Chapter 6. भक्ति सूफी परंपराएँ History Part-2 class 12 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
Chapter 6. भक्ति सूफी परंपराएँ History Part-2 class 12 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय-समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- 8 वी - 18 वी शताब्दी तक भक्ति आन्दोलन , इस्लाम और सूफी आन्दोलन ने मध्यकालीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | अलवार ओर नयनार दक्षिण भारत में भक्ति आन्दोलन के संस्थापक माने जाते थे | अलवार भगवान् विष्णु के भक्त थे , जबकि नयनार शेव धर्म के अनुयाई मने जाते थे | अलवार और नयनार दोनों ने समाज में प्रचलित सामाजिक और धार्मिक दुर्भावनाओ कि कड़ी आलोचना कि | अलवार कि दो महिला संत - अंदल ओर नयनार कि अम्माईयर कि कराइकल ने समाज को एक नई दिशा देने में महवपूर्ण भूमिका निभाई | चोल , पल्लव , और चलूक्य ने अलवार और नयनार दोनों पन्थो का संरक्षण किया | बस्वन्ना ने कर्नाटक में वीरशेव या लिंगयात कि स्थापना कि और अपने पंथ के विकास में एक महवपूर्ण भूमिका निभाई |
- इस्लाम - "इस्लाम " एक एकेश्वरवादी धर्म है जो अल्लाह कि तरफ से अंतिम रसूल और नबी , मुहम्द द्वारा इंसानों तक पुह्चाई गयी अंतिम ईश्वरीय किताब (कुरआन ) कि शिक्षा पर स्थापित है | इस्लाम कि स्थापना 7 वी शताब्दी में पैगम्बर मुह्हमद ने अजाबिया में कि थी | इस्लाम के 5 स्तम्भ है - शहादा , सलात या नमाज , सोम या रोज़ा , जकात, हज |
- इस्लाम के महत्वपूर्ण सिलसिले 4 है - चिस्ती सिलसिला , सुहरावर्दी सिलसिला, कादिरी सिलसिला , नक्शबंदी सिलसिला
- सूफी तथा सूफीवाद - भारत में मध्यकालीन काल के दोरान सुफिवादी एक शक्तिशाली आंदोलनों के रूप में उभरा | सुफियो को उनके दिलो कि पवित्रता (सफा) के कारण कहा जाता था | सूफी (सूफं) पहनने कि आदत के कारण सूफी को एसा कहा जाता था | इश्वर एकता , पूर्ण आत्म-समपर्ण , दान , इबादत , मानव जाति के लिए प्रेम आदि सुफिवाद के मुख्य उपदेश है | इस्लामी दुनिया में सूफी सिलसिले उभरने लगते है | दाता गूंज बख्श , ख्वाजा मुइद्दीन चिस्ती , शेख कुतुभुधीन | बख्तियारकाकी , फरिउदीन गूंज - ए शकर , ओर शेख निजामुदीन ओलिया भारत के कुछ प्रमुख सूफी शेख है
- जियारत - जियारत का अर्थ सूफी संतो कि कब्रों कि तीर्थयात्रा करना था | इसका मुख्य उदेश्य सूफी से आध्यात्मिक अनुग्रह प्राप्त करना था | संगीत और न्रत्य जियारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है | सूफियो का मानना था कि संगीत और न्रत्य मानव ह्रदय में दिव्य परमानंद पैदा करते है | सूफीवाद के धार्मिक आयोजना को साम के नाम से जाना जाता है |
- कवाल - कवाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ था ' कहना '| यह कव्वालो के खुलने या बंद होने के समय गाया जाता था |
- भक्ति - मोक्ष् प्राप्ति के अंतिम उदेश्य के साथ भगवन कि भक्ति को भक्ति कहा जाता है | भक्ति शब्द को मूल 'भज ' से लिया गया था जिसका अर्थ है आराध्य | भक्त जो अवतार और मूर्ति पूजा के विरोधी थे , संत के रूप में जाने जाते है | कबीर , गुरु नानक देव जी और गुरु नानक देव जी के उत्रदिकारी प्रमुख भक्ति संत है | भारतीय समाज पर भक्ति आन्दोलन का प्रभाव महत्वपूर्ण और दूरगामी था |
