Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर | शीतयुद्ध Political Science-I class 12
Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर | शीतयुद्ध Political Science-I class 12
शीतयुद्ध
शीतयुद्ध का दौर :
क्यूबा मिसाइल संकट : क्यूबा का जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे तथा वित्तीय सहायता देता था। सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ वेफ रूप में बदलने का फैसला किया। 1962 में ख्रुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था। संघर्ष की आशंका ने पुरे विश्व को बेचैन कर दिया | दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणुयुद्ध का खतरा मंडराने लगा था | अमेरिका ने अपने जंगी बेड़ों को आगे कर दिया ताकि क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए | इन दोनो महाशक्तियों के बीच ऐसी स्थिति बन गई कि लगा कि युद्ध होकर रहेगा | इतिहास में इसी घटना को क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है |
मित्र राष्ट्र : द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका फ्रांस तथा सोवियत संघ को विजय मिली इन्ही तीनों राष्ट्रों को संयुक्त रूप से मित्र राष्ट्र के नाम से जाना जाता है |
धुरी राष्ट्र : जिन राष्ट्रों को द्वितीय विश्व युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था उन्हें धुरी राष्ट्र के नाम से जाना जाता है | ये राष्ट्र थे जर्मनी, जापान और इटली |
द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत :
अगस्त 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े। इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध का अंत हुआ।
अमरीका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने के संबंध में आलोचनात्मक तर्क :
(i) अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है। ऐसे में बम गिराना गैर-जरूरी था।
(ii) अमरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और
राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था।
(iii) वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत
है।
(iv) अमरीका के समर्थकों का तर्क था कि युद्ध को जल्दी से जल्दी समाप्त करने तथा अमरीका और साथी राष्ट्रों की आगे की जनहानि को रोकने के लिए परमाणु बम गिराना जरूरी था।
शीतयुद्ध : शीत युद्ध दो सहशक्तियों की बीच शत्रुपूर्ण वातावरण था। विचारों में मतभेदों के होते हुए भी विश्व को तीसरे विश्व युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा जिसका कारण था परमाणु बम का अविष्कार/दोनों सहशक्तियां इससे परिपूर्ण थी। अर्थात परमाणु संपन्न होते हुए भी दोनों ही महाशक्तियों रक्त रंजित युद्ध के स्थान पर आपसी प्रतिद्वंदिता तथा तनाव की स्थिति बनी रही जिसे शीतयुद्ध कहा जाता है |
शीतयुद्ध की शुरुआत : द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीत युद्ध की शुरूआत हुई।
शीतयुद्ध का अंत : क्यूबा का मिसाइल संकट शीत युद्ध का अंत था | लेकिन इसका प्रमुख कारण सोवियत संघ का विघटन माना जाता है |
शीतयुद्ध का कारण :
(i) अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना।
(ii) परमाणु बम से होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बूते की बात नहीं।
(iii) दोनों महाशक्तियों परमाणु हथियारों से संपन्न थी, उनके पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार हों कि वे एक-दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सकते है तो ऐसे में दोनों के रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है।
(iv) एक दुसरे को उकसावे के वावजूद कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों पर युद्ध की मार नहीं देखना चाहता था |
(v) दोनों राष्ट्रों के बीच गहन प्रतिद्वंदिता |
शीतयुद्ध एक विचारधारा की लड़ाई :
शीतयुद्ध सिर्फ जोर-आजमाइश, सैनिक गठबंधन अथवा शक्ति-संतुलन का मामला भर नहीं था बल्कि इसके साथ-साथ विचारधरा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष जारी था। विचारधरा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का
सबसे बेहतर सिद्धांत कौन-सा है। पश्चिमी गठबंधन का अगुआ अमरीका था और यह गुट उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था। पूर्वी गठबंधन का अगुवा सोवियत संघ था और इस गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद के लिए थी।
