7. राष्ट्रवाद | राष्ट्रवाद का अर्थ Political Science-II class 11
7. राष्ट्रवाद | राष्ट्रवाद का अर्थ Political Science-II class 11
राष्ट्रवाद का अर्थ
राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पति : राष्ट्र शब्द का अंग्रेजी भाषा में नेशन (Nation) कहते है और इसका हिंदी अर्थ "राष्ट्र" है | नेशन शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों 'नेशियों' (natio) और नेट्स (Natus) से निकला है, जिनका अर्थ क्रमश: है - 'जन्म या नस्ल' और 'पैदा हुआ' |
राष्ट्रवाद का अर्थ : राष्ट्रवाद का अर्थ है राष्ट्र का मतलब देश और वाद का मतलब है अपने सभी महत्वों से अधिक महत्त्व देना अर्थात प्राथमिकता देना | जब कोई व्यक्ति या समाज अपने से या अपने अन्य महत्वों से भी अधिक महत्व अपने देश या राष्ट्र को देता है तो उसे राष्ट्रवाद कहते है अर्थात वह देश को प्राथमिकता देता है | ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रवादी कहते है जो सभी महत्वकांक्षाओं को परे रख देश को प्राथमिकता देता है |
राष्ट्र का अर्थ : राष्ट्र बहुत सारे लोगों के उस समूह को कहते है जो जाति, धर्म, भाषा, स्थान, अथवा संस्कृति जैसी किसी भी विशेषताओं के आधार पर या अन्य किसी और समान विशेषताओं के आधार एक हो और इक्कठे रहने में अपने जीवन एवं संस्कृति आदि को सुरक्षित समझते हो तथा एक टीम की भांति कार्य करते हो |
राष्ट्रवाद के संबंध में नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ने लिखा है -
‘‘हालाँकि बाहरी रूप में लोगों में विविधता और अनगिनत विभिन्नताएँ थीं,लेकिन हर जगह एकात्मकता की वह जबर्दस्त छाप थी जिसने हमें युगों तक साथ जोड़े रखा, चाहे हमें जो भी राजनीतिक भविष्य या दुर्भाग्य झेलना पड़ा हो।"
राष्ट्रवाद पर ठाकुर रविन्द्र नाथ टैगोर ने क्या लिखा ?
"राष्ट्रवाद हमारा अंतिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं हो सकता। मेरी शरणस्थली तो मानवता है। मैं हीरों की कीमत पर शीशा नहीं खरीदूँगा और जब तक मैं जीवित हूँ, देशभक्ति को मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने दूँगा।"
औपनिवेशिक शासन के प्रति रविन्द्र नाथ टैगोर के विचार -
वे औपनिवेशिक शासन के विरोधी थे और भारत की स्वाधीनता के अधिकार का दावा करते थे। वे महसूस करते थे कि उपनिवेशों के ब्रितानी प्रशासन में ‘मानवीय संबंधों की गरिमा बरकरार रखने’ की गुंजाइश नहीं है। यह एक ऐसा विचार है जिसे ब्रितानी सभ्यता में भी स्थान मिला है। टैगोर पश्चिमी साम्राज्यवाद का विरोध करने और
पश्चिमी सभ्यता को खारिश करने के बीच फर्क करते थे। भारतीयों को अपनी संस्कृति और विरासत में गहरी आस्था होनी ही चाहिए लेकिन उन्हें बाहरी दुनिया से मुक्त भाव से सीखने और लाभान्वित होने का प्रतिरोध नहीं करना चाहिए।
राष्ट्रवाद के गुण :
(i) राष्ट्रवाद की भावना में मुक्ति आन्दोलनों को प्रेरणा दी |
(ii) राष्ट्रवाद ने विश्व को साम्राज्यवाद के चंगुल से बचाया
(iii) राष्ट्रीयता की भावना की नीव पर निर्मित राज्य हमेशा अधिक स्थायी होते हैं
(iv) राष्ट्रवाद प्रेरणा का जीवंत स्रोत है जो राष्ट्र हित के आवश्यक है |
(v) राष्ट्रवाद से एकता की भावना बढती है |
राष्ट्रवाद की कमियाँ :
(i) आक्रामक राष्ट्रवाद घृणा को जन्म देता है |
(ii) राष्ट्रवाद के कारण विश्व के बहुत से भागों का अधिकाधिक एकीकरण हुआ है |
