Chapter 6. न्यायपालिका राजनितिक विज्ञान - I class 11 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
Chapter 6. न्यायपालिका राजनितिक विज्ञान - I class 11 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर ncert book solution in hindi-medium
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मुख्य बिन्दू
मुख्य बिंदु :-
- न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है|
- 1973 में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर न्यायमूर्ति ए एन रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
- 1975 में न्यायमूर्ति एच आर खन्ना को पीछे छोड़ते हुए न्यायमूर्ति एम एच बेग की नियुक्ति की गई।
- 1991 में पहली बार संसद के 108 सदस्यों ने सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए।
- 1992 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की एक उच्च स्तरीय जाँच समिति ने न्यायमूर्ति वी रामास्वामी को पंजाब और हरियाणा के मुख्य न्यायाधीश रहते ‘सार्वजनिक धन का निजी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने और संवैधानिक नियमों की धज्जी उड़ाने केकारण नैतिक पतन तथा पद का जान-बूझकर गंभीर दुरुपयोग’ करने का दोषी पाया।
- अनुच्छेद 137 " उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनरावलोकन करने की शक्ति होगी।’’
- अनुच्छेद 144 ‘‘भारत के राज्य-क्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता से कार्य करेंगे।’’
- अनुच्छेद 32 " बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश आदि जारी करके मौलिक अधिकारों को फिर से स्थापित कर सकता है।
- अनुच्छेद 226 " उच्च न्यायालयों को भी ऐसी रिट जारी करने की शक्ति है|
- अनुच्छेद 13 " सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को गैर-संवैधनिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है|
- न्यायपालिका देश की लोकतांत्रिक राजनीतिक संरचना का एक हिस्सा है।और न्यायपालिका देश के संविधान, लोकतांत्रिक परंपरा और जनता के प्रति जवाबदेह है।
अभ्यास-प्रश्नावली
अभ्यास प्रश्नावली :-
Q1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के विभिन्न तरीके कौन-कौन से हैं? निम्नलिखित में जो बेमेल हो उसे छाँटें।
(क) सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह ली जाती है।
(ख) न्यायाधीशों को अमूमन अवकाश प्राप्ति की आयु से पहले नहीं हटाया जाता।
(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।
(घ) न्यायाधीशों की नियुक्ति में संसद की दखल नहीं है।
उत्तर :
(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।
Q2. क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर :
न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेही न हो न्यायपालिका भी संविधान का ही भाग है व संविधान के ऊपर नही है न्यायपालिका भी संविधान के अनुसार ही कार्य करेगी | न्यायपालिका का उद्देश्य भी संविधान के व प्रजातंत्र के उद्देश्य को पूरा करना है | अत: न्यायपालिका की स्वतंत्रता का निर्णयों को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया जाये | न्यायपालिका अपनी नियुक्ति के लिए सेवाकाल के लिए व सेवा शर्तों व सेवा सुविधाओं के लिए कार्यपालिका व विधानपालिका पर निर्भर ना हो | न्यायधीश को हटाने का तरीका भी पक्षपातरहित हो | भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता है तथा सम्मपूर्ण स्थान प्राप्त है |
Q3. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान में निम्न प्रावधान है :-
(1) न्यायधीशों की नियुक्ति में संसद की कोई भूमिका नही होती है |
(2) न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए निश्चित योग्यताएं व अनुभव दिए गए है |
(3) न्यायपालिका कपने वेतन भत्तों व अन्य आर्थिक सुविधाओं के लिए कार्यपालिका अथवा संसद पर निर्भर नहीं है | उनके खर्चों से संबधित बिल पर बहस व मतदान नही होता |
(4) न्यायधीशों की सेवा काल लम्बा व सुरक्षित होता है यद्धपि कुछ परिस्थियों में इनको हटाया भी जा सकता है परन्तु महाभियोग की प्रक्रिया काफी लम्बी व मुशिकल होती है |
(5) न्यायधीशों के कार्यों व निर्णयों के आधार पर उनकी व्यक्तिगत आलोचना नही की जा सकती |
(6) जो न्यायालय का व इसके निर्णयों का अपमान करते है न्यायालय उनको दण्डित कर सकती है |
(7) न्यायालय के निर्णय बाध्यकारी होते है |
Q4. नीचे दी गई समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और उनमें निम्नलिखित पहलुओं की पहचानकरें।
सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस से दहानु के किसानों को 300 करोड़ रुपए देने को कहा - निजी कारपोरेट ब्यूरो, 24 मार्च 2005
मुम्बई - सर्वोच्च न्यायालय ................................................. रिलायंस से 300 करोड़ रुपए की बैंक-गारंटी देने को कहा।
(क) मामला किस बारे में है?
