Chapter 4. व्यावसायिक सेवाएँ | सेवाएँ Business Study class 11
Chapter 4. व्यावसायिक सेवाएँ | सेवाएँ Business Study class 11
सेवाएँ
अध्याय 4 व्यावसायिक सेवाएँ
महत्वपूर्ण तथ्य
सेवाओं की प्रकृति अथवा उनकी विशेषताएँ :
1. अदृश्य तथा अमूर्त : सेवाएँ अदृश्य तथा अमूर्त होती है इसका अर्थ है की सेवाओं को न तो देखा जा सकता है और न ही छुआ जा सकता है | सेवाओ को केवल महसूस किया जा सकता है |
2. एकरूपता का न होना : सेवाओ की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह है की सेवाओं में एकरूपता नहीं पाई जाती है | सभी उपभोक्ताओ की जरूरते तथा अपेक्षाएँ अलग - अलग होती है |
3. उत्पादन तथा उपभोग की क्रिया का एक साथ समापन : सेवाओ की महत्वपूर्ण विशेषता यह है की सेवाओ का उत्पादन तथा उपभोग की क्रिया दोनों एक साथ समाप्त होती है |
4. भण्डारण संभव नहीं : सेवाओ का कोई निश्चित आकार नहीं होता तथा इन्हें देखा नहीं जा सकता इसलिए इनका भण्डारण संभव नहीं है | सेवाओं की प्राप्ति उपभोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती है |
5. सहायता तथा भागीदारी जरूरी : सेवा प्रदान करतें समय उत्पादक तथा उपभोगता दोनों की भागीदारी जरूरी है क्योंकि सेवाओं की प्राप्ति उपभोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती है |
सेवा तथा वस्तुओं में अंतर :
वस्तुओं का उत्पादन होता है जबकि सेवाओं को प्रदान किया जाता है |
1. वस्तुओं का आकार होता है तथा वस्तुएं दृश्य होती है जबकि सेवाओं को न तो देखा जा सकता है और न ही छुआ जा सकता है | सेवाओ को केवल महसूस किया जा सकता है |
2. वस्तुओ में स्वामित्व का हस्तांतरण संभव है जबकि सेवाओं वस्तुओ में स्वामित्व का हस्तांतरण संभव नहीं है इसका अर्थ है की वस्तुओं को स्वामी के बजाएँ किसी और को भी दिया जा सकता है लेकिन सेवाओं के उपभोग के लिए उपभोक्ता का प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित रहना आवश्यक है |
3. वस्तुओं का भण्डारण संभव है परन्तु सेवाओं का भण्डारण संभव नहीं है |
सेवाओं के प्रकार :
सेवाएँ मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है :
व्यवसायिक सेवाएँ : व्यवसायिक सेवाएँ वो सेवाएँ होती है जिन्हें व्यवसायिक उद्यम या व्यवसायिक संगठन अपनें व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग करती है | दूसरें शब्दों में व्यवसायिक सेवाएँ वो सेवाएँ होती है जिन्हें व्यवसायिक उद्यम अपनें कार्य संचालन में प्रयोग करती है |जैसे - बीमा, बैंकिंग, परिवहन आदि |
सामाजिक सेवाएँ : सामाजिक सेवाएँ वे सेवाएँ होती है जो सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनी इच्छा से प्रदान की जाती है | जैसे : सरकारी एजेंसियों के द्वारा स्वास्थ सम्बंधित सेवाएँ प्रदान करना आदि | सामाजिक सेवाएँ मुख्य रूप से निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रदान की जाती है :
1. समाज के कमजोर वर्ग के जीवन स्तर को ऊचाँ उठाने के लिए |
2. गरीब बच्चो की शिक्षा की व्यवस्था करनें के लिए |
3. कच्ची बस्तियों में स्वास्थ्य एवं सफाई की व्यवस्था करनें के लिए |
व्यक्तिगत सेवाएँ : व्यक्तिगत सेवाएँ वे सेवाएँ होती है जो आमतौर पर ग्राहकों को उनकी आवशकता के अनुसार अलग - अलग तरीको से व्यक्तिगत रूप से प्रदान की जाती है | जैसे : पर्यटन, मनोरंजन सेवाएँ, होटल आदि |