शीतयुद्ध के विभिन्न घटनाक्रम :
1947: साम्यवाद को रोकने के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रूमैन का सिद्धांत।
1947-52: मार्शल प्लान - पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण में अमरीका की सहायता।
1948-49: सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबंदी। अमरीका और उसके साथी देशों ने पश्चिमी बर्लिन के नागरिकों को जो आपूर्ति भेजी थी उसे सोवियत संघ ने अपने विमानों से उठा लिया।
1950-53: कोरियाई युद्ध - 38वीं समानांतर रेखा के द्वारा कोरिया का विभाजन।
1954: वियतनामियों के हाथों दायन बीयन पूफ में फ़्रांस की हार; जेनेवा समझौते पर हस्ताक्षर; 17वीं समानांतर रेखा द्वारा वियतनाम का विभाजन; सिएटो (SEATO) का गठन।
1954-75: वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप।
1955: बगदाद समझौते पर हस्ताक्षर; बाद में इसे सेन्टो (CENTO) के नाम से जाना गया।
1956: हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप।
1961: क्यूबा में अमरीका द्वारा प्रायोजित ‘बे ऑपफ पिग्स’ आक्रमण
1961: बर्लिन-दीवार खड़ी की गई।
1962: क्यूबा का मिसाइल संकट।
1965: डोमिनिकन रिपब्लिक में अमरीकी हस्तक्षेप।
1968: चेकोस्लोवाकिया में सोवियत हस्तक्षेप।
1972: अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन का चीन दौरा।
1978-89: वंफबोडिया में वियतनाम का हस्तक्षेप।
1979-89: अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप
1985: गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने सुधर की प्रक्रिया आरंभ की।
1989: बर्लिन-दीवार गिरी; पूर्वी यूरोप की सरकारों के विरुद्ध लोगों का प्रदर्शन।
1990: जर्मनी का एकीकरण।
1991: सोवियत संघ का विघटन; शीतयुद्ध की समाप्ति।
दो-ध्रुवीय विश्व
दो-ध्रुवीय विश्व का आरम्भ :
दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों पर अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं। दुनिया दो गुटों के बीच बहुत स्पष्ट रूप से बँट गई थी। ऐसे में किसी मुल्क के लिए एक रास्ता यह था कि वह अपनी सुरक्षा के लिए किसी एक महाशक्ति के साथ जुड़ा रहे और दूसरी महाशक्ति तथा उसके गुट के देशों के प्रभाव से बच सके।
पश्चिमी गठबंधन : पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने अमरीका का पक्ष लिया | इन्ही देशों के समूह को पश्चिमी गठबंधन कहते हैं |
इस गठबंधन में शामिल देश है - ब्रिटेन, नार्वे, फ़्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन, इटली और बेल्जियम आदि |
पूर्वी गठबंधन : पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत गठबंधन में शामिल हो गया | इस गठबंधन को पूर्वी गठबंधन कहते है |
इसमें शामिल देश हैं - पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया आदि |
नाटो (NATO) : पश्चिमी गठबन्धन ने स्वयं को एक संगठन का रूप दिया। अप्रैल 1949 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना हुई जिसमें 12 देश शामिल थे।
इस संगठन ने घोषणा की कि उत्तरी अमरीका अथवा यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर भी हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे | और नाटो में शामिल हर देश एक दुसरे की मदद करेगा |
उदेश्य : अमरीका द्वारा विश्व में लोकतंत्र को बचाना |
वारसा संधि : सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है | इसकी स्थापना सन् 1955 में हुई थी और इसका मुख्य काम 'नाटो' में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना था |
अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन का निर्धारण :
शीतयुद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ-हानि के गणित से होता था |
कुछेक मामलों में यह भी हुआ कि महाशक्तियों ने अपने-अपने गुट में शामिल करने के लिए कुछ देशों पर अपनी ताकत का इस्तेमाल किया। पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ की दखलंदाजी इसका उदाहरण है।
महाशक्तियों के लिए छोटे देश का महत्व :
(i) महत्त्वपूर्ण संसाधनों - जैसे तेल और खनिज के लिए |
(ii) भू-क्षेत्र - ताकि यहाँ से महाशक्तियाँ अपने हथियारों और सेना का संचालन कर सके |
(iii) सैनिक ठिकाने - जहाँ से महाशक्तियाँ एक-दूसरे की जासूसी कर सके और