- प्रारम्भिक भक्ति परम्परा - इतिहासकार ने भक्ति परम्परम्पराओ के दो व्यापक श्रेणियों अर्थार्त निर्गुण ( विशेस्ताओ के बिना ) और सगुण ( विष्णु के साथ ) में वर्गीक्रत किया है | कहती शताब्दी में , भक्ति आंदोलनों का नेत्रत्व अलवार , नयनार (शिव भक्त ) ने किया था |
- स्त्री भक्त - इस परम्परा कि विशेस्ताये थी | अंदल , कराइकाल अम्मरियर जेसी महिला भक्तो ने भक्ति संगीत रचना कि , जिसने पित्रसतात्म्क मानदंडो को चुनोतियो दी | अंडाल नामक अलवार स्त्री के भक्ति गीत गाये जाते | अंडाल खुद को भगवान विष्णु कि प्रेयसी मानकर प्रेम भावना छन्दों में व्यक्त करती थी | शिवभक्त स्त्री कराइकाल अम्मईयार ने घोर तपस्या के मार्ग को अपनाया | नयनार परम्परा में उनकी रचना को शुर्क्षित रखा गया |
- राज्य के सम्बन्ध - नयनार और अलवार संतो को क्रिश्सको द्वारा सम्मानित किया गया शाशको ने भी इनका समर्थन पाने का प्रयास किया | चोल शाशको ने देवीय समर्थन पाने का दावा किया |चोल शासको के संरक्ष्ण में , चिंदबरम तंजावुर और गंगई कोंडाचोलपुरम में बड़े और भव्य मंदिरों का निर्माण किया गया था | इस प्रकार संतो कि कविता और विचारो को मूर्त रूप दिया | शाही संरक्षण के तहत मंदिरों में शेव भजन गाये जाते थे | उन्होंने भजनों का संकलन एक ग्रन्थ के रूप में किया |
- कर्नाटक में वीरशेव परम्परा - कर्नाटक में 12वी शताब्दी में बसवन्ना नाम के एक ब्राह्मण के नेत्रत्व में एक नया आन्दोलन उभरा | उनके अनुययियो को वीरशेव ( शिव के नायक ) या लिंगयात ( लिंग के वस्त्र ) के रूप में जाना जाता था | यह शिव कि पूजा लिंग के रूप में करते है इस शेत्र में लिंगयात आज भी एक महत्वपूर्ण समुदाय बने हुए है | लिंग्यातो ने जाति , प्रदुषण , पुनर्जन्म के सिदंतो आदि के विचार को चुनोती दी और युवावस्था के बाद के विवाह और विधवाओ के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया | वीरशेव परम्परा कि हमारी समझ कन्नड़ में वचनों ( शाब्दिक रूप से कही गई) से ली गयी है , जो आन्दोलन में शामिल हुई महिलाओ और पुरुषो द्वारा बनायीं गयी है |
- उतरी भारत में धार्मिक उफान - इसी काल में उतरी भारत में भगवान् शिव और विष्णु कि उपासना मंदिरों में कि जाती थी| मंदिर शासको कि सहायता से बनाये गए थे| उतरी भारत में इस काल में राजपूत राज्यों का उद्भव हुआ | इन राज्यों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था | ब्राह्मण अनुष्ठान कार्य ( पूजा , यघ ) करते थे |
- इस्लामी परम्पराए - प्रथम सहस्राब्दी इसवी में अरब व्यापारी समुद्र के रस्ते से पश्चिमी भारत के बंदरगाहो तक आये | इसी इसी समय मध्य एशिया से लोग देश के उत्तर - पश्चिम प्रान्तों में आकर बस गये | सातवी शताब्दी में इस्लाम के उद्भव के बाद ये शेत्र इस्लामी विश्व कहलाया |
- शासको और शासितों के धार्मिक विश्वास - 711 इसवी में मुहम्मद बिन कासिम नाम के एक अरब सेनापति ने सिंध को जीत लिया और उसे खलीफा के शेत्र में शामिल कर लिया | 13 वी शताब्दी में तुर्क , और अफगानों ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली सल्तनत कि स्थापना कि |
