Chapter 5. यात्रियों के नज़रिए History Part-2 class 12 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
Chapter 5. यात्रियों के नज़रिए History Part-2 class 12 exercise अतिरिक्त प्रश्नोत्तर ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय-समीक्षा
अध्याय-समीक्षा
- विभिन्न लोगो द्वारा यात्राओ के करने के उदेश्य - महिलाओ और पुरुषो ने कार्य कि तलाश में यात्रा कि | प्राक्रतिक आपदाओ से बचाव के लिए लोगो ने यात्रा कि |व्यापारियों , सेनिको , पुरोहितो ओर तीर्थयात्रियो के रूप में लोगो ने यात्रा कि | साहस कि भावना से प्रेरित होकर यात्राये कि है |
- 10 वी से 17 वी शताब्दी के बिच भारतीय उप्महदिप में आये यात्री - 1. अल बिरूनी - जो ग्यारहवी शताब्दी में उज्बेकिस्तान से आया था| 2 . इब्न्बतुता - यह यात्री चोदहवी शताब्दी में मोरक्को से भारत आया था | 3. फ्रांस्वा बर्नियर - सत्रहवी शताब्दी में यह यात्री फ़्रांस से आया था | 4. अब्दुर्र रज्जाक - यह यात्री हेरात से आया था |
- उल हिन्द किताब - यह किताब अल बिरूनी के द्वारा अरबी भाषा में लिखी गयी थी , इसकी भाषा सरल ओर स्पष्ट है , यह एक विस्तृत ग्रन्थ है , जो धर्म और दर्शन , त्यौहार , खगोल - विज्ञान कीमिया, रिति-रिवाजो तथा प्रथाओ , सामाजिकजीवन भार - तोल तथा मापन विधियों , मूर्तिकला , कानून , मप्तंत्र विज्ञानं आदि विषयों के आधार पैर अस्सी अध्यायों में विभाजित है|
- ईब्न बतूता का जीवन - इब्न बतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा उसका यात्रा वृतांत जिसे रिह ला कहा जाता है , चोदहवी शताब्दी में भारतीय उप्महदिप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा रोचक जानकारिया देता है |
- इब्अन बतूता ने बताया कि भारत में दो प्रकार कि डाक वयवस्था थी - अस्र्व डाक वयवस्था , पैदल डाक वयस्था - 1. अस्र्व डाक वयस्था - इसे उलूक भी कहा जाता था , इस वयस्था में हर 4 मील पर राजकीय घोड़े रहते थे ओर घोड़े सन्देश लेकर जाते थे |
- पैदलडाक वयस्था - में प्रतेक मील पर तीन अवस्थान होते थे जिन्हें दावा कहा जाता है | इसमें सन्देशवाहक के हाथ में छड के लिए दोड़ लगाता है और उसकी छड में घंटिया बंधी होती थी | | हर मील पर एक सन्देश वाहक के लिए तेयार रहता है
- फ्रांस्वा बर्नियर - फ्रांस का रहने वाला फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक था | फ्रांस्वा बर्नियर एक दार्शनिक और इतिहास्कर भी था | फ्रांस्वा बर्नियर भारत कम कि तलाश में आया था , फ्रांस्वा बर्नियर 1656 - 1668 भारत में 12 साल रहा | बर्नियर कि लिखित पुस्तक " ट्रेवल इन द मुग़ल एम्पायर है
- शिविर नगर - बर्नियर मुगलकालीन शहरो को " शिविर नगर " कहता था | वह एसा इसलिए कहता था क्योकि ये ऐसे नगर थे जो अपने अस्तित्व में बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे | उसका मानना था कि ये नगर राजकीय दरबारों के आने पर तो ये नगर अस्तित्व में आ जाते थे और राजदरबार के चले जाने पर नगर बी तेजी से समाप्त हो जाता था |
- बर्नियर के द्वारा नगरो के लोगो को उनके कार्य के अनुसार कई वर्गों में बाटा है - 1. व्यापारी वर्ग - व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यवासियक संस्थाओ के माध्यम से संगठित रहते थे | पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ | अहमदाबाद जेसी शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का समुयिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ कहा जाता था | 2. शहरों के व्यासायिक वर्ग - शहरी समूहों में व्यवसायिक वर्ग जेसे चिकित्सक ( हाकिम अथवा वैध ) , अध्यापक ( पंडित या मुल्ला ) , अधिवक्ता ( वकील ) , चित्रकार , वास्तुविद , संगीतकार , सुलेखक आदि समिलित थे | जहा कई राजकीय प्रश्रय पर आश्रित थे , कई अन्य संरक्षकों या भीड़भाड़ वाले बाजार में आम लोगो कि सेवा द्वारा जीवनयापन करते थे |