उत्तर :
यह मामला दहानू मुम्बई क्षेत्र के चीकू पैदा करने वाले उन किसानों को मुआवजा देने के बारे में है जिनका थर्मल पावर प्लांट के नुकसानदायक रिसाव के कारण भारी नुकसान हुआ है |
(ख) इस मामले में लाभार्थी कौन है?
उत्तर :
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से दहानुपुर क्षेत्र के चीकू पैदा करने वाले किसानों को लाभ हुआ |
(ग) इस मामले में फरियादी कौन है?
उत्तर :
इस केस में दहानुपुर क्षेत्र के चीकू पैदा करनें वाले किसान वादी है |
(घ) सोच कर बताए की कंपनी की तरफ से कौन - कौन से तर्क दिए जाएगे।
उत्तर :
रिलांयस कम्पनी ने न्यायालय में यह दलील दी किन थर्मल पावर प्लांट के नुकसानदायक रिसाव को नियंत्रित करने के लिए एक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए |
Q 5. नीचे की समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और, चिनिहित करें कि रिपोर्ट में किस-किस स्तर की सरकार सक्रिय दिखाई देती है।
(क) सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की निशानदेही करें।
(ख) कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज की कौन-सी बातें आप इसमें पहचान सकते हैं?
(ग) इस प्रकरण से संबधित नीतिगत मुद्दे, कानून बनाने से संबंधित बातें,क्रियान्वयन तथा कानून की व्याख्या से जुड़ी बातों की पहचान करें।
सीएनजी - मुद्दे पर केंद्र और दिल्ली सरकार एक साथ
स्टाफ रिपोर्ट , द हिन्दू , सितम्बर 23,2001...................................यातायात प्रणाली अस्त व्यस्त हो जाएगी |
उत्तर :
(1) इस केस में केन्द्रीय सरकार व देहली सरकार शामिल है |
(2) यातायात के लिए प्रदुषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा निशिचत मापदंड के आधार पर इस केस को टी करने में सर्वोच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी |
(3) कार्यपालिका प्रदुषण नियंत्रण की निति टी करेगी तथा न्यायपालिका यह तय करेगी की कार्यपालिका की निति का कितना उल्लघन हुआ है |
(4) इस प्रकरण में नीतिगत निर्णय देहली सरकार का यह है कि देहली में सी.एन.जी.के प्रयोग की बसें देहली में चलेगी | इस निति के अनुसार देःली सरकार कानून बनाएगी | निति व कानून की व्याख्या के संबध में यह निर्णय लिया गया कि ऐसा करते समय प्रदुषण से सुरक्षा को मुख्य रूप से ध्यान में रखा जाए |
Q6. निम्नलिखित कथन इक्वाडोर के बारे में है। इस उदाहरण और भारत की न्यायपालिका के बीच आप क्या समानता अथवा असमानता पाते हैं?सामान्य कानूनों की कोई संहिता अथवा पहले सुनाया गया कोई न्यायिक फैसला मौजूद होता तो पत्राकार के अधिकारों को स्पष्ट करने में मदद मिल सकती थी। दुर्भाग्य से इक्वाडोर की अदालत इस रीति से काम नहीं करती। पिछले मामलों में उच्चतर अदालत के न्यायाधीशों ने जो फैसले दिए हैं उन्हें कोई न्यायाधीश उदाहरण के रूप में मानने के लिए बाध्य नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत इक्वाडोर ;अथवा दक्षिण अमेरिका में किसी और देश में जिस न्यायाधीश के सामने अपील की गई है उसे अपना फैसला और उसका कानूनी आधारलिखित रूप में नहीं देना होता। कोई न्यायाधीश आज एक मामले में कोई फैसला सुनाकर कल उसी मामले में दूसरा फैसला दे सकता है और इसमें उसे यह बताने की ज़रूत नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।
उत्तर :
