Chapter 5. यात्रियों के नजरिए | अल-बिरूनी की जीवन-यात्रा History Part-2 class 12
Chapter 5. यात्रियों के नजरिए | अल-बिरूनी की जीवन-यात्रा History Part-2 class 12
अल-बिरूनी की जीवन-यात्रा
विभिन्न लोगों द्वारा यात्राओं का कारण/उदेश्य :
(i) महिलाओं और पुरुषों ने कार्य की तलाश में,
(ii) प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए
(iii) व्यापारियों, सैनिकों, पुरोहितों और तीर्थयात्रियों के रूप में
(iv) साहस की भावना से प्रेरित होकर यात्राएँ की हैं।
10 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप में आए यात्री :
(i) अल-बिरूनी : जो ग्यारहवी शताब्दी में उज्बेकिस्तान से आया था |
(ii) इब्न बतूता : यह यात्री चौदहवी शताब्दी में मोरक्को से भारत आया था |
(iii) फ्रांस्वा बर्नियर : सत्रहवी शताब्दी में यह यात्री फ़्रांस से आया था |
(iv) अब्दुर्र रज्जाक : यह यात्री हेरात से आया था |
अल-बिरूनी की जीवन-यात्रा : अल-बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिश्म में सन् 973 में हुआ था। ख़्वारिश्म शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और अल-बिरूनी ने उस समय उपलब्ध् सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। हालाँकि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था पर फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों से पूरी तरह परिचित था जिन्हें उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से पढ़ा था। सन् 1017 ई. में ख़्वारिश्म पर आक्रमण के पश्चात सुल्तान महमूद यहाँ के कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधनी गजनी ले गया। अल-बिरूनी भी उनमें से एक था। वह बंधक के रूप में गजनी आया था पर धीरे-धीरे उसे यह शहर पसंद आने लगा और सत्तर वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक उसने अपना बाकी जीवन यहीं बिताया।
अल-बिरूनी की यात्रा : अल-बिरूनी उज्बेकिस्त्ना से बंधक के रूप में गजनवी साम्राज्य में आया था | उतर भारत का पंजाब प्रान्त भी उस सम्राज्य का हिस्सा बन चूका था | हालाँकि उसका यात्रा-कार्यक्रम स्पष्ट नहीं है फिर भी प्रतीत होता है कि उसने पंजाब और उत्तर भारत के कई हिस्सों की यात्रा की थी। अल-बिरूनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया।
उसके लिखने के समय यात्रा वृत्तांत अरबी साहित्य का एक मान्य हिस्सा बन चुके थे। ये वृत्तांत पश्चिम में सहारा रेगिस्तान से लेकर उत्तर में वोल्गा नदी तक फैले क्षेत्रों से संबंधित थे।
किताब-उल-हिन्द : यह पुस्तक अल-बिरूनी के द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई थी | इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है | यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधर पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है।
अल-बिरूनी के लेखन कार्य की विशेषताएँ :
(i) अपने लेखन कार्य में उसने अरबी भाषा का प्रयोग किया |
(ii) इन ग्रंथों की लेखन-सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था |
(iii) उसके ग्रंथों में दंतकथाओं से लेकर खगोल-विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ भी शामिल थीं।
(iv) प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधरित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना।
इब्न बतूता की जीवन-यात्रा : इब्न बतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृत्तांत जिसे रिह् ला कहा जाता है, चौदहवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा रोचक जानकारियाँ देता है। मोरक्को के इस यात्राी का जन्म तैंजियर के सबसे सम्मानित तथा शिक्षित परिवारों में से एक, जो इस्लामी कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था, में हुआ था।
अपने परिवार की परंपरा के अनुसार इब्न बतूता ने कम उम्र में ही साहित्यिक तथा शास्त्ररूढ़ शिक्षा हासिल की।
यात्राओं से अर्जित अनुभव को इब्न बतूता ज्यादा महत्त्व देता था :
अपनी श्रेणी के अन्य सदस्यों के विपरीत, इब्न बतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था और वह नए-नए देशों और लोगों के विषय में जानने के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों तक गया।
इब्न बतूता की यात्राएँ :
(i) 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।
