Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति | topic-1 Political Science-II class 12
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति | topic-1 Political Science-II class 12
topic-1
नियोजन का अर्थ : नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी है | कुछ विशेष उदेश्यों की प्राप्ति के लिए विधि निर्धारण करना ही नियोजन कहलाता है |
हडसन के अनुसार नियोजन की परिभाषा : "भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज नियोजन है |"
मिलेट के अनुसार नियोजन की परिभाषा : प्रशासकीय कार्य के उदेश्यों को प्राप्त करना और निर्धारण करने के साधनों पर विचार करना नियोजन कहलाता है |
हैरिस के अनुसार नियोजन की परिभाषा : आय तथा कीमत के सन्दर्भ की गति में साधनों के बंटवारे को प्राय: नियोजन कहते हैं |
भारत के विकास का अर्थ :
(i) आर्थिक संवृद्धि के साथ विकास
(ii) आर्थिक-सामाजिक न्याय के साथ विकास
भारत के विकास का मॉडल :
(i) उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल - यह मॉडल यूरोप के अधिकतर देशों और अमेरिका में यह मॉडल अपनाया गया था |
(ii) समाजवादी मॉडल - यह मॉडल सोवियत रूस में अपनाया था |
भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया जिसमें सार्वजानिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था |
राजनितिक टकराव :
(i) जनता से जुडी समस्याओं पर अंतिम फैसले जन-प्रतिनिधियों को ही लेना चाहिए क्योंकि जन-प्रतिनिधि जनता की भावनाओं को समझते हैं |
(ii) जो फैसले लिए गए उसके राजनितिक परिणाम भी सामने आए |
(iii) राजनितिक फैसलों के लिए राजनितिक दलों से सलाह-मशविरा करना साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करना|
(iv) टकराव के पीछे विकास की धारणा का अलग-अलग होना होता है |
विकास के लिए राजनितिक सहमति : इस बात पर सहमति थी कि आर्थिक विकास और सामाजिक-आर्थिक न्याय को केवल व्यवसायी, उद्योगपति व किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता | सरकार को भूमिका निभानी पड़ेगी |
विकास की धारणाएँ :
(i) हर कोई विकास चाहता है परन्तु जनता के विभिन्न तबकों के लिए विकास के अर्थ अलग-अलग है |
(ii) पश्चिमी देशों के विकास को इस देश में विकास का पैमाना माना गया |
(iii) विकास का अर्थ था ज्यादा-से-ज्यादा आधुनिक होना और आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना |
(iv) इस तरह के आधुनिकीकरण को संवृद्धि, भौतिक प्रगति और वैज्ञानिक तर्कबुद्धि का पर्यायवाची माना जाता था |
(v) इससे विकसित, विकासशील और अविकसित की अवधारणा पैदा हुई |
भारत में विकास के सोवियत मॉडल के पैरोकार :
उस वक्त हिंदुस्तान में बहुत से लोग विकास के सोवियत मॉडल से गहरे तौर पर प्रभावित थे | ऐसे लोगों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और खुद कांग्रेस के नेहरू तक शामिल थे | अमेरिकी तर्ज पर विकास के पूंजीवादी मॉडल के पैरोकार बहुत कम थे |
विकास के लिए राष्ट्रिय आम सहमति :
(i) आजाद भारत की सरकार के आर्थिक सरोकार अंग्रेजी हुकूमत के आर्थिक सरोकारों से एकदम अलग होगी |
(ii) आजाद भारत की सरकार अंग्रेजी हुकूमत की तरह संकुचित व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए काम नहीं करेगी |
(iii) गरीबी मिटाने और सामाजिक-आर्थिक पुनर्वितरण के काम का मुख्य जिम्मा सरकार का होगा |
(iv) कुछ लोग औद्योगीकरण को उचित मानते थे तो कुछ कृषि का विकास करना और ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर करना सर्वाधिक जरुरी मानते थे |
खुली अर्थव्यवस्था के पैरोकार : कुछ निवेशक मसलन उद्योगपति और बड़े व्यापारिक उद्यमी नियोजन के पक्ष में नहीं थे | वे एक खुली अर्थव्यवस्था चाहते थे जहाँ पूंजी के बहाव में सरकार का कोई अंकुश न हो | लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ |
बोम्बे प्लान : 1944 में उद्योगपतियों का एक तबका एकजुट होकर देश में नियोजन अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया | इसे बोम्बे प्लान कहा जाता है |
बोम्बे प्लान का उदेश्य :
(i) सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए |
(ii) इस तरह चाहे दक्षिणपंथी हो अथवा वामपंथी, उस वक्त सभी चाहते थे कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चले |
(iii) इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया |
योजना आयोग : भारत के आजाद होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया | प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने | भारत अपने विकास के लिए कौन-सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा-यह फैसला करने में इस संस्था ने केन्द्रीय और सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाई |
योजना आयोग की कार्यविधि : '
(i) सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना |
(ii) भारत-सरकार अपनी तरफ से एक दस्तवेज तैयार करेगी जिसमें अगले पांच सालों के ;लिए उसकी आमदनी और खर्च की योजना होगी |
(iii) इस योजना के अनुसार केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया |
(iv) एक हिस्सा गैरयोजना-व्यय का था | इसके अंतर्गत सालाना आधार पर दिनदैनिक मदों पर खर्च करना था | दूसरा हिस्सा योजना व्यय था |
प्रथम पंचवर्षीय योजना की विशेषताएँ : (1951-1956)
(i) यह योजना 1951 से 1956 तक की थी |
(ii) इसमें ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर था |
(iii) इसी योजना के अंतर्गत बाँध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया |
(iv) भाखड़ा-नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशी आबंटित की गई |
(v) भूमि सुधार पर जोर दिया गया और इसे देश के विकास के लिए बुनियादी चीज माना गया |
विकास के मॉडल
दूसरी पंचवर्षीय योजना की विशेषताएँ :
(i) दूसरी पंचवर्षीय योजना में भरी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया |
(ii) सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए भारी आयत शुल्क लगा दिया |
(iii) इस योजना से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली |
(iv) बिजली, रेलवे, इस्पात, मशीनरी और संचार जैसे उद्योगों सार्वजानिक क्षेत्र में विकसित किया गया |
पंचवर्षीय योजनाओं के साथ समस्याएँ/कठिनाइयाँ :
(i) भारत प्रौध्योगोकी का लिहाज से पिछड़ा होना |
(ii) विश्व बाजार से पौद्योगिकी खरीदने में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का खर्च होना |
(iii) उद्योगों का कृषि की अपेक्षा निवेश को ज्यादा आकर्षित करना जिससे खाद्यान्न संकट का खतरा|
(iv) उद्योग और कृषि के बीच संतुलन |
केरल मॉडल : केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया उसे केरल मॉडल कहते हैं | इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि-सुधार, कारगर खाध्य वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया गया | केरल में प्रतिव्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है और यहाँ औद्योगिक-आधार भी तुलनात्मक रूप से कमजोर रहा है | इसके बावजूद केरल में साक्षरता शत-प्रतिशत है |
विकास के पूंजीवादी मॉडल : पूंजीवादी मॉडल में विकास का काम पूर्णतया निजी क्षेत्रों के भरोसे होता है और सभी योजनाएँ लाभ के उदेश्य से बनाई जाती है |
समाजवादी मॉडल : समाजवादी मॉडल वह मॉडल है उत्पादन के सभी क्षेत्रों पर राज्य का नियत्रण होता है और इसमें निजी सम्पति को ख़त्म कर दिया जाता है | इसमें योजनायें जन-कल्याण के उदेश्य से बनायें जाते हैं |
मिश्रित अर्थव्यवस्था : चूँकि भारत ने विकास के दोनों मॉडलों को मिले-जुले रूप को अपनाया इसी कारण भारत को मिश्रित-अर्थव्यवस्था कहा जाता है |
पूंजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल में अंतर :
पूंजीवादी मॉडल | समाजवादी मॉडल |
(1) इसमें उत्पादन इकाइयाँ निजी हाथों में होती है | |
(1) इसमें उत्पादन इकाइयाँ राज्य के हाथों में होती हैं | |
(2) इसमें योजनाएँ लाभ के उदेश्य से बनाए जाते हैं | |
(2) इसमें योजनाएँ लोक-कल्याण के उदेश्य से बनाए जाते है | |
(3) इसमें निजी सम्पति को ख़त्म नहीं किया जाता है | |
(3) इसमें निजी सम्पति को ख़त्म कर दिया जाता है | |
विकास के शुरूआती रणनीतियों को लेकर विवाद :
शुरूआती दौर में विकास की जो रणनीतियाँ अपनाई गई उन पर बड़े सवाल उठे और इसके पीछे विवाद का मुख्य कारन निम्नलिखित था |
(i) भारत जैसे पिछड़ी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किसमें ज्यादा संसाधन लगाए जाये |
(ii) दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि योजनाओं का आभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुंची |
(iii) जे. सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका प्रस्तुत किया था जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यदा जोर था |
(iv) चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केंद्र में रखने के लिए दमदार ढंग से बात उठाई |
(v) कई अन्य लोगों का मानना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकडजाल से छुटकारा नहीं मिल सकता है |
विकास की बुनियाद
विकास की रणनीति के लिए उठाए गए कदम :
(i) भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति अपनाई गई |
(ii) राज्य ने भूमि-सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधन के बँटवारे के लिए कानून बनाए गए |
(iii) नियोजन में सामुदायिक विकास के कार्यक्रम तथा सिंचाई परियोजनाओं पर बड़ी रकम खर्च की बात मानी गई |
विकास को लेकर सरकार की आलोचना :
कुछ ऐसे आलोचक भी थे जो सोंचते थे कि सरकार को जितना करना चाहिए था उतना उसने नहीं किया |
(i) जनता की शिक्षा और स्वास्थ्य के मद में सरकार ने कुछ खास नहीं किया |
(ii) सरकार ने केवल उन्ही क्षेत्रों में हस्तक्षेप किया जहाँ निजी क्षेत्र जाने के लिए तैयार नहीं थे |
