Chapter 10. संविधान का राजनितिक दर्शन राजनितिक विज्ञान - I class 11 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
Chapter 10. संविधान का राजनितिक दर्शन राजनितिक विज्ञान - I class 11 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर ncert book solution in hindi-medium
NCERT Books Subjects for class 11th Hindi Medium
मुख्य बिन्दू
मुख्य बिन्दू :-
- कानून इसलिए बना है क्योंकि हम लोग समानता को मूल्यवान मानते हैं।
- सन् 1947 के जापानी संविधान को बोलचाल में ‘शांति संविधान’ कहा जाता है।
- भारतीय जनताके चुने हुए प्रतिनिधियों से बनी संविधान सभा को ही बगैर बाहरी हस्तक्षेप के भारतीय संविधान बनाने का अधिकार है।
- भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर का विलय इस आधार पर किया गया कि संविधान वेफ अनुच्छेद 370 के तहत इस प्रदेश की स्वायत्तता की रक्षा की जाएगी|यह एकमात्रा प्रदेश है जिसका अपना संविधान है |
- अनुच्छेद 371(ए) के तहत पूर्वोत्तर के प्रदेश नगालैंड को विशेष दर्जा प्रदान किया गया।
- भारत एक बहु-भाषिक संघ है। हर बड़े भाषाई समूह की राजनीतिक मान्यता है और इन्हें परस्पर बराबरी का दर्जा प्राप्त है |
- संविधान तैयार करने का पहला प्रयास ‘कंस्टिट्यूशन ऑपफ इंडिया बिल’ के नाम से सन् 1895 में हुआ था।
- मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट (1928 ई.) में नागरिकता की धारणा की पुष्टि करते हुए कहा गया कि 24 वर्ष की आयु के हर व्यक्ति को (स्त्री हो या पुरुष) लोकसभा के लिए मतदान करने का अधिकार होगा।
- सार्वभौम मताधिकार का विचार भारतीय राष्ट्रवाद के बीज-विचारों में एक है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य-योजना सन् 1964 के नागरिक अधिकार आंदोलन के बाद आरंभ हुई जबकि भारतीय संविधान ने इसे लगभग दो दशक पहले ही अपना लिया था।
अभ्यास प्रश्नोत्तर
अभ्यास प्रश्नोत्तर :-
Q1. नीचे कुछ कानून दिए गए हैं। क्या इनका संबंध किसी मूल्य से है? यदि हाँ, तो वह अंतर्निहित मूल्य क्या है? कारण बताएँ।
(क) पुत्र और पुत्री दोनों का परिवार की संपत्ति में हिस्सा होगा।
उत्तर :
इस वाक्य में समानता का मूल्य है क्योंकि पारिवारिक सम्पति में पुत्र और पुत्री दोनों का समानता का आधार पर बराबर समझा जाता है |
(ख) अलग-अलग उपभोक्ता वस्तुओं के बिक्री-कर का सीमांकन अलग-अलग होगा।
उत्तर :
इस वाक्य में कोई मूल्य संबधित नहीं है क्योंकि अलग-अलग उपभोक्ता वस्तुओं के बिक्री-कर का सीमांकन अलग-अलग होगा।
(ग) किसी भी सरकारी विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
उत्तर :
इस वाक्य में धर्म निरपेक्षता का बोध होता है क्योंकि इसमें राज्य व धर्म को अलग - अलग रखने की बात कही गई है |
(घ) ‘बेगार’ अथवा बंधुआ मजदूरी नहीं कराई जा सकती।
उत्तर :
भारतीय संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति से ‘बेगार’ अथवा बंधुआ मजदूरी नहीं कराई जा सकती |
Q2. नीचे कुछ विकल्प दिए जा रहे हैं। बताएँ कि इसमें किसका इस्तेमाल निम्नलिखित कथन को पूरा करने में नहीं किया जा सकता?
लोकतांत्रिक देश को संविधान की ज़रूरत...