(ii) मध्य एशिया के रास्ते होकर इब्न बतूता सन् 1333 में स्थलमार्ग से सिंध पहुँचा और दिल्ली तक की यात्रा की |
(iii) 1342 ई. में मंगोल शासक के पास दिल्ली सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गयाऔर वह चीन भी गया |
(iv) चीन जाने के अपने कार्य को दोबारा शुरू करने से पहले वह बंगाल तथा असम भी गया। वह जहाज से सुमात्रा भी गया |
इब्न बतूता की यात्रा वृतांत की विशेषताएँ :
(i) चीन के विषय में उसके वृत्तांत की तुलना मार्को पोलो, जिसने तेरहवीं शताब्दी के अंत में वेनिस से चलकर चीन ;और भारत की भी की यात्रा की थी, के वृत्तांत से की जाती है।
(ii) इब्न बतूता ने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत को सावधनी तथा कुशलतापूर्वक दर्ज किया।
आज की तुलना में चौदहवीं शताब्दी में यात्राएँ करना कठिन और जोखिम भरा था :
(i) इब्न बतूता बताता है कि उसे मुल्तान से दिल्ली की यात्रा में चालीस और सिंध से दिल्ली की यात्रा में लगभग पचास दिन का समय लगा था। दौलताबाद से दिल्ली की दूरी चालीस, जबकि ग्वालियर से दिल्ली की दूरी दस दिन में तय की जा सकती थी।
(ii) लंबी यात्राओं में लुटेरे ही एकमात्र खतरा नहीं थेः यात्राी गृहातुर हो सकता था और बीमार हो सकता था।
(iii) उसने बताया कि यात्रा करना अधिक असुरक्षित भी था | इब्न बतूता ने कई बार डाकुओं के समूहों द्वारा किए गए आक्रमण झेले थे। यहाँ तक कि वह अपने साथियों के साथ कारवाँ में चलना पसंद करता था, पर इससे भी राजमार्गों के लुटेरों को रोका नहीं जा सका।
(iv) मुल्तान से दिल्ली की यात्रा के दौरान उसके कारवाँ पर आक्रमण हुआ, और उसके कई साथी यात्रियों को अपनी जान से हाथ धेना पड़ाः जो जीवित बचे, जिनमें इब्न बतूता भी शामिल था, बुरी तरह से घायल हो गए थे।
फारस के चार सामाजिक वर्ग :
अल-बिरूनी में अपनी पुस्तक में फारस के चार सामाजिक वर्गों का वर्णन किया है -
(i) घुड़सवार और शासक वर्ग
(ii) भिक्षु एवं अनुष्ठानिक पुरोहित
(iii) चिकित्सक, खगोल-शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक
(iv) कृषक तथा शिल्पकार
फ़्रांसिसी जौहरी ज्यौं-बैप्टिस्ट तैवर्नियर की भारत यात्रा : इसने कम से कम छह बार भारत की यात्रा की। वह विशेष रूप से भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था और उसने भारत की तुलना ईरान और
ऑटोमन साम्राज्य से की।
भारत में बसने वाले यात्री : इतालवी चिकित्सक मनूकी, कभी भी यूरोप वापस नहीं गए और भारत में ही बस गए।
अल-बिरुनी द्वारा संस्कृत के विषय में विचार :
अल-बिरूनी संस्कृत को विशाल पहुँच वाली भाषा बताता है और लिखता है -
यदि आप इस कठिनाई अर्थात संस्कृत भाषा सीखने से है से पार पाना चाहते हैं तो यह आसान नहीं होगा
क्योंकि अरबी भाषा की तरह ही, शब्दों तथा विभक्तियों, दोनों में ही इस भाषा की पहुँच बहुत विस्तृत है। इसमें एक ही वस्तु के लिए कई शब्द, मूल तथा व्युत्पन्न दोनों, प्रयुक्त होते हैं और एक ही शब्द का प्रयोग कई वस्तुओं के लिए होता है, जिन्हें भली प्रकार समझने के लिए विभिन्न विशेषक संकेतपदों के माध्यम से एक दूसरे से अलग
किया जाना आवश्यक है।
भारत को समझने में बाधाएँ (अल-बिरूनी) :
उसने कई "अवरोधों" अर्थात बाधाओं की चर्चा की है जो उसके अनुसार समझ में बाधक थे।
(i) भाषा : उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धांतो को एक भाषा से दूसरी में अनुवादित करना आसान नहीं था।
(ii) धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता : इन समस्याओं की जानकारी होने पर भी, अल-बिरूनी लगभग पूरी तरह से भारतीय विद्वानों द्वारा रचित कृतियों पर आश्रित रहा। उसने भारतीय समाज को समझने के लिए अकसर वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति आदि से अंश उदृत किए।
(iii) अभिमान : वह तीसरा अवरोध अभिमान को बताता है |
अल-बिरूनी के अनुसार पवित्रता :
हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है।
वह अपने तर्कों की पुष्टि के लिए उदाहरण भी देता है -
(i) सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है।
(ii) अल-बिरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।
यात्रियों के भारत के सन्दर्भ में इब्न बतूता का वर्णन
दो भारतीय वस्तुएँ जिससे इब्न बतूता के पाठक अपरिचित थे :
(i) नारियल
(ii) पान का पत्ता
17 वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति :
(i) वे कृषि कार्य और अन्य उत्पादों में भाग लेती थी |
