Chapter 5. समकालीन दक्षिण एशिया | दक्षिण एशिया Political Science-I class 12
Chapter 5. समकालीन दक्षिण एशिया | दक्षिण एशिया Political Science-I class 12
दक्षिण एशिया
दक्षिण एशिया : बंगलादेश, भूटान, भारत, माल दीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्री लंका आदि देशों को इंगित करने के लिए 'दक्षिण एशिया' पद का उपयोग किया जाता है |
दक्षिण एशिया की भौगोलिक स्थिति :
उत्तर की विशाल हिमालय पर्वत-श्रृंखला, दक्षिण का हिन्द महासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। यह भौगोलिक विशिष्टता ही
इस उप-महाद्वीपीय क्षेत्र के भाषाई, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है | इस क्षेत्र की चर्चा में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है।
दक्षिण एशिया की राजनीति एवं शासन व्यवस्था:
(i) दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनितिक प्रणाली नहीं है |
(ii) अनेक समस्याओं और सीमाओं के बावजूद भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आज़ाद होने के बाद, लोकतान्त्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक कायम है |
(iii) भारत और श्रीलंका एक राष्ट्र के रूप में हमेशा लोकतान्त्रिक रहे है |
(iv) पाकिस्तान और बंगलादेश में लोकतांत्रिक और सैनिक दोनों तरह के नेताओं का शासन रहा है |
(v) भूटान में राजतन्त्र है |
(vi) नेपाल में 2006 तक संवैधानिक राजतन्त्र था और बाद में लोकतंत्र की बहाली हुई थी |
(vii) मालद्विप सन 1968 तक सल्तनत हुआ करता था | अब यहाँ लोकतंत्र है |
दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का अनुभव : दक्षिण एशिया के पाँच देशों में लोकतंत्र को व्यापक जन-समर्थन हासिल है | इन देशों में हर वर्ग और धर्म के आम नागरिक लोकतंत्र को अच्छा मानते है और प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र की संस्थाओं का समर्थन करते हैं | इन देशों ने इन मिथक को तोड़ दिया है कि लोकतंत्र केवल धनी देशों में ही फल-फुल सकता है | अत: दक्षिण एशिया के लोकतंत्र के अनुभवों से लोकतंत्र से लोकतंत्र की वैश्विक कल्पना का दायरा बढ़ा है |
पाकिस्तान में लोकतंत्रीकरण में कठिनाइयाँ : पाकिस्तान में बार-बार सैनिक शासकों द्वारा तख्ता पलट हुआ है, जिसके कारण पाकिस्तान में कभी भी लोकतंत्र स्थायी रूप के कार्य नहीं कर पाया है | पाकिस्तान में लोकतंत्रीकरण के निम्नलिखित कठिनाइयाँ हैं :
(i) यहाँ सेना, धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है | इसके कारण कई बार निर्वाचित सरकारों को गिराकर सैनिक शासन कायम हुआ है |
(ii) पाकिस्तान की भारत के साथ हमेशा से तनातनी रही है, जिसकों भुना कर (फायदा उठाकर) यहाँ के सैनिक शासक या धर्मगुरु लोकतान्त्रिक सरकार में खोट दिखाकर यहाँ की जनता को बताते है की पाकिस्तान की सुरक्षा ख़तरे में है | और सता पर काबिज हो जाते है |
(iii) पाकिस्तान में अधिकांश संगठनों द्वारा सैनिक शासन को जायज ठहराया जाता है |
(iv) पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन चले- इसके लिए कोई खास अंतर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलता। इस वजह से भी सेना को अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए बढ़ावा मिला है।
(v) अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने-अपने स्वार्थों से गुजरे वक्त में पाकिस्तान में सैनिक शासन को बढ़ावा दिया है।
पाकिस्तान पश्चिमी हितों का रखवाला देश : अमरीका तथा पश्चिमी देशों को 'विश्वव्यापी इस्लामी आतंकवाद' से डर लगता है | इन देशों को यह भी डर सताता है कि पाकिस्तान के परमाण्विक हथियार कहीं इन आतंकवादी समूहों के हाथ न लग जाएँ। इन बातों के मद्देनजर पाकिस्तान को ये देश ‘पश्चिम’ तथा दक्षिण एशिया में पश्चिमी हितों का रखवाला मानते हैं।
भारत एवं पाकिस्तान युद्ध : बंगलादेश संकट : - याहिया खान के सैनिक शासन के दौरान पाकिस्तान को बंगला-देश संकट का सामना करना पड़ा | वर्तंमान का बंगला-देश पूर्व का पूर्वी-पाकिस्तान था जो पाकिस्तान एक हिस्सा था | 1971 में भारत के साथ पाकिस्तान का युद्ध हुआ और इस युद्ध के परिणामस्वरुप पूर्वी पाकिस्तान टूटकर स्वतंत्र देश बंगला-देश बना |
बांग्लादेश में लोकतंत्र और बांग्लादेश की समस्या : 1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था। इस क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खि़लाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद ही यहाँ के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध् जताना शुरू कर दिया। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने न्यायोचित प्रतिनिधित्व था राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी की माँग भी उठायी। पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ जन-संघर्ष का नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान ने किया। उन्होंने पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की।