(क) सरकार की शक्तियों पर अंकुश रखने के लिए होती है।
(ख) अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से सुरक्षा देने के लिए होती है।
(ग) औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता अर्जित करने के लिए होती है।
(घ) यह सुनिश्चित करने के लिए होती है कि क्षणिक आवेग में दूरगामी के लक्ष्यों से कहीं विचलितन हो जाएँ।
(घ) शांतिपूर्ण ढंग से सामाजिक बदलाव लाने के लिए होती है।
उत्तर :
(ग) औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता अर्जित करने के लिए होती है।
Q3. संविधान सभा की बहसों को पढ़ने और समझने के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं - (अ) इनमें से कौन-सा कथन इस बात की दलील है कि संविधान सभा की बहसें आज भी प्रासंगिक हैं? कौन-सा कथन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि ये बहसें प्रासंगिक नहीं हैं। (ब) इनमें से किस पक्ष का आप समर्थन करेंगे और क्यों?
(क) आम जनता अपनी जीविका कमाने और जीवन की विभिन्न परेशानियों के निपटारे में व्यस्त होती है। आम जनता इन बहसों की कानूनी भाषा को नहीं समझ सकती।
(ख) आज की स्थितियाँ और चुनौतियाँ संविधान बनाने के वक्त की चुनौतियों और स्थितियों से अलग हैं। संविधान निर्माताओं के विचारों को पढ़ना और अपने नए जमाने में इस्तेमाल करना दरअसल अतीत को वर्तमान में खींच लाना है।
(ग) संसार और मौजूदा चुनौतियों को समझने की हमारी दृष्टि पूर्णतया नहीं बदली है। संविधान सभा की बहसों से हमें यह समझने के तर्क मिल सकते हैं कि कुछ संवैधानिक व्यवहार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं। एक ऐसे समय में जब संवैधानिक व्यवहारों को चुनौती दी जा रही है, इन तर्कों को न जानना संवैधानिक-व्यवहारों को नष्ट कर सकता है।
उत्तर :
(1) वाक्य 'क' व 'ख' में यह बताने का प्रयास किया गया है कि संविधान सभा में हुई बातों व बहसों की आज की परिस्थियों के आधार पर कोई उपयोगिता नहीं है जबकि 'ग' वाक्य में संविधान सभा में हुई बात की आज भी उपयोगिता है |
(2) वाक्य 'क' में कहा गया है कि आम व्यक्ति संविधान सभा में हुई बहस की भाषा को समझने में असमर्थ है क्योकि आज किसी व्यक्ति को संविधान में रूचि नहीं है तथा वे अपने आजीविका कमाने लगे हुए है और उनके पास समय नही है |
(3) संविधान सभा में भारत की सामजिक,आर्थिक, व राजनितिक समस्याओं पर चर्चा हुई जिनकी उपयोगिता आज की समस्याओं के अनुकूल है |
Q4. निम्नलिखित प्रसंगों के आलोक में भारतीय संविधान और पश्चिमी अवधारणा में अंतर स्पष्ट करें -
(क) धर्मनिरपेक्षता की समझ
उत्तर :
भारत के संविधान निर्माता विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी के रिश्ते को उतना ही ज़रूरी मानते थे जितना विभिन्न व्यक्तियों के बीच बराबरी को। इसका कारण यह कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान का भाव सीधे-सीधे उसके समुदाय की हैसियत पर निर्भर करता है। भारतीय संविधान सभी धार्मिक समुदायों को शिक्षा-संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान करता है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति और समुदाय दोनों की धार्मिक स्वतंत्रता होता है।
(ख) अनुच्छेद 370 और 371
उत्तर :
भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर का विलय इस आधार पर किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत इस प्रदेश की स्वायत्तता की रक्षा की जाएगी। यह एक मात्रा प्रदेश है जिसका अपना संविधान है। ठीक इसी तरह अनुच्छेद 371 ए के तहत पूर्वोत्तर वेफ प्रदेश नगालैंड को विशेष दर्जा प्रदान किया गया। यह अनुच्छेद न सिर्फ नगालैंड में पहले से लागू नियमों को मान्यता प्रदान करता है बल्कि आप्रवास पर रोक लगाकर स्थानीय पहचान की रक्षा भी करता है।
(ग) सकारात्मक कार्य-योजना या अफर्मेटिव एक्शन
उत्तर :
भारत के समाज में कमजोर लोगो व पिछड़े लोगो के विकास के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है जिसका उद्दश्य अफर्मेटिव एक्शन के कार्य से लोगो में समानता स्थापित करना है |
उदहारण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विधायिका में सीटों का आरक्षण। संविधान के विशेष प्रावधानों के कारण सरकारी नौकरियों में आरक्षण |
(घ) सार्वभौम वयस्क मताधिकार
उत्तर :
सार्वभौम वयस्क मताधिकार से अभिप्राय यह है कि 18 वर्ष की आयु के हर व्यक्ति को (स्त्री हो या पुरुष) लोकसभा के लिए मतदान करने का अधिकार होगा। इस रिपोर्ट में ऐसे हर व्यक्ति को नागरिक का दर्जा प्रदान किया गया जो राष्ट्रमंडल की भू-सीमा में पैदा हुआ है और जिसने किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता नहीं ग्रहण की है अथवा जिसके पिता इस भू-सीमा में जन्म हों या बस गए हों। इस तरह, शुरुआती दौर से ही सार्वभौम मताधिकार को अत्यंत महत्त्वपूर्ण और वैधानिक साधन माना गया जिसके सहारे राष्ट्र की जनता अपनी इच्छा का इजहार करती है।
Q5. निम्नलिखित में धर्मनिरपेक्षता का कौन-सा सिद्धांत भारत के संविधान में अपनाया गया है?
(क) राज्य का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
(ख) राज्य का धर्म से नजदीकी रिश्ता है।
(ग) राज्य धर्मों के बीच भेदभाव कर सकता है।
(घ) राज्य धार्मिक समूहों के अधिकार को मान्यता देगा।
(ड) राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की सीमित शक्ति होगी।
उत्तर :
(क) राज्य का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
Q6. निम्नलिखित कथनों को सुमेलित करें -
(क) विधवाओं के साथ किए जाने वाले बरताव की आलोचना की आज़ादी।
उत्तर :
(i) आधरभूत महत्व की उपलब्धि
(ख) संविधान-सभा में फैसलों का स्वार्थ के आधार पर नहीं बल्कि तर्क के आधार पर लिया जाना।
उत्तर :
(ii) प्रक्रियागत उपलब्धि
(ग) व्यक्ति के जीवन में समुदाय के महत्त्व कम स्वीकार करना।
उत्तर :
(iv) उदारवादी व्यक्तिवाद
(घ) अनुच्छेद 370 और 371
उत्तर :
(v)धर्म-विशेष की ज़रूरतों के प्रति की संपत्ति में असमान अधिकार पर ध्यान देना|
(ड) महिलाओं और बच्चों को परिवार |
उत्तर :
(iii) लैंगिक - न्याय की उपेक्षा
Q7. यह चर्चा एक कक्षा में चल रही थी। विभिन्न तर्कों को पढ़ें और बताएँ कि आप इनमें किस-से सहमत हैं और क्यों?
जयेश - मैं अब भी मानता हूँ कि हमारा संविधान एक उधार का दस्तावेज है।
सबा - क्या तुम यह कहना चाहते हो कि इसमें भारतीय कहने जैसा कुछ है ही नहीं? क्या मूल्यों और विचारों पर हम ‘भारतीय’ अथवा ‘पश्चिमी’ जैसा लेबल चिपका सकते हैं? महिलाओं और पुरुषों की समानता का ही मामला लो। इसमें ‘पश्चिमी’ कहने जैसा क्या है? और, अगर ऐसा है भी तो क्या हम इसे महज पश्चिमी होने के कारण खारिज कर दें?
