5. अधिकार परिचय | अधिकार की परिभाषा : Political Science-II class 11
5. अधिकार परिचय | अधिकार की परिभाषा : Political Science-II class 11
अधिकार की परिभाषा :
अधिकार :
किसी व्यक्ति के पास किसी विशिष्ट कार्य को करने अथवा किसी विशेष पद को ग्रहण करने कि क्षमता या योग्यता अथवा शक्ति है तो उसे उस व्यक्ति का विशिष्ट अधिकार कहते हैं |
किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह द्वारा की गयी माँग जिसे सार्वजानिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए समाज द्वारा स्वीकृति प्रदान की जाती है वह उस व्यक्ति या उस समूह का अधिकार कहलाता है |
अधिकारों का प्रकार :
अधिकार को तीन भागों में बाँटा गया है |
(1) प्राकृतिक अधिकार
(2) नैतिक अधिकार
(3) क़ानूनी अधिकार
अधिकारों की विशेषताएँ :
(i) अधिकार असीमित नहीं होते हैं |
(ii) अधिकार समाज में ही संभव हो सकते हैं |
(iii) अधिकार व्यक्ति का दावा है |
(iv) अधिकार किसी व्यक्ति का विशिष्ट कार्य करने की शक्ति है |
(v) अधिकार समाज द्वारा मान्य होता है |
(vi) अधिकार सर्वव्यापी होते हैं |
(vii) अधिकार राज्य द्वारा प्रदत एवं सुरक्षित होता है |
(viii) अधिकार के साथ कर्तव्य जुड़े होते हैं |
नागरिकों का देश के प्रति कर्तव्य :
(i) नागरिक का प्रथम कर्तव्य अपने देश के प्रति वफ़ादारी है |
(ii) नागरिक का दूसरा कर्तव्य कानून का पालन करना है |
(iii) नागरिक का यह भी कर्तव्य है कि वह सार्वजानिक संपति की रक्षा करे |
(iv) नागरिक का यह भी कर्तव्य है कि वह ईमानदारी से सरकारी करों का भुगतान करे |
1. प्राकृतिक अधिकार : वह अधिकार जो किसी व्यक्ति को प्राकृतिक रूप से प्राप्त है, प्राकृतिक अधिकार कहलाता है |
इसके अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं |
(क) स्वतंत्रता का अधिकार
(ख) संपति का अधिकार
(ग) जीवन जीने का अधिकार
2. नैतिक अधिकार : वह अधिकार जो व्यक्ति के भावनाओं पर आधारित होते हैं, नैतिक अधिकार कहलाता है | इन अधिकारों को क़ानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होता है | जैसे - एक गुरु का अपने शिष्य पर अधिकार, एक बाप पर अपने बेटे पर अधिकार इत्यादि परन्तु ऐसे अधिकार को क़ानूनी मान्यता नहीं मिली है |
3. क़ानूनी अधिकार : वह अधिकार जो राज्य की मान्यता प्राप्त होती है और राज्य के कानून इन्हें लागु करते है क़ानूनी अधिकार कहलाते हैं |
कानून से प्राप्त अधिकार निम्नलिखित हैं |
(क) मौलिक अधिकार
(ख) सामाजिक अधिकार
(ग) राजनितिक अधिकार
(घ) आर्थिक अधिकार
अधिकार की आवश्यकता :
प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार की आवश्यकता होती है क्योंकि
(i) व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए अधिकार की आवश्यकता होती है |
(ii) सामाजिक जीवन में अधिकार जीवन का महत्वपूर्ण पक्ष है |
(iii) अधिकार व्यक्ति के जीवन को सुरक्षा और सुदृढ़ता प्रदान करते हैं और उसे शोषण से बचाते है |
(iv) अधिकारों के बिना व्यक्ति न तो अपना आर्थिक प्रगति कर सकता है और न तो समाज प्रगति कर सकता है |
कर्तव्य : सामाजिक जीवन कर्तव्य के बिना ठीक-ठाक नहीं चल सकता | सफल लोकतंत्र के लिए नागरिकों को अपने कर्तव्य के प्रति सचेत रहना चाहिए |
"समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है जिसके हम ऋणी है इसलिए कर्तव्य एक प्रकार का समाज के प्रति हमारा ऋण है जो हमें अधिकारों के बदले चुकाना पड़ता है | समाज के प्रति जो हमारी जिम्मेवारी है उसे ही कर्तव्य कहते है |
कर्तव्य दो प्रकार का होता है |
