Chapter 3. निजी, सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम | निजी क्षेत्र Business Study class 11
Chapter 3. निजी, सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम | निजी क्षेत्र Business Study class 11
निजी क्षेत्र
chapter-3 निजी, सार्वजानिक एवम भूमंडलीय उपक्रम .
निजी क्षेत्र : निजी क्षेत्र की स्थापना निजी स्वामित्व के रुप में होती हैं इस क्षेत्र के उपक्रमों को निजी कहने का अभिप्राय यह हैं की इन पर स्वामित्व पूर्णत निजी लोगो का होता हैं और किसी भी राज्य या केंद्रीय सरकार का स्वामित्व के दृष्टिकोण से कोई हस्तक्षेप नहीं होता |
निजी क्षेत्र/उपक्रमों की विशेषताएँ :
(1) लाभ उदेश्य - निजी क्षेत्र का मुख्य उदेश्य लाभ कमाना हैं
(2) निजी स्वामित्व : इस क्षेत्र के उपक्रमों पर स्वामित्व पूर्णत :निजी लोगो का होता हैं और किसी भी राज्य या केंद्रीय सरकार का स्वामित्व के दृष्टिकोण से कोई हस्तक्षेप नहीं होता |
(3) निजी प्रबंध : इनका प्रबंध स्वयं व्यवसाय के स्वामियों द्वारा किया जाता हैं कम्पनी की दशा में अन्स्धारियों द्वारा मनोनीत संचालक मंडल व्यवसाय की देख रेख करता हैं
(4) कम राजनितिक हस्तक्षेप : इस क्षेत्र में राजनितिक हस्तक्षेप प्राय: होता हैं |
सार्वजनिक क्षेत्र की बदलती भूमिका
सार्वजनिक उपक्रम देश के आर्थिक विकास के आधार होते है लेकिन इनमे अनेक कमियां भी होती है देश के संतुलित आर्थिक विकास के लिये सार्वजनिक क्षेत्र पर निर्भरता को कम करने से कमियों को दूर किया जा सकता है इसलिए अधिकांश उपक्रम निजी क्षेत्रो को सोंप दिए गये कुछ उद्दोगो को आरक्षित कर लिया गया इस तरह सार्वजानिक क्षेत्र में बदलाव आया |
(1) आरक्षित उद्दोगों की संख्या में कमी : सन 1991 से पहले 17 ऐसे उद्दोग थे जिन्हें केवल सार्वजनिक क्षेत्र ही चला सकता था अब इनकी संख्या घटकर 3 रह गयी है जो इस प्रकार है: (a) परमाणु सकती (b) हथियार (c) रेल यातायात |
(2) पेशेवर प्रबंध : सार्वजनिक उपक्रमों में प्रबंधकीय अकुशलता को समाप्त करने के लिय आई. ए. एस. अधिकारियों के स्थान पर पेशेवर प्रबंधकों की नियुक्ति की जाने लगी हैं |
(3) एम. ओ. यू. अवधारणा लागू करना : इस अवधारणा के अंतर्गत सरकार इस उपक्रम के लिय एक लक्ष्य निर्धारित करती हैं जिसे पूरा करने के लिय स्वतंत्रता भी प्रदान करती हैं यदि यह लक्ष्य पूरा नही होता तो इसके लिय उतरदायित्व केवल प्रबंधक ही होगा |
(4) सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण : इस समय सरकार निजीकरण पर विशष ध्यान दे रही हैं जो एक अहम कदम हैं इसलिय सरकार सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश कर रही हैं जिसमें सरकार का केवल 26%या उससे कम की भागीदारी होती हैं सरकार ने कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किया हैं जैसे: vsnl, mmtc आदि
(5) औद्धोगिक व वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड द्वारा पुनरुद्धार करना : सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की बीमार इकाईयों को पुनः जीवित करने के उद्देश्य से bifr की स्थापना की गयी |
(6) नेशनल रिन्युवल फंड का प्रावधान : सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा nrf की स्थापना की गयी हैं| इस फंड की स्थापना 1992 में की गई थी| इस फंड का उद्देश्य मुख्यतः उन कर्मचारियों की सहायता करना हैं जो या तो अतिरिक्त घोषित कर दिए गए हैं अथवा ऐच्छिक सेवानिवृति ले रहे हैं |