भारतीय न्याय प्रणाली में किसी विषय पर उच्च न्यायालयों के द्वारा दिए गए निर्णय आगे आने वाले निर्णयों के लिए मार्गदर्शक होते है जो वाध्य्कारी भी होते है यह स्थिति इक्वेडोर के उदहारण से भिन्न है | क्योंकि वहां पर न्यायधीश उसी विषय पर दिए गए निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं होता भारतीय न्याय व्यवस्था व इक्वेडोर की न्याय व्यवस्था में एक समानता यह है कि भारत में भी व इक्वेडोर में भी न्यायधीश नई परिस्थिति में अपना पहला निर्णय किसी विषय पर बदल सकते है |
Q7. निम्नलिखित कथनों को पढि़ए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमल में लाए जानेवाले विभिन्न क्षेत्राधिकार मसलन - मूल, अपीली और सलाहकारी - से इनका मिलान कीजिए।
(क) सरकार जानना चाहती थी कि क्या वह पाकिस्तान - अधिग्रहीत जम्मू-कश्मीर के निवासियों की नागरिकता के संबंध में कानून पारित कर सकती है।
उत्तर :
परामर्श संबधित अधिकार |
(ख) कावेरी नदी के जल विवाद के समाधान के लिए तमिलनाडु सरकार अदालत की शरण लेना चाहती है।
उत्तर :
प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार |
(ग) बांध स्थल से हटाए जाने के विरुद्ध लोगों द्वारा की गई अपील को अदालत ने ठुकरा दिया।
उत्तर :
अपीलीय क्षेत्राधिकार |
Q 8. जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद कर सकती है?
उत्तर :
न्याय वितरण की प्रक्रिया में जनहित याचिका की व्यवस्था एक महत्वपूर्ण कदम है | इन याचिकाओं के माध्यम से उन व्यक्तियों को न्याय दिलाया जा सकता है जो स्वंय अपने हित की रक्षा अज्ञानता के कारण या आर्थिक स्रोतों के अभाव के कारण असमर्थ हैं | ऐसे व्यक्तियों के हितों के लिए कुछ दयालु व्यक्ति या संस्थाए याचिका दायर करती है तथा आवश्यक प्रमाण व तथ्य प्रदान करती है तथा जनहित को प्राप्त करने का प्रयास करती है सबसे पहले इस दिशा में न्यायधीश पी.एन.भगवती ने इस प्रकार की याचिका स्वीकार करके पहल की जिससे गरीब व असहाय लोगों को न्याय दिलाने में जनहित याचिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | न्यायधीश पी.एन. भगवती ने सबसे पहले 1984 में बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाया | भारत सरकार केस में जनहित याचिका स्वीकार की जिससे अनेक मज़दूर को न्याय मिला |
Q9. क्या आप मानते हैं कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है? क्यों ?
उत्तर :
भारतीय न्यायपालिका को न्याय पुन: निरिक्षण की शक्ति प्राप्त है जिसके आधार पर न्यायपालिका विधानपालिका के द्वारा पारित कानूनों तथा कार्यपालिका के द्वारा जारी आदेशों की संवैधानिक वैधता की जांच क्र सकता है, अगर ये संविधान के विपरीत पाए जाते हैं तो न्यायपालिका उनको अवैध घोषित कर सकती है | परन्तु न्यायपालिका को यह शक्ति सीमित है |
Q10. न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से किस रूप में जुड़ी है? क्या इससे मौलिक अधिकारों वेफ विषय-क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिली है?
उत्तर :
न्याय सक्रियता भारतीय राजनितिक व्यवस्था में चर्चा का विषय है जिसको भारतीय आम जनता ने स्वीकार भी किया है तथा सराहा भी है क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी हुई है , व कार्यपालिका, विधानपालिका व नौकरशाही पर नियंत्रण करने में भी सहायता मिली है | भारतीय न्यायपालिका विभिन्न ऐसे राजनितिक सामाजिक व आर्थिक नीतिगत विषयों पर टिप्पणी करती है जिनको वह गलत मानती है |
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :-
Q1. हमें स्वतंत्र न्यायपालिका क्यों चाहिए ?
