Chapter 2. दो ध्रुवीयता का अंत | सोवियत संघ का विघटन Political Science-I class 12
Chapter 2. दो ध्रुवीयता का अंत | सोवियत संघ का विघटन Political Science-I class 12
सोवियत संघ का विघटन
सोवियत संघ का विघटन
- शीतयुद्ध के प्रतीक 1961 में बनी बर्लिन की दीवार को 9 नवंबर 1989 को जनता द्वारा तोड़ दिया गया।
- 25 दिसम्बर 1991 को सोवियत संघ का विघटन हो गया।
- बर्लिन की दीवार पूँजीवादी दुनिया और साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी।
- मार्च 1990 लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला गणराज्य बना |
- जून 1990 में रुसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की |
- जून 1991 में येल्तसिन का कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा और रूस के राष्ट्रपति बने |
- 25 दिसंबर 1991 में गोर्वाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया और इसी के साथ सोवियत संघ का अंत हो गया |
सोवियत संघ का जन्म : 1917 की रुसी बोल्वेशिक क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ (U.S.S.R) अस्तित्व में आया |
दो-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शीतयुद्ध का दौर चला | इस दौरान विश्व के अधिकांश देश या तो अमरीका के साथ दिखाई देते थे या सोवियत रूस के साथ अर्थात विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था | इसलिए इसे दो ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहा जाता है |
सोवियत अर्थव्यस्था प्रणाली की विशेषताएँ :
(i) सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी।
(ii) सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी।
(iii) न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा
(iv) बेरोजगारी न होना।
(v) उन्नत संचार प्रणाली।
(vi) मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था तथा भूमि और अन्य उत्पादक संपदाओं पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था।
(vii) उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण था। उपभोक्ता-उद्योग भी बहुत उन्नत था और पिन
से लेकर कार तक सभी चीजों का उत्पादन वहाँ होता था।
(viii) सोवियत संघ के पास ऊर्जा संसाधन के विशाल भंडार थे, जिनमें खनिज, तेल, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी प्रमुख हैं |
सोवियत राजनितिक प्रणाली की विशेषताएँ :
(i) कम्यूनिस्ट पार्टी का दबदबा था जो साम्यवादी शासन प्रणाली के आधार पर एकक्षत्र शासन करती थी ।
(ii) सोवियत राजनितिक प्रणाली समाजवादी व्यवस्था पर आधारित थी जहाँ समाज में संतुलन बनाये रखा जाता था |
(iii) किसी अन्य पार्टी या शासन प्रणाली को कोई मान्यता नहीं थी |
(vi) सोवियत प्रणाली पूँजीवाद, निजी स्वामित्व और मुक्त व्यापार के विरुद्ध थी |
(v) इस प्रणाली ने अपने नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा प्रदान की थी |
दूसरी दुनिया : पूर्वी यूरापे के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था, इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया।
सोवियत संघ का विघटन : सन् 1991 के दिसम्बर में येल्तसिन के नेतृत्व में सोवियत संघ के तीन बडे़ गणराज्य रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। इसके साथ ही निम्न घटनाएँ हुई |
(i) कम्युनिस्ट पार्टी प्रतिबंधित हो गई |
(ii) परवर्ती सोवियत गणराज्यों ने पूँजीवाद तथा लोकतंत्र को अपना आधार बनाया |
(iii) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (कॉमनवेल्थ ऑव इंडिपेंडेंट स्टेट्स) का गठन |
(iv) रूस को सोवियत संघ का उत्तराध्किारी राज्य स्वीकार किया गया।
(v) रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली।
(vi) सोवियत संघ ने जो अंतर्राष्ट्रीय करार और संधियाँ की थीं उन सब को निभाने का जिम्मा अब रूस का था।
(vii) सोवियत संघ के विघटन के बाद के समय में पूर्ववर्ती गणराज्यों के बीच एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न देश का दर्जा रूस को मिला।
सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन की कमियाँ : सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के जवाबदेह नहीं रह गई थी। इसकी निम्नलिखित कमियाँ थी |
(i) कम्युनिस्ट शासन में सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनितिक रूप से गतिरुद्ध हो चूका था |
(ii) भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था और गलतियों को सुधारने में शासन व्यवस्था अक्षम थी |
(iii) विशाल देश में केन्द्रीयकृत शासन प्रणाली थी |
(iv) सत्ता का जनाधार खिसकता जा रहा था | कम्युनिष्ट पार्टी में कुछ तानाशाह प्रकृति के नेता भी थे जिनकों जनता से कोई सरोकार नहीं था |
(v) ‘पार्टी’ के अधिकारीयों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे।
सोवियत संघ के विघटन का कारण :
1. नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना।
2. सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा।
3. सोवियत संघ पर कम्यूनिस्ट पार्टी का अंकुश।
4. संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर।
5. प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के मुकाबले पीछे रहना।