जयेश - मेरे कहने का मतलब यह है कि अंग्रेजों से आज़ादी की लड़ाई लड़ने के बाद क्या हमने उनकी संसदीय-शासन की व्यवस्था नहीं अपनाई?
नेहा - तुम यह भूल जाते हो कि जब हम अंग्रेजों से लड़ रहे थे तो हम सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ थे। अब इस बात का, शासन की जो व्यवस्था हम चाहते थे उसको अपनाने से कोई लेना-देना नहीं, चाहे यह जहाँ से भी आई हो।
उत्तर :
उपरोक्त वाक्यों में दिए गए जयेश व नेहा के बीच विचार विमर्श से कहा जा सकता है कि काफी हद तक दोनों ही ठीक है | जयेश का कथन सही है कि हमारा संविधान उधार का दस्तावेज है क्योकी हमने अनेक संस्थाएं विदेश से ली है हमने इन विदेशी देशों की संस्थाओं को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढाला है |
नेहा का कथन भी सही है कि भारतीय संविधान में सभी कुछ विदेशी नहीं है | भारतीय भी बहुत कुछ है इनमे हमारी प्रथाएँ परम्पराएं व इतिहास का प्रभाव है जिनसे संविधान प्रभावित होता है भारत सरकार अधिनियम 1935 व नेहरू रिपोर्ट का भारतीय संविधान पर गहरा प्रभाव है |
Q8. ऐसा क्यों कहा जाता है कि भारतीय संविधान को बनाने की प्रक्रिया प्रतिनिधिमूलक नहीं थी? क्या इस कारण हमारा संविधान प्रतिनिध्यात्मक नहीं रह जाता? अपने उत्तर के कारण बताएँ।
उत्तर :
भारतीय संविधान सभा प्रतिनिध्यात्मक नहीं थी | यह बात कुछ सीमा तक ठीक है क्योंकि इसका चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से नही किया गया था | यह 1946 के चुनाव पर गठित विधान सभाओं के द्वारा अप्रत्यक्ष तरीके से गठित की गए थी | इस चुनाव में व्यस्क मताधिकार भी नहीं दिया गया था | उस समय सिमित मताधिकार प्रचलित था | इसमें काफी लोगो को मनोनीत किया गया था परन्तु यह भी कहना होगा की उन परिस्थियाँ में इससे अधिक संभव भी नहीं था | उस प्रतिनिधित्व देने के लिए सदस्यों को मनोनीत भी किया गया | उन परिस्थियों में प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली थी |
Q9. भारतीय संविधान की एक सीमा यह है कि इसमें लैंगिक-न्याय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। आप इस आरोप की पुष्टि में कौन-से प्रमाण देंगे। यदि आज आप संविधान लिख रहे होते, तो इस कमी को दूर करने के लिए उपाय के रूप में किन प्रावधानों की सिपफारिश करते?
