3. माँग का सिद्धांत | माँग Micro Economics class 12
3. माँग का सिद्धांत | माँग Micro Economics class 12
माँग
माँग
मांग वस्तु की वह मात्रा हैं जिसे विशेष कीमत व विशेष समय अवधि में उपभोक्ता खरीदने को तैयार है |
माँग अनुसूची - माँग अनुसूची वह तालिका है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों तथा वस्तु की विभिन्न मात्राओं के बीच सम्बंध प्रकट करती है |
माँग अनुसूची के प्रकार -
1. व्यक्तिगत माँग अनुसूची - व्यक्तिगत माँग अनुसूची वह तालिका है जो एक वस्तु की विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है जो बाजार में एक व्यक्तिगत क्रेता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होता है |
2. बाजार माँग अनुसूची - बाजार माँग अनुसूची वह तालिका है जो एक वस्तु की विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है जिन्हें बाजार में सभी क्रेता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होता है |
माँग वक्र - माँग वक्र माँग अनुसूची का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण है जो दर्शाती है की किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा उसकी अपनी कीमत से किस प्रकार सम्बंधित है |
माँग वक्र के प्रकार -
1. व्यक्तिगत माँग वक्र - व्यक्तिगत माँग वक्र व्यक्तिगत माँग अनुसूची का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण है जो एक वस्तु की विभिन्न मात्राओं को दर्शाता है जिसे एक व्यक्तिगत क्रेता उस वस्तु की संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार है |
2. बाजार माँग वक्र - बाजार माँग वक्र बाजार अनुसूची का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण है जो एक वस्तु की विभिन्न मात्राओं को दर्शाता है जिसे एक बाजार में सभी क्रेता उस वस्तु की संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार है |
माँग का नियम - माँग का नियम बताता है कि अन्य बाते समान रहने पर किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने पर उस वस्तु की मांगी गई मात्रा में कमी होती है तथा वस्तु की अपनी कीमत में कमी होने पर उसकी मांगी गई मात्रा में वृद्धि होती है | अर्थात वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी मांगी गई मात्रा में विपरीत सम्बंध होता है |
माँग के नियम की मान्यताएं -
1. उपभोक्ताओं की रुचियां तथा प्राथमिकताएँ स्थिर है |
2. क्रेताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता है |
3. सम्बंधित वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता है |
4. उपभोक्ता की निकट भविष्य में कोई सम्भावना नहीं है |
माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक होने के कारण -
(क) ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम - इस नियम के अनुसार जैसे - जैसे किसी वस्तु की अधिक से अधिक इकाइयों का उपभोग किया जाता है तो प्रत्येक अगली इकाई से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता कम होती जाती है | इसका अर्थ है की उपभोक्ता उस वस्तु की माँग में कमी करने लगता है |
(ख) आय प्रभाव - एक वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप क्रेता की आय में होने वाले परिवर्तन के कारण किसी वस्तु की माँग में होने वाले परिवर्तन को आय प्रभाव कहते है | जैसे यदि किसी वस्तु की कीमत में कमी होती है तो क्रेता की वास्तविक आय बढ़ जाएगी जिससे वह उस वस्तु की अधिक माँग करेगा | इस प्रकार वास्तविक आय बढ़ने पर माँग में वृद्धि होती है तथा वास्तविक आय कम होने पर माँग में कमी होती है इसे ही आय प्रभाव कहते है |
(ग) प्रतिस्थापन प्रभाव - प्रतिस्थापन प्रभाव का अर्थ है यदि प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होगी तो उस वस्तु की माँग में भी वृद्धि होगी तथा प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उस वस्तु की माँग में भी कमी होगी | जैसे - चाय और कॉफ़ी, चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी |
(घ) उपभोक्ता समूह का आकार - जब किसी वस्तु कीमत में कमी हो जाती है तो तब कई लोग जो पहले उस वस्तु को नहीं खरीद रहे होते थे वह भी इस वस्तु को खरीदने लगते है जिसके कारण उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है |
माँग के नियम के अपवाद -
