5. आधुनिक विश्व में चरवाहे History class 9 exercise महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
5. आधुनिक विश्व में चरवाहे History class 9 exercise महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ncert book solution in hindi-medium
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मुख्य बिंदु
पाठ 5. आधुनिक विश्व में चरवाहें
अध्याय-समीक्षा:
- वनों और चरागाहों को आधुनिक सरकारों ने नियंत्रित करना शुरू किया और उनकी पाबंदियों से उन पर भी असर पड़ा जो इन संसाधनों पर आश्रित थे।
- जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। इस समुदाय के अधिकतर लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में भटकते-भटकते उन्नीसवीं सदी में यहाँ आए थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वे यहीं के होकर रह गए और यहीं बस गए।
- हिमाचल प्रदेश के चरवाहे समुदाय को गद्दी कहते हैं |
- गढवाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाडियों के नीचले हिस्से के आस पास पाए जाने वाले शुष्क या सूखे जंगल का इलाका को भाबर कहते हैं ।
- उच्ची पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित विस्तृत चरागाहों को बुग्याल कहते है। जैसे - पूर्वी गढवाल के बुग्याल जहॉ भेड चराये जाते है।
- धंगर महाराष्ट्र का एक चारवाहा समुदाय है |
- धंगर समुदाय महाराष्ट्र का जाना माना चरवाहा समुदाय हैं । जो जीविका के लिए कम्बल और चादरें भी बनाते थे, कुछ भैंस भी पालते थे और अक्टूबर के आसपास ये बाजरें की कटाई भी करते थे।
- रबी: जाड़ों की फसलें जिनकी कटाई मार्च के बाद शुरू होती है।
- खरीफ: सितंबर-अक्तूबर में कटने वाली फसलों को खरीफ कहते हैं |
- ठूँठ पौधों की कटाई के बाद जमीन में रह जाने वाली उनकी जड़ को ठूँठ कहते हैं |
- कर्नाटक और आध्र प्रदेश में पाए जाने वाले चरवाहे समुदाय है गोल्ला , कुरूमा, और कुरूबा समुदाय जबकि उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश में बंजारे होते हैं |
- देश के एक बडे भाग विशेष कर पंजाब, राजस्थान, उतर प्रदेश, मध्यप्रदेश, और महाराष्ट्र आदि के ग्रमीण क्षंत्रों में पाई जाने वाली चरावहा टुकडों को बंजारा कहा जाता है।
- बंजारे नई घास भूमियों की तलाश में अपने पशुओं के साथ दूर दूर तक घूमते रहते है। भोजन और पशु चारा के बदले में हल चलाने वाले पशुओं और दूध उत्पादों का लेन देन कर लेते है। साथ ही साथ इन पशुओं की खरीद ब्रिक्री भी करते रहते है।
- राजस्थान के रेगिस्तानों में राइका समुदाय रहता था। इस इलाके में बारिश का कोई भरोसा नहीं था। होती भी थी तो बहुत कम। इसीलिए खेती की उपज हर साल घटती-बढ़ती रहती थी। बहुत सारे इलाकों में तो दूर-दूर तक कोई फसल होती ही नहीं थी। इसके चलते राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे।
- राइकाओं का एक तबका ऊँट पालता था जबकि कुछ भेड़-बकरियाँ पालते थे।
- औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए |उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने-जाने पर बंदिशें लगने लगीं और
उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई । खेती में उनका
हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा। - परंपरागत अधिकार : परंपरा और रीति-रिवाज के आधर पर मिलने वाले अधिकार को परंपरागत अधिकार कहते हैं |
- वन अधिनियमों ने चरवाहों की जिंदगी बदल डाली | अब उन्हें उन जंगलों में जाने से रोक दिया गया जहाँ उनके मवेशियों के लिए बहुमूल्य चारे का स्रोत थे |
- जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश की छूट दी गई वहाँ भी उन पर कड़ी नजर रखी जाती थी जंगलों में दाखिल होने के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था। जंगल में उनके प्रवेश और वापसी की तारीख पहले से तय होती थी और वह जंगल में बहुत कम ही दिन बिता सकते थे।
अभ्यास
अभ्यास प्रश्न:
Q1. स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?