(iii) एक राज्य के अन्दर भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता वाले लोग रहते है जिससे राष्ट्र-राज्य का आदर्श अनेक कठिनाईयाँ उत्पन्न कर सकता है |
राष्ट्रवाद के सृजन के प्रमुख कारक :
(i) सामान विश्वास अथवा एकत्व की भावना
(ii) सामान ऐतिहासिक परंपराएँ
(iii) भौगोलिक एकता
(iv) आदर्श एवं मूल्य
(v) सांस्कृतिक एकता
- वंश, भाषा और धर्म को राष्ट्रवाद का मूल नहीं माना जाता |
राष्ट्रिय आत्मनिर्णय का सिद्धांत :
राष्ट्रिय आत्मनिर्णय सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक राष्ट्रिय समुदाय या राष्ट्र का यह प्राकृतिक अधिकार है कि वह एक स्वशासित राज्य हो | इसके अनुसार प्रत्येक राष्ट्र को एक प्रभुत्व संपन्न राज्य बनने का अधिकार है |
इसके निम्नलिखित माँग है -
(i) अलग राष्ट्र और अपना शासन हो |
(ii) अपना भविष्य स्वयं तय करने का अधिकार हो अर्थात वे आत्म-निर्णय का अधिकार माँगते हैं |
(iii) पृथक राजनितिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता और स्वीकार्यता |
राज्य एवं राष्ट्र में अन्तर
सांझी राजनितिक पहचान :
राज्य और राष्ट्र में अंतर :
राज्य :
(i) राज्य एक वैधानिक संस्था है |
(ii) राज्य का आधार संप्रभुता है |
राष्ट्र :
(i) राष्ट्र एक वैधानिक संस्था नहीं है |
(ii) राष्ट्र का आधार भावना है |
आत्मनिर्णय के आंदोलनों से उत्पन्न समस्याएँ :
आत्मनिर्णय के आन्दोलनों के कारण विश्व को बहुत से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है | अत: इससे संबंधित निम्न समस्याएँ हैं -
(i) स्वतंत्र राज्य की माँग करना और उसके लिए जान-माल का नुकसान करना और हिंसा करना |
(ii) एक संस्कृति और एक राज्य की माँग |
(iii) हिंसा के कारण अल्पसंख्यकों का विस्थापन |
(iv) विभिन्नताओं का अनादर |
एक संस्कृति-एक राज्य की धारणा :
एक संस्कृति-एक राज्य की धारणा की शुरुआत 19 वीं सदी के यूरोप में सामने आई | इसके परिणाम स्वरुप प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् राज्यों की पुनव्यस्था में इस विचार को परखा गया परन्तु आत्म निर्णय की सभी मांगों को संतुष्ट करना संभव नहीं था |
आज भी इस निति को प्रयोग में ला पाना संभव नहीं तभी बहुलवाद का प्रचलन है अर्थात बहुत से समुदाय और संस्कृतियों के लोग एक ही देश में फल-फूल सकें |
'एक संस्कृति एक राज्य' का सपना लोकतान्त्रिक देशों के लिए बाधक है :
एक संस्कृति एक राज्य निम्न कारणों से लोकतान्त्रिक देशो के बाधक है -
(i) इसमें विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय एक ही देश फल-फुल नहीं पाते हैं |
(ii) यह बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देता है |
(iii) यह अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान नहीं रखता है |
(iv) यह अन्य धर्म और संस्कृतियों को सुरक्षा नहीं देता है |
आत्मनिर्णय के आन्दोलनों से कैसे निपटे :
(i) आत्मनिर्णय के आन्दोलन लोकतान्त्रिक देशों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है जिससे निपटना इन देशों के लिए एक चुनौती है |
(ii) समाधान नए राज्यों के गठन में नहीं बल्कि वर्त्तमान राज्यों को ज्यादा लोकतान्त्रिक और समतामूलक बनाने में है |
(iii) समाधान है कि भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक और नस्लीय पहचानों के लोग देश में सामान नागरिक तथा मित्रों की तरह साथ-साथ रह सके |
राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन का कारण बना :