(क) प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ- प्रतिष्ठासूचक वस्तुएं वो वसुएँ होती है जिनका मूल्य उच्च होता है इनकी माँग इसलिए ही की जाती है क्योंकि इनका मूल्य उच्च तथा इनसे समाज में प्रतिष्ठा पाई जाती है | यदि इन वस्तुओं की कीमते कम हो जाए तो इनकी माँग नहीं की जाएगी | अतः यह माँग के नियम की अवेलहना करता है क्योंकि माँग के नियम के अनुसार किसी वस्तु की कीमत कम होने पर उसके माँग में वृद्धि होती है परन्तु प्रतिष्ठासूचक वस्तुओं के सम्बंध में कीमत कम होने पर इनकी माँग कम हो जाती है |
(ख) गिफ्फिन वस्तुएँ - गिफ्फिन वस्तुएं उच्च दर्जे की निम्नकोटि वस्तुएं होती है जिनका मूल्य बहुत कम होता है | जब इन वस्तुओं की कीमत कम होती है तो इनकी माँग कम हो जाती है | अतः यह माँग के नियम की अवेलहना करता है क्योंकि माँग के नियम के अनुसार किसी वस्तु की कीमत कम होने पर उसके माँग में वृद्धि होती है परन्तु गिफ्फिन वस्तुओं के सम्बंध में कीमत कम होने पर इनकी माँग कम हो जाती है |
(ग) जब उपभोक्ता वस्तु की कीमत द्वारा उसकी गुणवता की जाँच करता है - जब उपभोक्ता वस्तु की कीमत द्वारा उसकी गुणवता की जाँच करता है तो वह मानता है की जिन वस्तुओं की कीमत उच्च होगी वह अधिक गुणवता वाली वस्तु है इसलिए वह उच्च कीमत वाली वस्तुओं की अधिक माँग करता है |अतः यह माँग के नियम की अवेलहना करता है क्योंकि माँग के नियम के अनुसार किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग में कमी होती है |
माँग फलन
माँग फलन या माँग के निर्धारक तत्व - माँग फलन किसी वस्तु की माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्वों के बीच फल्नात्मक सम्बंध है |
माँग फलन के प्रकार -
1. व्यक्तिगत माँग फलन - व्यक्तिगत माँग फलन किसी व्यक्तिगत क्रेता द्वारा की गई माँग तथा उसे प्रभावित करने वाले कारको के बीच सम्बंध को प्रकट करती है |
Dx = f(Px,Pr,Y,T,E)
Dx = वस्तु X की माँगी गई मात्रा |
PX = वस्तु X की अपनी कीमत |
Pr = संबंधित वस्तुओं की कीमत |
Y = क्रेता की आय
T = उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकता |
E = उपभोक्ता की संभावनाएं |
2. बाजार माँग फलन - बाजार माँग फलन किसी दिए गए बाजार में सभी क्रेताओं द्वारा की गई माँग तथा उसे प्रभावित करने वाले कारको के बीच सम्बंध को प्रकट करती है |
Dx = f(Px,Pr,Y,T,E,N,Yd)
Dx = वस्तु X की माँगी गई मात्रा |
Px = वस्तु X की अपनी कीमत |
Pr = संबंधित वस्तुओं की कीमत |
Y = क्रेता की आय
T = उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकता |
E = उपभोक्ता की संभावनाएं |
N = जनसंख्या का आकार |
Yd = आय का वितरण |
व्यक्तिगत माँग को प्रभावित करने वाले कारक -
(क) वस्तु की अपनी कीमत - किसी वस्तु की अपनी कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी होती है उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होती है उस वस्तु की माँग कम हो जाती है | अतः वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी मांगी गई मात्र के बीच विपरीत सम्बंध होता है |
(ख) सम्बंधित वस्तु की कीमत - संबंधित वस्तु की कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | सम्बंधित वस्तु दो प्रकार की होती है -
(i) प्रतिस्थापन वस्तुएं - वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग एक दुसरे के स्थान पर किया जाता है प्रतिस्थापन वस्तुएँ कहलाती है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत के बीच धनात्मक या प्रत्यक्ष सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होगी तो उस वस्तु की माँग में वृद्धि होगी तथा प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उस वस्तु की माँग में कमी होगी | जैसे - चाय और कॉफ़ी, चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी |
(ii) पूरक वस्तुएं - पूरक वस्तुएं वो वस्तुएं होती है जो एक तुसरे की माँग को पूरा करती है जैसे - पेन और स्याही, पेन और स्याही दोनों एक दुसरे की माँग को पूरा करते है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी पूरक वस्तु की कीमत के बीच विपरीत सम्बंध या ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की माँग में कमी हो जाएगी तथा पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर उस वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाएगी | जैसे - स्याही की कीमत में वृद्धि होने पर पेन की माँग में कमी हो जाएगी |