व्यवसायिक सेवाएँ
व्यवसायिक सेवाएँ वो सेवाएँ होती है जिन्हें व्यवसायिक उद्यम अपनें कार्य संचालन में प्रयोग करती है |जैसे - बीमा, बैंकिंग, परिवहन आदि |
व्यवसायिक सेवाओं के प्रकार
बैंकिंग : बैंकिंग व्यवसायिक सेवाओं का एक प्रकार है जो बैंको और बैंकिंग कंपनियों द्वारा जनता को प्रदान की जाती है | बैंकिंग कंपनी वह कंपनी है जो बेंकिंग का व्यापार करती है | यह ऋण देती है और जमा स्वीकार करती है | बैंक जमा के रूप में धन स्वीकार करती है और ऋण देती है जिसे मांगनें पर लौटना होता है |
बीमा : मनुष्य का जीवन अनिश्चिताओं से भरा है कभी भी कुछ भी हो सकता है | बीमा इन्ही अनिश्चिताओं से होने वाले जोखिम के हानि को कम करता है | बीमा एक ऐसा समझौता है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को एक निश्चित प्रतिफल के बदले एक निर्धारित राशि देता है, ताकि दुर्घटना से हुई बीमाकृत वस्तु की हानि की भरपाई कि जा सके | यह समझौता लिखित में किया जाता है जिसे पॉलिसी कहते है |
संप्रेषण सेवाएँ : संप्रेषण सेवाएँ वो सेवाएँ होती है जो व्यवसायिक कंपनियों को दूसरे देशो, कंपनियों, लोगो तथा अन्य से संपर्क(contect) करने में सहायता करती है |व्यवसाय में संप्रेषण सेवाएँ सूचना सम्बंधित बाधा को दूर करता है |
परिवहन : परिवहन एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रकार की व्यवसायिक सेवा है | ये सेवाएँ व्यवसाय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि व्यवसाय में परिवहन स्थान सम्बंधित बाधा को दूर करता है | व्यवसायिक लेन-देन के लिए माल को एक जगह से दूसरी जगह पहुचना होता है, जिस समस्या को परिवहन दूर करता है |
भंडारण : भण्डारण भी एक प्रकार की व्यवसायिक सेवा है जिसमें व्यवसायिक इकाईयो को संग्रहण सम्बंधित सेवाएँ प्रदान की जाती है | माल के बनने से बिकने के बीच कुछ समय होता है इसलिए व्यवसायिक इकईयो को भंडारण की आवश्यकता होती है |
बैंकिंग
बैंकिंग
बैंकिंग व्यवसायिक सेवाओं का एक प्रकार है जो बैंको और बैंकिंग कंपनियों द्वारा जनता को प्रदान की जाती है | बैंकिंग कंपनी वह कंपनी है जो बेंकिंग का व्यापार करती है | यह ऋण देती है और जमा स्वीकार करती है | बैंक जमा के रूप में धन स्वीकार करती है और ऋण देती है जिसे मांगनें पर लौटना होता है |
भारतीय बैंक अधिनियम 1949 के अनुसार बैंकिंग का अर्थ है, ऋण देने अथवा विनियोग के लिए जनता से जमा स्वीकार करना |
बैंक: बैंक से अभिप्राय ऐसी संस्था से है जो मुद्रा का लेन - देन करती है तथा जमा के रूप में धन स्वीकार करती है और ऋण देती है जिसे मांगनें पर लौटना होता है | बैंक चेक, क्रेडिट कार्ड, ड्राफ्ट जैसी सुविधाएँ भी प्रदान करती है |
बैंको के प्रकार
वाणिज्यिक बैंक : वाणिज्यिक बैंक ऐसी संस्था है जो मुद्रा में लेन - देन करती है और जमा के रूप में धन स्वीकार करती है और ऋण देती है | ये बैंक मुख्य रूप से व्यवसायिक इकईयो को कई विशेष प्रकार सुविधाएँ प्रदान करती है जैसे - चेक सुविधा, धन का हस्तांतरण, बिलों का भुगतान, लॉकर सुविधा आदि |
सहकारी बैंक : सहकारी बैंक ऐसे बैंक होते है जो किसी विशेष समूह के लिए स्थापित किए जाते है | सहकारी बैंक राज्य सहकारी अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शाशित होते है तथा यह अपने सदस्यों को सस्ती दरो पर ऋण मुहैया करते है | जैसे - किसान सहकारी बैंक |
