Chapter 1. व्यवसाय के आधार | व्यवसाय की अवधारणा Business Study class 11
Chapter 1. व्यवसाय के आधार | व्यवसाय की अवधारणा Business Study class 11
व्यवसाय की अवधारणा
अध्याय 1. व्यावसाय के आधार
व्यवसाय की अवधारणा : व्यवसाय एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें मनुष्यों की आवश्कताओं की संतुष्टि करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा क्रय-व्रिक्रय नियमित रूप से किया जाता है |
दैनिक जीवन में क्रियाएँ:
आर्थिक क्रियाएँ:
आर्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ होती है जो लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से की जाती है |
उदाहरण :
(1) एक श्रमिक द्वारा फैक्ट्री में काम करना |
(2) अध्यापक द्वारा विद्यालय में विद्यार्थियों को पढ़ना |
आर्थिक क्रियाओं का वर्गीकरण :
1. व्यवसाय : व्यवसाय से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तओं के उत्पादन , क्रय-विक्रय तथा सेवाएं प्रदान के लिए की जाती है |
2. पेशा : पेशे से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से हैं जिसमें विशेष ज्ञान तथा अनुभव की आवश्कता होती है जिसका प्रयोग व्यक्ति अपने कार्यो में आय अर्जित करने के लिए करता है |
3. रोजगार : रोजगार उन आर्थिक क्रियाओं को कहतें है जिसमे व्यक्ति दूसरे के लिए काम करता है और बदले में वेतन या मजदूरी प्राप्त करता है |
अनार्थिक क्रियाएँ :
अनार्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ होती है जो लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से नहीं की जाती है | ये क्रियाएँ प्यार, सहानुभूति, देशभक्ति आदि के उद्देश्य से की जाती है|
उदाहरण :
(1) पुत्र द्वारा अपने माता-पिता की सेवा करना |
(2) माँ द्वारा अपने बच्चे को पढ़ना |
व्यवसायिक क्रियाओं की विशेषताएं :
1. सभी व्यासायिक क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ होती है क्योंकि यह लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है |
2. व्यवसायिक क्रियाएँ मानवीय आवश्कताओं कि संतुष्टि के लिए की जाती है | प्रत्येक व्यवसायिक इकाइयाँ वस्तुओ का उत्पादन तथा क्रय-व्रिक्रय द्वारा मानवीय आवश्कताओ को पूरा करती है |
3. व्यवसाय कि मुख्य विशेषता लाभ अर्जित करना है | प्रत्येक व्यावसायिक क्रियाएँ लाभ कमाने के उद्देश्य से कि जाती है क्योंकि लाभ वयवसाय की आय का स्रोत होता है |
4. व्यवसाय में यह निश्चित नहीं होता कि लाभ कितना होगा | व्यावसायिक क्रियाएँ करते समय यह ज्ञात नहीं होता है की लाभ कब होगा , कितना होगा , लाभ होगा या हानि अतः लाभ अर्जित केरने की अवधि अनिश्चित होती है |
5. व्यावसायिक क्रियाएँ जोखिम का ही एक भाग है जिस प्रकार एक व्यवसाय में लाभ अनिश्चित है उसी प्रकार हानि भी अनिश्चित है | कोंई भी व्यवसाय जोखिम के बिना चल ही नहीं सकता है |
व्यावसायिक क्रियाओं का वार्गीकरण :
1. उद्योग : उद्योगिक क्रियाओं से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओ से है जिसमे संसाधनों का प्रयोग कर उन्हें और अधिक उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है | उत्पादन से सम्बंधित उद्योगिक क्रियाएँ करने वाली सभी उत्पादक इकाईयों के समूह को उद्योग कहते है |जैसे - चीनी उद्योग , कपड़ा उद्योग आदि |
2. वाणिज्य : वाणिज्य से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से है जो वस्तुओं के विनिमय में आने वाली व्यक्ति , वस्तु , स्थान तथा सूचना सम्बंधित समस्याओं को दूर करती है | जैसे - बीमा , बैंकिंग , परिवहन आदि |
उद्योगों का वर्गीकरण
उद्योगों का वर्गीकरण :
1. प्राथमिक उद्योग- प्राथमिक उद्योगों से अभिप्राय उन उद्योगों से है जों प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादन तथा पशु-पक्षियों के प्रजनन एवं विकास से सम्बंधित है | जैसे - खनन उद्योग , कृषि , पशु प्रजनन फार्म आदि |