(ग) उपभोक्ता की आय - उपभोक्ता की आय किसी वस्तु की माँग को दो तरह से प्रभावित करती है | उपभोक्ता की आय तथा समान्य वस्तु की माँग में धनात्मक सम्बंध पाया जाता है | उपभोक्ता की आय बढ़ने पर समान्य वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है तथा इसके विपरीत भी | उपभोक्ता की आय तथा निम्नकोटि वस्तुओं की माँग में ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | अर्थात उपभोक्ता की आय बढ़ने पर निम्नकोटि वस्तुओं की माँग कम हो जाती है तथा आय कम होने पर माँग बढ़ जाती है |
(घ) रूचि तथा प्राथमिकता - वस्तु तथा सेवाओं की माँग उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकताओं पर निर्भर करती है | उपभोक्ता जिन वस्तुओ की रूचि रखता है तथा जिसे प्राथमिकता देता है उन वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है | इसके आलावा जिन वस्तुओं में रूचि कम हो जाती है उन वस्तुओं की माँग कम हो जाती है |
(ङ) संभावनाएं - संभावनाएं वस्तु की माँग पर विशेष प्रभाव डालता है | जैसे यदि उपभोक्ता को लगता है की आने वाले समय में किसी वस्तु की उपलब्धता कम होने वाली है तो वह अभी उस वस्तु की माँग में वृद्धि करेगा |
बाजार माँग को प्रभावित करने वाले करक -
(क) वस्तु की अपनी कीमत - किसी वस्तु की अपनी कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी होती है उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होती है उस वस्तु की माँग कम हो जाती है | अतः वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी मांगी गई मात्र के बीच विपरीत सम्बंध होता है |
(ख) सम्बंधित वस्तु की कीमत - संबंधित वस्तु की कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | सम्बंधित वस्तु दो प्रकार की होती है -
(i) प्रतिस्थापन वस्तुएं - वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग एक दुसरे के स्थान पर किया जाता है प्रतिस्थापन वस्तुएँ कहलाती है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत के बीच धनात्मक या प्रत्यक्ष सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होगी तो उस वस्तु की माँग में वृद्धि होगी तथा प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उस वस्तु की माँग में कमी होगी | जैसे - चाय और कॉफ़ी, चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी |
(ii) पूरक वस्तुएं - पूरक वस्तुएं वो वस्तुएं होती है जो एक तुसरे की माँग को पूरा करती है जैसे - पेन और स्याही, पेन और स्याही दोनों एक दुसरे की माँग को पूरा करते है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी पूरक वस्तु की कीमत के बीच विपरीत सम्बंध या ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की माँग में कमी हो जाएगी तथा पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर उस वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाएगी | जैसे - स्याही की कीमत में वृद्धि होने पर पेन की माँग में कमी हो जाएगी |
(ग) उपभोक्ता की आय - उपभोक्ता की आय किसी वस्तु की माँग को दो तरह से प्रभावित करती है | उपभोक्ता की आय तथा समान्य वस्तु की माँग में धनात्मक सम्बंध पाया जाता है | उपभोक्ता की आय बढ़ने पर समान्य वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है तथा इसके विपरीत भी | उपभोक्ता की आय तथा निम्नकोटि वस्तुओं की माँग में ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | अर्थात उपभोक्ता की आय बढ़ने पर निम्नकोटि वस्तुओं की माँग कम हो जाती है तथा आय कम होने पर माँग बढ़ जाती है |
(घ) रूचि तथा प्राथमिकता - वस्तु तथा सेवाओं की माँग उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकताओं पर निर्भर करती है | उपभोक्ता जिन वस्तुओ की रूचि रखता है तथा जिसे प्राथमिकता देता है उन वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है | इसके आलावा जिन वस्तुओं में रूचि कम हो जाती है उन वस्तुओं की माँग कम हो जाती है |
(ङ) संभावनाएं - संभावनाएं वस्तु की माँग पर विशेष प्रभाव डालता है | जैसे यदि उपभोक्ता को लगता है की आने वाले समय में किसी वस्तु की उपलब्धता कम होने वाली है तो वह अभी उस वस्तु की माँग में वृद्धि करेगा |
(च) जनसंख्या का आकार - किसी वस्तु के क्रेताओं की संख्या में वृद्धि होने पर उस वस्तु की माँग में वृद्धि होती तथा उस वस्तु के क्रेताओं की संख्या में कमी होने पर उस वस्तु की माँग में कमी होती है |
(छ) आय का वितरण - समाज में आय का वितरण किसी वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | यदि समाज में अमीर अधिक है और गरीब कम है तो विलासिता की वस्तुओं की अधिक माँग की जाएगी | यदि समाज में गरीब अधिक तथा अमीर कम है तो निम्नकोटि वस्तुओं की अधिक माँग की जाएगी |