उत्तर :
भारतीय संविधान में लैंगिक न्याय के लिए कुछ नहीं दिया गया है इसी कारण से समाज में अनेक रूपों में लैंगिक अन्याय व्याप्त है | तथापि भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के भाग अनुच्छेद 14,15,और 16 में यह कहा गया है कि लिंग के आधार पर कानून के सामने सार्वजनिक स्थान पर व रोजगार के क्षेत्र में भेदभाव नही किया जा सकता है | राज्य की निति निर्देशक तत्वों के अध्याय में महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक न्यायोचित विकास की व्यवस्था की गयी है | समान वेतन कि व्यवस्था की गयी है |
Q10. क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि - ‘एक गरीब और विकासशील देश में कुछ एक बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकार मौलिक अधिकारों की केन्द्रीय विशेषता के रूप में दर्ज करने के बजाए राज्य की नीति-निर्देशक तत्वों वाले खंड में क्यों रख दिए गए - यह स्पष्ट नहीं है।’ आप क्या जानते है सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को नीति-निर्देशक तत्व वाले खंड में रखने के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर :
भारतीय संविधान के तृतीय भाग में अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन क्या गया है जो मौलिक अधिकार इस भाग में है उनका स्वरुप राजनितिक सांस्कृतिक व नागरिक हैं तथा आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकार में स्थान नही किया गया है |
भारतीय संविधान के चौथे भाग में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य की निति निर्देशक तत्वों का वर्णन किया गया है जिसमे नागरिकों के लिए सामजिक आर्थिक सुविधाओं का वायदा किया गया है जिसमे रोजगार विकास आर्थिक सुरक्षा व समान व वुचित वेतन की व्यवस्था की गयी है | ये सभी आर्थिक सुविधाएँ अधिकार के रूप में नहीं केवल वायदे के रूप में दी गई है | इसका यह करण है कि जिस समय देश आज़ाद हुआ उस समय हमारे पास पर्याप्त मात्रा में आर्थिक स्रोत नहीं थीं |
भारतीय नागरिकों के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक समझी गयी परन्तु जिनको अधिकार के रूप में नहीं किया गया है | इनमे सामजिक व आर्थिक अधिकार व सुविधाएँ भी शामिल है |
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :-
Q1. भारतीय संविधान की आलोचनाएँ किन रूपों में की जाती हैं?
उत्तर : भारतीय संविधान की कई आलोचनाएँ हैं। इनमें से तीन मुख्य है :-
(क) यह संविधान अस्त-व्यस्त है।
(ख) इसमें सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी है।
(ग) यह संविधान भारतीय परिस्थितियों के अनुवूफल नहीं है।
Q2. संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के नजरिये से हमारा क्या आशय है?
उत्तर : संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के नजरिये से हमारा आशय तीन बैटन से है:-
(1) पहली बात, संविधान कुछ अवधारणाओं के आधार पर बना है। इन अवधारणाओं की व्याख्या हमारे लिए ज़रूरी है। इसका मतलब यह कि हम संविधान में व्यवहार किए गए पदों, जैसे - ‘अधिकार’, ‘नागरिकता’, ‘अल्पसंख्यक’ अथवा ‘लोकतंत्र’ के संभावित अर्थ के बारे में सवाल करें।
(2) संविधान की बुनियादी अवधारणाओं की हमारी व्याख्या से मेल खाती है। संविधान का निर्माण जिन आदर्शों की बुनियाद पर हुआ है उन पर हमारी गहरी पकड़ होनी चाहिए।
(3) भारतीय संविधान को संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धांतिक रूप सेहम बता सके कि ये आदर्श कहाँ तक और क्यों ठीक हैं तथा आगे उनमें कौन-से सुधार किए जा सकते हैं। किसी मूल्य को अगर हम संविधान की बुनियाद बनाते हैं, तो हमारे लिए यह बताना ज़रूरी हो जाता है कि यह मूल्य सही और सुसंगत क्यों है। इसके बगैर संविधान के निर्माण में किसी मूल्य को आधार बनाना एकदम अधूरा कहा जाएगा। संविधान के निर्माताओं ने जब भारतीय समाज और राज-व्यवस्था को अन्य मूल्यों के बदले किसी खास मूल्य-समूह से दिशा-निर्देशित करने का फैसला किया, तो ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि उनके पास इस मूल्य-समूह को जायज ठहराने के लिए कुछ तर्क मौजूद थे |
Q3. जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 में क्या कहा गया है वर्णन कीजिए |
उत्तर : जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 में कहा गया है -
1. न्याय और सुसंगत व्यवस्था पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय शांति की ईमानदारी से कामना करते हुए जापान के लोग राष्ट्र के संप्रभु अधिकार के रूप में प्रतिष्ठित युद्ध और अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए धमकी अथवा बल प्रयोग से सदा-सर्वदा के लिए दूर रहेंगे।
2. उपर्युक्त अनुच्छेद के लक्ष्यों को पूरा करने की बात ध्यान में रखते हुए थल-सेना, नौ-सेना और वायु सेना तथा युद्ध के अन्य साजो-सामान कभी भी नही रखे जाएगे।
Q4. जापान के संविधान का को क्या कहा जाता है तथा यहाँ का संविधान किस दर्शन पर आधारित है?