विशिष्ट बैंक : विशिष्ट बैंक ऐसे बैंक होते है जो किसी विशेष उद्देश्यों, विशेष कार्यो तथा विशेष जरूरतों की पूर्ति के लिए बनाए जाते है | ये बैंक औद्योगिक इकईयो, भारी परियोजनाओं एवं विदेशी व्यापार को वितीय सहायता प्रदान करती है | जैसे - विशिष्ट विदेशी बैंक, विकास बैंक, औद्योगिक बैंक आदि |
केंद्रीय बैंक : किसी भी देश का केंद्रीय बैंक उस देश के सभी बैंको के कार्यो, नीतियों को देखता है | यह उस देश के मुद्रा तथा ऋण सम्बंधित सभी नीतियों को नियंत्रित करता है तथा निगरानी करता है |
वाणिज्यिक बैंक के प्रकार
1. सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक : सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक वे बैंक होते है जिनमें सरकार का बड़ा हिस्सा होता है | ये सामाजिक उद्देश्यों पर ज़ोर देते है तथा लाभ कमाना इनका उद्देश्य नहीं होता है |
2. निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक : निजी क्षेत्र के बैंक वे बैंक होते है जिनका स्वामित्व, नियंत्रण, प्रबंधन(manegment) निजी लोगो के हाथो में होता है |इनका उद्देश्य लाभ कमाना होता है |
वाणिज्यिक बैंको के कार्य
1. वाणिज्यिक बैंको का मुख्य कार्य जमा स्वीकार करना है |
2. वाणिज्यिक बैंको का कार्य जमा के माध्यम से प्राप्त धन का प्रयोग कर जरूरतमन्दो को ऋण देना भी है |
3. बैंक अपने ग्राहकों को चेक, ड्राफ्ट, क्रेडिट - डेबिट कार्ड जैसी कई प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराती है |
4. वाणिज्यिक बैंक का एक महत्वपूर्ण तथा विशेष कार्य अपने ग्राहकों को धन हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना है | धन का हस्तांतरण बैंक ड्राफ्ट, भुगतान आदेश(पेआर्डर ), डाक द्वारा किया जाता है |
5. वाणिज्यिक बैंक इनके अलावा कई प्रकार कि सहयोगी सेवाएँ जैसे बिलों का भुगतान, लॉकर की सुविधा आदि सुविधाएँ भी उपलब्ध करता है |
ई-बैंकिंग का अर्थ
इन्टरनेट बैंकिंग का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कम्प्यूटर के द्वारा इन्टरनेट पर बैंको के वेबसाइट से जुड़कर अपने बैंक से जुड़े कार्य कर सकता है तथा बैंको से जुड़े लाभ प्राप्त कार सकता है | इन्टरनेट पर बैंको की सेवाएँ प्रदान करनें को ही ई-बैंकिंग कहतें है |
ई-बैंकिंग से ग्राहकों को लाभ
(i) ई-बैंकिंग की सेवाएँ 24 घंटें 365 दिन अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराता है |
(ii) ग्राहक ई-बैंकिंग का लाभ कही भी कभी भी ले सकतें है जिससे श्रम तथा समय की बचत होती है |
(iii) इससे प्रत्येक लेनदेन रजिस्टर हो जाता है इससे वितीय अनुशाशन आता है |
(iv) ई-बैंकिंग ग्राहकों की जोखिम को कम करता है क्योकि धन जमा करने के लिए बैंको में जाने की जरूरत नहीं होती है |
(v) ई-बैंकिंग अपने ग्राहकों को क्रेडिट तथा डेबिट कार्ड की सुविधा प्रदान करती है |
(vi) ई-बैंकिंग से कागजी कार्यवाही कम होती है |
ई-बैंकिंग से बैंको को लाभ
(i) ई-बैंकिंग बैंको के कार्यभार को कम करता है |
(ii) ई-बैंकिंग समय तथा श्रम की बचत करता है |
(iii) ई-बैंकिंग के के कारण बैंको का कार्यभार कम होता है जिससे बैंको में भीड़ कम होती है |
(iv) इससे बैंक की प्रतियोगी शक्ति बढ़ती है |
(v) ई-बैंकिंग से कागजी कारवाही कम होती है |