प्राथमिक उद्योगो के प्रकार :
(क) निष्कर्षण उद्योग : निष्कर्षण उद्योग वे उद्योग होते है जों प्राकृतिक संसाधनों को प्राकृतिक स्रोतों ( पहाड़ , भूमि ) से खोदकर या निष्काषित कर प्राप्त करतें है | ये उद्योग द्वितीयक तथा तृतीयक उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करतें है | जैसे - खनन उद्याग ,खेती करना आदि |
(ख) जननिक उद्योग : जननिक उद्योग वे उद्योग होते है जो पशु- पक्षियों के प्रजजन और पालन-पोषण तथा वनस्पति उत्पादन से सम्बन्धित है | जैसे- पशु प्रजनन फार्म , मछली पालन , मुर्गी पालन आदि |
2. द्वितीयक उद्योग : द्वितीयक उद्योगो से अभिप्राय उन उद्योगों से है जिसमें प्राथमिक उद्योगों द्वारा प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग कर उसे और अधिक उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है | जैसे सीमेंट उद्योग , कपड़ा उद्योग , चीनी उद्योग आदि |
द्वितीयक उद्योगों का वर्गीकरण :
(क) विनिर्माण उद्योग : विनिर्माण उद्योग वे उद्योग होते है जो कच्चे माल को और अधिक उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करते है |
विनिर्माण उद्योगों के प्रकार :-
- विश्लेषणात्मक उद्योग : विश्लेषणात्मक उद्योग वे उद्योग होते है जो एक ही उत्पाद को उनकी विशेषताओं के आधार पर पृथकीकरण कर नए उत्पादों को प्राप्त करतें है | जैसे - तेल शोधक कारखाने आदि |
- कृत्रिम उद्योग : कृत्रिम उद्योग वे उद्योग होते है जो विभिन्न पदार्थो को इक्कट्ठा कर उन्हें एक विशेष प्रक्रिया द्वारा नए उत्पादों में परिवर्तित करतें है | जैसे - सीमेंट उद्योग |
- प्रक्रियायी उद्योग : प्रक्रियायी उद्योग वे उद्योग होते है जिसमें एक ही उत्पाद को उत्पादित करने के लिए विभिन्न चरणों से एक निश्चित क्रम में गुजरतें है | जैसे - चीनी उद्योग , कागज उद्योग |
- सम्मलित उद्योग : सम्मलित उद्योग वे उद्योग होते है जिसमें एक नए उत्पाद को उत्पादित करने के लिए विभिन्न पुर्जो को जोड़ा जाता है | जैसे - टेलिविज़न , कार आदि |
(ख) निर्माण उद्योग : निर्माण उद्योग वे उद्योग होते हैं जों बांध , सड़क , पुल आदि के निर्माण से सम्बंधित हैं |
3. तृतीयक उद्योग : तृतीयक उद्योग वे उद्योग होते है जो प्राथमिक तथा द्वितीयक उद्योगों को सेवाएँ प्रदान करते है तथा व्यापारिक क्रियाओं को पूरा करने में सहायता करते है इसलिए इन्हें सेवा उद्योग भी कहा जाता हैं | जैसे - परिवहन , विज्ञापन , बीमा आदि |
वाणिज्य में सम्मिलित क्रियाएँ :
वाणिज्य में सम्मिलित क्रियाएँ :
1. व्यापार : व्यापार से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से है जो वस्तुओं के बिक्री तथा विनिमय से सम्बंधित है |
2. व्यापार के सहायक : वे क्रियाएँ जो व्यवसाय में व्यापार की सहायता करती है उन्हें व्यापार के सहायक या व्यापार की सहायक क्रियाएँ कहते है |
व्यापार का वर्गीकरण :
(क) आंतरिक व्यापार: आंतरिक व्यापार वह व्यापार होता है जिसमें किसी देश की भुगौलिक सीमा के अंदर वस्तुओं का बिक्री तथा विनिमय किया जाता है | आंतरिक व्यापार दो प्रकार के होते है :
- थोक व्यापार : थोक व्यापार वह व्यापार होता है जिसमे एक ही प्रकार की वस्तुओं का क्रय-विक्रय तथा विनिमय बड़ी मात्रा में किया जाता है |
- फुटकर व्यापार : फुटकर व्यापार वह व्यापर होता है जिसमे एक ही प्रकार की वस्तुओं का क्रय-विक्रय तथा विनिमय कम मात्रा में किया जाता है |
(ख) बाह्य व्यापार : बाह्य व्यापार वह व्यापार होता है जो दो या दो से अधिक देशो के बीच किया जाता है | बाह्य व्यापार तीन प्रकार का होता है :
- आयात व्यापार : आयात व्यापार वह व्यापार होता है जिसमें दूसरे देशो से वस्तुओं को ख़रीदा जाता है उसे आयात व्यापर कहतें है |