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप में आस्ट्रियाइ - हंगेरियाई और रुसी साम्राज्यों के पतन तथा उनके साथ एशिया और अफ्रीका में फ़्रांसिसी, ब्रिटिश डच और पुर्तगाली साम्राज्य के बंटवारे और पतन में राष्ट्रवाद की अहम् भूमिका थी
सांझे राजनितिक विश्वास : जब राष्ट्र के सदस्यों की इस विषय पर एक साँझा दृष्टि होती है कि वे कैसे राज्य बनाना चाहते है, अथवा वे अपने देश को भविष्य में किस दिशा में या किस विचार मूल्यों पर आधारित राज्य बनाना चाहते हैं | इन शेष तथ्यों के अतिरिक्त वे धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र और उदारवाद जैसे मूल्यों और सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं तब यह विचार राष्ट्र के रूप में उनकी राजनितिक पहचान को स्पष्ट करता है |
भू-क्षेत्र से सामूहिक पहचान : कोई भी भू-क्षेत्र जहाँ के रहने वालों के लिए वह भूमि सामूहिक पहचान का अनुभव कराती है | किसी भू क्षेत्र पर काफी हद तक साथ-साथ रहना एवं उससे संबंधित सांझे अतीत की कई स्मृतियाँ (यादें) जुडी हुई होती हैं | लोग अपनी धरती प्रेम और स्नेह की दृष्टि से देखते हैं और इसे कई लोग मातृभूमि, तो कोई पितृभूमि कहता है तो कई लोग उस भू-क्षेत्र को पवित्र भूमि मानते है |
सांझी राजनितिक पहचान : व्यक्तियों को एक राष्ट्र में बांधने के लिए एक सामान भाषा, जातीय वंश परंपरा और सामाजिक परंपराओं जैसी सांस्कृतिक पहचान की आवश्यकता होती है | ऐसे हमारे विचार, धार्मिक विश्वास, सामाजिक परंपराएँ सांझे हो जाते है | इससे सभी एक दुसरे को अपनापन की नजर से देखते हैं | वास्तव में लोकतंत्र में किसी खास नस्ल, धर्म या भाषा से संबद्धता की जगह एक मूल्य एवं समूह के प्रति निष्ठा की आवश्यकता होती है |
इतिहास से राष्ट्र की पहचान : देश की प्राचीन सभ्यता तथा सांस्कृतिक विरासत और अन्य उपलब्धियाँ एक राष्ट्र और एकात्मकता का प्रमाण देते हैं | राष्ट्र स्वयं को इस रूप में देखते हैं जैसे वे बीते अतीत के साथ-साथ आगत भविष्य को समेटे हुए हों | वे देश स्थायी खांका पेश करने के लिए सांझी स्मृतियाँ, किंवदंतियों और ऐतिहासिक अभिलेखों की रचना के माध्यम से अपने लिए इतिहास बोध निर्मित करते हैं |
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अभ्यास-प्रश्नावली :
Q1. राष्ट्र किस प्रकार से बाकी सामूहिक संबद्धताओं से अलग है?
Q2. राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार से आप क्या समझते हैं? किस प्रकार यह विचार राष्ट्र-राज्यों के निर्माण और उनको मिल रही चुनौती में परिणत होता है?
Q3. हम देख चुके हैं कि राष्ट्रवाद लोगों को जोड़ भी सकता है और तोड़ भी सकता है। उन्हें मुक्त कर सकता है और उनमें कटुता और संघर्ष भी पैदा कर सकता है। उदाहरणों के साथ उत्तर दीजिए।
Q4. वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता। टिप्पणी कीजिए।
Q5. राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारकों पर सोदाहरण रोशनी डालिए।
Q6. संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्रा अधिक समर्थ होता है। कैसे ?
Q7. आपकी राय में राष्ट्रवाद की सीमाएँ क्या हैं?
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Political Science-II Chapter List
1. राजनीतिक सिद्धांत - एक परिचय
2. स्वतंत्रता परिचय
3. समानता
4. सामाजिक न्याय
5. अधिकार परिचय
6. नागरिकता परिचय
7. राष्ट्रवाद
8. धर्मनिरपेक्षता
9. शांति
10. विकास
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