उत्तर : हर समाज में व्यक्तियों के बीच, समूहों के बीच और व्यक्ति या समूह तथा सरकार के बीच विवाद उठते हैं। इन सभी विवादों को‘कानून के शासन के सिद्धांत के आधार पर एक स्वतंत्र संस्था द्वारा हल किया जाना चाहिए। ‘कानून के शासन’ का भाव यह है कि
धनी और गरीब, स्त्री और पुरुष तथा अगले और पिछड़े सभी लोगों पर एक समान कानून लागू हो। न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका यह है कि वह ‘कानून के शासन’ की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करे। न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है,विवादों को कानून के अनुसार हल करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ले ले। इसके लिए ज़ृति है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त हो।
Q2. स्वतंत्र न्यायपालिका का क्या अर्थ है?
उत्तर : स्वंतंत्र न्यायपालिका का अर्थ है कि :-
(i) सरकार के अन्य दो अंग-विधायिका और कार्यपालिका-न्यायपालिका के कार्यों में किसी
प्रकार की बाधा न पहुँचाए ताकि वह ठीक ढंग से न्याय कर सके।
(ii) सरकार के अन्य अंग न्यायपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप न करें।
(iii) न्यायाधीश बिना भय या भेदभाव के अपना कार्य कर सके।
Q 3. न्यायपालिका को स्वतंत्रता कैसे दी जा सकती है और उसे सुरक्षित कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर : न्यायपालिका की स्वतंत्रता :
भारतीय संविधान ने अनेक उपायों के द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित की गई है।न्यायाधीशों की नियुक्तियों के मामले में विधायिका को सम्मिलित नहीं किया गया है। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि इन नियुक्तियों में दलगत राजनीति की कोई भूमिका नहीं रहे। न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए। उस व्यक्ति के राजनीतिक विचार या निष्ठाएँ उसकी नियुक्ति का आधार नहीं बननी चाहिए।
न्यायपालिका की सुरक्षाएं :
न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित होता है। वे सेवानिवृत्त होने तक पद पर बने रहते हैं। केवल अपवाद स्वरूप विशेषस्थितियों में ही न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है। इसके अलावा, उनके कार्यकाल को कम नहीं किया जा सकता। कार्यकाल की सुरक्षा के कारण न्यायाधीश बिना भय या भेदभाव के अपना काम कर पाते हैं। संविधान में न्यायाधीशों को हटाने के लिए बहुत कठिन प्रक्रिया निर्धारित की गई है। संविधान निर्माताओं का मानना था कि हटाने की प्रक्रिया कठिन हो, तो न्यायपालिका के सदस्यों का पद सुरक्षित रहेगा।
Q 4. भारतीय न्यायाधीशों की नियुक्ति किस प्रकार से की जाती है ?
उत्तर : सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से करता ह।
1982 से 1998 के बीच यह विषय बार-बार सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया। शुरू में न्यायालय का विचार था कि मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पूरी तरह से सलाहकार की है। लेकिन बाद में न्यायालय ने माना कि मुख्य न्यायाधीश की सलाह राष्ट्रपति को ज़रूर माननी चाहिए। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने एक नई व्यवस्था की। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम् न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति नियुक्तियाँ करेगा। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्तियों की सिफारिश के संबंध में सामूहिकता का सिद्धांत स्थापित किया। इस तरह न्यायपालिका की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय और मंत्रिपरिषद् महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Q5. भारतीय न्यायाधीशों को उनके पद से किस प्रकार से हटाया जा सकता है ?