उत्तर : सन् 1947 के जापानी संविधान के बोलचाल में ‘शांति संविधान’ कहा जाता है। इसकी प्रस्तावना में कहा गया है - ‘‘हम, जापान के लोग हमेशा के लिए शांति की कामना करते हैं और हम लोग मानवीय रिश्तों का नियंत्रण करने वाले उच्च आदर्शों के प्रति सचेत हैं’’। जापान के संविधान का दर्शन शांति पर आधारित है|
Q5.संविधान के दर्शन का क्या आशय है?
उत्तर : संविधान के दर्शन से आशय है संविधान के प्रति केवल कानूनी नजरिया अपनाया जा सकता है न कि नैतिक या राजनीतिक दर्शन का नजरिया। हर कानून में नैतिक तत्व नहीं होता किंतु बहुत-से कानून ऐसे हैं जिनका हमारे मूल्यों और आदर्शों से गहरा संबंध है।
उदाहरण के लिए कोई कानून भाषा अथवा धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव की मनाही कर सकता है। इस तरह का कानून समानता के विचार से जुड़ा है। यह कानून इसलिए बना है क्योंकि हम लोग समानता को मूल्यवान मानते हैं।
Q6.भारत के संविधान में धर्म और राज्य को एकदम अलग रखने के मुख्यधारा के नजरिए का उद्देश्य क्या है?
उत्तर : इसका उद्देश्य है व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा। जो राज्य संगठित धर्म को समर्थन देता है वह पहले से ही मजबूत धर्म को और ताकतवर बनाता है। जब धार्मिक संगठन व्यक्ति के धार्मिक जीवन का नियंत्रण करने लगते हैं, जब वे यह तक बताने लगें कि किसी व्यक्ति को ईश्वर से किस तरह जुड़ाव रखना चाहिए, कैसे पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए, तो व्यक्ति के पास इस स्थिति में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य से अपेक्षा रखने का विकल्प होना चाहिए।
Q7. व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता से अभिप्राय यह है कि किसी व्यक्ति को किसी अन्य धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता से है | राज्य को चाहिए कि वह न तो धर्म की मदद करे और न ही उसे बाधा पहुँचाए। और राज्य के लिए धर्म से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखना ज़रूरी है तथा राज्य को चाहिए कि नागरिकों को अधिकार प्रदान करते हुए वह धर्म को आधार न बनाए।
उदहारण के लिए ,पश्चिमी दुनिया में ईसाई धर्म कई शाखाओं में बँट गया और प्रत्येक शाखा का अपना चर्च था।
Q8. भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का क्या अर्थ है ?