ई-बैंकिंग की हानियाँ तथा सीमाएँ
(i) ई-बैंकिंग के कारण हमारी जानकारियां गोपनीय नहीं रहती तथा कोई भी हमारी जानकारियों का दुरूपयोग कर सकता है |
(ii) ई-बैंकिंग की एक महत्वपूर्ण सीमा यह है की इसका प्रयोग करनें के लिए कम्प्यूटर कि जानकारी जैसी तकनीकी ज्ञान होना जरूरी है |
(iii) ई-बैंकिंग के प्रयोग के लिए कम्प्यूटर तथा इन्टरनेट का उपलब्ध होना जरूरी है |
बीमा
बीमा
मनुष्य का जीवन अनिश्चिताओं से भरा है कभी भी कुछ भी हो सकता है | बीमा इन्ही अनिश्चिताओं से होने वाले जोखिम के हानि को कम करता है | बीमा एक ऐसा समझौता है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को एक निश्चित प्रतिफल के बदले एक निर्धारित राशि देता है, ताकि दुर्घटना से हुई बीमाकृत वस्तु की हानि की भरपाई कि जा सके | यह समझौता लिखित में किया जाता है जिसे पॉलिसी कहते है |
बीमाकार - वह व्यक्ति जो बीमा करता है |
बीमाकृत- वह व्यक्ति जो बीमा कराता है |
बीमाकृत वस्तु - वह वस्तु जिसका बीमा हुआ है |
बीमा का आधारभूत सिद्धांत : बीमा का आधारभूत सिद्धांत अनिश्चित घटना से होने वाली क्षतिपूर्ति को कम करना तथा घटना से होने वाली हानि को कम करना है | क्षतिपूर्ति का सिद्धांत ही बीमा का आधारभूत सिद्धांत है |
बीमा एक सामाजिक व्यवस्था : बीमा एक सामाजिक व्यवस्था है क्योंकि दुर्घटना से होने वाली हानि की भरपाई सभी सदस्य मिलकर करतें है | बीमा कई सारे व्यक्ति कराते है , उसके प्रीमियम से जो कोष तैयार होता है | उसका प्रयोग किसी भी बीमाकृत की हानि की भरपाई के लिए प्रयोग किया जाता है, फिर अगली बार किसी और बीमाकृत की हानि की भरपाई के लिए प्रयोग किया जाता है | इस प्रकार सभी सदस्य एक व्यक्ति की हानि का वहन सभी मिलकर करतें है |
बीमा के कार्य
1. बीमा बीमाकृत को निश्चिता प्रदान परता है | किसी घटना से होने वाली हानि को बीमा सुनिश्चित करता है |
2. बीमा घटना से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति करता है | बीमा किसी घटना को रोक नहीं सकता लेकिन इससे होने वाली हानि की पूर्ति कार सकता है |
3. बीमा जोखिम को बांटता है | यदि जोखिम वाली घटना होती है तो इससे होने वाली हानि को वे सभी व्यक्ति मिलकर वहन करते है जिन्हें इन जोखिमो का सामना करना है |
4. बीमा प्रीमियम के रूप में एकत्रित धन को कई प्रकार की योजनाओ में विनियोग कर पूंजी निर्माण में सहायता करता है |
बीमा के सिद्धांत
बीमा के सिद्धांत कार्यवाही तथा आचरण के ऐसे नियम है जो बीमा व्यवसाय से सम्बंधित सभी व्यक्तियों द्वारा मान्य होता है और उसे बीमा व्यवसाय में अपनाया जाता है |बीमा के सिद्धांत निम्न है :
पूर्ण सद्विश्वास का सिद्धांत : क्षतिपूर्ति के सिद्धांत के अनुसार बीमा करने वाले को बीमा करवाने वाले व्यक्ति से समझौते से सम्बंधित कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए, उन्हें एक दूसरे के प्रति सद्विश्वास दिखाना चाहिए | बीमाकार को बीमे से सम्बंधित सभी शर्ते स्पष्ट कर देना चाहिए तथा बीमाकृत को सभी जानकारियां सही देना चाहिए |
बीमायोग्य हित का सिद्धांत :
क्षतिपूर्ति का सिद्धांत : क्षतिपूर्ति के सिद्धांत के अनुसार बीमाकर हानि होने पर बीमाकृत को उसी स्थिति में वापस लाने का वचन देता है जिस स्थति में वह घटना होने के पहले था | दूसरे शब्दों में बीमाकार घटना से हुई हानि की क्षतिपूर्ति का दायित्व लेता है | क्षतिपूर्ति का सिद्धांत जीवन बीमा पर लागू नहीं होता क्योंकि जीवन के हानि की क्षतिपूर्ति करना संभव नहीं है |