(1) नैतिक कर्तव्य : वह कर्तव्य जो किसी के द्वारा लादा नहीं जाता अपितु व्यक्ति के भावनाओं से उत्पन्न कर्तव्य होता है जिसे एक व्यक्ति जिम्मेवारी के रूप में निर्वाह करता है |
(i) चरित्र : प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने चरित्र का निर्माण करे और समाज में नैतिक विकास के लिए सदाचारी बने |
(ii) सेवा : प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता, गुरुजन, अपने से बड़ों, का आदर एवं सम्मान करे उनकी सेवा करे | गरीब, असहाय, अनाथ एवं दिन-दुखियों जितना संभव हो मदद करे और सेवा करे |
(2) क़ानूनी कर्तव्य : कानून द्वारा प्रदत कर्तव्य को क़ानूनी कर्तव्य कहते है | यह देशभक्ति और देश सेवा से जुड़ा होता है | लोकतंत्र में अपने मताधिकार के प्रयोग द्वारा सही सरकार की चुनाव करे यह भी उसका क़ानूनी कर्तव्य है |
(i) देश भक्ति : प्रत्येक नागरिक के लिए प्रथम कर्तव्य यह है कि वह अपने देश के प्रति वफादार हो और देशभक्ति उसकी देश सेवा के जुडी होती है जो कि एक राज्य के नागरिक का कर्तव्य है |
(ii) मताधिकार का प्रयोग : प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि उचित और लोकतान्त्रिक सरकार के चुनाव करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करे ताकि गलत और अलोकतांत्रिक सरकार शासन में नहीं आ सके |
(iii) आय कर चुकाना : लोकतंत्र में सरकारें जनता द्वारा चुकाए गए करों से ही चलता है | अत: प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह ईमानदारी से अपने आय पर कर चुकाए |
अधिकार और दावें में अंतर
अधिकारों को शक्तिशाली बनाने के तरीके :-
(1)- लोकतंत्र
(2) संविधान द्वारा मान्यता
(3) स्वतंत्र न्यायपालिका
(4) कानून का शासन
(5) शक्तियों का विकेंद्रीकरण
(6) स्वतंत्र प्रेस
(7) सतत जागरूकता
अधिकारों पर प्रतिबंध के आधार :-
(1) सामाजिक हित
(2) अन्य व्यक्तियों के हित के लिए
(3)राज्य की सुरक्षा विकास तथा स्वतन्त्रता के लिए
कर्तव्य (जिम्मेदारी) :- कर्तव्य अंग्रेजी के duty शब्द से डेब्ट बना है जिसका अर्थ है ऋण राज्य नागरिको को अधिकार के रूप में अनेक देता है ये अधिकार नागरिक पर एक प्रकार से ऋण है इसको चुकाने के लिए नागरिक कर्तव्यों का पालन करते है | मनुष्य के अधिकारों को दूसरे मनुष्य के द्वारा मान्यता देना कर्तव्य है
अधिकार और दावे में अंतर
अधिकार :-
(1) प्रत्येक राज्य द्वारा अपने लोगो को कुछ अधिकार दिये जाते है अधिकार ऐसे सामाजिक व्यवस्था का नाम है जिनके बिना व्यक्ति पूर्ण रूप से विकास नहीं कर सकता |
(2) अधिकार राज्य द्वारा सुरक्षित होते है |
(3) अधिकार को लागू करने के लिये संविधान में आवश्यक व्यवस्था की जाती है |
(4) संविधान में अंकित अधिकारों को राज्य कि क़ानूनी मान्यता प्राप्त होती होती है |
(5) राज्य उन अधिकारो को लागू करता है एंवं उन अधिकारों कि अवहेलना करने वाले के विरुद्ध आवश्यक क़ानूनी कार्यवाही भी करता है |
दावे :-
(1) दावे वास्तव में व्यक्ति कि मांगे होती है जो मांगे नैतिक या समाजिक पक्ष में उचित हो जिनको समाज स्वीकार करता हो |
(2) दावें राज्य द्वारा सुरक्षित नहीं होते हैं |
(3) व्यक्ति कि प्रत्येक मांगे दावे नहीं हो सकती |
(4) केवल उस मांग को अधिकार का दर्जा दिया जाता है मांग राज्य द्वारा स्वीकार एव लागू कि जाती है |
(5) दावें को क़ानूनी चुनौती दी जा सकती है |
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Political Science-II Chapter List
1. राजनीतिक सिद्धांत - एक परिचय
2. स्वतंत्रता परिचय
3. समानता
4. सामाजिक न्याय
5. अधिकार परिचय
6. नागरिकता परिचय
7. राष्ट्रवाद
8. धर्मनिरपेक्षता
9. शांति
10. विकास
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