संशोधन में वे संशोधन होते है जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते है और अन्य अनुच्छेद शामिल है जैसे - राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रक्रिया, संघ की कार्यपालिका की सीमा, संघ के राज्यों की कार्यपालिका की सीमा, न्यायपालिका से संबंधित संशोधन शामिल है | यही कारण है कि इसमें संसद में विशेष बहुमत के आलावा राज्यों की आधी विधायिकाओं का अनुमति की आवश्यकता होती है | इसका वर्णन भी संविधान के अनुच्छेद 368 में वर्णित है |
भारतीय संविधान के प्रावधान :
भारतीय संविधान के निम्लिखित प्रावधान है जिसे इसकी आत्मा कहा जा सकता है, इन्ही मूल प्रावधानों के कारण हमारा संविधान सुचारू रूप से 1950 से कार्य कर रहा है |
(i) मूलभूत प्रावधान: मुलभुत प्रावधान हमारे संविधान निर्माताओं के विचारधारा और उनकी योजनाओं से जुड़ा प्रावधान है जिसमें - मूलभूत अधिकार, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य वंचित वर्गों के बारे में चिंता, संघवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता आदि है |
(ii) संविधान का लचीलापन : हमारा संविधान पर्याप्त कठोर होने के साथ-साथ पर्याप्त लचीला भी है | जिसके कारण कभी भी सामाजिक कारणों से, आर्थिक परिवर्तन के लिए अथवा भविष्य के किसी समस्या से निपटने के लिए हम जब चाहे इसमें बदलाव कर सकते हैं | यह संविधान भविष्य की किसी भी परिवर्तन से निपटने में सक्षम है |
(iii) राजनितिक परिपक्वता: राजनीति और इससे जुडी समस्याओं के लिए हमारे नेताओं जोरदार परिपक्वता का परिचय दिया है | सभी पार्टियों के नेताओं ने आगे बढ़कर पुरे मान से इन समस्याओं के उपाय के समर्थन में कार्य किये हैं - जैसे राजनीति में दलबदल विरोधी कानून का लाना, राजनीति में अपराधियों का प्रवेश को रोकना, भाई-भतीजावाद को ख़त्म करना, इसके साथ 91 वें संशोधन अधिनियम के अनुसार मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा या राज्य विधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या का 15 प्रतिशत करना आदि |
विशिष्ट बहुमत के आधार पर संशोधन:
विशिष्ट बहुमत के आधार पर संविधान के मौलिक अधिकार और राज्यनीति के निर्देशक सिद्धांतों सहित अनेक अनुच्छेदों में संशोधन किया जा सकता है |
संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत
अध्याय 9. संविधान-एक जीवंत दस्तावेज
संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत:
यह सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद के मामले में 1973 में दिया था। इसके अनुसार संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है लेकिन वह संविधान की अधारभूत संरचना में बदलाव नहीं कर सकती | इसे ही संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत कहा जाता है |
संविधान की रक्षा व उसकी व्याख्या में न्यायपालिका की भूमिका:
संविधान की रक्षा का दायित्व अंतत: न्यायपालिका के हाथों में ही आ जाता है | संविधान बनाने व संविधान में संशोधन का कार्य बेशक संसद के पास है परन्तु उसकी रक्षा का कार्य एवं उसे लागु करने का कार्य न्यायपालिका के पास है | ऐसे कई अवसर आए है जब न्यायपालिका ने संविधान के विपरीत या मूलभूत संरचना में बदलाव की कोशिश की गयी है तो न्यायपालिका ने उसे रोकने की कोशिश की है | वह न्यायिक समीक्षा के द्वारा किसी भी कानून या संशोधन की समीक्षा कर सकता है | केशवा नन्द भारती मामले में न्यायपालिका ने संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत दिया | जिसके अनुसार संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है लेकिन वह संविधान की अधारभूत संरचना में बदलाव नहीं कर सकती | इसके साथ ही न्यायपालिका ने समय-समय पर संविधान की व्याख्या भी किया है, और कुछ बिन्दुओं को संविधान की विशेषताएँ भी माना है जैसे - संविधान की सर्वोच्यता, सरकार का गणतंत्रीय और लोकतंत्रीय स्वरुप, संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप, संविधान का संधीय सवरूप तथा कानून का शासन एवं न्यायिक समीक्षा आदि को प्रमुख सूची में रखा है | इससे यह पता चलता है कि न्यायपलिका संविधान की रक्षा व उसकी व्याख्या में भूमिका अहम् है |
संविधान की व्याख्या को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव:
कई बार संसद और कार्यपालिका संविधान के कुछ अनुच्छेदों की न्यायपालिका द्वारा किये गए व्याख्या से संतुष्ट नहीं हुए है और ऐसी स्थित में दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई है | जैसे 42 वें संसोधन जो कि सर्वाधिक विवादास्पद था से समय हुआ | इस संशोधन में प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे :
(i) संविधान की प्रस्तावना में 'समजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द का जोड़ा जाना |