निकटतम कारण का सिद्धांत : निकटतम कारण के सिद्धांत के अनुसार बीमा कंपनी केवल उन्ही हानिओं की पूर्ति करती है जो कारण पॉलिसी में लिखे हो | जब हानि दो या दो से अधिक कारणों से हुई होतो हनी की पूर्ति तभी होगी जब वह निकटतम कारण से हुई हो |
अधिकार समर्पण का सिद्धांत : अधिकार समर्पण के सिद्धांत के अनुसार जिस वस्तु का बीमा, बीमाकृत ने कराया है उसकी हानि होने पर या उसे क्षति पहुँचने पर उसकी हानि की क्षतिपूर्ति हो जाती है तो उस वस्तु पर बीमा कंपनी का अधिकार होगा | ऐसा इसलिए होता है ताकि बीमाकार इसे बेचकर लाभ कमा सके |
योगदान का सिद्धांत : योगदान के सिद्धांत के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक ही वस्तु का बीमा एक से अधिक बीमा कंपनियों से कराता है तो इसका यह अर्थ नहीं है की सभी कंपनिया हानि की अलग - अलग क्षतिपूर्ति करेंगे | भुगतान सभी द्वारा किया जाएगा परन्तु एक निश्चित अनुपात में | परन्तु जीवन बीमा में एक से अधिक बीमा कंपनियों से बीमा कराते है तो सभी कंपनिया अलग - अलग भुगतान करेंगे |
हानि को कम करनें का सिद्धांत : हानि को कम करनें के सिद्धांत के अनुसार बीमा करने वाले का फ़र्ज़ है कि वह बीमा कराई गई वस्तु की हानि को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए |
बीमा के प्रकार
1. जीवन बीमा
2. साधारण बीमा
(क) समुद्रिक बीमा
(ख) अग्नि बीमा
(ग) अन्य बीमा
जीवन बीमा
जीवन बीमा से अभिप्राय ऐसे बीमे से है जिसके अंतर्गत बीमा कंपनी एक निर्धारित प्रीमियम प्राप्त करने के फलस्वरूप बीमाकृत को निश्चित अवधि के पूरे होने या मृत्यु होने पर ही निश्चित धनराशि देने का वचन देती है |
जीवन बीमा के आधारभूत सिद्धांत
(i) पूर्ण सद्विश्वास के सिद्धांत
(ii) बीमायोग्य हित का सिद्धांत
पॉलिसी
पॉलिसी एक लिखित समझौता होता है, जिसनें बीमा से समबन्धित सभी शर्तें लिखी होती है | जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को एक निश्चित प्रतिफल के बदले एक निर्धारित राशि देता है, तथा बीमाकार दुर्घटना से हुई बीमाकृत वस्तु की हानि की भरपाई का वचन देता है |
जीवन बीमा पॉलिसी के प्रकार
1.आजीवन बीमा पॉलिसी : आजीवन बीमा पॉलिसी में बीमाराशि बीमाकृत को बीमा किये गए व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही मिलेगी | बीमाराशि मरने वाले के उतराधिकारियो को मिलेगा |
2. बंदोबस्ती जीवन बीमा पॉलिसी : बंदोबस्ती जीवन बीमा पॉलिसी से अभिप्राय ऐसी जीवन बीमा पॉलिसी से है जिसमे निश्चित समयावधि के लिए बीमा कराया जाता है | निश्चित समय से पुर्व ही यदि बीमाकृत की मृत्यु हो जाती है तो मनोनीत व्यक्ति को बीमाराशि मिलेगी, परन्तु यदि निर्धारित समयावधि के बाद भी वह जिन्दा है तो उसे धन मिलेगा |
3. संयुक्त बीमा पॉलिसी : संयुक्त बीमा पॉलिसी दो या दो से अधिक लोगो द्वारा ली जाती है | प्रीमियम को दोनों मिलकर भरतें है | यह आमतौर पर पति - पत्नी, साझेदारो द्वारा ली जाती है | यदि किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो दूसरा प्रीमियम भरेगा और उसे ही बीमाराशि मिलेगा |