6. रूस की प्रमुखता थी और अन्य क्षेत्रों की जनता अक्सर उपेक्षित और दमित महसूस करती थी।।
7. गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना।
8. अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी।
9. राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार।
सोवियत संघ के विघटन का तात्कालिक और अंतिम कारण :
राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण था | रूस और बाल्टिक गणराज्य (एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया), उक्रेन तथा जार्जिया जैसे देश इस तरह के राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों से गुजर रहे थे |
सोेवियत संघ के विघटन के परिणाम:
1. सोेवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया।
2. एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमरीकी वर्चस्व का उदय ।
3. दो महाशक्तियों के बीच हथियारों की होड़ की समाप्ति |
4. सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय।
5. रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
6. विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए।
7. समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।
हथियारों की होड़ की कीमत :
(i) सोवियत संघ ने हथियारों की होड़ में अमरीका को कड़ी टक्कर दी परन्तु प्रोद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में वह पश्चिमी देशों से पिछड़ गया |
(ii) उत्पादकता और गुणवता के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया।
सोवियत संघ में सुधार के लिए मिखाइल गोर्बाचेव की भूमिका :
(i) पश्चिमी देशों की बराबरी के लिए सुचना और प्रोद्योगिकी में सुधार |
(ii) सोवियत संध को लोकतांत्रिक रूप दिया अर्थात लोकतंत्रीकरण की निति चलाई |
(iii) सोवियत संघ का विघटन तो हुआ परन्तु तेजी से आर्थिक और राजनितिक सुधार हुए |
(iv) जनता को स्वतंत्राता का स्वाद मिला और वे कम्युनिस्ट पार्टी के पुरानी रंगत वाले शासन में नहीं जाना चाहते थे।
(v) अमरीका के साथ हथियारों की होड़ पर रोक लगाईं |
(vi) अफगानिस्तान और पूर्वी यूरोप से सेना वापस बुलाई |
(vii) शीतयुद्ध समाप्त किया और जर्मनी के एकीकरण में सहायक भूमिका |
जोजेफ स्टॅलिन और सोवियत गणराज्य के निर्माण में भूमिका :
ये लेलिन के उतराधिकारी थे | इन्होने 1924 से 1953 तक सोवियत संघ का नेतृत्व किया | इन्ही के कार्यकाल में सोवियत संघ मजबूत हुआ |
इनके द्वारा किया गया कार्य :
(i) औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया |
(ii) खेती का बलपूर्वक सामुहिकरण किया |
(iii) दुसरे विश्वयुद्ध में जीत का श्रेय इन्ही का है |
(iv) 1930 के दशक में भयानक आतंक और पार्टी के अंदर अपने विरोधियों के कुचलने का आरोप है |
शॉक थेरेपी
शॉक थेरेपी: शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना। साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण (परिवर्तन) के मॉडल को अपनाने को कहा गया। इसे ही शॉक थेरेपी कहते है।
शॉक थेरेपी की विशेषताएँ:
1. मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व।
2. राज्य की संपदा का निजीकरण।
3. सामूहिक फार्म की जगह निजी फार्म।
4. मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना।
5. मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
6. पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव।
शॉक थेरेपी के दुस्परिणाम :
1. पूर्णतया असफल, रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया।
2. रूसी मुद्रा रूबल में गिरावट।
3. समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट।
4. 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को कम दामों (औने-पौने) दामों में बेचा गया जिसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा जाता है।
5. पुराना व्यावसायिक ढांचा टूट चूका था जिससे आर्थिक विषमता बढ़ी।
6. सामूहिक खेती प्रणाली समाप्त हो चुकी थी जिससे खाद्यान्न संकट हो गया।
7. माफिया वर्ग का उदय।
8. कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन।
गराज-सेल : शॉक थेरेपी से उन पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई जिनमें पहले साम्यवादी शासन थी | रूस में, पूरा का पूरा राज्य-नियंत्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा उठा। लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया। आर्थिक ढाँचे का यह पुनर्निर्माण चूँकि सरकार द्वारा निर्देशित औद्योगिक नीति के बजाय बाजार की ताकतें कर रही थीं, इसलिए यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ। इसे ‘इतिहास की सबसे बड़ी गराज-सेल’
के नाम से जाना जाता है |
गराज-सेल जैसी हालात उत्पन्न होने का कारण : महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम से कम करके आंकी गई और उन्हें औने-पौने दामों में बेच दिया गया। हालाँकि इस महा-बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार-पत्र दिए गए थे, लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार-पत्र कालाबाजारियों के हाथों