- निर्यात व्यापार : निर्यात व्यापार वह व्यापार होता है जिसमें दूसरे देशो में वस्तुओं को बेचा जाता है उसे निर्यात व्यापर कहतें है |
- पुनर्निर्यात व्यापार : पुनर्निर्यात व्यापार वह व्यापार होता है जिसमें एक देश से वस्तुओं को खरीद कर उसे दूसरे देश में बेचा जाता है | दूसरे शब्दों में , पुनर्निर्यात व्यापार वह व्यापार होता है जिसमें एक देश से वस्तुओं का आयात कर दूसरे देशो में निर्यात किया जाता है |
व्यापार के सहायक : वे क्रियाएँ जो व्यवसाय में व्यापार की सहायता करती है उन्हें व्यापार की सहायक या व्यापार की सहायक क्रियाएँ कहते है | दुसरे शब्दों में वे क्रियाएँ जो व्यवसाय में सहायक की भूमिका निभाती है उन्हें व्यापार की सहायक क्रियाएँ कहतें है | जैसे - परिवहन , बैंकिंग , बीमा , विज्ञापन आदि |
- व्यापार की सहायक क्रियाएँ व्यापार का अनिवार्य अंग है यह क्रियाएँ वस्तुओं के उत्पादन तथा विनिमय में आने वाली समस्याओं को दूर करनें में सहायता करतें है |
व्यापार के सहायक क्रियाओं का वर्गीकरण :
- परिवहन : परिवहन व्यापार में स्थान सम्बंधित समस्याओं को दूर करने में सहायता करता है | व्यापार में वस्तुओं के उत्पादन से उपभोगताओं तक वस्तुओं को पहुँचाने में सहायक की भूमिका निभाता है | व्यापार में वस्तुओ को एक जगह से दुसरे जगह पहुचना होता है जिसमें परिवाक्हकं सहायत करता है |
- बैंकिंग और वित् : किसी भी व्यवसाय को आरंभ करने के लिए धन की आवश्यकता होती है | बैंक व्यवसाय को आरंभ करने के लिए वित् सम्बंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक की भूमिका निभाता है | व्यवसायी बैंको से वित् की व्यवस्था कर सकते है | बैंक चैको की वसूली करना , उधार देना आदि समस्याओं को दूर करती है |
- बीमा : व्यवसाय को विभिन्न प्रकार के जोखिमो का सामना करना पड़ता है | बीमा व्यवसाय में जोखिमो से सुरक्षा करने में सहायता करता है | बीमा व्यवसाय में होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति करती है |
- भंडारण : व्यवसाय में वस्तुओ के उत्पादन से बिक्री के बीच काफी समय होता है | इसलिए उत्पादन के पश्चात् बिकने तक उसे गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है | भंडारण व्यवसाय में संग्रहण सम्बंधित समस्याओ को दूर करता है |
- विज्ञापन : व्यवसाय में विज्ञापन की महत्वपूर्ण भूमिका है | उत्पादक स्वयं प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता से नहीं मिल सकता है इसलिए उत्पादक अपने पदार्थ की गुणवत्ता आदि की जानकारी उपभोगताओ को विज्ञापन द्वारा पहुंचाते है | ]
व्यवसाय में लाभ का महत्व और उसकी भूमिका :
- लाभ व्यवसाय की आय का स्रोत है |
- लाभ व्यवसाय की वृद्धि का प्रतिक हैं |
- लाभ व्यवसाय के अच्छे तथा कुशल प्रबंधन के लिए आवश्यक है |
- लाभ व्यवसाय की समाज में अच्छी प्रतिष्ठा का प्रतिक है |
- लाभ व्यवसाय के विकास एवं फैलाव के लिए आवश्यक है |
व्यवसाय के उद्देश्य :
- व्यवसाय का सबसे बड़ा तथा पहला उद्देश्य लाभ अर्जित करना है व्यवसाय को आरंभ ही लाभ कमाने के उदेश्य से किया जाता है | लाभ व्यवसाय की आय का स्रोत है |
- व्यवसाय का दूसरा उद्देश्य है अपने प्रतियोगियों से आगे निकलना तथा अच्छे गुणवत्ता वाले उत्पाद उपभोगताओ को उपलब्ध कराना |
- व्यवसाय का तीसरा मुख्य उद्देश्य अपने उत्पादों में तथा कार्य करने के तरीके में नए-नए परिवर्तन करते रहना ताकि उपभोगताओ की उत्पादों में रूचि बनी रहे |
- व्यवसाय का चौथा उद्देश्य उत्पादकता को बढ़ाना अर्थात् अधिक से अधिक उत्पादन क बढ़ाना | अच्छी तकनीको , उपलब्ध स्रोतों एवं संसाधनों का उचित प्रयोग करना ताकि अधिक से अधिक उत्पादन को बढाया जा सके |