4. वार्षिक वृति पॉलिसी : वार्षिक वृति पॉलिसी के अंतर्गत प्रीमियम एक निर्धारित आयु के बाद मासिक, त्रयमासिक, तथा वार्षिक किश्तों में भरी जाती है |
5. बच्चो की बंदोबस्ती बीमा पॉलिसी : बच्चो की बंदोबस्ती बीमा पॉलिसी आमतौर पर अपने बच्चो की पढाई, शादी आदि के लिए लेते है | इस पॉलिसी के अनुसार बीमाकृत बच्चे को एक निश्चित आयु के बाद बीमाराशि मिलेगी |
अग्नि बीमा
अग्नि बीमा एक ऐसा समझौता है, जिसमें बीमाकार निर्धारित प्रीमियम के बदले पॉलिसी में लिखित अवधि के दौरान आग से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का दायित्व लेता | अगनी बीमा सामान्यतः एक वर्ष के लिए कराया जाता है जिसको हर साल रिन्यूअल(नवीनीकरण) करना होता है |
अग्नि से होने वाली हानि का दावा करने के लिए आवश्यक शर्तें :
1. हानि सही में हुई हो |
2. आग दुर्घटना से लगी हो जान बूझकर ना लगाई गई हो |
3. हानि आग से हुई हो या निकटतम कारण से जो पॉलिसी में वर्णित हो |
अग्नि बीमा के आधारभूत सिद्धांत
1. बीमायोग्य हित का सिद्धांत |
2. क्षतिपूर्ति का सिद्धांत |
3. निकटतम कारण का सिद्धांत |
4. पूर्ण सद्विश्वास का सिद्धांत |
समुद्रिक बीमा
समुद्रिक बीमा एक ऐसा समझौता है, जिसमें बीमाकार निर्धारित प्रीमियम के बदले पॉलिसी में लिखित अवधि के दौरान समुद्री जोखिमो से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का दायित्व लेता |समुद्रिक बीमा समुद्र मार्ग से यात्रा दौरान समुद्री जोखिमो से होने वाली हानि से सुरक्षा प्रदान करता है |
कुछ सामान्य समुद्री जोखिम
1. जहाज का टकरा जाना |
2. दुश्मनों द्वारा जहाज पर हमला |
3. आग लग जाना |
4. समुद्रिक डाकुओं द्वारा बंधक बना देना |
5. जहाज के कप्तान अथवा कर्मचारिओं की गलती |
समुद्रिक बीमा के प्रकार
(क) जहाज बीमा : जहाज बीमा में बीमाकार जहाज को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का दायित्व लेता है | जहाज से सम्बंधित जोखिम कई सारे होतें है जैसे - जहाज का टकरा जाना |
(ख) माल का बीमा : माल बीमा में बीमाकार माल को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का दायित्व लेता है | माल से सम्बंधित जोखिम कई सारे होतें है जैसे - माल का चोरी होना, रास्तें में माल को हानि |
(ग) भाड़ा बीमा : रास्ते में अगर किसी माल को कुछ हो जाता है तो जहाज जिस कंपनी का है उसे भाड़ा नहीं मिलेगा | भाड़ा बीमा में बीमाकार भाड़े को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का दायित्व लेता है | तथा भाड़ा बीमा इस हानि की पूर्ति करेगा |
समुद्रिक बीमा के आधारभूत सिद्धांत
1. बीमायोग्य हित का सिद्धांत |
2. क्षतिपूर्ति का सिद्धांत |
3. निकटतम कारण का सिद्धांत |
4. पूर्ण सद्विश्वास का सिद्धांत |
संप्रेषण सेवाएँ
संप्रेषण सेवाएँ
संप्रेषण सेवाएँ वो सेवाएँ होती है जो व्यवसायिक कंपनियों को दूसरे देशो, कंपनियों, लोगो तथा अन्य से संपर्क(contect) करने में सहायता करती है |व्यवसाय में संप्रेषण सेवाएँ सूचना सम्बंधित बाधा को दूर करता है |
संप्रेषण सेवाओं के प्रकार
डाक सेवाएँ : डाक सेवा संचार का एक बहुत पुराना माध्यम है | भारत में भारतीय डाक सेवा पूरे भारत में डाक सेवाएँ प्रदान करता है | इन सेवाओं को लोगो तक पहुँचाने के लिए देश को 22 डाक समूहों में बंटा गया है |
टेलिकॉम सेवाएँ :
डाक सेवाएँ