शेख मुजिर्बुहमान की नेतृत्व वाली आवामी लीग को 1970 के चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की सारी सीटों पर विजय मिली | अवामी लीग को सम्पूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत मिल गया | लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान का दबदबा होने के कारण इस सभा को आहूत करने से मना कर दिया और शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया | जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की जिसमें हजारों लोग मारे गए | पूर्वी-पाकिस्तान से भारत में लोगों का पलायन शुरू हो गया और भारत सरकार ने वहां के लोगों के आज़ादी की माँग का समर्थन किया और उन्हें वितीय एवं सैन्य सहायता प्रदान की | इसी के परिणाम स्वरुप पाकिस्तान और भारत के बीच 1971 में युद्ध छिड़ गया | जिसमें पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा |
नेपाल और श्रीलंका
नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना :
(i) नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक यहाँ संवैधनिक राजतंत्र रहा।
(ii) संवैधनिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाते रहे। लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई।
(iii) 1990 में राजा ने एक मजबूत लोकतंत्र-समर्थक आन्दोलन के आगे झुककर नेपाल में एक लोकतांत्रिक संविधान की मांग मान ली |
(iv) 1990 के दशक में नेपाल में माओवादियों का प्रभाव था | माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर दिया | 2002 में राजा ने संसद भंग कर दिया और सरकार गिरा दिया |
(v) अप्रैल 2006 में नेपाल ने देशव्यापी लोकतंत्र के समर्थन में आन्दोलन और प्रदर्शन हुए | अंत में राजा ज्ञानेंद्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल कर दिया | इस प्रतिरोध का नेतृत्व सप्तदलीय गठबंधन (सेवेन पार्टी एल्लाएंस) ने किया |
(vi) वर्त्तमान में नेपाल में लोकतान्त्रिक सरकार है, अब नेपाल का अपना एक संविधान भी बनकर तैयार हो चूका है |
अप्रैल 2006 में नेपाल में जनसंघर्ष : नेपाल के राजा ज्ञानेद्र द्वारा 2002 में नेपाली संसद को भंग कर दिए जाने के बाद अप्रैल 2006 में एक बहुत बड़ा लोकतंत्र के समर्थन में आन्दोलन हुआ | जिसका नेतृत्व यहाँ के सात दलों से बने एक गठबंधन ने किया | यह जनसंघर्ष सफल रहा और राजा को हार माननी पड़ी और संसद को पुन: बहाल करना पड़ा |
नेपाल में माओवाद : नेपाल अतीत से एक हिन्दू-राष्ट्र रहा है और यहाँ राजा का शासन था | लेकिन नेपाल की लोकतान्त्रिक समर्थक पार्टियाँ और यहाँ के माओवादी (चीनी नेता माओ के विचारधारा को मानने वाले) नेताओं ने लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक संविधान के लिए सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना जिससे नेपाल में कई हिंसक प्रदर्शन हुए | इस वजह से राजा की सेना और माओवादी गुरिल्लों के बीच हिंसक लड़ाई भी छिड़ गई।नेपाल में संवैधानिक लोकतंत्र तो स्थापित तो हो गया परन्तु माओवाद का प्रभाव काफी गहरा है | माओवादी समूहों ने सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ देने की बात मान ली है | इनका भारत के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक नहीं रहा है | माओवादी और कुछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत शंकित हैं।
श्रीलंका में लोकतंत्र : श्रीलंका 1948 में आजादी के बाद से ही इसमें लोकतंत्र कायम है | इसके साथ ही श्रीलंका को जातीय संघर्ष जैसे कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा | यह चुनौती न सेना की थी और न राजतंत्र की थी | लोकतंत्र को लेकर श्रीलंका में कोई समस्या नहीं थी | वहां लोकतंत्र बहुत मजबूती के साथ चल रहा है |
श्रीलंका में जातीय संघर्ष : श्रीलंका की आज़ादी के बाद से ही जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा है | श्रीलंका में दो जातीय समूह है |
(i) सिंहली : ये श्रीलंका के मूल निवासी है |
(ii) तमिल : ये लोग भारत छोड़कर श्रीलंका में आ बसे तमिल है |
इन दोनों समूहों के बीच अलग राष्ट्र को लेकर सघर्ष जारी है | यहाँ तमिलों का प्रतिनिधित्व करने वाला 'लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम' (लिट्टे) श्रीलंकाई सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है | श्रीलंका के उत्तर पूर्वी हिस्से पर लिट्टे का नियंत्रण था |
श्रीलंका में जातीय संघर्ष का कारण :
