Chapter 2. एक दल ले प्रभुत्व का दौर | कांग्रेस Political Science-II class 12
Chapter 2. एक दल ले प्रभुत्व का दौर | कांग्रेस Political Science-II class 12
कांग्रेस
औपनिवेशवाद के चुंगल से आजाद होने बाद भी कई देशों के लोकतंत्र न अपनाने के पीछे तर्क :
(i) इन देशों के नेताओं ने कहा कि हमारा देश अभी लोकतंत्र नहीं अपना सकता क्योंकि राष्ट्रिय एकता हमारी प्राथमिकता है और लोकतंत्र को अपनाने से मतभेद और संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा |
(ii) ऐसे छोटे-मोटे तर्क देकर इन देशों ने अलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था कायम की |
(iii) इन अलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इन देशों में प्रभावी नियंत्रण किसी एक नेता के हाथ में था तो कही एक दल तो कही सता सीधे सेना के हाथ में थी |
भारत में लोकतंत्र स्थापित करने के कारण :
(i) आजाद भारत के नेताओं ने अपने लिए कही ज्यादा कठिन रास्ता चुनने का फैसला किया | हमारे नेताओं ने लोकतंत्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे |
(ii) वे राजनीति को समस्या के रूप में नहीं देखते थे बल्कि वे राजनीति को समस्या के समाधान के रूप में देखते थे |
(iii) लोकतंत्र में उनकी गह्ररी आस्था थी |
चुनाव आयोग का गठन : चुनाव योग का गठन जनवरी 1950 में हुआ | कुमारसेन पहले चुनाव आयुक्त बने |
चुनाव आयोग के गठन के आरंभिक वर्ष में चुनौतियाँ :
(i) चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन
(ii) मतदाता सूची यानी मताधिकार प्राप्त व्यस्क व्यक्तियों की सूची बनाना
(iii) 40 लाख महिलाओं के नाम दर्ज करना शेष था और पहले से दर्ज प्रविष्टियों का पुनरावलोकन |
(iv) ऐसा चुनाव संबंधित कार्य विश्व में कही इतने बड़े स्तर पर नहीं हुए थे उस वक्त देश में 17 करोड़ मतदाता थे | इन्हें 3200 विधायक और 489 सांसद चुनने थे |
(v) 15 प्रतिशत मतदाता साक्षर थे, इस कार्य को पूरा कराने के लिए 3 लाख से अधिक अधिकारीयों और चुनावकर्मियों को प्रशिक्षित किया |
इतिहास का सबसे बड़ा जुआ : भारत में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार का प्रयोग इतने बड़े स्तर पर करना एक बहुत बड़ी चुनौती और एक मुश्किल कार्य था | जिसे लेकर एक हिन्दुस्तानी संपादक ने इसे "इतिहास का सबसे बड़ा जुआ" करार दिया | ओर्गेनाइजर नाम की पत्रिका ने लिखा की "जवाहर लाल नेहरू "अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछतायेंगे कि भारत में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार असफल रहा |"
इंडियन सिविल सर्विस के के अंग्रेज नुमाइंदे का दावा था कि "आने वाला वक्त और अब से कही ज्यादा जानकार दौर बड़े विस्मय से लाखों अनपढ़ लोगों के मतदान की यह बेहूदा नौटंकी देखेगा |"
पहला आम चुनाव : अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 के बीच हुए |
1952 का आम चुनाव एक सफल चुनाव था : इस चुनाव में कुल छ: महीने लगे | चुनाव में उम्मीदवारों के बीच मुकाबला भी हुआ | हारे हुए उम्मीदवारों ने चुनाव को निष्पक्ष बताया | लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की | कुल मतदाताओं के आधे से अधिक लोगों ने मतदान किया | सार्वभौमिक मतदान के इस परिणाम ने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया | देश से बाहर से आए पर्यवेक्षक भी हैरान थे | हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा- "यह बात हर जगह मानी जा रही है कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया है |
कांग्रेस के प्रभुत्व का कारण :
(i) कांग्रेस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत हासिल थी | तब के दिनों में यह एक मात्र पार्टी थी जिसका संगठन पुरे भारत में मजबूत था |
(ii) इस पार्टी में जवाहर लाल नेहरू जैसा लोकप्रिय और करिश्माई नेता था जो चुनाव के समय पार्टी की अगुआई की और पुरे देश का दौरा किया था |
(iii) पहले आम चुनाव में 489 सीटों में से 364 सीटें कांग्रेस ने अकेले जीती थी | दुसरे न० पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विजयी रही जिसने 16 सीटें जीती थी |
(iv) लगभग सभी राज्यों के चुनावों में कांग्रेस विजयी रही और उसी की सरकार बनी |
केरल में कम्युनिस्ट की जीत :
1957 में केरल के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का मुँह देखना पड़ा | इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिली | कुल 126 में से 60 सीटें हासिल हुई और 6 स्वतंत्र उम्मीदवारों का समर्थन मिला | राज्यपाल ने कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता को ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद को सरकार बनाने का न्योता दिया | 1959 में केंद्र सरकार ने संविधान के धारा 356 के अंतर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया | यह फैसला विवादस्पद साबित हुआ |