माँग वक्र में खिसकाव
माँग वक्र पर संचलन - अन्य बाते समान रहने पर किसी वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण उसकी मांगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन को माँग वक्र पर संचलन कहते है |
माँग वक्र पर संचलन दो प्रकार से होता है -
1. माँग का विस्तार - जब किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी के कारण उसकी मांगी गई मात्रा में वृद्धि होती है इसे माँग का विस्तार कहते है |
2. माँग का संकुचन - जब किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि के कारण उसकी मांगी गई मात्रा में कमी होती है इसे माँग का संकुचन कहते है |
माँग वक्र में खिसकाव - कीमत के स्थिर रहने पर अन्य कारणों (जैसे- उपभोक्ता ही आय, सम्बंधित वस्तु की कीमत आदि) में परिवर्तन के कारण किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा में होने वाले वरिवर्तन को माँग वक्र में खिसकाव कहते है |
माँग वक्र में खिसकाव दो प्रकार से होता है -
1. माँग में वृद्धि - कीमत के स्थिर रहने पर अन्य कारणों मे परिवर्तन के कारण जब किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा में वृद्धि होती है इसे माँग में वृद्धि कहते है |
2. माँग में कमी - कीमत के स्थिर रहने पर अन्य कारणों मे परिवर्तन के कारण जब किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा में कमी होती है इसे माँग में कमी कहते है |
माँग में वृद्धि के कारण -
(i) जब उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है |
(ii) जब प्रतिस्थापन पस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है |
(iii) जब पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी होती है |
(iv) जब उपभोक्ता की रूचि में कमी होती है |
(v) जब निकट भविष्य में वस्तु की उपलब्धता में कमी होने की सम्भावना हो |
माँग में कमी के कारण -
(i) जब उपभोक्ता की आय में कमी होती है |
(ii) जब प्रतिस्थापन पस्तुओं की कीमत में कमी होती है |
(iii) जब पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है |
(iv) जब उपभोक्ता की रूचि में वृद्धि होती है |
(v) जब निकट भविष्य में वस्तु की उपलब्धता में वृद्धि होने की सम्भावना हो |
माँग में संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर -
माँग में संकुचन -
1. जब किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि के कारण उसकी मांगी गई मात्रा में कमी होती है इसे माँग का संकुचन कहते है |
2. यह केवल वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण होता है |
3. अन्य कारण स्थिर होते है |
4. यह वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि के कारण होता है |
माँग में कमी -
1. कीमत के स्थिर रहने पर अन्य कारणों मे परिवर्तन के कारण जब किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा में कमी होती है इसे माँग में कमी कहते है |
2. यह अन्य कारणों में परिवर्तन के कारण होता है |
3. कीमत स्थिर होती है |
4. उपभोक्ता की आय में कमी, प्रतिस्थापन पस्तुओं की कीमत में कमी, पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि आदि के कारण होता है |
माँग में विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर -
माँग में विस्तार -
1. जब किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी के कारण उसकी मांगी गई मात्रा में वृद्धि होती है इसे माँग का विस्तार कहते है |
2. यह केवल वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण होता है |
3. अन्य कारण स्थिर होते है |
4. यह वस्तु की अपनी कीमत में कमी के कारण होता है |
माँग में वृद्धि -
1. कीमत के स्थिर रहने पर अन्य कारणों मे परिवर्तन के कारण जब किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा में वृद्धि होती है इसे माँग में वृद्धि कहते है |
2. यह अन्य कारणों में परिवर्तन के कारण होता है |
3. कीमत स्थिर होती है |
4. उपभोक्ता की आय में वृद्धि, प्रतिस्थापन पस्तुओं की कीमत में वृद्धि, पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी आदि के कारण होता है |
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Micro Economics Chapter List
1. अर्थशास्त्र की केन्द्रीय समस्याएँ
2. उपभोक्ता संतुलन
3. माँग का सिद्धांत
4. माँग की लोच
5. उत्पादन फलन
6. पूर्ति का सिद्धांत
7. बाजार के स्वरुप
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