- जिम्मी - जिम्मी ऐसे लोग थे जो गेर मुसलमान थे जेसे - हिन्दू , इसाई ,यहूदी | गेर - मुसलमानों को जजिया नामक कर का भुगतान करना पड़ता था और मुस्लिम शासको द्वारा संरक्षित होने का अधिकार प्राप्त होता था |
- खानकाह - खानकाह में सूफी संत रहते थे ये उनका निवास स्थल था | 11 वी शताब्दी तक , सूफीवाद एक अच्छी तरह से विकसित आन्दोलन में विकसित हुआ | सुफो ने शेख , पीर या मुर्शिद के नाम से एक शिक्ष्ण गुरु द्वारा नियंत्रित धर्मशाला या खानकाह ( फारसी ) के आस पास समुदायों को संगठित करना शुरू किया | उन्होंने शिष्यों ( मुरीदो ) को नमाकित किया और एक उतरादिकारी ( खलीफा) नियुक्त किया |
- सूफी सिलसिला - सूफी सिलसिला का अर्थ एक श्रंखला है , जो गुरु और शिष्य के बिच के एक निरंतर कड़ी को दर्शाता है , पैगम्बर मुहम्मद के लिए एक अखंड आध्यात्मिक वंशावली के रूप में फेला है | जब शेख कि म्रत्यु हो गयी , तो उनका मकबरा - दरगाह उनके अनुययियो कि भक्ति का केंद्र बन गया और उनकी कब्र पर तीर्थयात्रा या जियारत कि प्रथा , विशेषकर पुण्यतिथि कि शुरुआत है |
- चिस्तीसिलसिला - 12 वी शताब्दी तक सूफी समुदाय के चिस्ती अधिक प्रभावशाली हो गया था | चिस्ती सूफियो का सबसे महत्वपूर्ण समूह था जो भारत चले गये | इन्होने भारतीय परम्परा को अपनाया | इन्होने सवयं को परिवेश के अनुसार ढाल लिया |
- चिस्ती खानकाह में जीवन - खानकाह सामाजिक जीवन का केंद्र था | चोधवी शताब्दी में घियास्पुर में यमुना नदी के तट पर शेख निजामुदीन कि धमर्शाला बहुत प्रसिद्ध थी | शेख यहाँ रहते थे और सुबह और शाम आंगतुको से से मिलते थे | वहा एक खाली रसोई (लंगर ) थी और यहाँ सुबह से लेकर देर रात हर शेत्र के लोग आता थे | यहाँ आने वालो में अमीर हसन सिज्जी , अमीर खुसरू जियाउद्दीन बरनि शामिल थे |
अभ्यास (NCERT Book)
भक्ति – सूफ़ी परम्पराएँ
प्रश्न – इतिहासकारों द्वारा धार्मिक परम्पराओं के इतिहासों के पुननिर्माण के लिए उपयोग किये गए विभिन्न स्त्रोतों का स्पष्ट कीजिये |
उत्तर - धार्मिक परम्पराओं के पुननिर्माण के लिए इतिहासकार विभिन्न स्त्रोतों का सहारा लेते है :
1. प्रथम सहस्त्राबदी के मध्य तक के प्रमुख स्त्रोत धार्मिक इमारतें है जिनमे स्तूप, विहार और मंदिर शामिल है | यह इमारतें किसी विशेष धार्मिक विश्वासों तथा आचरणों के प्रतीक है | इसके अतिरिक्त ऐसे धार्मिक विश्वास भी है जो साहित्यक तथा अन्य स्त्रोतों में धूमिल है |
2. 8वीं से 18वीं शताब्दी तक के नए साहित्यक स्त्रोतों में संत कवियों की रचनायें शामिल है | उन्होंने इन रचनाओं को अपने आपको जनसाधारण की क्षेत्रीय भाषाओँ में मौखिक रूप से व्यक्त किया था | इनमे से अधिकतर रचनाएँ संगीतबद्ध है |
3. इस काल की सबसे प्रभावी विशेषता संभवतः यह है कि साहित्य और मुर्तिकला दोनों में ही अनेक तरह की देवी –देवता दिखाई देते है |
4. इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम से कम दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थी | यह प्रक्रियाएं ब्राहमणीय विचारधारा के प्रसार की थी | ये ग्रन्थ सरल संस्कृत छंदों में थे | इस काल की दूसरी प्रक्रिया थी – स्त्रियों, शूद्रों तथा अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं एवं आचरणों को ब्राहमणों द्वारा स्वीकृत किया जाना और उसे एक नया रूप प्रदान करना |
प्रश्न – प्रारंभिक भक्ति परम्परा की मुख्य विशेषताएँ बताइए |
उत्तर – 1. आराधना के तरीकों के क्रमिक विकास के दौरान संत कवि ऐसे नेता के रूप में उभरे जिनके इर्द –गिर्द भक्तजनों का मेला लगा रहता था | इन्ही के नेतृत्व में भक्ति आन्दोलन चला |
2. भक्ति परंपरा की एक अन्य विशेषता इसकी विविधता है |
3. धर्म के इतिहास भक्ति परम्परा को दो मुख्य वर्गों में बाँटते है : सगुन भक्ति और निर्गुण भक्ति | निर्गुण भक्ति परंपरा में अमूर्त अथवा निराकार इश्वर की उपासना की जाती थी |
4. यदपि कई भक्ति परम्पराओं में ब्राहमण देवताओं तथा भक्तजनों के बीच महत्वपूर्ण बिचौलिये बने रहे, तो भी इन परम्पराओं ने स्त्रीयों तथा “निम्न वर्णों” को स्वीकृति प्रदान की |
प्रश्न – अलवार और नयनार संत कौन थे ? उनकी गतिविधियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये |
उत्तर - अलवार और नयनार तमिलनाडु के बहती संत थे | प्रारंभिक भक्ति आन्दोलन उन्ही के नेतृत्व में चला | अलवार विष्णु तथा नयनार के शिव के भक्त थे | वे स्थान –स्थान पर भ्रमण करते हुए तमिल भाषा में अपने इष्ट की स्तुति में भजन गाते थे | अपनी यात्राओं के दौरान आलवारों और नय्नरों ने कुछ पवन स्थलों को अपने इष्ट का निवास -स्थल घोषित किया | साथ ही इन संतों की प्रतिमा की भी पूजा की जाती थी | इस प्रकार इस ग्रन्थ का महत्व संस्कृत के चरों वेदों के समान बताया गया |
प्रश्न- इस्लाम के पांच स्तंभ अथवा आधारभूत सिद्धांत कौन -से है ?
उत्तर – इस्लाम धर्म के पाँच स्तम्भ है जिनका पालन सभी मुसलमानों को करना चाहिए | ये स्तम्भ निम्नलिखित है –
1. उसे हर रोज पाँच बार प्रार्थना करनी अर्थात नमाज पढ़नी चाहिए |
2. उसे निर्धनों को दान देना चाहिए |
3. इस्लाम के माने वालों को रमजान के पवित्र महीने में व्रत अर्थात रोज़े रखने चाहिए |
4. उन्हें अपने जीवन -काल में कम -से -कम एक बार मक्का की यात्रा अवश्य करनी चाहिए |
5. प्रत्येक मुसलमानों को इस बात में विश्वास रखना चाहिए कि अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है | उसे कुरान को अल्लाह का आदेश मानना चाहिए |
प्रश्न – मस्जिद के स्थापत्य सम्बन्धी सार्वभौमिक तत्वों का उल्लेख कीजिये |
उत्तर – मस्जिद को इस्लामिक शैली का मूल – रूप माना गया है |
इसका मौलिक ढाँचा बहुत ही साधारण होता है |
इसमें एक खुला प्रांगन होता है जिसके चारों और स्तंभों वाली छते होती है |
प्रांगन के मध्य में नमाज से पहले स्नान के लिए एक तलाब भी होता है |
इसकी दाहिनी और एक मंच होता है जहाँ से इमाम प्रवचन देता है |
इसके पश्चिम में एक मेहराबों वाला हॉल होता है |
मस्जिद में मीनार भी होती है जहाँ से आजान दी जाती है |
जिस मस्जिद में मुसलमान जुम्मा की नमाज के लिए एकत्रित होते है, उसे ‘जामी मस्जिद’ कहा जाता है |
प्रश्न – सूफी सम्प्रदाए तथा भक्ति सम्प्रदाओं की विचारधारा में क्या समानताएं थी?