- व्यवसाय का एक उद्देश्य वितीय तथा भौतिक संसाधनों को बढ़ाना तथा उचित प्रयोग करना है ताकि उत्पादन को ज्यादा से ज्यादा बढाया जा सके |
- व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य अपने कर्मचारियों तथा प्रबंधन को कुशल करना भी है , जितना अच्छा प्रबंधन होता है वह व्यवसाय उतना विकास करता है | अपने कर्मचारियों को अच्छी सुविधाएँ प्रदान करना तथा उन्हें प्रोत्साहित करना भी है |
- सभी व्यवसाय का एक दायित्व समाज के प्रति भी होता है कि वह समाज में अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध कराएँ तथा सामाजिक कार्य करे |
Page 4
व्यावसायिक जोखिम
व्यावसायिक जोखिम : व्यावसायिक जोखिम से अभिप्राय लाभ या हानि होने होने की उस संभावना से है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है तथा जो अनिश्चित या अचानक हुई घटनाओ के कारण होते है | जैसे - उपभोगताओ की मांग में परिवर्तन , आग लगाना , चोरी होना आदि |
व्यासायिक जोखिम का अर्थ : जोखिम व्यवसाय की एक मुख्य विशेषता है| व्यवसाय में
इस विशेषता के पाए जाने का कारण व्यवसाय क्रियाओं का भविष्य में लगातार चलते रहना है और भविष्य अनिश्चित होता है| अनिश्चितता जोखिम की जन्मदाता होती है |कल क्या होने वाला है इस बारे में निश्चित रूप से कुछ नही खा जा सकता है
व्यवसाय में हानि की सम्भावना को ही व्यावसायिक जोखिम कहते है|
व्यासायिक जोखिमो की प्रक्रति : व्यासायिक जोखिम की प्रक्रति से संबंधित निम्नलिखित आवश्यक बातें हैं -
(1) जोखिम अनिश्चिताओं का परिणाम : जोखिम अनिश्चिताओं का परिणाम होती है| अनिश्चितता मानवीय,व्यासायिक या प्राक्रतिक कोई भी हो सकती है
(अ)मानवीय अनिश्चितता- हड़ताल ,चोरी आदि |
(ब)व्यासायिक अनिश्चितता - मांग का गलत अनुमान , मूल्यों में परिवर्तन आदि |
(स) प्राक्रतिक अनिश्चितता - भूकम्प ,सूखा , हिमपात , महामारी आदि |
(2) जोखिम से बचा नही जा सकता : एक व्यवसायी जोखिमों के जाल से नहीं निकल; सकता | इसका एकमात्र कारण यह है की व्यवसाय भविष्य के लिए किया जाता है और भविष्य अनिश्चित है |
(3) जोखिम की मात्रा व्यवसाय के आकार के अनुसार : जोखिम की मात्रा छोटे आकार के व्यवसाय में कम और बड़े आकार के व्यवसाय में अधिक होती है |
(4) जोखिम का प्रतिफल लाभ : व्यवसायी को जोखिम उठाने के बदले जो मिलता है वह लाभ होता है | जितना अधिक जोखिम होता है उतने अधिक लाभ की सम्भावना रहती है |
(5) व्यवसाय की प्रकृति पर जोखिम की मात्रा निर्भर करती है: जोखिम की मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है | दूसरी ओर जिन व्यवसायों में फैशन वाली चीजे बेचीं जाती है वहां
Assignment
This page is under construction.
This page is under construction.
Share this Notes to your friends:
Business Study Chapter List
Chapter 1. व्यवसाय के आधार
Chapter 2. व्यावसायिक संगठन के स्वरुप
Chapter 3. निजी, सार्वजनिक एवं भूमंडलीय उपक्रम
Chapter 4. व्यावसायिक सेवाएँ
Chapter 5. व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ
Chapter 6. व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व एवं व्यावसायिक नैतिकता
Chapter 7. व्यासायिक संगठन, वित्त एवं व्यापार
Chapter 8. व्यावसायिक वित्त के स्रोत
Chapter 9. लघु व्यवसाय
Chapter 10. आतंरिक व्यापार
Chapter 11. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 1
Chapter 12. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 2
Select Class for NCERT Books Solutions
NCERT Solutions
NCERT Solutions for class 6th
NCERT Solutions for class 7th
NCERT Solutions for class 8th
NCERT Solutions for class 9th
NCERT Solutions for class 10th
NCERT Solutions for class 11th
NCERT Solutions for class 12th
sponder's Ads