डाक सेवा संचार का एक बहुत पुराना माध्यम है | भारत में भारतीय डाक सेवा पूरे भारत में डाक सेवाएँ प्रदान करता है | इन सेवाओं को लोगो तक पहुँचाने के लिए देश को 22 डाक समूहों में बंटा गया है |
भंडारण
भंडारण
भंडारण एक प्रकार की व्यवसायिक सेवा है जिसमें व्यवसायिक इकाईयो को संग्रहण सम्बंधित सेवाएँ प्रदान की जाती है | माल के बनने से बिकने के बीच कुछ समय होता है इसलिए व्यवसायिक इकईयो को भंडारण की आवश्यकता होती है |
भंडारगृह
भंडारगृह ऐसे गोदाम होते है जहाँ संग्रहण सेवाएं प्रदान की जाती है ये यह कम कीमत पर माल के भंडारण तथा वितरण की सेवाएँ भी प्रदान करती है |
भंडारगृह के प्रकार
निजी गोदाम : निजी गोदाम ऐसे गोदाम होते है जिसे कोई व्यवसायी या उद्यमी अपने माल के भंडारण के लिए चलता है | ये गोदाम उसके अपने हो सकते है |
सार्वजानिक गोदाम : सार्वजानिक गोदाम ऐसे गोदाम होते है जिसे कोई भी व्यक्ति, व्यवसायी या उद्यमी फीस देकर अपने माल को रखने के लिए प्रयोग कर सकता है|
बंधक माल गोदाम : बंधक माल गोदाम ऐसे गोदाम होते है
सरकारी गोदाम : सरकारी गोदाम ऐसे गोदाम होते है जिसे सरकार चलाती है और नियंत्रित करती है |
सहकारी गोदाम : सहकारी गोदाम ऐसे गोदाम होते है जिसे कुछ सहकारी संगठन अपनें सदस्यों की सहायता के लिए स्थापित करती है |
निजी गोदामों के लाभ
1. निजी गोदामों पर मालिक का प्रभावशाली नियंत्रण होता है वह अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकता है |
2. निजी गोदामों में लचीलापन पाया जाता है इनका उद्देश्य लाभ कमाना होता है |
3. निजी गोदामों के कारण ग्राहकों से बेहतर सम्बन्ध हो जाते है |
सार्वजानिक गोदामों के लाभ
1. ये भंडारगृह रेल और सड़क से माल को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने जैसी सुविधाएँ देती है |
2. इन पर माल की सुरक्षा का भार होता है |
3. ये जगह - जगह स्थित होते है और इनका खर्च निश्चित होता है |
4. ये पैकेजिंग और लेबल जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराती है |
भंडारगृहों के कार्य
1. विभिन्न प्रकार के माल को इकट्ठा करना तथा उनका संग्रहण करना |
2. संग्रहित माल को छोटे - छोटे भागो में बाँट कर उन्हें ग्राहकों तक पहुँचाना |
3. कुछ वस्तुएं विशेष मौसम में ही उपलब्ध होती है इसलिए गोदामों में उस माल के स्टॉक को संग्रहित करना भी गोदामों का एक काम है |
4. ये पैकेजिंग और लेबल जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध करना इनका कार्य है |
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Business Study Chapter List
Chapter 1. व्यवसाय के आधार
Chapter 2. व्यावसायिक संगठन के स्वरुप
Chapter 3. निजी, सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम
Chapter 4. व्यावसायिक सेवाएँ
Chapter 5. व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ
Chapter 6. व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं व्यावसायिक नैतिकता
Chapter 7. व्यासायिक संगठन, वित्त एवं व्यापार
Chapter 8. व्यावसायिक वित्त के स्रोत
Chapter 9. लघु व्यवसाय
Chapter 10. आतंरिक व्यापार
Chapter 11. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 1
Chapter 12. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 2
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