(i) श्रीलंका की राजनीती पर बहुसंख्यक सिंहली जातियों का दबदबा है जो तमिल आबादी के खिलाफ है |
(ii) सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना था कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई ‘रियायत’ नहीं बरती जानी चाहिए क्योंकि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है।
(iii) श्रीलंका में तमिलों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, यहाँ ये समुदाय उपेक्षित है जिससे एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई और लिट्टे जैसे संगठन का जन्म हुआ |
(iv) इन दो जातियों का आपसी संघर्ष गृह युद्ध का रूप ले चूका है |
श्रीलंका में तमिलों की मांग :
(i) श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र बनाया जाय।
(ii) वर्त्तमान में श्रीलंका से लिट्टे और उसके समर्थकों का सफाया हो चूका है और अब यहाँ पर तमिल जनता राजनीती में अपना प्रतिनिधित्व चाहती है |
श्रीलंकाई संघर्ष में भारतीय हस्तक्षेप का कारण :
(i) श्रीलंका की समस्या भारतवंशी लोगों से जुड़ी है। भारत की तमिल जनता का भारतीय सरकार पर भारी दबाव है कि वह श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करे।
(ii) भारतीय सरकार ने समय-समय पर तमिलों के सवाल पर श्रीलंका की सरकार से बातचीत की कोशिश की है | लेकिन 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका के तमिल मसले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई।
(iii) भारत की सरकार ने श्रीलंका से एक समझौता किया तथा श्रीलंका सरकार और तमिलों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए भारतीय सेना को भेजा।
(iv) भारतीय सेना लिट्टे के साथ संघर्ष में फंस गई और श्रीलंका की जनता ने भी भारतीय सेना की उपस्थित का विरोध किया इसे उन्होंने श्रीलंका के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप माना |
(v) भारत ने श्रीलंका में जो सेना भेजा था उसे शांति सेना का नाम दिया गया था | 1989 में भारत ने अपनी ‘शांति सेना’ लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली।
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति और विकास :
(i) संघर्षों की चपेट में होने के बाद भी श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है।
(ii) जनसंख्या की वृद्धि-दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण करने वाले विकासशील देशों में श्रीलंका प्रथम है।
(iii) दक्षिण एशिया के देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।
(iv) गृहयुद्ध से गुजरने के बावजूद कई सालों से इस देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष :
(i) कश्मीर समस्या : विभाजन के तुरंत बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले पर लड़ पड़े | चूँकि विभाजन के समय कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था और उसका अधिकारिक विलय भारत में हुआ था | जबकि पाकिस्तान उस पर नाजायज अपना दावा करता है | इस समस्या को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच 1947-48 और 1965 में युद्ध हो चूका है | 1948 के युद्ध के फलस्वरूप कश्मीर के दो हिस्से हो गए। एक हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाया जबकि दूसरा हिस्सा भारत का जम्मू-कश्मीर प्रान्त बना। कश्मीर समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है | आज इस क्षेत्र में आतंकवाद एक बहुत बड़ी समस्या है |
(ii) बंगलादेश समस्या : 1971 में बांग्लादेश की आतंरिक समस्याएँ आई जिसको लेकर बंगलादेश के नेताओं ने भारत से हस्तक्षेप और समर्थन माँगा | भारत ने सैन्य सहायता दी और बांग्लादेशियों का समर्थन किया | इससे भारत -पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ |
भारत विरोधी गतिविधियाँ :
(a) पाकिस्तान पर आरोप है कि वह कश्मीरी उग्रवादियों को हथियार, प्रशिक्षण और धन देता है तथा भारत पर आतंकवादी हमले के लिए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है।
(b) हमले के लिए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। भारत सरकार का यह भी मानना है कि पाकिस्तान ने 1985-1995 की अवधि में खालिस्तान-समर्थक उग्रवादियों को हथियार तथा गोले-बारुद दिए थे।
(c) पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) पर बांग्लादेश और नेपाल के गुप्त ठिकानों से पूर्वोत्तर भारत में भारत-विरोधी अभियानों में संलग्न होने का आरोप है।
सिन्धु-जल-संधि : भारत और पाकिस्तान के बीच नदी- जल के बँटवारे के सवाल पर भी तनातनी हुई है। 1960 तक दोनों के बीच सिन्धु जल को लेकर तीखे विवाद हुए। संयोग से, 1960 में विश्व बैंक की मदद से भारत और पाकिस्तान ने ‘सिंधु-जल-संधि' पर दस्तख़त किए और यह संधि भारत-पाक के बीच कई सैन्य संघर्षों के बावजूद अब भी कायम है।