(ii) मौलिक अधिकारों पर एक नया अध्याय जोड़ा गया |
(iii) लोकसभा और राज्य विधानसभाओ का कार्य काल 5 वर्ष से 6 वर्ष किया गया |
(iv) राज्य के निर्देशक सिद्धांतों को और व्यापक बनाया गया और मौलिक अधिकारों से अधिक महत्त्व दिया |
इसके अलावा निम्न मुद्दों पर भी मतभेद सामने आए हैं :
जैसे - मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धांतों के आपसी संबंधों को लेकर, सम्पति का अधिकार, संसद द्वारा संविधान संशोधन की शक्ति को लेकर जिसमें यह दावा किया गया कि संसद की इस शक्ति को कोई कम नहीं कर सकता | न्यायपालिका के अधिकारों को संसद द्वारा सिमित करने की कोशिश को लेकर भी कई बार विवाद हो चुके है | न्यायधीशों की नियुक्ति को लेकर भी कई बार न्यायपालिका और कार्यपालिका आमने-सामने आ चुके है |
टकराव का कारण:
संविधान की व्याख्या को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव के निम्नलिखित कारण है :
(1) कुछ मुद्दे जिनकों लेकर मतभेद थे : (a) मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धांतो का आपसी संबंध (b) संपति का अधिकार को लेकर (c) संसद द्वारा यह दावा कि संविधान-संशोधन की उसकी शक्ति किसी भी रूप में सिमित नहीं किया जा सकता है |
(2) गोलकनाथ मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय कि संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं किया जा सकेगा जिससे मौलिक अधिकारों में कोई कमी या कटौती हो, इस फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए 1971 में संविधान का 24 वाँ संशोधन अधिनियम पारित किया गया | जिसमें प्रावधान था कि संसद संविधान के किसी भाग में संशोधन कर सकेगी |
(3) आपातकाल की घोषणा के बाद 1975 संविधान का 38 संशोधन अधिनियम पारित किया गया जिसमें प्रावधान था कि कि राष्ट्रपति द्वारा जरी किये गए अध्यादेश या उद्घोषणा को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी | यह संशोधन भी विवाद में रहा जब सभी विपक्षी दलों के संसद जेलों में बंद थे |
(4) कई ऐसे भी संशोधन किये गए जिससे उच्चतम और उच्च न्यायालय की शक्तियों को कम किया जा सके |
भारतीय संविधान में अब तक किये गए संशोधनों का वर्गीकरण :
भारतीय संविधान में अब तक किये गए संशोधनों का वर्गीकरण को निम्न भागों में बाँटा गया है |
(i) तकनिकी या प्रशासनिक
(ii) संविधान की व्याख्याएँ
(iii) राजनितिक आम सहमति के माध्यम से संशोधन
भारतीय संविधान में इतने अधिक संशोधन होने के कारण:
भारतीय संविधान में इतने अधिक संशोधन होने के निम्नलिखित कारण हैं :
(i) तकनिकी या प्रशासनिक समस्याओं से निपटने के लिए संशोधन, उदाहरण -उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों के वेतन से संबंधित संशोधन |
(ii) संसद सदस्यों की सर्वसम्मति से किये गए संशोधन उदाहरण - दलबदल विरोधी कानून तथा मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 करना |
(iii) न्यायपालिका और तत्कालिक सरकारों के बीच उभरे मतभेदों के कारण संशोधन, उदाहरण - संपति के अधिकार को लेकर |
(iv) ऐसे संशोधन जिससे बड़े विवाद हुए है जैसे संविधान का 42 वाँ संशोधन और इसे पलटने के लिए फिर से संशोधन हुए |
(v) समय के साथ-साथ नीतियों में परिवर्तन अथवा आर्थिक नीतियों में बदलाव के कारण संशोधन |
(vi) संविधान में छुट गए कुछ विषयों को पुन: नए सिरे से परिभाषित करने के लिए संशोधन | उदाहरण - संविधान के प्रस्तावना में 'समाजवादी' एवं 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द का जोड़ा जाना आदि |
Assignment
Assignment:
1 अंकीय प्रश्न:
Q1. भारतीय संविधान में अबतक कितने संशोधन हो चुके हैं ?
Q2. संविधान के किस अनुच्छेद में संविधान संशोधन की प्रक्रिया दी गयी है ?
Q3. किस संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया ?
Q4. भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज क्यों कहते हैं ?
3 अंकीय प्रश्न :
Q1.
Q2. किसी भी अच्छे संविधान का जीवंत होना क्यों अनिवार्य है ?
Q3. संविधान के किन-किन प्रावधानों में समान्य बहुमत के आधार पर संशोधन किया जा सकता है ?
Q4. संविधान के किन संशोधनों में राष्ट्रपति को विधेयक को पुनर्विचार के लिये संसद को भेजने का अधिकार नहीं है ?
Q5. भारतीय संविधान के मूल-ढाँचे में कौन-कौन से तत्व शामिल है ?
Q6. 'भारतीय संविधान लचीला एवं कठोर है" इस कथन का क्या तात्पर्य है ?
6 अंकीय प्रश्न:
Q1. भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन करों |
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1. संविधान - क्यों और कैसे
2. भारतीय संविधान में अधिकार
3. चुनाव और प्रतिनिधित्व
4. कार्यपालिका
5. विधायिका
6. न्यायपालिका
7. संघवाद
8. स्थानीय शासन
9. सविधान-एक जीवंत दस्तावेज
10. संविधान का राजनितिक दर्शन
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