5. उत्पादन फलन | page 1 Micro Economics class 12
5. उत्पादन फलन | page 1 Micro Economics class 12
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उत्पादन फलन - एक फर्म के भौतिक उत्पादन और उत्पादन के भौतिक कारको के बीच संबंध को उत्पादन फलन कहते है |
Qx = f(L,K)
Qx = वस्तु X का उत्पादन |
L = श्रम की मात्रा |
K = पूँजी की मात्रा |
यह फलन दर्शाता है की वस्तु X का उत्पादन श्रम(L) तथा पूँजी(K) पर निर्भर करता है |
स्थिर कारक - स्थिर कारक वे कारक होते है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ परिवर्तित नहीं होते है | उत्पादन के शून्य होने पर भी ये होते है | जैसे - भूमि
परिवर्ती कारक - परिवर्ती कारक वे कारक होते है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होते है | उत्पादन के शून्य होने पर ये भी शून्य होते है | जैसे - श्रमिक
उत्पादन फलन के प्रकार :-
अल्पकालीन उत्पादन फलन - अल्पकालीन उत्पादन फलन में स्थिर कारक स्थिर होते है तथा उत्पादन को केवल परिवर्ती कारक में वृद्धि करके ही बढाया जा सकता है | दुसरे शब्दों में, अल्पकालीन उत्पादन फलन अल्पकाल में किये गए उत्पादन और उसके कारको के बीच फल्नात्मक सम्बन्ध दिखता है, जहा एक कारक स्थिर तथा दूसरा परिवर्ती होता है | अल्पकालीन उत्पादन फलन में परिवर्ती अनुपात का नियम लागु होता है |
Qx = f(L,K)
Qx = वस्तु X का उत्पादन |
L = श्रम की मात्रा |
K = पूँजी की मात्रा |
दीर्घकालीन उत्पादन फलन - दीर्घकालीन उत्पादन फलन में उत्पादन को परिवर्ती कारक तथा स्थिर कारक में वृद्धि कर उत्पादन को बढाया जा सकता है | दुसरे शब्दों में, दीर्घकालीन उत्पादन फलन दीर्घकाल में किये गए उत्पादन और उसके कारको के बीच फल्नात्मक सम्बन्ध दिखता है, जहा दोनों ही कारक परिवर्ती होते है | दीर्घकालीन उत्पादन फलन में पैमाने के प्रतिफल का नियम लागू होता है |
Qx = f(L,K)
Qx = वस्तु X का उत्पादन |
L = श्रम की मात्रा |
K = पूँजी की मात्रा |
कूल उत्पाद - उत्पादन प्रक्रिया में प्रयोग हुए परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई के उत्पादन का कुल जोड़ कुल उत्पाद कहलाता है |
सीमांत उत्पाद - उत्पादन प्रक्रिया मे परिवर्ती कारक की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग कर प्राप्त अतरिक्त उत्पाद को सीमांत उत्पाद कहा जाता है |
MP = Tn - Tn-1
औसत उत्पाद - उत्पादन प्रक्रिया मे परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई का प्रयोग कर प्राप्त प्रति इकाई उत्पादन को औसत उत्पाद कहा जाता है |
AP = TP/L
परिवर्ती अनुपात का नियम - परिवर्ती अनुपात का नियम के अनुसार जैसे - जैसे स्थिर कारको के साथ परिवर्ती कारको की अधिक से अधिक इकाइयों को प्रयोग में लाया जाता है, आरंभ में परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद बढ़ता है परन्तु एक स्थति ऐसी अवश्य आती है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद गिरना शुरू हो जाता है अथवा शून्य या ऋणात्मक हो सकता है |
भूमि की इकाइयाँ | श्रम की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
1 | 1 | 2 | 2 |
1 | 2 | 5 | 3 |
1 | 3 | 9 | 4 |
1 | 4 | 12 | 3 |
1 | 5 | 14 | 2 |
1 | 6 | 15 | 1 |
1 | 7 | 15 | 0 |
1 | 8 | 14 | -1 |
कुल उत्पाद (TP) तथा सीमांत उत्पाद (MP) में सम्बन्ध -
(i) आरंभ में सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है इसलिए कुल उत्पाद (TP) बढती दर पर बढ़ता है |
(ii) जब सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा होता है तब कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढ़ता है |
(iii) जब सीमांत उत्पाद (MP) शून्य होता है तब कुल उत्पाद (TP) अधिकतम होता है |
(iv) जैसे ही सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है कुल उत्पाद (TP) गिरना आरंभ कर देता है |