उत्तर : घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह जाने के निम्नलिखित कारण थे |
(i) उनकी अपनी कोई चरागाह या खेत नही होता जिससे दूसरे के खेतो या दूर दूर के चारागाहों पर निर्भर रहना पडता है।
(ii) मौसम परिवर्तन के साथ साथ उन्हे अपने चरागाह भी बदलने पडते हैं जैसे पहाडों के उपरी भाग में बर्फ पडने पर वे पहाडी के निचले हिस्से में जाना पडता है।
(iii) बर्फ पिघलते ही उनन्हे वापस ऊपर की पहाडों की ओर प्रस्थान करना पडता है।
(iv) मैदानी भागों में इसी प्रकार बाढ़ आने पर वे ऊँचें स्थानों पर चले जाते है।
इनके निरंतर आवागमन से पर्यावरण को बहुत ही लाभ पहुँचता है | जहाँ इनके मवेशी चरते है वहॉ की भूमी उपजाऊ हो जाती है । इसलिए किसान अपने अपने खेतों में चरने देते है ताकि मवेशियों के गोबर से खेत भर जाये ।
Q2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा:
परती भूमि नियमावली
वन अधिनियम
अपराधी जनजाति अधिनियम
चराई कर
उत्तर : औपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुनों से चरवाहों के जीवन पर निम्न असर पडा।
(1) परती भूमी नियमावली - उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुन ‘परती भूमी नियमावली’ में चरागाह जो बंजर भूमि के समान थी ब्रिटिश सरकार ने कृर्षि योग्य बनाने के लिए गांव के मुखिया के सुपुर्द कर दिया जिससे चरागाहें समाप्त सी हो गई।
(2) वन - अधिनियम - ब्रिटिश सरकार ने अनेक वन कानून पास कर चरवाहों का जीवन ही बदल दिया । आरक्षित तथा सूरक्षित वनों की श्रेणी के वनों में उनके घुसने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि पशु पौधे के नई कोपलों को खा जाते थे।
(3) अपराधी जनजाति अधिनियम - 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) पारित किया। इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया। उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया। इस कानून के लागू होते ही ऐसे सभी समुदायों को कुछ खास अधिसूचित गाँवों/बस्तियों में बस जाने का हुक्म सुना दिया गया। उनकी बिना परमिट आवाजाही पर रोक
लगा दी गई। ग्राम्य पुलिस उन पर सदा नजर रखने लगी।
(4) चराई कर - अपनी आय बढाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पशुओं पर भी कर लगा दिया । कर देने के पश्चात् इन्हें एक पास दिया जाता था । जिसको दिखाकर ही चरवाहे अपनी पशु चरा सकते थें । 1792 ई0 को हुई ।
Q3. मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ।
उत्तर : मासाई चरवाहे अफ्रीका मे रहते है । मासाई चरवाहे मुख्य रूप से उतरी अफ्रीका मे रहते थे - 3000000 दक्षिण कीनीया में तथा 150000 तनजानिया में, उपनिवेशी सरकार ने नये कानून बनाकर उनकी प्रभावित किया तथा यहाँ तक कि उन्हे अपने संबध फिर से बनाने पडे ।
मसाई समुदाय से चारागाह छीने जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :
(i) मासाई समुदाय से लगातर उनके चारागाह छिनते रहे । मासाई भूमि उतरी कीनिया से लेकर उतरी तनजानिया तक विस्तृत था । 19वी शताब्दी के अंत मे यूरोपियन साम्राज्यवादी शक्तियो ने अफ्रीका मे उनकी भूमि पर अधिकार कर लिया ।
(ii) कीनिया में अंग्रेजों ने मसाई लोगों को दक्षिणी भागों में धकेल दिया जबकि जर्मन लोगो ने उन्हें उतरी तंजानिया की ओर धकेल दिया । इसप्रकार वे अपने ही घर में बेगानो जैसा हो गये थें।
(iii) सम्राज्यवादी देश की भांति अंग्रेजी और जर्मन भी बेकार परती भूमी को जिससे न कोई आय थी और न कर ही मिलती थी उन परती जमीनों को वहाँ के किसानो के बीच बाँट दी और मसाई लोग हाथ मलते रह गये ।
Q4. आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ़्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर: भारत और पूर्वी अफ्रीका दोनों ही उस समय औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन थे, इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियां उन्हें संदेह की दृष्टि से देखती थी| इन दोनों देशो में औपनिवेशिक शोषण के तरीकें में भी समानता थी|