भारत और बंगला देश के बीच समस्या :
(i) बांग्लादेश और भारत के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के जल में हिस्सेदारी सहित कई मुद्दों पर मतभेद हैं।
(ii) इसके साथ और भी कई समस्याएं हैं जैसे - भारत में अवैध् आप्रवास पर ढाका के खंडन |
(iii) भारत-विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन,
(iv) भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश के इंकार |
(v) ढाका के भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने के फैसले तथा म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देने जैसे मसले शामिल हैं।
पूरब चलो निति : पूरब चलो निति भारत सरकार की वह निति है जिसके द्वारा वह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से अपने संबंध और आर्थिक संबंध अच्छा बनाना चाहती है | इसी निति के अंतर्गत बांग्लादेश, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर और मलेशिया से संपर्क साधने की बात है | इस बात के भी प्रयास किए जा रहे हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरतकर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाए।
भारत और नेपाल संबंध : भारत और नेपाल के बीच मधुर संबंध् हैं और दोनों देशों के बीच एक संधि हुई है। इस संधि के तहत दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं। ख़ास संबंधें के बावजूद दोनों देश के बीच अतीत में व्यापार से संबंधित मनमुटाव पैदा हुए
हैं। नेपाल की चीन के साथ दोस्ती को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता जतायी है। नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्त्वों के खिलाफ कदम नहीं उठाती। इससे भी भारत नाखुश है।
बहरहाल भारत-नेपाल के संबंध् एकदम मजबूत और शांतिपूर्ण है। विभेदों के बावजूद दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाध्न, बिजली उत्पादन और जल प्रबंध्न ग्रिड के मसले पर एक साथ हैं। नेपाल में लोकतन्त्र की बहाली से दोनों देशों के बीच संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद बंधी है।
भारत और भूटान संबंध : भारत के भूटान के साथ भी बहुत अच्छे रिश्ते हैं और भूटानी सरकार के साथ कोई बड़ा झगड़ा नहीं है। भूटान से अपने काम का संचालन कर रहे पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों और गुरिल्लों को भूटान ने अपने क्षेत्र से खदेड़ भगाया। भूटान के इस कदम से भारत को बड़ी मदद मिली है। भारत भूटान में पनबिजली की बड़ी परियोजनाओं में हाथ बँटा रहा है। इस हिमालयी देश के विकास कार्यों के लिए सबसे ज्यादा अनुदान भारत से हासिल होता है।
दक्षेस (साउथ एशियन एसोशियन फॉर रिजनल कोऑपरेशन SAARC)
दक्षेस (साउथ एशियन एसोशियन फॉर रिजनल कोऑपरेशन SAARC) : दक्षिण एशियाई देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों से आपस में सहयोग करने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। इसकी शुरुआत 1985 में हुई। दुर्भाग्य से विभेदों की मौजूदगी के कारण दक्षेस को ज्यादा सफलता नहीं मिली है। दक्षेस के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार-क्षेत्र समझौते (SAFTA) पर दस्तख़त किये। इसमें पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है।
दक्षेस का उदेश्य :
(i) पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना।
(ii) दक्षिण एशिया में शांति और परस्पर सहयोग कायम करना |
(iii) इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को बीस प्रतिशत कम कर दिया जाए।
साफ्टा (SAFTA) : यह दक्षेश देशों के बीच होने वाला एक संधि है इसका पूरा नाम दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र है | इस समझौते पर 2004 में हस्ताक्षर हुए और यह समझौता 1 जनवरी 2006 से प्रभावी हो गया। इस समझौते का लक्ष्य है कि इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को बीस प्रतिशत कम
कर दिया जाए।
दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करती बाहरी शक्तियाँ :
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Political Science-I Chapter List
Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर
Chapter 2. दो ध्रुवीयता का अंत
Chapter 3. समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व
Chapter 4. सत्ता के वैकल्पिक केंद्र
Chapter 5. समकालीन दक्षिण एशिया
Chapter 6. अन्तराष्ट्रीय संगठन
Chapter 7. समकालीन विश्व में सुरक्षा
Chapter 8. पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Chapter 9. वैश्वीकरण
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