औसत उत्पाद (AP) तथा सीमांत उत्पाद (MP) के बीच सम्बंध -
(i) जब सीमांत उत्पाद (MP) बड़ा होता है औसत उत्पाद (AP) से तब औसत उत्पाद (AP) बढ़ता है |
(ii) जब सीमांत उत्पाद (MP) छोटा होता है औसत उत्पाद (AP) से तब औसत उत्पाद (AP) घटता है |
(iii) जब सीमांत उत्पाद (MP) और औसत उत्पाद (AP) दोनों बराबर होते है तब औसत उत्पाद (AP) अपने उच्चतम बिंदु पर होता है |
(iv) सीमांत उत्पाद (MP) शून्य और ऋणात्मक हो सकता है पर औसत उत्पाद (AP) कभी शून्य और ऋणात्मक नहीं हो सकता है |
परिवर्ती अनुपात के नियम के विभिन्न चरण :
परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है की अगर उत्पादन को एक ही कारक मे परिवर्तन करके बढाया जाए और दुसरे कारक को स्थिर रखा जाए तो कुल उत्पाद (TP) और सीमांत उत्पाद (MP) पर क्या प्रभाव पड़ता है | उत्पादन पर पड़ने वाले इन प्रभावों को तीन चरणों में बांटा गया है जो निम्न है -
प्रथम चरण - आरंभ में सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है इसलिए कुल उत्पाद (TP) बढती दर पर बढ़ता है | इसे कारक के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था भी कहा जाता है |
द्वितीय चरण - जब सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा होता है तब कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढ़ता है | इसे कारक के ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है |
तृतीय चरण - जैसे ही सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है कुल उत्पाद (TP) गिरना आरंभ कर देता है | इसे कारक के ऋनात्मक प्रतिफाल की अवस्था भी कहा जाता है |
परिवर्ती अनुपात नियम के विभिन्न चरणों के कारण -
परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है की अगर उत्पादन को एक ही कारक मे परिवर्तन करके बढाया जाए और दुसरे कारक को स्थिर रखा जाए तो कुल उत्पाद (TP) और सीमांत उत्पाद (MP) पर क्या प्रभाव पड़ता है | उत्पादन पर पड़ने वाले इन प्रभावों के निम्नलिखित कारण है -
प्रथम चरण - आरंभ में सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है इसलिए कुल उत्पाद (TP) बढती दर पर बढ़ता है | कारक के बढ़ते प्रतिफल का कारण परिवर्ती कारक की इकाइयों को बढाकर स्थिर कारको का पूर्ण उपयोग करना, कार्यो का विभाजन कर कुशलता को बढ़ाना है, परिवर्ती कारक और स्थिर कारक के बीच उचित समन्वय आदि कारण है |
द्वितीय चरण - जब सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा होता है तब कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढ़ता है | कारक के ह्रासमान प्रतिफल का कारण है जैसे - जैसे परिवर्ती कारक की मात्रा बढती जाती है स्थिर कारको को न बढाने की वजह से स्थिर कारको पर दबाव बढ़ता जाता है, जिसके कारण सीमांत उत्पाद गिरना शुरू हो जाता है |
तृतीय चरण - जैसे ही सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है कुल उत्पाद (TP) गिरना आरंभ कर देता है | कुल उत्पाद गिरता है क्योंकि परिवर्ती कारक की मात्रा बढती लगातार बढ़ाने के कारण और स्थिर कारको को न बढाने की वजह से स्थिर कारको की तुलना में परिवर्ती कारको की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है जिसके कारण सीमांत उत्पाद ऋनात्मक हो जाता है और कुल उत्पाद गिरना आरम्भ कर देता है |
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लागत की अवधारणा
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संप्राप्ति
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Micro Economics Chapter List
1. अर्थशास्त्र की केन्द्रीय समस्याएँ
2. उपभोक्ता संतुलन
3. माँग का सिद्धांत
4. माँग की लोच
5. उत्पादन फलन
6. पूर्ति का सिद्धांत
7. बाजार के स्वरुप
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