उत्तर : भारतीय न्यायाधीशों को उनके पद से निम्न कारणों से हटाया जा सकता है :-
(i) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना काफी कठिन है। कदाचार साबित होने अथवा अयोग्यता की दशा में ही उन्हें पद से हटाया जा सकता है।
(ii) न्यायाधीश के विरुद्ध आरोपों पर संसद के एक विशेष बहुमत की स्वीकृति ज़रूरी होती है।
(iii) जब तक संसद के सदस्यों में आम सहमति न हो तब तक किसी न्यायाधीश को हटाया नहीं जा सकता।
Q 6. भारतीय न्यायपालिका की संरचना का वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है। इसका अर्थ यह है कि विश्व के अन्य संघीय देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रांतीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं। भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय है|
सर्वोच्च न्यायालय ⇒ उच्च न्यायालय ⇒ जिला अदालत ⇒ अधीनस्थ न्यायालय |
Q7. भारत के सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय ,जिला अदालत और अधीनस्थ न्यायालय के क्या कार्य है ? वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कार्य :-
(i) इसके फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं।
(ii) यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का तबादला कर सकता है।
(iii) यह किसी अदालत का मुकदमा अपने पास मँगवा सकता है।
(iv) यह किसी एक उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दूसरे उच्च न्यायालय में भिजवा सकता है।
भारत के उच्च न्यायालय के कार्य :-
(i) निचली अदालतों के फैसलें पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता है।
(ii) मौलिक अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट जारी कर सकता है।
(iii) राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले मुकदमों का निपटारा कर सकता है।
(iv) अपने अधीनस्थ अदालतों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करता है।
भारत के जिला अदालत के कार्य :-
(i) जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है।
(ii) निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करती है।
(iii) गंभीर किस्म के आपराधिक मामलों पर फैसला देती है।
भारत के अधीनस्थ न्यायालय के कार्य :-
(i) फौज़दारी और दीवानी के मुकदमों पर विचार करती है।
Q 8. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है। लेकिन वह संविधान द्वारा तय की गई सीमा के अंदर ही काम करता है।सर्वोच्च न्यायालय के कार्य और उत्तरदायित्व संविधान में दर्ज हैं। सर्वोच्च न्यायालय को खास किस्म का क्षेत्राधिकार प्राप्त है जो निम्नलिखित है :-
(i) मौलिक -संघ और राज्यों के बीच के तथा विभिन्न राज्यों के बीच आपसी विवादों का निपटारा |
(ii) रिट - व्यक्ति के मौलिक-अधिकारों की रक्षा के लिए बंदी-प्रत्यक्षीकरण,परमादेश, निषेध् आदेश,उत्प्रेषण-लेख तथा अधिकार पृच्छा जारी करने का अधिकार |
(iii) अपीली - दीवानी, फौज़दारी तथा संवैधानिक सवालों से जुड़े अधीनस्थ न्यायालयों के मुकदमों की अपील पर सुनवाई करना |
(iv) विशेषाधिकार - भारतीय भू-भाग की किसी अदालत द्वारा पारित मामले या दिए गए फैसले पर स्पेशल लीव पिटीशन के तहत की गई अपील पर सुनवाई करने की शक्ति |
(v) सलाहकारी - जनहित के मामलों तथा कानून के मसले पर राष्ट्रपति को सलाह देना।
Q 9. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ बताइए |
उत्तर : मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है। ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई ज़रूरी नहीं है । सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक क्षेत्राधिकार उसे संघीय मामलों से संबंधित सभी विवादों में एक अंपायर या निर्णायक की भूमिका देता है। किसी भी संघीयव्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों में परस्पर कानूनी विवादों का उठना स्वाभाविक है। इन विवादों को हल करने की ज़िम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय की है।
इसे मौलिक क्षेत्राधिकार इसलिए कहते हैं क्योंकि इन मामलों को केवल सर्वोच्च न्यायालय ही हल कर सकता है। इनकी सुनवाई न तो उच्च न्यायालय और न ही अधीनस्थ न्यायालयों में हो सकती है। अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सर्वोच्च न्यायालय न केवल विवादों को सुलझाता है बल्कि संविधान में दी गई संघ और राज्य सरकारों की शक्तियों की व्याख्या भी करता है।
Q 10. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के रिट संबंधी क्षेत्राधिकार का अर्थ बताइए |
उत्तर : मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति इंसाफ पाने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायलय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायलय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है।उच्च न्यायलय भी रिट जारी कर सकते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है उसके पास विकल्प है कि वह चाहे तो उच्चन्यायलय या सीधे सर्वोच्च न्यायलय जा सकता है। इन रिटों के माध्यम से न्यायलय कार्यपालिका को कुछ करने या न करने का आदेश दे सकता है।
Q 11. भारत के सर्वोच्च न्यायलय के अपीली संबंधी क्षेत्राधिकार का अर्थ बताइए |
उत्तर : अपीली क्षेत्राधिकार का मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे मुकदमे पर पुनर्विचार करेगा और उसके कानूनी मुद्दों की दुबारा जाँच करेगा। यदि न्यायालय को लगता है कि कानून या संविधान का वह अर्थ नहीं है जो निचली अदालतों ने समझा तो सर्वोच्च न्यायालय उनके निर्णय को बदल सकता है तथा इसके साथ उन प्रावधानों की नई व्याख्या भी दे सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है। कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। लेकिन उच्च न्यायालय को यह प्रमाणपत्र देना पड़ता है कि वह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने लायक है |अगर फौज़दारी के मामले में निचली अदालत किसी को फाँसी की सज़ा दे, तो उसकी अपील सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में की जा सकती है। यदि किसी मुकदमे में उच्च न्यायालय अपील की आज्ञा न दे तब भी सर्वोच्च न्यायालय के पास यह शक्ति है कि वह उस मुकदमे में की गई अपील को विचार के लिए स्वीकार कर ले।
Q 12. भारत के सर्वोच्च न्यायलय के सलाह संबंधी क्षेत्राधिकार का अर्थ बताइए |
उत्तर : मौलिक और अपीली क्षेत्राधिकार के अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार भी है। इसके अनुसार, भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है। लेकिन न तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे किसी विषय पर सलाह देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति न्यायालय की सलाह मानने को।
Q 13. जनहित याचिका’ क्या है ? कब और कैसे इसकी शुरुआत हुई ?