सार्वजानिक क्षेत्र /उपक्रम
सार्वजानिक क्षेत्र /उपक्रम :
परिभाषा : सार्वजनिक अथवा राजकीय उपक्रमों का अभिप्राय ऐसे उपक्रमों से है जो सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं और जिनका स्वामित्व व प्रबंध भी सरकार के हाथों में होता है अत : केवल उन सरकारी संस्थाओं को ही सार्वजनिक उपक्रम कहा जाता है जो आर्थिक अथवा व्यवसायिक क्रियाएँ करती है |
सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ :
(1) राजकीय स्वामित्व : सार्वजनिक उपक्रमों का स्वामित्व या तो पूर्णतया केन्द्रीय, राज्य या स्थानीय सरकार के पास होता हैं इसमें सरकार की अंशपूंजी का लगभग 51 प्रतिशत भाग होना आवश्यक हैं |
(2) राजकीय नियंत्रण : सार्वजनिक उपक्रमों का प्रबंध एवंम नियंत्रण सरकार के हाथो में होता हैं कुछ उपक्रमों की स्थापना सरकार अपने ही विभागों के अन्तरगत करती है जैसे डाक-तार सेवा |
(3) वित्तीय स्वतंत्रता : सार्वजनिक उपक्रमों की लगभग सभी वित्तीय आवश्यकताएँ सरकार द्वारा पूंजी विनियोग के माध्यम से पूरी की जाती है |
(4) सेवा उद्देश्य : राजकीय उपक्रमों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य समाज को सेवाएँ प्रदान करना होता है |
(5) जनता के प्रति उत्तरदेयता : राजकीय उपक्रम न केवल सरकार, बल्कि जनता के प्रति भी उत्तरदायी होता है |
(6) सभी वर्गों के लिए उपयोगी : सार्वजनिक उपक्रम समाज के किसी एक वर्ग की ही सेवा नही करते बल्कि ये सबके लिए उपयोगी है |
सार्वजनिक उपक्रम के प्रारूप-
(A) विभागीय उपक्रम : सार्वजनिक उपक्रमों को संचालित करने का यह सबसे अधिक प्रचलित स्वरुप है यह सरकारी स्वामित्व के नियंत्रण में होता है इनका प्रबंध मंत्रालय द्वारा किया जाता है यह उपक्रमों के वर्ष भर कार्य कलापों, प्रगति अन्य सम्बंधित मामलो की रिपोर्ट तैयार करके संसद में प्रस्तुत की जाती है ये संसद के प्रति जवाबदेह होते है इसके अंतर्गत भारतीय डाक तार विभाग आदि समिलित है |
विशेषताएँ -
(1) स्थापना : इनकी स्थापना एक सरकारी विभाग के रूप में सरकार द्वारा की जाती है |
(2) स्वामित्व : इन उपक्रमों पर पूर्ण सरकारी स्वामित्व होता है |
(3) प्रबंध : इनका प्रबंध मंत्रालय द्वारा किया जाता है विभागीय सचिव इनका मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है |
(4) पृथक अस्तित्व नही : इन उपक्रमों कर पृथक अस्तित्व नही होता यह न तो सरकार की अनुमति के बिना किसी पर मुकदमा नही कर सकता और न ही इन पर मुकदमा किया जा सकता है |
लाभ-
(1) सरल स्थापना : इन उपक्रमों की स्थापना बहुत सरल है क्योकि इनको पंजीकरण करवाने की आवश्कता नही होती |
(2) कार भार में कमी : सरकार अपने व्ययों को पूरा करने के लिए जनता पर कर लगाती है जब विभागीय उपक्रमों से आय होने लगती है एसी स्थिति में सरकार आम जनता के कर भार में कमी करती है |
(3) सरल वित व्यवस्था : क्योकि वित व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है इसलिए वित व्यवस्था करना बहुत सरल है :
(4) फंडो का उचित उपयोग : इन उपक्रमों की सभी गतिविधिया सरकारी अनुमति से की जाती है इसलिए इनमे फंडो के दुरूपयोग का प्रश्न ही नही उठता |
सीमाएँ -
(1) शीघ्र कार्यवाही की कमी : केन्द्रीय नियंत्रण व्यवस्था तथा अत्यधिक औपचारिकताओं के कारण प्राय: निर्णय लेने में देरी होती हैं यही कारण हैं की अनेक लाभ के अवसर हाथ से निकल जाते हैं |
(2) लोचशीलता की कमी : कठोर सरकारी नियमो के कारण लोचशीलता में कमी रहती हैं जबकि एक सफल उपक्रम के लिय लोचशीलता आवश्यक हैं |