(iv) आर्थिक मदद - जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे-छोटे देश सैन्य-खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे।
(v) विचारधारा - गुटों में शामिल देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध जीत रही हैं।
(vi) गुट में शामिल हो रहे देशों के आधार पर वे सोंच सकते थे कि उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद, समाजवाद और साम्यवाद से कही बेहतर है |
शीतयुद्ध के परिणाम :
(i) गुटनिरपेक्ष देशों का जन्म |
(ii) अनेक खूनी लडाइयों के वावजूद तीसरे विश्वयुद्ध का टल जाना |
(iii) अनेक सैन्य संगठन संधियाँ
(iv) दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणु जखीरे और हथियारों की होड़
(v) दो ध्रुवीय विश्व
सैन्य संधि संगठन : शीतयुद्ध के दौरान अनेक ऐसी घटनाएँ हुई जिससे दोनों महाशक्तियों ने एक दुसरे के वर्चस्व को समाप्त करने की पुरजोर कोशिश की | इसी कड़ी में सैन्य संधि संगठन भी बनाये गए | अपने-अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दोनों ही महाशक्तियों ने अन्य सहयोगी या समान विचारधारा वाले देशों से सैन्य सहयोग संधियाँ की | इस दौरान अमरीका ने 3 संधियाँ की जबकि सोवियत संघ ने एक संधि की |
अमरीका द्वारा की गई सैन्य संधियाँ -
(i) नाटो (NATO) - 1949 में
(ii) सीटो (SEATO) - 1954 में
(iii) सेंटो (CENTO) - 1955 में
सोवियत संघ द्वारा की गई संधि -
(i) वारसा पैक्ट 1955
शीतयुद्ध के दायरे :
(i) 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी
(ii) 1950 में कोरिया संकट
(iii) 1954-1975 तक वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप
(iv) 1956 में हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप
(v) 1962 -क्यूबा मिसाइल संकट
(vi) गुटनिरपेक्ष देशों का उदय और युद्ध संकट टालने में कारगर भूमिका
दोनों महाशक्तियों द्वारा परमाणु जखीरे एवं हथियारों की होड़ कम करने के लिए सकारात्मक कदम -
(i) परमाणु परिक्षण प्रतिबन्ध संधि
(ii) परमाणु अप्रसार संधि
(iii) परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि (एंटी बैलेस्टिक मिसाइल ट्रीटी)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीकी और सोवियत संघ के प्रमुख चुनौतियों में अन्तर :
अमरीकी चुनौतियां और सोवियत संघ की चुनौतियाँ :
(i) अमरीकी चुनौतियाँ सोवियत संघ की अपेक्षा काफी कम थी | जापान पर परमाणु हमले के बाद विश्व राजनीति में अमरीका का दबदबा बढ़ गया था, जबकि सोवियत संघ को अभी अपना प्रभुत्व स्थापित करना बाकि था |
(ii) दोनों महाशक्तियां वरन द्वितीय विश्व युद्ध की विजयी टीम से सम्बंधित थी परन्तु अमरीका संचार और तकनीकी मामले में सोवियत संघ से काफी आगे निकल चूका था | सोवियत संघ इस अंतर को कम करने के लिए अपने संसाधनों का खूब उपयोग किया जिससे आर्थिक रूप से वह पिछड़ गया |
(iii) सभी अमरीकी राज्य सोवियत संघ की तुलना में समृद्ध थे जबकि सोवियत संघ में शामिल कई राज्य रूस जैसे विकसित राज्य पर निर्भर थे | इन राज्यों को अलग से आर्थिक मदद देनी पड़ती थी |
(iv) परमाणु हथियारों एवं अन्य युद्ध हथियारों की होड़ के मामलों में सोवियत संघ ने अन्य विकास कार्यों की अपेक्षा इन पर ज्यादा धन खर्चा किया जिससे उसके जनता में असंतोष तेजी से फैली और वह पश्चिमी देशों के मुकाबले संचार और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में पिछड़ गया |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन
दो-ध्रुवीयता को चुनौती - गुटनिरपेक्षता
गुटनिरपेक्षता - गुटनिरपेक्षता का अर्थ सभी गुटों से अपने को अलग रखना है |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन - शीतयुद्ध के दौरान दो महाशक्तियों के तनाव के बीच एक एक नए आन्दोलन ने जन्म लिया जो दो ध्रुवीयता में बंट रहे देशों से अपने को अलग रखने के लिए था जिसका उदेश्य विश्व शांति था | इस आन्दोलन का नाम गुटनिरपेक्ष आन्दोलन पड़ा |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने का आन्दोलन था | परन्तु ये अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अपने को अलग-थलग नहीं रखा था अपितु इन्हें सभी अंतर्राष्ट्रीय मामलों से सरोकार था |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना - सन् 1956 में युगोस्लाविया के जोसेफ ब्रांज टीटो, भारत के जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर ने एक सफल बैठक की | जिससे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म हुआ |