उत्तर : जनहित याचिका का अर्थ है कि कानून की सामान्य प्रक्रिया में कोई व्यक्ति तभी अदालत जा सकता है जब उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान हुआ हो।
इसका मतलब यह है कि अपने अधिकार का उल्लंघन होने पर या किसी विवाद में फ़सने पर कोई व्यक्ति इंसाफ पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।
1979 में इस अवधारणा में शुरुआत हुई थी । 1979 में इस बदलाव की शुरुआत करते हुए न्यायालय ने एक ऐसे मुकदमे की सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसे पीडि़त लोगों ने नहीं बल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया था। क्योंकि इस मामले में जनहित से संबंधित एक मुद्दे पर विचार हो रहा था | उसी समय सर्वोच्च न्यायालय ने कैदियों के अधिकार से संबंधित मुकदमे पर भी विचार किया। इससे ऐसे मुकदमों की बाढ़-सी आ गई जिसमें जन सेवा की भावना रखने वाले नागरिकों तथा स्वयंसेवी संगठनों ने अधिकारों की रक्षा, गरीबों के जीवन को और बेहतर बनाने, पर्यावरण की सुरक्षा और लोकहित से जुड़े अनेक मुद्दोंपर न्यायपालिका से हस्तक्षेप की माँग की। जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का सबसे प्रभावी साधन हो गई है।
Q 14. न्यायिक सक्रियता का हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा। समझाइए |
उत्तर : न्यायिक सक्रियता का हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ा | इससे न केवल व्यक्तियों बल्कि विभिन्न समूहों को भी अदालत जाने का अवसर मिला। इसने न्याय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया और कार्यपालिका उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई। चुनाव प्रणाली को भी इसने ज्यादा मुक्त और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया। न्यायालय ने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति, आय और शैक्षणिक योग्यताओं के संबंध में शपथपत्र देने का निर्देश दिया, ताकि लोग सही जानकारी के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर सके।
Q 15. जनहित याचिकाओं की बढ़ती संख्या और सक्रिय न्यायपालिका के विचार का एक नकारात्मक पहलू भी है। कैसे |
उत्तर : जनहित याचिकाओं की बढ़ती संख्या और सक्रिय न्यायपालिका के विचार का एक नकारात्मक पहलू भी है। इससे न्यायालयों में काम का बोझ बढ़ा है। दूसरे, न्यायिक सक्रियता से विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों के बीच का अंतर धुँधला हो गया है। न्यायालय उन समस्याओं में उलझ गया जिसे कार्यपालिका को हल करना चाहिए।
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राजनितिक विज्ञान - I Chapter List
Chapter 1. संविधान क्यों और कैसे
Chapter 2. भारतीय संविधान में अधिकार
Chapter 3. चुनाव और प्रतिनिधित्व
Chapter 4. कार्यपालिका
Chapter 5. विधायिका
Chapter 6. न्यायपालिका
Chapter 7. संघवाद
Chapter 8. स्थानीय शासन
Chapter 9. संविधान-एक जीवंत दस्तावेज
Chapter 10. संविधान का राजनितिक दर्शन
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