4. सामाजिक न्याय | न्याय का अर्थ एवं प्रकार Political Science-II class 11
4. सामाजिक न्याय | न्याय का अर्थ एवं प्रकार Political Science-II class 11
न्याय का अर्थ एवं प्रकार
अध्याय 4. न्याय
न्याय का अर्थ : न्याय का सरोकार समाज में हमारे जीवन और सार्वजनिक जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों और तरीकों से होता है, जिनके द्वारा समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच सामाजिक लाभ और सामाजिक कर्त्तव्यों का बंटवारा किया जाता है।
चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशस के अनुसार न्याय : "गलत करने वालों को दंडित कर और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम रखना चाहिए।"
प्लेटो के अनुसार न्याय की अवधारणा : "अपने निर्दिष्ट कर्तव्यों का पालन तथा दूसरों के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप न करना ही न्याय है |" प्लेटो की न्याय-भावना व्यक्ति की आतंरिक इच्छा की अभिव्यक्ति है | प्लेटो ने अपनी पुस्तक द रिपब्लिक में न्याय के मुद्दों पर चर्चा की है |
वेपर (Wayper) के अनुसार न्याय : "कोई व्यक्ति जिस कार्य के लिए सबसे अधिक योग्य है उसी कार्य को करना ही न्याय है |"
न्यायसंगत व्यक्तियों के विषय में सुकरात का आकलन : सुकरात का मानना था कि अन्यायी हैं, वे न्यायी लोगों से ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। जो अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए कानून तोड़ते-मरोड़ते हैं, कर चुकाने से कतराते हैं और झूठ और धेखाधडी का सहारा लेते हैं, वे अक्सर उन लोगों से ज्यादा सफल होते हें, जो सच्चाई और न्याय के रास्ते पर चलते हैं।
अरस्तु का वितरणात्मक न्याय : वितरणात्मक न्याय वह न्याय है जिसका प्रयोग राज्य अपने पदों, पुरस्कारों तथा दुसरे प्रकार के लोगों को अपने सदस्यों में वितरित करने के लिए करता है | ऐसे सदस्य वही होते है जिन्हें संवैधानिक अधिकार प्राप्त होता है |
दुसरे शब्दों में, नागरिकों के बीच अधिकारों और पदों की योग्यता के अनुसार बँटवारा करना ही वितरणात्मक न्याय है |
प्लेटो ने अपने ग्रन्थ 'पॉलिटिक्स' व 'एथिक्स' में अपने न्याय संबंधी विचारों को वर्णन किया है |
न्याय के प्रकार :
(1) सामाजिक न्याय
(2) राजनितिक न्याय
(3) आर्थिक न्याय
(4) क़ानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय
(5) नैतिक न्याय
1. सामाजिक न्याय : सामाजिक न्याय का अर्थ है समाज में मनुष्य-एवं मनुष्य के बीच भेदभाव न हो कानून सबके लिए बराबर हो और कानून के समक्ष सभी बराबर हो ताकि सामाजिक न्याय हो | सामाजिक न्याय का अर्थ समाज में उत्पन्न विकास के सभी अवसरों जैसे वस्तु एवं सेवाओं का न्यायोचित तरीके से वितरण भी है |
2. राजनितिक न्याय : राजनितिक न्याय का अर्थ है राजनीति में होने वाले भेदभाव से मिलने वाले न्याय से है | लोकतंत्र में सभी को राजनीति में भाग लेने और अपना सरकार चुनने के लिए वोट देने का अधिकार है | कई बार राजनीति में संविधान द्वारा मिले अधिकारों का भी हनन होता है और कई समाजों को बहुत दिनों तक राजनीति से वंचित रखा गया था | यहाँ तक कि उन्हें वोट भी नहीं देने दिया जाता था | इस समस्या के समाधान के लिए और राजनीतिक न्याय की स्थापना के लिए समाज के कुछ तबकों जैसे SC तथा ST वर्ग को लगभग सभी चुनाओं में उनके लिए सीटें आरक्षित कर दी गई है | यही राजनीति न्याय का उदाहरण है |
3. आर्थिक न्याय : आर्थिक न्याय का अर्थ है देश के भौतिक साधनों का उचित बँटवारा और उनका उपयोग लोगों के हित के लिए हो | आर्थिक न्याय की अवधारण तभी चरिर्तार्थ होगी जब सभी को आर्थिक आजादी प्राप्त हो और वे स्वतंत्र रूप के अपना विकास संभव कर सके | उन्हें विकास के लिए धन प्राप्त करने तथा उनका उचित प्रयोग के समान अवसर मिलने चाहिए | समाज के वे लोग जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं या असहाय है उन्हें अपने विकास के लिए आर्थिक मदद मिलनी चाहिए |