उत्तर – सूफी सम्प्रदायें तथा भक्ति आन्दोलन के स्थान अलग –अलग थे लेकिन दोनों के विचारों में अनेक समानताएं पाई जाती थी | इसका वर्णन इस प्रकार है –
(1) मानवतावाद – दोनों सम्प्रदाओं ने मानव को मुख्य रखा और उन्हें प्रेम से रहने का उपदेश दिया |
(2) एकेश्वरवाद – दोनों एक ही भगवान पर विश्वास रखते थे | सूफियों ने कहा भगवान एक है और हम उनकी संतान है |
(3) मनुष्य –मात्र से प्रेम – सूफी तथा भक्ति के संतों ने लोगों को कहा की मनुष्य मात्र से प्रेम करो | मानव से प्रेम ही इश्वर से प्रेम है |
(4) गुरु की महिमा – सूफी और भक्त के संतों ने गुरु की महिमा का बखान किया|
(5) सहनशीलता - सूफी और भक्त के संतों ने दोनों धर्मो को साथ मिलकर रहने का उपदेश दिया |
प्रश्न – आप ऐसा क्यों समझते है कि बाबा गुरु नानक देव जी की परम्पराएँ 21 शताब्दी में भी महत्वपूर्ण है ?
उत्तर – निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर हम कह सकते है कि बाबा गुरु नानक देव जी की परम्पराएँ 21 शताब्दी में भी महत्वपूर्ण है –
(1) उनकी शिक्षाएँ आसान थी | यह आज भी व्यावहारिक है |
(2) उन्होंने जाति के आधार पर ऊँच –नीच का विरोध किया |
(3) उन्होंने मानव सेवा और आपसी प्रेम और भाईचारे को ही सबसे बड़ा धर्म बताया |
(4) उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों तथा मूर्ति पूजा खंडन किया |
(5) उनके अनुसार भगवन एक है जो निराकार है | उसके साथ केवल ‘शब्द’ द्वारा ही संबंध जोड़ा जा सकता है |
प्रश्न – सूफी मत कि शिक्षाओं का वर्णन करो |
उत्तर – सूफी मत की निम्न शिक्षाएं है -
1. सूफी के संतों ने ईश्वर का प्रचार किया |
2. सूफी संत ने इस बात का प्रचार किया कि यदि ईश्वर से प्रेम चाहते हो तो मनुष्य से प्रेम करो |
3. सूफी कहते थे की मानव को उसका धर्म नहीं बल्कि उसका काम ऊँचा बनता है|
4. सूफी के अनुसार सभी धर्म एक सामान है क्योंकि सभी का अंतिम उदेश्य ईश्वर प्राप्ति है |
5. इस मत में शांति और अहिंसा को बहुत महत्व दिया गया है | वे ‘गुरु’ अथवा ‘पीर’ को सबसे महान बताते है |
प्रश्न – सूफी मत की चिश्ती सिलसिले से जुडी रीतियाँ बताइए |
उत्तर – (1) चिश्ती सिलसले की सूफी आध्यात्मिक संगीत की महफ़िल द्वारा ईश्वर की उपासना में विश्वास रखते थे |
(2) वे कव्वाली को बहुत महत्व देते थे | इस अवसर पर आशीर्वाद की कामना की जाती थी |
(3) उन्होंने खानकाह स्थापित किये |
(4) उन्होंने लंगर चलाये जिनमे सभी हरमों के लोग शामिल थे |
(5) उन्होंने शेख के आगे सिर झुकाना तथा लोगों को पानी पिलाना |
प्रश्न – इस्लाम दक्कन में स्थान पाने में कैसे सफल रहा ?
उत्तर – बीजापुर के के आसपास सूफी कविता की एक नयी विधा का विकास हुआ|
यह उर्दू में लिखी छोटी कवितायेँ थी | इसकी रचना चिश्ती शान्तों ने की थी | ये रचनाएँ स्त्रियों द्वारा घर का काम जैसे चक्की पिसते या चरखा कातते समय गयी जाती थी | कुछ रचनाएँ लोरिनमा और शादिनामा के रूप में लिखी गयी | संभव है कि इस क्षेत्र के सूफी यहाँ पहले से प्रचलित भक्ति परंपरा से प्रभावित हुए थे | इस माध्यम से इस्लाम दक्कन के गाँव में स्थान पाने में सफल रहा |
प्रश्न – श्री गुरु नानक देव जी तथा उनके संदेश का विशेष रूप से वर्णन करते हुए सिख धर्म के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिये |
उत्तर - श्री गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब के ननकाना साहिब में हुआ | जो अब पाकिस्तान में है | उन्होंने गणित और हिंदी में शिक्षा प्राप्त की तथा फारसी तथा अरबी का भी ज्ञान प्राप्त किया | उनका विवाह छोटी आयु में ही हो गया था| वे अपना अधिकतर समय संतों के बीच बिताते थे | अपनी ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों तक पहुचने के लिए भी दूर – दूर तक यात्राएँ भी की| उन्होंने लोगों को ईश्वर के नाम के जाप का संदेश दिया तथा मानवता के प्रेम पर बल दिया | इन परम्पराओं ने अनेक सिक्खों अर्थात शिष्यों को एकत्रता के सूत्र में बंधा |
प्रश्न – भारत में विभिन्न समुदायों के नामों का आधार क्या था ?