मासाई गड़रियों और भारतीय चरवाहों को हम निम्न रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं:-
(i) भारत और अफ्रीका दोनों में ही जंगल यूरोपीय शासकों द्वारा आरक्षित कर दिए गये और चरवाहों का इन जंगलों में प्रवेश निषेध कर दिया गया| ये आरक्षित जंगल इन दोनों देशों में अधिकतर उन क्षेत्रों में थे जो पारंपरिक रूप से खानाबदोश चरवाहों की चरगाह थे| इस प्रकार, दोनों ही मामले में औपनिवेशिक शाशकों ने खेतीबाड़ी को प्रोतसाहन दिया जो अंततः चरवाहों की चरागाहों की पतन का कारण बनी|
(ii) भारत और पूर्वी अफ्रीका के चरवाहा समुदाय खानाबदोश थे इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियां उन्हें अत्यधिक संदेह की दृष्टि से देखती थी| यह उनके और अधिक पतन का कारण बना|
(iii) दोनों स्थानों के चरवाहा समुदाय अपनी-अपनी चरागाहें कृषि-भूमि को तरजीह दिए जाने के कारण खो बैठे| भारत में चरगाहों को खेती की ज़मीन में तब्दील कररने के लिए उन्हें कुछ चुनिन्दा लोगो को दिया गया| जो ज़मीन इस प्रकार छीनी गई थी वे अधिकतर चरवाहों की चरागाहें थी| इसे बदलाव चरगाहों की पतन एवं चरवाहें के लिए बहुत सी समस्याओं का कारण बन गई| इसी प्रकार अफ्रीका में भी मासाई लोगो की चरागाहें श्वेत बस्ती बसने वाले लोगों द्वारा उनसे चीन ली गई और उन्हें खेती की ज़मीन बढ़ाने के लिए स्थानीय किसान समुदायों को हस्तांतरित कार दिया गया|
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
5. आधुनिक विश्व में चरवाहे
प्रश्न : दो कारण बताइए जिससे कि 18 वीं सदी में इग्लैण्ड में बाडाबंदी आवश्यक हो गई ।
उत्तर -
(1) भूमि पर लंबी अवधि के निवेश के कारण।
(2) बाडाबंदी ने धनी किसानों को अपने नियंत्रण की भूमि को विकसित करने दिया ।
प्रश्न : गुज्जर बकरवाल कौन हैं ? उनके जीवन का वर्णन करो ।
उत्तर : गुज्जर बकरवाल जम्मु कश्मीर का एक चरवाहा समूदाय है जो भेड - बकरियों को बडे बडे रेवड़ रखते थे। इस समुदाय के अधिकतर लोग अपने मवेशियों लिए चारागाहों की तलाश में यहॉ आए थे। जाडों में जब ऊँची पहाडियाँ बर्फ से ढक जाती है तो निचली पहाडियों में आकर डेरा डाल देते है । गर्मीयों में ये अपने रेवड़ को लेकर ऊँची पहाडियों पर चले जाते थे ।
प्रश्न : गद्दी समुदाय कहाँ के चरवाहा समुदाय है ?
उत्तर : हिमांचल प्रदेश ।
प्रश्न : भाबर शब्द का अर्थ लिखिए ।
उत्तर : गढवाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाडियों के नीचले हिस्से के आस पास पाए जाने वाले शुष्क या सूखे जंगल का इलाका को भाबर कहते हैं ।
प्रश्न : बुग्याल किसे कहते है ?
उत्तर : उच्ची पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित विस्तृत चरागाहों को बुग्याल कहते है। जैसे - पूर्वी गढवाल के बुग्याल जहॉ भेड चराये जाते है।
प्रश्न : धंगर कहाँ कर चरवाहा समुदाय हैं ?
उत्तर : महाराष्ट्र का।
प्रश्न : धंगर समुदाय चरवाही के आलावा जीविका के लिए और कौन कौन से काम करते थे ?
उत्तर - धंगर समुदाय महाराष्ट्र का जाना माना चरवाहा समुदाय हैं ।
जीविका के लिए ये समुदाय निम्न काम करते थे।
1. कम्बल और चादरें भी बनाते थे।
2. कुछ भैंस भी पालते थे।
3. अक्टूबर के आसपास ये बाजरें की कटाई करते थे।
प्रश्न : भारत के कुछ चरवाहें समुदायों का नाम लिखिए।
उत्तर :
जम्मु कश्मीर - गुज्जर बकरवाल ।
हिमांचल प्रदेश - गद्दी समुदाय
महाराष्ट्र - धंगर
राजस्थान - राइका
कर्नाटक और आध्र प्रदेश - गोल्ला , कुरूमा , और कुरूबा समुदाय।
उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश - बंजारे।
प्रश्न : चलवासी चरवाहों के निरंतर प्रवास से पर्यावरण को क्या लाभ होता है ।
उत्तर : जहाँ इनके मवेशी चरते है वहॉ की भूमी उपजाऊ हो जाती है । इसलिए किसान अपने अपने खेतों में चरने देते है ताकि मवेशियों के गोबर से खेत भर जाये ।
प्रश्न : धार क्या होते हैं ?