भारत की विभिन पार्टियाँ
सोशलिस्ट पार्टी :
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन खुद कांग्रेस के भीतर 1934 में युवा नेताओं की एक टोली ने किया था | ये नेता कांग्रेस को ज्यादा-से-ज्यादा परिवर्तनकामी और समतावादी बनाना चाहते थे | कांग्रेस पार्टी ने 1948 में अपने पार्टी संविधान में संसोधन किया ताकि कोई कांग्रेस सदस्य दोहरी सदस्यता न ले सके | इससे कांग्रेस के अन्दर के सोशलिस्ट नेताओं को मजबूरन 1948 में सोशलिस्ट पार्टी बनानी पड़ी |
सोशलिस्ट विचारधारा के नेताओं द्वारा कांग्रेस की आलोचना :
(i) वे कांग्रेस की आलोचना करते थे कि कांग्रेस पूंजीपतियों और जमींदारों का पक्ष ले रही है |
(ii) समाजवादियों को दुबिधा का सामना करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने 1955 में घोषणा दर दिया कि उनका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की रचना करना है |
(iii) राममनोहर लोहिया ने कांग्रेस से अपनी दुरी बढाई और कांग्रेस की आलोचना की |
सोशलिस्ट पार्टी का विभाजन : सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हुए और कुछ मामलों में बहुधा मेल भी हुआ | इस प्रक्रिया में कई समाजवादी दल बने | इन दलों में किसान मजदुर प्रजा पार्टी, जनता पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नाम है | जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, आचार्य नरेन्द्र देव, राममनोहर लोहिया और एस. एम. जोशी समजवादी दलों के नेताओं में प्रमुख थे | मौजूदा दलों में समजवादी पार्टी, जनता दल, राष्ट्रिय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) जनतादल (सेक्युलर) पर सोशलिस्ट पार्टी की छाप है |
एक दल का प्रभुत्व और लोकतंत्र :
भारत में कांग्रेस का शासन भी एक दल के प्रभुत्व जैसा ही है परन्तु कांग्रेस हमेशा से लोकतंत्र को लेकर चली है | जबकि अन्य देशों में भी एक दल का प्रभुत्व रहा है लेकिन ऐसा लोकतंत्र की कीमत पर हुआ है | यह फर्क है भारत में एक दल के प्रभुत्व और दुनिया के अन्य देशों में एक दल के प्रभुत्व में | ह देशों मसलन चीन, क्यूबा, सीरिया के संविधान में सिर्फ एक ही पार्टी को देश में शासन चलाने की अनुमति है | कुछ अन्य देशों जैसे-म्यांमार, बेलारूस और इरीट्रिया में एक पार्टी का प्रभुत्व क़ानूनी और सैन्य कारणों से कायम हुआ है | आज से कुछ साल पहले मक्सिको, दक्षिण कोरिया और ताइवान भी एक पार्टी के प्रभ्त्व वाले देश थे |
बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर : (1891-1956): बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जाति विरोधी आन्दोलन के नेता और दलितों को न्याय दिलाने के संघर्ष के अगुआ थे | वे एक विद्वान और बुद्धिजीवी थे | वे इंडिपेंडेंस लेबर पार्टी के संस्थापक थे | बाद में शिड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की स्थापना की | रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के गठन के योजनाकार थे | इन्हें संविधान निर्माताओं में से एक माना जाता है | संविधान सभा प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे | आज़ादी के बाद नेहरू के पहले मंत्रिमंडल के मंत्री थे | हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर अपनी असहमति दर्ज कराते हुए इस्तीफा दे दिया |
कांग्रेस की स्थापना : कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था | इसकी स्थापना एक रिटायर्ड अंग्रेज अधिकारी ए० ओ० ह्युम ने की थी | उस वक्त यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित-समूह भर थी | लेकिन 20 वीं सदी में यह एक जानआन्दोलन का रूप ले लिया | धीरे-धीरे यह पार्टी एक जानव्यापी राजनितिक पार्टी का रूप ले लिया और जल्द ही राजनितिक व्यवस्था में कांग्रेस ने अपना दबदबा कायम कर लिया | इसमें सभी विचारधारा के लोग जैसे क्रन्तिकारी, शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी, नरमपंथी, दक्षिणपंथी वामपंथी और अनेक राजनितिक विचारधारा के लोग शामिल थे और राष्ट्रिय आन्दोलन में भाग लेते थे |
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया :
रूस के बोल्वेशिक क्रांति से प्रेरित होकर 1920 के दशक में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी-समूह उभरे | 1935 से साम्यवादियों ने कांग्रेस के दायरे में रहकर कार्य किया | कांग्रेस से ये साम्यवादी 1941 के दिसंबर में अलग हुए | इस समय साम्यवादियों ने नाज़ी जर्मन के खिलाफ लड़ रहे ब्रिटेन को समर्थन देने का फैसला किया | अन्य गैर-कांग्रेस पार्टियों की तुलना में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पास सुचारू मिशिनरी, कैडर और समर्पित कार्यकर्त्ता मौजूद थे | इस पार्टी का मानना था कि देश जो 1947 में आजाद हुआ है वह सच्ची आजादी नहीं है | इस विचार के साथ पार्टी तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया | साम्यवादी अपनी बात के पक्ष में जनता का समर्थन हासिल नहीं कर सके और इन्हें सशस्त्र सेंनाओं द्वारा दबा दिया गया | 1951 में साम्यवादियों ने हिंसक क्रांति का रास्ता छोड़ दिया और और आने वाले ऍम चुनाओं में भाग लिया | पहले आम चुनाओं में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 16 सीटें जीती | वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी | इस दल को ज्यादा समर्थन आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और केरल में मिला | इस पार्टी के प्रमुख नेताओं में ए. के. गोपालन, एस. ए. डांगे नम्बूदरीपाद, पी. सी. जोशी, अजय घोष और पी. सुन्दरैया के नाम लिए जाते है |
भारतीय जनसंघ
कांग्रेस का गठबंधनी स्वाभाव :
(i) कांग्रेस की गठ्बंधनी स्वाभाव ने उसे एक असाधारण ताकत दी है |
(ii) किसी भी पार्टी का स्वाभाव गठ्बंधनी हो तो अंदरूनी मतभेदों को लेकर उसमें सहनशीलता भी ज्यादा होती है | ये ऐसा गुण कांग्रेस में था |
(iii) कांग्रेस ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान इन दोनों ही बातों पर अमल किया था | और आज़ादी मिलने के बाद भी इसे जरी रखा |
(iv) इसी कारण अगर कोई समूह पार्टी के अपने रुख से अथवा सत्ता में प्राप्त अपने हिस्से से नाखुश हो तो तब भी वह पार्टी में ही बना रहता था |
(v) अपने गठ्बंधनी स्वाभाव के कारण कांग्रेस विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी और इस स्वाभाव से विभिन्न गुटों को बढ़ावा मिला |
भारतीय जनसंघ :
(i) भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था | श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक-अध्यक्ष थे | इसकी जड़े आज़ादी से पहले राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (RSS) और हिन्दू महासभा में खोजा जा सकता है |
(ii) जनसंघ अपनी विचारधारा और कार्यक्रमों के लिहाज से बाकी दलों से भिन्न थी |
(iii) जनसंघ ने एक देश एक संस्कृति और एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया | इसका मानना था कि देश भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर आधुनिक, प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है |
(iv) जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके अखंड भारत की बात कही | अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के आन्दोलन में यह पार्टी सबसे आगे थी |
(v) चीन ने 1964 में अपना परमाणु परिक्षण किया तो जनसंघ ने भी भारत को अपने परमाणु हथियार तैयार करने की पैरोकारी की |
(vi) यही जनसंघ कालांतर में चल कर भारतीय जनता पार्टी के रूप में उभरा है जिसके नेता पं० दीनदयाल उपाध्याय जी थे |
विपक्षी दलों का उद्भव और लोकतंत्र में उनकी भूमिका :
(i) भारत में बहुदलीय लोकतंत्र व्यवस्था है लेकिन यहाँ कई वर्षों तक एक ही दल का प्रभुत्व रहा | आज़ादी के समय भी बहुत से जिवंत विपक्षी पार्टियाँ थी जो स्वतंत्र रूप से चुनाव में भाग ले रही थी |
(ii) इनमें से कई पार्टियाँ का अस्तित्व 1952 के आम चुनाव के पहले से भी था | इनकी भूमिका 60 और 70 के दशक में महत्वपूर्ण रही है |
(iii) इन पार्टियों की मौजूदगी ने स्वास्थ्य लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है जो लोकतंत्र के लिए जनता को जागरूक किया है |
(iv) इन दलों की मौजूदगी ने हमरी शासन-व्यवस्था के लोकतान्त्रिक चरित्र को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है |
(v) विपक्षी दलों ने शासक-दल पर अंकुश रखा और बहुधा इन दलों के कारण कांग्रेस पार्टी के अन्दर शक्ति-संतुलन बदला और एक दल के प्रभुत्व को जोरदार चुनौती दी है |
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Political Science-II Chapter List
Chapter 1. राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ
Chapter 2. एक दल ले प्रभुत्व का दौर
Chapter 3. नियोजित विकास की राजनीति
Chapter 4. भारत के विदेश संबंध
Chapter 5. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
Chapter 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Chapter 7. जन आन्दोलनों का उदय
Chapter 8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
Chapter 9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
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