उत्तर – हम प्रायः हिन्दू तथा मुसलमानों जैसे शब्दों को धर्मिक समुदाय का निश्चित प्रतिक मान लेते है | परन्तु कई समयों तक इनका कोई प्रचलन नहीं था| इसके विपरीत लोगों का वर्गीकरण उनके जन्म स्थान के आदह्र पर किया जाता था | उदाहरन के लिए तुर्की मुसलमानों को तुरुष्क कहा गया | इस प्रकार तजाकिस्तान के लोगों को ताजिक तथा फारस के लोगों को पारसिक का नाम दिया गया |
इन प्रवासी समुदाए के लिए एक अधिक सामान्य शब्द मलेच्छ था | यह नाम इस बात की ओर संकेत करता है कि वह वर्ण व्यवस्था के पालन नहीं करते थे और ऐसे भाषाएँ बोलते थे जो स्नास्कृत से नहीं निकली थी |
प्रश्न – मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए |
उत्तर – मीराबाई को भक्ति लहर की सबसे प्रसिद्ध कवयित्री माना जाता है | उनकी जीवनी उनके द्वारा लिखे गए भजनों के आधार पर संकलित की गयी | यह भजन वर्षों तक मौखिक रूप से आगे बढ़ाते रहे | मीराबाई मारवाड़ के मेड़ता जिले की एक राजपूत राजकुमारी थी | उनका विवाह उनके मर्जी के खिलाफ जाकर मेवाड़ के सिसोदिया वंश में कार दिया गया | उन्होंने अपने पति की बात की परवाह न करते हुए पत्नी और माँ के परम्परागत दायित्वों को निभाने से मना कर दिया और विष्णु के अवतार कृष्ण को अपना पति मान लिया | उनके ससुराल वालों ने जहर देकर मारने का प्रयत्न किया | लेकिनुन्होने राजमहल को छोड़ दिया और वे गायिका बन गयी | उन्होंने अनेक भावना प्रधान गीतों की रचना की |
मीरा ने जातिवाद समंज का भी उलंघन किया और राजमहल के एश्वर्य को छोड़कर विधवा के सफ़ेद वस्त्र अथवा सन्यासी वस्त्रों को अपना लिया | उनके द्वारा रचित पद आज भी लोगों द्वारा गए जाते है | ज्यादातर गुजरात और राजस्थान के गरीब लोगों द्वारा |
प्रश्न – कबीर जी के जन्म तथा गुरु के विषय में क्या विवाद है ?
उत्तर – कबीर के जन्म के विषय में आज भी यह विवाद है कि वह जन्म से हिन्दू था या मुसलमान | यह विवाद उनके संत्जिवानियों में उभर कर आती है ओ उनकी मृत्यु के 200 वर्ष बाद लिखी गयी | वैष्णव परम्परा के जीवनियो में कबीर को हिन्दू बताया गया है | परन्तु उनका पालन पोषण एक गरीब मुस्लमान परिवार में हुआ | कबीर के गुरु रामानंद थे | इतिहासकारों का यह माना है कि कबीर और रामानंद का समकालीन होना तब तक संभव नहीं लगता, जब तक की उन्हें लम्बी आयु न दे दी जाये अतः उनको जोड़ने वाली परम्पराएँ स्वीकार नहीं की जा सकती| कबीर ने कुछ अन्य शब्दों का प्रयोग भी किया, जैसे शब्द और शून्य |
ये योगी परम्परा से लिये गये | कुछ कवितायेँ जिक्र और इश्क के सूफी सिधान्तों के प्रयोग द्वरा ‘नाम सिमरन’ की हिन्दू परंपरा की अभिव्यक्ति करती है |
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
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History Part-2 Chapter List
Chapter 5. यात्रियों के नज़रिए
Chapter 6. भक्ति सूफी परंपराएँ
Chapter 7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
Chapter 8. किसान, जमींदार और राज्य
Chapter 9. राजा और विभिन्न वृतांत
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