- दस ओर दासिया - बाजारों में रखी अन्य वस्तुओ कि तरह ही दास ओर दासियों कि खरीद - बिक्री होती थी और नियमित रूप से भेंट सवरूप दिए जाते थे | 3. सती प्रथा - सती कुछ पुरातन भारतीय समुदायों में प्रचलित एक धार्मिक प्रथा थी , जिसमे किसी पुरुष कि म्रत्यु के बाद उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दोरान उसकी चिता में स्वयमेव प्रविष्ट होकर आत्मत्याग कर लेती थी |
अभ्यास
यात्रियों के नज़रिए
प्रश्न - अल –बिरूनी की जीवन -यात्रा का संक्षिप्त वर्णन कीजिये |
उत्तर – अल – बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख्वारिज़्म में 973 ई॰ में हुआ था | ख्वारिज़्म शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था | अल – बिरूनी ने उस समय वहां उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी | वह कई भाषाए जनता था जिनमे सीरियाई, फ़ारसी, हिन्दू तथा संस्कृत शामिल है | भले ही वह यूनानी भाषा नहीं जानता था परन्तु वह फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों से पूरी तरह परिचित था | इन्हें उसने अरबी अनुवादों के माध्यम स पढ़ा था | 1017 ई॰ में ख्वारिज़्म पर महमूद ने आक्रमण किया और यहाँ के अकी विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया | अल –बिरूनी भी उनमे से एक था | वह बंधक के रूप में गजनी आया था, परन्तु धीरे –धीरे उसे यह सहर अच्छा लगने लगा | अतः उसने अपना शेष जवान यही बिताया | 70 वर्ष की आयु मी उसकी मृत्यु हो गयी थी |
प्रश्न – गजनी में रहते हुए अल –बिरूनी की भारत के प्रति रूचि कैसे बढ़ी ? उसके लेखन कार्य की संक्षिप्त जानकारी दीजिये |
उत्तर – भारत के प्रति रूचि बढ़ना – गजनी में अल –बिरूनी की भारत के प्रति रूचि बढ़ने लगी | इसके पीछे एक विशेष कारण था | 8वीं शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल –विज्ञान, गणित और चिकित्सा सम्बन्धी कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था | पंजाब के गजनवी साम्राज्य का भाग बन जाने के बाद स्थानीय लोगो से हुए संपर्कों ने आपसी विश्वास और समझ का वातावरण तैयार किया | अल –बिरूनी ने ब्राहमण, पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताये और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया |
लेखन कार्य की विशेषताएँ – (1) अल –बिरूनी ने लेखन में अरबी भाषा का प्रयोग किया था |
(2) उसने अपनी कृतियाँ संभवतः उपमहाद्वीप के सीमांत क्षेत्रो में रहने वाले लोगो के लिए लखी थी |
(3) उसे संस्कृत, पाली तथा प्राकृत ग्रंथों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपान्तरणों की जानकारी थी | इन अनुवादों में दंतकथाओं से लेकर खगोल –विज्ञान तथा चिकित्सा संबधी सभी कृतियाँ शामिल थी | परन्तु इन ग्रंथों की लेखन –शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचंतामक था और निश्चित रूप से वह उनमे सुधार करना चाहता था |
प्रश्न – ‘हिन्दू’, ‘हिंदुस्तान’ तथा ‘हिंदवी’ शब्द किस प्रकार प्रचलन में आये ? क्या धर्म से इनका कोई संबंध था ?
उत्तर – ‘हिन्दू’ लगभग छठी –पाँचवी शताब्दी ई पू में प्रयोग होने वाले एक फ़ारसी शब्द से निकला है जिसका प्र्योस सिन्धु नदी के पूर्वी क्षेत्र के लिए होता है | अरबों ने इस फ़ारसी शब्द का प्रयोग जरी रखा और इस क्षेत्र को ‘अल –हिन्द’ तथा यहाँ के लोगों को ‘हिंदी’ कहा | उसके बाद तुर्कों ने सिन्धु से पूर्व में रहने वाले लोगों को ‘हिन्दू’ तथा उनके क्षेत्र को हिंदुस्तान का नाम दे दिया गया | उनकी भाषा को उन्होंने ‘हिंदवी’ कहा | इनमे से कोई भी शब्द उनकी लोगों की धार्मिक पहचान का कोई प्रतिक नही था | धार्मिक संदर्भ में इनका प्रयोग बहुत बाद में हुआ |
प्रश्न - अल –बिरूनी ने फारस के किन चार सामाजिक वर्गों का उल्लेख किया है ? वास्तव में वह क्या दर्शाना चाहता था ?