उत्तर : ऊँचे पर्वतों में स्थित चरागाहों को धार कहा जाता है।
प्रश्न : भारत के कुछ चरावाह - कबीलों के नाम लिखो।
उत्तर : भारत के कुछ चरावाह - कबीलों के नाम
1. जम्मू कश्मीर के गुज्जर बकरवाल
2. हिमाचल प्रदेश के गद्दी गडरिये
3. महाराष्ट्र के धंगर
4. कर्नाटक में गोल्ला
5. आन्ध्र प्रदंश में कुरूमा और कुरबा
प्रश्न : बंजारों के रहने सहने के ढंग का वर्णन करो ।
उत्तर : देश के एक बडे भाग विशेष कर पंजाब, राजस्थान, उतर प्रदेश, मध्यप्रदेश, और महाराष्ट्र आदि के ग्रमीण क्षंत्रों में पाई जाने वाली चरावहा टुकडों को बंजारा कहा जाता है। वे नई घास भूमियों की तलाश में अपने पशुओं के साथ दूर दूर तक घूमते रहते है। भोजन और पशु चारा के बदले में हल चलाने वाले पशुओं और दूध उत्पादों का लेन देन कर लेते है। साथ ही साथ इन पशुओं की खरीद ब्रिक्री भी करते रहते है।
प्रश्न : स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार बार एक जगह से दूसरे जगह क्यों जाना पडता है ? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ पहुँचता है ?
उत्तर : घुमंतू समुदायों को बार बार एक जगह से दूसरे जगह जाने के पीछे निम्नलिखित कारण है।
1. उनकी अपनी कोई चरागाह या खेत नही होता जिससे दूसरे के खेतो या दूर दूर के चारागाहों पर निर्भर रहना पडता है।
2. मौसम परिवर्तन के साथ साथ उन्हे अपने चरागाह भी बदलने पडते हैं जैसे पहाडों के उपरी भाग में बर्फ पडने पर वे पहाडी के निचले हिस्से में जाना पडता है।
3. बर्फ पिघलते ही उनन्हे वापस ऊपर की पहाडों की ओर प्रस्थान करना पडता है।
4. मैदानी भागों में इसी प्रकार बाढ़ आने पर वे ऊँचें स्थानों पर चले जाते है।
प्रश्न : उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए वन अधिनियम कानुन से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पडा ?
उत्तर : ब्रिटिश सरकार ने अनेक वन कानून पास कर चरवाहों का जीवन ही बदल दिया । आरक्षित तथा सूरक्षित वनों की श्रेणी के वनों में उनके घुसने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि पशु पौधे के नई कोपलों को खा जाते थे। इससें चरवाहों के लिए चारागाह का संकट उत्पन्न हो गया ।
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
प्रश्न : मासाई दसमुदाय के चारागाह उनसे क्यो छिन गए ?