(iii) सरकार ने जरुरत से ज्यदा चीजों पर अपना नियंत्रण रखा जिससे भ्रष्टाचार और अकुशलता बढ़ी है |
(iv) सरकार ने निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की |
(v) गरीबों की संख्या में कोई कमी नहीं आई बल्कि गरीबी और बढ़ गई, गरीबों की मदद होनी चाहिए थी |
विकास की बुनियाद : विकास की बुनियाद ढाँचागत संरचना से होती है जिसके लिए भारत के आगामी विकास की बुनियाद पड़ी |
(i) भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास-परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुई |
(ii) सिंचाई और बिजली-उत्पादन के लिए शुरू की गई भाखड़ा-नांगल और हीराकुंड जैसी विशाल बाँध परियोजनाओं की शुरुआत हुई |
(iii) सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भरी उद्योग जैसे - इस्पात-संयत्र, तेल-शोधक कारखाने, विनिर्माण इकाइयाँ, रक्षा उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू किए गए |
(iv) परिवहन और संचार के लिए आधारभूत ढाँचे बनाए गए |
भूमि-सुधार के लिए उठाए गए कदम :
कृषि के क्षेत्र में इस दौरान भूमि-सुधार के लिए गंभीर प्रयास किए गए जो निम्नलिखित है -
(i) जमीदारी प्रथा को समाप्त की गई |
(ii) कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी जमींन रख सकता है इसके लिए भी कानून बनाए गए |
(iii) जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत-बो रहे थे, उन्हें भी ज्यादा क़ानूनी सुरक्षा प्रदान की गई |
(iv) भूमि-सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या कानून बन कर भी कागजों पर बने रहे |
जमींदारी प्रथा समाप्त करने के परिणाम :
(i) चूँकि जमींदारी प्रथा अंग्रेजों के ज़माने से चली आ रही थी, इस कदम से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिनकी कृषि में कोई दिलचस्पी नहीं थी |
(ii) राजनितिक दबदबा कायम रखने वाले जमींदारों की क्षमता घटी |
(iii) इससे जमीनों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करने प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके |
(iv) छोटे किसानों का फायदा हुआ और जमीनों का सही से वितरण हुआ | यह भी तय हुआ की कौन अधिकतम कितनी जमींन रख सकता है |
खाद्य संकट : 1960 के दशक में कृषि की दशा बद से बदतर होती गई | 1965 और 1967 के बीच देश के अनेक हिस्सों में सुखा पड़ा | इसी अवधि में देश ने दो युद्धों का सामना किया और देश विदेशी मुद्रा की कमी से जूझने लगा | इन सभी परिस्थितियों के कारण देश में भारी खाद्यान्न की संकट उत्पन्न हो गई |
खाद्यान्न संकट से उबरने के लिए सरकार द्वारा उठाया गया कदम
अथवा
भारत में हरित क्रांति का कारण :
: खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने एक नई रणनीति अपनाई | जिससे भारत में हरित क्रांति का उद्भव हुआ |
(i) जो इलाके या किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे, शुरू-शुरू में उन्हें ज्यादा सहयता दी गई थी इस निति को छोड़ कर इन इलाकों में ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया गया |
(ii) जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी वहां के किसान समृद्ध थे, इसलिए वहां सिंचाई से साधन को मजबूत किया गया जहाँ सिंचाई सुविधा नहीं थी |
(iii) सरकार ने उच्च गुणवता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराया |
(iv) सरकार ने ये भी गारंटी दी की उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जायेगा |
1960 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में आए बदलाव :
(i) 1960 के दशक में सरकार द्वारा यह फैसला लिया गया कि अर्थव्यवस्था के नियंत्रण और निर्देशन में राज्य और बड़ी भूमिका निभाएगा |
(ii) 1967 के बाद निजी क्षेत्र के उद्योग पर और बाधाएँ आयद हुई | 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया |
(iii) सरकार ने गरीबों की भलाई के लिए अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की |
(iv) इन परिवर्तनों के साथ सरकार का विचारात्मक रुझान समाजवादी नीतियों की तरफ बढ़ा |
1960 के दशक में हुए आर्थिक बदलावों के दुस्परिणाम :
(i) सरकार द्वरा नियोजन का कम तो जारी रहा लेकिन इसके महत्व में कमी आई |
(ii) भारत की अर्थव्यवस्था सालाना 3-3.5 प्रतिशत की धीमी रफ़्तार से बढ़ने लगा |
(iii) सार्वजानिक क्षेत्र के उद्योगों में भ्रष्टाचार और अकुशलता बढ़ने लगा |
(iv) नौकरशाही भी आर्थिक विकास में ज्यादा सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रही थी |
(v) 1980 के दशक के बाद निति-निर्माताओं ने अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम कर दिया |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल ले प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश संबंध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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