उत्तर - अल –बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज द्वारा जाति –व्यवस्था को समझने और उसकी व्याख्या करने का प्रयास किया | उसने लिखा की प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता प्राप्त थी |
1. घुड़सवार और शासक वर्ग |
2. भिक्षु एवं अनुष्ठानिक पुरोहित |
3. चिकित्सक, खगोल –शास्त्री तथा ने वैज्ञानिक |
4. कृषक तथा शिल्पकार |
वास्तव में वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सिमित नहीं थे | इसके साथ, उसने यह भी दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगो को सामान माना जाता था और उनमे भिन्नताएं केवल धर्म पालन के आधार पर थी |
प्रश्न – भारतीय सामाजिक और ब्राहमणिक प्रथाओं को समझने में अल –बिरूनी को जिन अंतनिर्हित समस्याओं का सामना करना पड़ा उन्हें स्पष्ट कीजिये | उनके समर्थन में दिए गए दो स्त्रोतों का उल्लेख कीजिये |
उत्तर - 1. अल –बिरूनी की सबसे पहली बाधा भाषा थी | उसके अनुसार संस्कृत भाषा अरबी तथा फ़ारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिधान्तों का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना सरल नहीं था |
2. भारत में भिन्न धार्मिक विश्वास तथा प्रथाएं प्रचलित थी | इन्हें समझाने के लिए वेदों तथा ब्राहमण ग्रंथो का सहारा लेना पड़ा |
3. तीसरा अवरोध अभिमान था |
समर्थन में स्त्रोत – अल – बिरूनी ने अपने समर्थन में वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, मनुस्मृति आदि के अंशो का हवाला दिया है |
प्रश्न - अल – बिरूनी ने जाति –व्यवस्था की किस मान्यता को स्वीकार नहीं किया और क्यों ? वह जाति -व्यवस्था की कठोरता के विषय में क्या कहता है ?
उत्तर – जाति –व्यवस्था के संबंध में ब्राहमणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद अल – बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया | उसने लिखा कि प्रत्येक वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी खोई हुई पवित्रता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है | सूर्य हवा को अच्छा करता है और समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है | अल – बिरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाता | उसके अनुसार जाति –व्यवस्था में शामिल अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है|
प्रश्न – इतिहासकारों ने इब्न बतूता द्वारा दिए गए शहरो के विवरण के आधार पर, शहरों की समृद्धि की व्याख्या किस प्रकार की है ? स्पष्ट कीजिये |
उत्तर - इब्न बतूता शहरों की समृद्धि का वर्णन करने में अधिक रूचि नहीं रखता था | परन्तु इतिहासकारों ने उसके वृतांत का प्रयोग यह तर्क देने के लिए किया है कि शहरों की समृद्धि का आधार गाँव की कृषि व्यवस्था थी | इब्न बतूता के अनुसार भारतीय कृषि अत्यधिक उत्पादक थी | इसका कारण मिटटी का उपजाऊपान था | अतः किसानों के लिए वर्ष में दो फसल उगाना आसन था | इससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ होता था | भारत के सूती कपडे, महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक महँगी थी कि उन्हें केवल अत्यधिक धनी लोग ही खरीद सकते थे |
प्रश्न – बर्नियर भूमि पर राज्य के स्वामित्व को विनाशकारी क्यों मनाता है ?
उत्तर – बर्नियर का निजी गुणों में दृढ विश्वास था | इसलिए उसने भूमि पर राज्य के स्वामित्व को राज्य तथा निवासियों दोनों के लिए हानिकारक माना | उसे यह लगा की मुग़ल सम्राज्य में साडी भूमि का स्वामी सम्राट है जो इसे अपने अमीरों के बीच बाँटता है |इससे अर्थवयवस्था और समाज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है|
बर्नियर के अनुसार भूमि पर राज्य के स्वामित्व के कारण भू –धारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे | इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाये रखने और उसमे बढ़ोतरी करने का कोई प्रयास नहीं करते थे | इस प्रकार निजी स्वामित्व के अभाव ने भू –धारको के “बेहतर” वर्ग का उदय न होने दिया जो भूमि सुधार तथा उसके रख –रखाव की ओर ध्यान देते, इसी के चलते कृषि के विनाश, किसानो का असीम उत्पीड़न तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में लगातार पतन की स्थिति उत्पन्न हुई | केवल शासक वर्ग को ही इसका लाभ मिलता रहा |
प्रश्न – बर्नियर ने मुग़ल राज्य को किस रूप में देखा ? क्या सरकारी मुग़ल दस्तावेज इस बात की पुष्टि करते है ?