4. क़ानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय : क़ानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय का अर्थ है कानून के समक्ष समानता तथा न्यायपूर्ण कानून व्यवस्था है | क़ानूनी न्याय राज्य के द्वारा स्थापित किया जाता है और राज्य के कानून द्वारा निर्धारित होता है | यह इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य द्वारा निर्धारित कानून उचित एवं भेदभाव रहित हो |
इसकी कुछ शर्ते होती हैं जो निम्न हैं :
(i) कानून न्यायपूर्ण हो
(ii) कानून के समानता हो
(iii) स्वतंत्र न्यायपालिका हो
लोकतंत्र में न्याय का महत्त्व :
(i) न्याय व्यक्ति के व्यक्तित्व के साथ-साथ समाज के विकास में भी सहायक होता है |
(ii) लोकतंत्र में एकता की स्थापना के लिए न्याय बहुत ही आवश्यक है |
(iii) लोकतंत्र में नागरिकों कि संतुष्टि एवं शांति बनाए रखने के लिए न्याय बहुत ही आवश्यक है |
समाजिक न्याय के लिए आरक्षण :
व्यक्ति को समाजिक न्याय तभी मिलता है जब उसे समाज में उत्पन्न सभी अवसरों का वितरण उचित एवं न्यायपूर्ण हो | समाज का वह तबका जिसके साथ हमेशा से अन्याय होता आया है, समाज की यह जिम्मेवारी है कि उसे सामाजिक न्याय के दायरे में लाये |
संविधान द्वारा दिया गया आरक्षण का प्रावधान सामाजिक न्याय का एक उदाहरण है जिसके निम्न लिखित कारण है |
(i) आरक्षण से कमजोर वर्गों के लोगों का सामाजिक स्तर बढ़ता है |
(ii) आरक्षण के कारण कमजोर वर्गों को रोजगार के अवसर मिलते हैं |
(iii) आरक्षण से कमजोर वर्गों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आता है |
न्यायपूर्ण बँटवारा
न्याय के दो आयाम :
(i) न्याय का क़ानूनी पक्ष : न्याय का क़ानूनी पक्ष का अर्थ है कि न्याय कानून के द्वारा और कानून के अनुसार मिलना चाहिए | इसका अर्थ यह है कि कानून न्यायपूर्ण तरीके से लागु हो और उसी कानून के अनुसार सबकों न्याय मिले |
(ii) न्याय का सामाजिक पक्ष : न्याय के सामाजिक पक्ष को दो स्तरों में लिया जाता है, पहला स्तर है सिमित तथा दूसरा स्तर है व्यापक |
सिमित स्तर का अर्थ है व्यक्ति के व्यक्तिगत संबंधों में व्याप्त अन्याय के सुधार से है जबकि व्यापक स्तर से अर्थ है सामाजिक जीवन के पहलुओं जैसे - राजनितिक, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में व्याप्त व्यापक असंतुलनों को दूर करने से है |
न्यायपूर्ण बँटवारा : सामाजिक न्याय का वास्ता वस्तुओं एवं सेवाओं के न्यायोचित बँटवारे से भी है | चाहे यह राष्ट्रों के मध्य वितरण का मामला हो अथवा किसी समाज के भीतर विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के मध्य का हो | अगर समाज में गंभीर समाजिक अथवा आर्थिक असमानताएँ हैं, तो यह आवश्यक होगा कि समाज के कुछ मुख्य संसाधनों का पुनर्वितरण हो जिससे वंचित नागरिकों को जीने के लिए समतल धरातल मिल सके |
न्यायपूर्ण बँटवारे अर्थ है कि समाज में वस्तुओं एवं सेवाओं का इस प्रकार बँटवारा हो ताकि समाज में सामाजिक न्याय एवं आर्थिक न्याय को बढ़ावा मिले और वंचितों को उनका अपना हक़ मिल सके |
अनुपातिक न्याय : अनुपातिक न्याय अर्थात समान व्यक्तियों के साथ समान और असमान व्यक्तियों के साथ असमान व्यवहार करना है | अरस्तु के अनुसार किसी व्यक्ति को कितने अधिकार और पुरस्कार दिए जाने चाहिए यह इस बात के अनुरूप हो कि उस व्यक्ति की क्या उपयोगिता है और समाज के प्रति उसका कितना योगदान है | उसका कहना था कि "बासुरी केवल उन्हीं व्यक्तियों में बाँटनी चाहिए जो इसे बजाना जानते हों | शासन भी उन्हीं को करना चाहिए जो शासन करने के योग्य हो |
प्लेटों ने कहा कि "लोगों को सभी सुख प्राप्त करने की तर्कहीन इच्छा त्याग देनी चाहिए |