(3) कर भार में वृद्धि : भारी हानि की दशा में विभागीय उपक्रमों की हानियों का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता हैं इसकी भरपायी के लिय सरकार जनता पर अधिक कर लगाती हैं |
(4) अधिक राजनितिक हस्तक्षेप : इसमें मंत्रालय के माध्यम से राजनितिक हस्तक्षेप अधिक होता हैं |
(B) वैधानिक उपक्रम - वैधानिक उपक्रम वे सार्वनिक उधम हैं जिनकी स्थापना संसद के विशेष अधिनियम के द्वारा की जाती हैं यह निगमित संगठन जिसकी स्थापना विधान मंडल द्वारा की जाती हैं तथा यह निर्धारित क्षेत्र पर इनका स्पष्ट नियंत्रण होता हैं यह वित्त मामलों में स्वतंत्र होते हैं और इनमे निजी उधमों के समान परिचालन में पर्याप्त लचीलापन होता हैं |
विशेषताएँ -
(1) स्थापना : इनकी स्थापना संसद द्वारा पारित अधिनियम द्वारा होती हैं इन्ही प्रावधानों के अनुसार इनका संचालन किया जाता हैं |
(2) स्वामित्व : ये पूरी तरह से सरकार के स्वामित्व में होती हैं इनमें लाभ तथा हानि का वहन सरकार ही करती हैं और वित्त के सम्बन्ध में अंतिम उतरदायित्व सरकार का ही होता हैं |
(3) प्रबंध : निगमों का प्रबंध सरकार द्वारा मनोनीत संचालको द्वारा किया जाता हैं |
(4) पृथक वैधानिक अस्तित्व : इनका पृथक वैधानिक अस्तित्व होता हैं अर्थात् यह अपने नाम से सम्पति खरीद सकते हैं और मुकदमा कर सकते हैं आदि |
लाभ -
(1) संचालन में स्वतंत्रता : सार्वजनिक निगमों के संचालन में किसी तरह का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता |
(2) शीघ्र निर्णय : अनावश्यक औपचारिकताओं एवंम लाल फीताशाही न होने के कारण निर्णय शीघ्र लिय जाते हैं |
(3) समाज सेवा उद्देश्य : समाज सेवा निगमों का मुख्य एवंम लाभ गौण उद्देश्य होता हैं |
(4) समाज के हितों की सुरक्षा : यह संसद के प्रति जवाबदेह होते हैं जवाबदेह से बचने के लिय निगम जनता के धन का अधिकतम सदुपयोग करते हैं परिणामत : समाज के हित सुरक्षित रहते हैं |
सीमायें -
(1) अपूर्ण संचालन स्वतंत्रता : इनमें पूरा सरकारी हस्तक्षेप होता हैं परिणामस्वरूप ये स्वतंत्रतापूर्वक निर्णय नहीं ले सकते |
(2) प्रतियोगी भावना का आभाव : इनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता इसलिए ये अपनी गतिविधियों में लापरवाही करते हैं इससे हनी की सम्भावना बनी रहती हैं |
(3) सेवा उद्देश्य को अनदेखा करना : संचालन मंडल के सदस्य अपनी शक्तियों का उपयोग सामाजिक हित में कम और व्यक्तिगत हित में आधिक करते हैं अत : इनका सेवा उद्देश्य मात्र एक दिखावा हैं |
उपयोगिता -
(1) जहाँ आधिक मात्र में पूंजी की आवश्यकता हो |
(2) जहाँ सार्वजनिक हित सर्वोपरि हो |
(C) सरकारी कंपनी - यह एक ऐसी कम्पनी हैं जिसकी चुकता अंश पूंजी का कम से कम 51 प्रतिशत भाग केन्द्रीय या राज्य सरकारों के पास होता हैं तथा इसका पंजीकरण भारतीय कम्पनी अधिनियम ,1956 के अंतर्गत होता हैं |
यह दो प्रकार की होती हैं (1) पूर्ण स्वामित्व वाली (2) मिश्रित स्वामित्व वाली |
(1) पूर्ण स्वामित्व वाली : सरकारी कंपनियां , जिनकी सम्पूर्ण अंशपूंजी सरकार के पास होती हैं |
(2) मिश्रित स्वामित्व वाली : सरकारी कंपनियां ,जिनकी अंशपूंजी में सरकार व जनता दोनों भागीदार होते हैं ,परन्तु अधिकांश पूंजी सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं |
विशेषताएं -