उत्तर - बर्नियर ने मुग़ल राज्य को जिस रूप मर देखा उसकी ये विशेषताएँ थी – इसका राजा “भिखारियों और क्रूर लोगों” का राजा था |
इसके शहर और नगर ध्वस्त हो चुके थे तथा खराब हवा से दूषित थे | इन सबका मात्र एक ही कारण था – भूमि पर राज्य का स्वामित्व |
परन्तु एक भी मुग़ल दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि भूमि का एकमात्र स्वामी राज्य ही था |उदहारण के लिए अकबर के काल का सरकारी इतिहासकार अबुल फ़सल भू राजस्व को ‘राजत्व को पारिश्रमिक’ बताता है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले लिया जाता था, न की अपनी स्वामित्व वाली भूमि पर लगान के रूप में | परन्तु वास्तव में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगाने वाला कार था |
प्रश्न - बर्नियर मुग़ल साम्राज्य में शिल्पों तथा शिल्पकारों की स्थिति के बारे में किस प्रकार विर्धभासी विवरण देता है ?
उत्तर - बर्नियर के विवरण मुग़ल साम्राज्य को तो निरंकुश दिखाते ही है साथ ही एक जटिल सामाजिक सच्चाई की ओर भी संकेत करते है | उदहारण के लिए वह कहता है कि शिल्पकारों को अपने उत्पादों को बेहतर बनने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था, क्योंकि उनके मुनाफे का अधिग्रहण राज्य द्वारा कार लिया जाता था | इसलिए उत्पादन के स्तर में निरंतर कमी आ रही थी | वह लम्बी दुरी के व्यापार में लगे एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व को भी स्वीकार करता है |
प्रश्न – बर्नियर 17वीं शताब्दी के नगरों के बारे में क्या कहते है ? उसका यह विवरण किस प्रकार संशयपूर्ण है ?
उत्तर - 17वीं शताब्दी में लगभग पंद्रह प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती थी | यह अनुपात उस समय की पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक होता था | फिर भी बर्नियर मुग़ल कालीन शहरों को “शिविर नगर” कहता है, जिससे उसका आशय उन नगरों से है जो अपने अस्तित्व के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे | उसका विश्वास था कि ये नगर राज –दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और उसके चले जाने के बाद तेज़ी से विलुप्त हो जाते थे |
परन्तु यह बात संस्य्पूर्ण है | वास्तव में उस समय सभी प्रकार के नगर पाए जाते थे – उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि |
प्रश्न – मुगलकालीन भारत में व्यापारी वर्ग तथा अन्य सहरी समूहों की संक्षिप्त जानकारी दीजिये |
उत्तर – व्यापारी आपस में मजबूत समुदायिक अथवा बधुतव के संबधो से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा संगठित रहते थे | पश्चिमी भारत में ऐसे समूह को ‘महाजन’ कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ |
अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक, अध्यापक, वकील, चित्रकार, संगीतकार, सुलेखक आदि शामिल थे | इनमे से कुछ वर्ग राजकीय संगरक्षण पर आश्रित थे | कुछ अन्य वर्ग अपने संरक्षकों अथवा आम लोगों की सेवा द्वारा जीवयापन करते थे |
प्रश्न – मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति के बारे में यूरोपीय यात्री तथा लेखक क्या बताते है ?
उत्तर – सभी समकालीन यूरोपीय यात्री तथा लेखकों के लिए महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार पश्चिमी तथा पूर्वी समाजों के बीच भिन्नता का एक महत्वपूर्ण सूचक था | इसलिए बर्नियर ने सती –प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा पर अपना ध्यान विशेष रूप से केन्द्रित किया |
महिलाओं को जीवन के सती –प्रथा के अतरिक्त कई और चीजों के चरों और घुमाता था | कभी –कभी यहाँ तक की वे वाणिज्यिक विवादों को अदालत के सामने भी ले जाती थी | अतः यह बात संभव नहीं लगती थी कि महिलाओं को उनके घरों की चारदीवारी तक ही सिमित रखा जाता था |
प्रश्न – यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है |
उत्तर – ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुन्दर शिल्प कारीगरों के बहुत उदहारण है, जिनके पास औजारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है | कभी –कभी यूरोप में वे तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नक़ल करते है कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है | मै अक्सर इन चित्रों की सुन्दरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ |
प्रश्न – भारत के नगरों के बारे में, विशेषकर दिल्ली के सन्दर्भ में, इब्न बतूता के विचारों की व्याख्या कीजिये |
उत्तर – इब्न बतूता ने भारतीय शहरों को उन लोगो के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर पाया कि जिनके पास दृढ इच्छा, साधन तथा कौशल था | इब्न बतूता के वृत्तान्त से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश शहरों में भीड़ –भाड़ वाली सड़के तथा चमक –दमक वाले बाजार थे | यह बाजार तरह –तरह की वस्तुओं से भरे रहते थे | दौलताबाद भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था |
बाजार मात्र आर्थिक विनिमय के केंद्र ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे | कुछ बाजारों में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए भी स्थान बने हुए थे |
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
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Chapter 5. यात्रियों के नज़रिए
Chapter 6. भक्ति सूफी परंपराएँ
Chapter 7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
Chapter 8. किसान, जमींदार और राज्य
Chapter 9. राजा और विभिन्न वृतांत
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