न्याय इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है कि समाज के विभिन्न वर्ग केवल उन्हीं कार्यों को करें जिन्हें वे सर्वाधिक उपयुक्त रूप में कर सकते हैं और दुसरे के मामले में हस्तक्षेप न करें |
राल्स का न्याय सिद्धांत
राल्स का न्याय सिद्धांत : व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अपने स्वयं के हितों से प्रेरित होते हैं | वे ऐसी सामाजिक एवं राजनितिक व्यवस्था को स्वीकार करेंगे जो उनके हितों के अनुकूल होगी | जब कोई व्यक्ति राज्य के गठन के विषय में अपनी स्थिति स्पष्ट करता है तो उसमें अपने हितों को देखता है | वह स्पष्ट करता है कि उसकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति कैसी होगी | वे धनी होंगे या निर्धन होंगे | इसलिए उन्हें एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का चयन करना चाहिए जो न्यायपूर्ण हो एवं चयन के बाद उन्हें ऐसा न लगे कि किसी अलाभकारी स्थित का सामना करना पड़ेगा |
जॉन राल्स द्वारा प्रस्तुत न्याय के सिद्धांत निम्नलिखित है |
(1) व्यापक आधारभूत स्वतंत्रता का सिद्धांत : न्याय का यह प्रथम सिद्धांत है जो स्वतंत्रता से सम्बंधित है | इस सिद्धांत के अनुसार सभी आधारभूत स्वतंत्रताएँ जैसे आर्थिक स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता, बौद्धिक स्वतंत्रता और राजनितिक स्वतंत्रता इत्यादि शामिल है जिस पर प्रत्येक व्यक्ति का सामान अधिकार है |
(2) अवसर की समानता का सिद्धांत : प्रत्येक व्यक्ति को इच्छित पद, आय और संपदा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए |
(3) आय का पुनर्वितरण का सिद्धांत : बाजार अर्थव्यवस्था का स्वाभाविक परिणाम आय और संपदा का असमान वितरण है | अर्थात बाजार अर्थव्यवस्था में ऐसा देखा जाता है कि जो आमिर है वो और आमिर हो जाता है और जो गरीब है वो और भी गरीब हो जाता है | इसलिए जॉन राल्स की मान्यता है कि ऐसी स्थिति में आय और संपदा का पुनर्वितरण होना चाहिए ताकि उच्च आय वर्ग से निम्न आय वर्ग की ओर आय निरंतर बहाव होता रहे | अत: सिमित आय एवं संसाधनों से यदि कुछ लोग संपन्न हो जाते है तो कुछ लोग गरीब भी हो जाते है | अत: प्रतिस्पर्धी बाजार अर्थव्यवस्था से उत्पन्न असमानता को कम करने के लिए गरीबों की क्षतिपूर्ति करना आवश्यक है |
सामाजिक न्याय के तत्व :
(i) व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा समाज का व्यापक कल्याण
(ii) निष्पक्षता की कसौटी
(iii) आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति
(iv) विशेष स्थितियों में जनता को आर्थिक सहायता प्रदान करना अर्थात सकारात्मक कार्यवाई
(v) संरक्षात्मक भेद-भाव : समाज का वह वर्ग
भारत में सामाजिक न्याय स्थापित करने के लिए किए गए उपाय :
(i) सदियों से शोषण के शिकार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति के लिए नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान |
(ii) गरीब, असहाय एवं बेरोजगारों के लिए भारत सरकार द्वारा चलाया गया अनेक कार्यक्रम जैसे अन्तयोदय योजना, काम के बदले अनाज, मनरेगा जैसी योजनायें से बहुत से लोग लाभान्वित हुए हैं |
(iii) केन्द्रीय तथा राज्य विधायिकाओं में अनुसूचित जाति एवं जन जाति के लिए सीटों का आरक्षण इत्यादि |
(iv) वर्त्तमान में इन वंचित समुदायों के लिए व्यवसाय में आर्थिक मदद, उद्योग के लिए कम मूल्य और छुट में जमीन मुहैया कराना, और सरकार का उदारवादी रवैया आदि सामाजिक न्याय का उदाहरण है |
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Political Science-II Chapter List
1. राजनीतिक सिद्धांत - एक परिचय
2. स्वतंत्रता परिचय
3. समानता
4. सामाजिक न्याय
5. अधिकार परिचय
6. नागरिकता परिचय
7. राष्ट्रवाद
8. धर्मनिरपेक्षता
9. शांति
10. विकास
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