(1) स्थापना : इनकी स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम ,1956 के प्रावधानों के अनुसार होती हैं यदि सरकार चाहे तो इन प्रावधानों के सम्बन्ध में छुट दे सकती है लेकिन यह छुट संसद द्वारा अधिकृत होनी चाहिये |
(2) स्वामित्व : इनकी चुकता अंशपूंजी का कम से कम 51% भाग केन्द्रीय/राज्य सरकार के पास होती है |
(3) प्रबंध : इनका प्रबंध संचालक मंडल द्वारा किया जाता है |
(4) वित्त व्यवस्था : ये कंपनियां सरकार व जनता दोनों से वित्त प्राप्त कर सकती है |
लाभ:-
(1) सरल स्थापना : इनकी स्थापना के लिए विशेष अधिनियम को पास करने की आवश्यक नही है कंपनी अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने पर ही इनका पंजीकरण हो सकता है |
(2) शीघ्र निर्णय : अनावश्यक औपचारिकताओं एवं लालफीताशाही न होने के कारण निर्णय शीघ्र लिए जाते है
(3) लोचशीलता : आवश्कता पड़ने पर ये अपने नियमो में तुरंत बिना किसी कठिनाई के परिवर्तन कर सकते है |
(4) संचालन में स्वतंत्रता : सरकारी हस्तक्षेप न होने के कारण सरकारी कंपनिया अपनी गतिविधियों का संचालन स्वतंत्रतापूर्वक कर सकती है
सीमाएँ :-
(1) अपूर्ण संचालन स्वतंत्रता : सरकारी कंपनियों के संचालक मंडल में अधिकांश संचालक सरकार द्वारा मनोनीत किये जाते है | ये लोग विभिन्न सरकारी मंत्रालयों से लिए जाते है | विभिन्न मंत्रालय अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से कंपनी के संचालन में हस्तक्षेप करते है की उन्हें पूर्ण संचालन स्वतंत्रता नही होती |
(2)नीतियों में स्थायित्व नही : हर नया व्यक्ति अपने अनुसार कंपनी को चलाना चाहता हैं इस प्रकार बार- बार नीतियों में परिवर्तन से कंपनी के उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता |
(3) पेशेवर कुशलता की कमी : कुशलता प्राय: सरकार द्वारा मन्नोनित संचालको में नही होती|कंपनी एक व्यवसायिक उपकर्म के स्थान पर सरकारी विभाग बन कर रह जाता है|
4) सार्वजानिक जवाबदेही का डर: सरकारी कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट को संसद में प्रसतुत किया जाता है | संसद में आलोचना के डर से उच्च प्रबंधक जोखिम वाले निर्णय नही लेते | जबकि व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है| ये कंपनिया व्यवसायिक दृष्टिकोण से पिछाड़ी जाती है|
उपयोगिता-
(1) जहाँ सरकार के साथ-साथ निजी भागीदारी भी आवश्यक हो |
(2) जहाँ आर्थिक गतिविधियों को बढावा देना हो: जैसे भारतीय राजकीय व्यापार निगम की स्थापना |
(3) जहाँ विभिन्न पक्षकारो का हित खतरे में हो: जैसे सरकार ने क्रमचारियों, विक्रेताओ व जनता के हित मे स्वदेशी कॉटन मिल्ज के अधिकांश अंश क्रय कर लिए थे |
(4) जहाँ सरकार की इच्छा एक नए उपक्रम करके निजी क्षेत्र में हस्तांतरित करने की हो|
मिश्रित क्षेत्र
मिश्रित क्षेत्र
परिभाषा: सार्वजनिक एवंम निजी क्षेत्र के मध्य साझेदारी के रूप में चलाए जाने वाले व्यवसाय इस क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं |
भारत में इस क्षेत्र की आवश्यकता सबसे पहले औधोगिक निति,1956 में प्रस्तुत की गयी थी इसका प्रबंध निजी क्षेत्र के हाथों में होता हैं लेकिन सरकार संचालक मंडल में अपने प्रतिनिधि मनोनीत करके इन पर नियंत्रण करती हैं | केन्द्रीय सरकार के निर्देशन के अनुसार इन कंपनियों में अंशपूंजी का बंटवारा निम्न प्रकार होना चाहिए :
(1) सरकार : 26%
(2) निजी उपक्रम : 25%
(3) जनता एवं वित्तीय संस्थाए : 49%
भारत में मिश्रित क्षेत्र में स्थापित मुख्य उद्योग इस प्रकार हैं : मद्रास फर्टिलाईज़र्स, गुजरात फर्टिलाईज़र्स |