बेच दिये क्योंकि उन्हें धन जरुरत थी। रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई। मुद्रास्पफीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमापूँजी जाती रही।
शॉक थेरेपी के परिणामस्वरुप आर्थिक बदलाव :
(i) समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को क्रम से नष्ट किया गया |
(ii) माफिया वर्ग ने आर्थिक गतिविधियों को अपने नियंत्रण में ले लिया |
(iii) राज्य की संपदा का निजीकरण किया गया |
(iv) सामूहिक फॉर्म को निजी फॉर्म में बदला गया |
(v) साम्यवादी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी की ओर मोड़ा गया |
(vi) अंदरूनी अर्थव्यवस्थाओं के रुझान को बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति बुनियादी तौर पर बदल गए |
(vii) पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत:
1. पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है।
2. दोनों का सपना बहुध्रवीय विश्व का है।
3. दोनों देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय सम्प्रभुता, स्वतन्त्र विदेश नीति, अर्न्तराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है।
4. 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर
5. भारत रूसी हथियारों का खरीददार।
6. रूस से तेल का आयात।
7. परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद।
8. कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश।
रूस द्वारा भारत की विभिन्न क्षेत्रों में मदद -
(i) हथियार एवं सैन्य उपकरण : भारत रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश है। भारतीय सेना को अधिकांश सैनिक साजो-सामान रूस से प्राप्त होते हैं।
(ii) तेल और ऊर्जा के क्षेत्र : भारत तेल के आयातक देशों में से एक है इसलिए भी भारत रूस के लिए महत्त्वपूर्ण है। उसने तेल के संकट की घड़ी में हमेशा भारत की मदद की है। भारत रूस से अपने ऊर्जा-आयात को भी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ऐसी कोशिश कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भी चल रही है।
(iii) परमाणु ऊर्जा : रूस भारत के परमाण्विक योजनाओं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार सहयोग देता रहा है | कई परमाणु-बिजली घरों के विकास में रूस भारत की मदद कर रहा है |
(iv) अंतरिक्ष उद्योग : आज भारत अंतरिक्ष में तेजी से पैर फैला रहा है, और वर्त्तमान में कई नए कीर्तिमान भी स्थापित किया है | रूस ने भारत के अंतरिक्ष उद्योग में भी जरूरत के वक्त क्रायोजेनिक इंजन दे कर मदद की है। भारत और रूस विभिन्न वैज्ञानिक परियोजनाओं में साझीदार हैं।
(v) कश्मीर मुद्दा : रूस ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ ही नहीं दिया अपितु एक अच्छे मित्र की भांति साथ-साथ खड़ा रहा |
भारत और रूस संबंध
सोवियत संघ के विघटन का असर भारत के संदर्भ में :
सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरुप विश्वराजनीति में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए | अमरीका ही एक मात्र महाशक्ति रह गया | जो भारत हे हितों को बहुत करीब से प्रभावित किया | भारत आपने विभिन्न आर्थिक और सामरिक हितों के लिए अमरीका के साथ चलें यह मज़बूरी बन गई | फिर भी भारत ने रूस से अपने संबंध ख़राब नहीं किया | सोवियत संघ केविघटन से अमरीका का विकासशील देशों जैसे आफ्गानिस्तान, ईरान एवं इराक में अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ गया | विश्व के अनेक देशों और संगठनों पर अमरीकी प्रभुत्व स्थापित हो गया | भारत को इन संगठनों से मदद के लिए परोक्ष रूप से अमरीकी नीतियों का ही समर्थन करना पड़ा |
सोवियत संघ का विघटन नहीं होता तो अमरीका आज एकल महाशक्ति नहीं होता : अमरीकी वर्चश्व का प्रमुख कारण सोवियत संघ का पतन माना जाता है | कही आतंकवाद के खिलाफ तो कही लोकतंत्र स्थापित करने के नाम पर तो कही अमरीकी हितों की रक्षा के नाम पर अमरीका ने विश्व के कई देशों को युद्ध की आग में झोक दिया | जिसके उदाहरण अफगानिस्तान और इराक जैसे विकासशील देश रहे हैं | इसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए जाते है | सोवियत संघ यदि मजबूत स्थिति में होता तो इन घटनाओं का अवश्य विरोध करता, हो सकता था ऐसी घटनाएँ नहीं भी होती | पूँजीवाद अमरीका की प्रमुख निति रही है | जबकि समाजवाद सोवियत संघ की प्रमुख धुरी रही है | शीतयुद्ध के दौरान इन दोनों महाशक्तियों के बीच यह विचारधारा भी तनाव का प्रमुख कारण रहा है | विश्व राजनीति में अमरीकी प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह विश्व राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया |
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Political Science-I Chapter List
Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर
Chapter 2. दो ध्रुवीयता का अंत
Chapter 3. समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व
Chapter 4. सत्ता के वैकल्पिक केंद्र
Chapter 5. समकालीन दक्षिण एशिया
Chapter 6. अन्तराष्ट्रीय संगठन
Chapter 7. समकालीन विश्व में सुरक्षा
Chapter 8. पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Chapter 9. वैश्वीकरण
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