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक नेताओं के नाम :
(i) जोसेफ ब्रांज टीटो - युगोस्लाविया
(ii) जवाहर लाल नेहरू - भारत
(iii) गमाल अब्दुल नासिर - मिस्र
(iv) सुकर्णों - इंडोनेशिया
(v) एनक्रुमा - घाना
पहला गुटनिरपेक्ष सम्मलेन - 1961 में बेलग्रेड में हुआ | इसमें 25 सदस्य देश शामिल हुए | गुटनिरपेक्ष सम्मलेन के 14 वें सम्मलेन में 166 सदस्य-देश और 15 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए |
गुटनिरपेक्ष देशों के समक्ष समस्याएँ :
सीमित परमाणु परीक्षण संधि (LTBT) :
वायुमंडल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अंदर परमाणु हथियारों के परिक्षण पर प्रतिबंध् लगाने वाली इस संधि पर अमरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त 1963 को हस्ताक्षर किए। यह संधि 10 अक्टूबर1963 से प्रभावी हो गई।
परमाणु अप्रसार संधि (NPT) :
यह संधि केवल परमाणु शक्ति-संपन्न देशों को एटमी हथियार रखने की अनुमति देती है और बाकी देशों को ऐसे हथियार हासिल करने से रोकती है। परमाणु अप्रसार संधि के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए उन देशों को परमाणु-शक्ति से संपन्न देश माना गया जिन्होंने 1 जनवरी 1967 से पहले किसी परमाणु हथियार अथवा अन्य विस्पफोटक परमाणु सामग्रियों का निर्माण और विस्फोट किया हो। इस परिभाषा के अंतर्गत पाँच देशों - अमरीका, सोवियत संघ; बाद में रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन को परमाणु-शक्ति से संपन्न माना गया। इस संधि पर एक जुलाई 1968 को वॉशिंग्टन, लंदन और मास्को में हस्ताक्षर हुए और यह संधि 5 मार्च 1970 से प्रभावी हुई। इस संधि को 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया।
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-I (स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स - साल्ट-I)
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता का पहला चरण सन् 1969 के नवम्बर में आरंभ हुआ। सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव और अमरीका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में 26 मई 1972 को निम्नलिखित समझौते पर दस्तख़त किए -
(i) परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (एबीएम ट्रीटी)।
(ii) सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता।
ये 3 अक्तूबर 1972 से प्रभावी हुए।
सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-II (स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स-साल्ट-II)
वार्ता का दूसरा चरण सन् 1972 के नवम्बर महीने में शुरू हुआ। अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और सोवियत संघ के नेता लियोनेड ब्रेझनेव ने वियना में 18 जून 1972 को सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन से संबंधित संधि पर हस्ताक्षर किए |
सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि (स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन संधि-स्टार्ट-I)
अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (सीनियर) और सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने 31 जुलाई 1991 को सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन और उनकी संख्या में कमी लाने से संबंधित संधि पर हस्ताक्षर किए।
सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि-II (स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन संधि-स्टार्ट-II)
सामरिक रूप से घातक हथियारों को सीमित करने और उनकी संख्या में कमी करने से संबंधित इस संधि पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश (सीनियर) ने मास्को में 3 जनवरी 1993 को हस्ताक्षर किए।
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Political Science-I Chapter List
Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर
Chapter 2. दो ध्रुवीयता का अंत
Chapter 3. समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व
Chapter 4. सत्ता के वैकल्पिक केंद्र
Chapter 5. समकालीन दक्षिण एशिया
Chapter 6. अन्तराष्ट्रीय संगठन
Chapter 7. समकालीन विश्व में सुरक्षा
Chapter 8. पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Chapter 9. वैश्वीकरण
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