उत्तर : मासाई चरवाहे अफ्रीका मे रहते है । मासाई चरवाहे मुख्य रूप से उतरी अफ्रीका मे रहते थे - 3000000 दक्षिण कीनीया मे तथा 150000 तनजानियामें, उपनिवेशी सरकार ने नये कानून बनाकर उनकी प्रभावित किया तथा यहाँ तक कि उन्हे अपने संबध फिर से बनाने पडे ।
कारणः
1. मासाई समुदाय से लगातर उनके चारागाह छिनते रहे । मासाई भूमि उतरी कीनिया से लेकर उतरी तनजानिया तक विस्तृत था । 19वी शताब्दी के अंत मे यूरोपियन साम्राज्यवादी शक्तियो ने अफ्रीका मे उनकी भूमि पर अधिकार कर लिया ।
2. कीनिया में अंग्रेजों ने मसाई लोगों को दक्षिणी भागों में धकेल दिया जबकि जर्मन लोगो ने उन्हें उतरी तंजानिया की ओर धकेल दिया । इसप्रकार वे अपने ही घर में बेगानो जैसा हो गये थें।
3. सम्राज्यवादी देश की भांति अंग्रेजी और जर्मन भी बेकार परती भूमी को जिससे न कोई आय थी और न कर ही मिलती थी उन परती जमीनों को वहाँ के किसानो के बीच बाँट दी और मसाई लोग हाथ मलते रह गये ।
प्रश्न : किन कारणें से चारागाह भूमि में भारी कमी आई ।
उत्तर : निम्नलिखित कारणों से चारागाह भूमि में भारी कमी आई।
1. बेकार परती भूमी जो चारागाहें थीं, जिससे न कोई आय थी और न कर ही मिलती थी उन परती जमीनों को वहाँ के किसानों के बीच बाँट दी।
2. वनों में वन अधिकारीयों नें पशुओं के चराने पर रोक लगा दी । उनका मानना था कि चराई से पौधों की जडें समाप्त हो जाती है। इस प्रकार चारागाहों में तेजी से कमी आई
प्रश्न : भारत में वन क्षेत्र में भारी गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका का वर्णन करें ।
1. रेलवें
2. कृर्षि विस्तार
3. व्यवसायिक खेती
उत्तर -
1. रेलवें के कारण वन-क्षेत्र पर प्रभाव - रेलों के निर्माण और पटरियों के बिछाने में प्रयोग आने वाले लकडी के स्लीपरों ने वन-क्षेत्र को घटाने में एक बडी भूमिका निभाई तथा वन-क्षेत्र काटकर रेल की पटरियां बिछाई गई। इंजन में भी लकडी की कोयला जलाई जाती थी ।
2. कृर्षि विस्तार के कारण वन-क्षेत्र पर प्रभाव - भारत की जनसंख्या बढती जा रही थी जिसके लिए कृर्षि -क्षेत्र का विस्तार करना आवश्यक था । फिर क्या था कृर्षि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों की कटाई अंधाधुन्ध शुरू हो गई । देखते ही देखते ही वन समाप्त होते चले गए।
3. व्यवसायिक कृर्षि का वनों पर प्रभाव - अपने कारखानों को चलाने के लिए तथा अपनी बढती हुई जनसंख्या की भूख मिटाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने स्वयं भारत में पटसन, गन्ना, गेहँू और कपास जैसी व्यवसायिक खेतीयो पर जोर दिया । इस प्रकार भारत के वनों का सफाया होना शुरू हो गया ।
प्रश्न : वनों के आधिन क्षेत्र बढाने की क्या आवश्यकता है ? कारण दों ।
उत्तर : भारत में वनों के आधीन क्षेत्रों वैज्ञानिक माँगों से काफी कम है। यह कुल भूमी क्षेत्र का 19.3 प्रतिशत है जबकि यह कुल भूमी क्षेत्र का 33 प्रतिशत होना चाहिए। अत: हमें वनों के आधिन क्षेत्र बढाने की आवश्यकता है क्योंकि इसके मुख्य कारण निम्नलिखित है।
1. पारिस्थ्तििक तंत्र को बनाये रखने के लिए हमें वनों के आधिन क्षेत्र बढाने की आवश्यकता है|
2. हवा का प्रदूषण कम करते है।
3. ग्लोबल वार्मिंग कम करने में वन हमारी सहायता करते हैं ये वायु से कार्बन डाई आक्साईड को शोषित करते है।
4. वन जीवों को प्राकृतिक निवास प्रदान करते है।
5. वनों का वर्षा लाने में बहुत बडा हाथ होता है। जल कणों को बर्षा की बूदों में परिवर्तित करते है।
6. वन मृदा का संरक्षण करते है और मृदा को पानी के साथ बहने से रोकते है।
प्रश्न : बताइए कि उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पडा ?
उत्तर : उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुनों से चरवाहों के जीवन पर निम्न असर पडा।
1. परती भूमी नियमावली - उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुन ‘परती भूमी नियमावली’ में चरागाह जो बंजर भूमि के समान थी ब्रिटिश सरकार ने कृर्षि योग्य बनाने के लिए गांव के मुखिया के सुपुर्द कर दिया जिससे चरागाहें समाप्त सी हो गई।
2. वन - अधिनियम - ब्रिटिश सरकार ने अनेक वन कानून पास कर चरवाहों का जीवन ही बदल दिया । आरक्षित तथा सूरक्षित वनों की श्रेणी के वनों में उनके घुसने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि पशु पौधे के नई कोपलों को खा जाते थे।
3. चराई कर - अपनी आय बढाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पशुओं पर भी कर लगा दिया । कर देने के पश्चात् इन्हें एक पास दिया जाता था । जिसको दिखाकर ही चरवाहे अपनी पशु चरा सकते थें । 1792 ई0 को हुई ।
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