उत्तर : भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ है धर्म से अनुमोदित रिवाज मसलन छुआछूत व्यक्ति को उसकी बुनियादी गरिमा और आत्म-सम्मान से वंचित करते हैं। इन रिवाजों की पैठ इतनी गहरी और व्यापक होती थी कि राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप के बिना इसके खात्मे की उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। राज्य को धर्म के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करना ही पड़ा। ऐसे हस्तक्षेप हमेशा नकारात्मक नहीं होते है । राज्य ऐसे में धार्मिक समुदायों की मदद भी कर सकता है।
उदाहरण के लिए , धार्मिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा-संस्थान को वह धन दे सकता है |
Q9. भारतीय संविधान के उपलब्धियों का वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारतीय संविधान के उपलब्धियों का वर्णन निम्न प्रकार से की जा सकती है:-
(i) हमारे संविधान ने उदारवादी व्यक्तिवाद को एक शक्ल देकर उसे मजबूत किया है। यह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह सब एक ऐसे समाज में किया गया जहाँ सामुदायिक जीवन-मूल्य व्यक्ति की स्वायत्तता को कोई महत्व नहीं देते अथवा शत्रुता का भाव रखते हैं।
(ii) हमारे संविधान ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आँच लाए बगैर सामाजिक न्याय के सिद्धांत को स्वीकार किया है। जाति आधारित ‘सकारात्मक कार्य-योजना (affirmative action programme) के प्रति संवैधानिक वचन बद्धता से प्रकट होता है कि भारत दूसरे राष्ट्रों की तुलना में कहीं आगे है। संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य-योजना सन् 1964 के नागरिक अधिकार आंदोलन के बाद आरंभ हुई जबकि भारतीय संविधान ने इसे लगभग दो दशक पहले ही अपना लिया था।
(iii) विभिन्न समुदायों के आपसी तनाव और झगड़े की पृष्ठभूमि के बावजूद भारतीय संविधान ने समूहगत अधिकार (जैसे - सांस्कृतिक विशिष्टता की अभिव्यक्ति का अधिकार) प्रदान किए हैं। हमारे संविधान निर्माता उस चुनौती से निपटने के लिए बहुत पहले से तैयार थे जो चार दशक बाद बहु-संस्कृतिवाद के नाम से जानी गई।
Q10.धर्म और राज्य को अलग रखने के मुख्यधारा के उद्देश्य क्या है? वर्णन कीजिए |
उत्तर : इसका उद्देश्य यह है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा।
जो राज्य संगठित धर्म को समर्थन देता है वह पहले से ही मजबूत धर्म को और ताकतवर बनाता है। जब धार्मिक संगठन व्यक्ति के धार्मिक जीवन का नियंत्रण करने लगते हैं, तब किसी व्यक्ति को ईश्वर से किस तरह जुड़ाव रखना चाहिए, कैसे पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए, तो व्यक्ति के पास इस स्थिति में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य से अपेक्षा रखने का विकल्प होना चाहिए। इसलिए, व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए ज़रूरी है कि राज्य धार्मिक संगठनों की सहायता न करे।
Q11. भारतीय संविधान के सीमाएं क्या है उसका वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारतीय संविधान के कुछ सीमाएं निम्नलिखित है:-
- पहली बात यह कि भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीयकृत है।
- दूसरे, इसमें लिंगगत - न्याय के कुछ महत्त्वपूर्ण मसलों खासकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।
- तीसरे, यह बात स्पष्ट नहीं है कि एक गरीब और विकासशील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक - आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति-निर्देशक तत्व वाले खंड में क्यों डाल दिया गया |
Q12. भारतीय उदारवाद की दो धाराएं कौन सी है ?
उत्तर : भारतीय उदारवाद की दो धाराएँ हैं :-
- पहली धारा की शुरुआत राममोहन राय से होती है। उन्होंने व्यक्ति के अधिकारों पर जोर दिया, खासकर महिलाओं के अधिकार पर।
- दूसरी धारा में स्वामी विवेकान्द, के सी सेन और जस्टिस रानाडे जैसे चिंतक शामिल हैं|इन चिंतकों ने पुरातनी हिन्दू धर्म के दायरे में सामाजिक न्याय का जज्बा जगाया। विवेकान्द के लिए हिन्दू समाज की ऐसी पुर्रचना कर पाना उदारवादी सिद्धांतों के बगैर संभव नही होता।
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राजनितिक विज्ञान - I Chapter List
Chapter 1. संविधान क्यों और कैसे
Chapter 2. भारतीय संविधान में अधिकार
Chapter 3. चुनाव और प्रतिनिधित्व
Chapter 4. कार्यपालिका
Chapter 5. विधायिका
Chapter 6. न्यायपालिका
Chapter 7. संघवाद
Chapter 8. स्थानीय शासन
Chapter 9. संविधान-एक जीवंत दस्तावेज
Chapter 10. संविधान का राजनितिक दर्शन
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