बहुराष्ट्रीय कम्पनी
बहुराष्ट्रीय कम्पनी
बहुराष्ट्रीय कम्पनी का अर्थ: एक ऐसी कम्पनी से है जिसका पंजीयन किसी एक देश में होता है लेकिन वह माल का उत्पादन एवं विक्रय अनेक देशों में करती है इन्हें global corporation भी कहते हैं |
बहुराष्ट्रीय कम्पनी की परिभाषा : आई. बी. एम. वर्ल्ड ट्रेड कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के अनुसार, "एक बहुराष्ट्रीय निगम वह हैं जो
(1) अनेक देशों में अपनी गतिविधियों को चलाते हैं,
(2) उन देशों में अनुसन्धान, विकास एवं निर्माण का कार्य करता हैं,
(3) जिसका बहुराष्ट्रीय प्रबंध होता हैं,
(4) जिस पर बहुराष्ट्रीय स्वामित्व होता हैं, |
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विशेषताएँ :
(1) विश्व स्तर पर फैलाव : बहुराष्ट्रीय कम्पनी का व्यवसाय अनेक देशों में फैला होता हैं | यह कंपनी मेज़बान देशों की स्थानीय दशाओं का पूरा लाभ उठती हैं ; जैसे- कच्चे माल का प्रयोग करना |
(2) उच्च क्वालिटी के उत्पाद : बहुरास्ट्रीय कंपनी को विश्व स्तर पर प्रतियोगिता का सामना करना होता हैं इसलिय उत्पादों की क्वालिटी पर इसका विशेष ध्यान होता हैं |
(3) बड़ा आकार : बहुराष्ट्रीय कंपनी की संपतियां बहुत आधिक होती हैं ibm की सम्पतियों का मूल्य लगभग 8 मिलियन डॉलर हैं | इसी प्रकार एक अन्य कंपनी itt की 70 देशों में लगभग 800 शाखाएं हैं |
(4) अंतराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँच : अनेक उत्पादों, अच्छी क्वालिटी, बड़े स्तर पर अनुसन्धान, बढ़िया विपणन सुविधाओं आदि के कारन यह कंपनी अंतराष्ट्रीय बाज़ार में जल्दी ही अपनी पहचान बना लेती हैं |
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ :
(1) रोजगार में वृद्धि : बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना से स्थानीय लोगो को रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त हुए है | क्योंकी ये कम्पनियां बड़े स्तर पर व्यवसाय करती है इसलिए इनमें बहुत अधिक लोगों की भर्ती की जाती है |
(2) विदेशी विनियोग में वृद्धि : इनका मुख्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा प्राप्त करना है जिसकी आवश्यकता विदेशी विनियोग में किया जाता है |
(3) नई तकनीक से परिचय : बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने साथ विदेशी मुद्रा ही नहीं लाती अपितु अपने साथ बहुत सारी नई तकनीके भी लाती है |
(4) जीवन शैली में सुधार : जिन दशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कार्य करती हैं, वहाँ के लोगों के जीवन शैली में काफी बदलाव आता है |
Assignment :
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Business Study Chapter List
Chapter 1. व्यवसाय के आधार
Chapter 2. व्यावसायिक संगठन के स्वरुप
Chapter 3. निजी, सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम
Chapter 4. व्यावसायिक सेवाएँ
Chapter 5. व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ
Chapter 6. व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं व्यावसायिक नैतिकता
Chapter 7. व्यासायिक संगठन, वित्त एवं व्यापार
Chapter 8. व्यावसायिक वित्त के स्रोत
Chapter 9. लघु व्यवसाय
Chapter 10. आतंरिक व्यापार
Chapter 11. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 1
Chapter 12. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 2
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