(ii) व्यापारिक परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थी |
(iii) कभी-कभी वे वाणिज्यिक विवादों को अदालत में भी ले जाती थी |
इब्न बतूता द्वारा भारतीय शहरों का वर्णन : बतूता ने उपमहाद्वीप के शहरों को उन लोगों के लिए व्यापक
अवसरों से भरपूर पाया जिनके पास आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था। इन शहरों का विवरण निम्न है -
(i) ये शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे सिवाय कभी-कभी युद्धो तथा अभियानों से होने वाले विध्वंस के |
(ii) अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़के तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
(iii) इब्न बतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है।
(iv) दौलताबाद ( महाराष्ट्र में ) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
(v) बाजार मात्रा आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे |
(vi) अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मंदिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी चिन्हित थे |
भारतीय कृषि का वर्णन :
(i) इब्न बतूता दो ऐसे भारतीय वनस्पतियों पान का पत्ता और नारियल का वर्णन करता है जिसे उसके पाठक नहीं जानते थे |
(ii) भारतीय कृषि के इतना अधिक उत्पादनकारी होने का कारण मिटटी का उपजाऊपन था, जो किसानों के लिए वर्ष में दो फसलें उगाना संभव करता था।
भारतीय व्यापार और वाणिज्य : इब्न बतूता बताता है कि -
(i) उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अंतर एशियाई तंत्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ था।
(ii) भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया, दोनों में बहुत माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था।
(iii) भारतीय कपड़ों, विशेषरूप से सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, जारी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी।
(iv) महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक मँहगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।
इब्न बतूता के अनुसार भारत में डाक व्यवस्था का वर्णन :
भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है |
(i) अश्व डाक-व्यवस्था : हर चार मील की दुरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है जिसे उलुक कहा जाता है |
(ii) पैदल डाक-व्यवस्था : पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं इसे दावा कहा जाता है, और यह एक मील का एक-तिहाई होता है.|
डाक-व्यवस्था : भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है। अश्व डाक व्यवस्था जिसे उलुक कहा जाता है, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है। पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं इसे दावा कहा जाता है,हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता है जिसके बाहर तीन मंडप होते हैं जिनमें लोग कार्य आरंभ के लिए तैयार बैठे रहते हैं। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लंबी एक छड़ होती है जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती हैं। जब संदेशवाहक शहर से यात्रा आरंभ करता है तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घंटियों सहित छड़ लिए वह क्षमतानुसार तेज भागता है। जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते हैं तो वे तैयार हो जाते हैं। जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता है, उनमें से एक उससे पत्रा लेता है और वह छड़ हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता है, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता। पत्र के अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है। यह पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक-तीव्र होती है और इसका प्रयोग अकसर खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता है, जिन्हें भारत में बहुत पसंद किया जाता है।
बर्नियर की भारत यात्रा
फ्रांस्वा बर्नियर का जीवन परिचय:
फ़्रांस का रहने वाला फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। कई और लोगों की तरह ही वह मुग़ल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में भारत आया था | वह 1956 से 1968 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा-पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा
शिकोह के चिकित्सक के रूप में, और बाद में मुग़ल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद ख़ान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।
बर्नियर के अनुसार भारत में राजकीय भू-स्वामित्व के दुस्परिणाम :
(i) कृषि का विनाश
(ii) किसानों का उत्पीडन
(iii) समाज के सभी वर्गों के जीवन-स्तर में पतन की स्थिति
बर्नियर के लेखनी की विशेषताएँ :
(i) बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से संबंधित था। उसने भारत में जो भी देखा, वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करने के प्रति अधिक चिंतित था, विशेष रूप से वे स्थितियाँ जिन्हें उसने अवसादकारी पाया।
(ii) उसका विचार नीति-निर्माताओं तथा बुद्धिजीवी वर्ग को प्रभावित करने का था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ऐसे निर्णय ले सके जिन्हें वह ‘‘सही’’ मानता था।
(iii) बर्नियर के ग्रंथ "ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर" अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि तथा गहन चिंतन के सके वृत्तांत में की गई चर्चाओं में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
(iv) वह निरंतर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा, सामान्यतया यूरोप की श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए।
बर्नियर की लिखित पुस्तक : "ट्रेवल इन द मुग़ल एंपायर"
बर्नियर द्वारा पूर्व और पश्चिम की तुलना :
बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और जो देखा उसके विषय में उसने विवरण लिखे। वह सामान्यतः भारत में जो देखता था उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था। उसने अपनी प्रमुख कृति को फ़्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया था और उसके कई अन्य कार्य प्रभावशाली अधिकारीयों और मंत्रियों को पत्रों के रूप में लिखे गए थे। लगभग प्रत्येक दृष्टांत में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया।
वर्नियर द्वारा भारत का चित्रण :
(i) बर्नियर का भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधरित है, जहाँ भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया गया है, या फिर यूरोप का ‘‘विपरीत’’ जैसा कि कुछ इतिहासकार परिभाषित करते हैं।
(ii) उसने जो भिन्नताएँ महसूस कीं उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत, पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
बर्नियर द्वारा भारतीय समाज का वर्णन :
(i) निजी स्वामित्व के गुणों में दृढ़ विश्वास था और उसने भूमि पर राजकीय स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक माना।
(ii) भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है, जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग, जो अल्पसंख्यक होते हैं, के द्वारा आधीन बनाया जाता है।
(iii) गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था।
(iv) बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है, "भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है।"
बर्नियर के अनुसार भारत में माध्यम वर्गीय परिवार नहीं था :
बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है, जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग, जो अल्पसंख्यक होते हैं, के द्वारा आधीन बनाया जाता है। गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था। बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है, "भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है।"
बर्नियर द्वारा मुग़ल साम्राज्य का वर्णन : बर्नियर ने मुग़ल साम्राज्य को इस रूप में देखा - वह कहता है "इसका राजा भिखारियों और क्रूर लोगो का राजा था | इसके शहर और नगर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे और इसके खेत झाड़ीदार तथा घातक दलदल से भरे हुए थे और इसका मात्र एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व।
शिविर नगर : बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को "शिविर नगर" कहता है | वह ऐसा इसलिए कहता था क्योंकि ये ऐसे नगर थे जो अपने अस्तित्व में बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे | उसका मानना था कि ये नगर राजकीय दरबार के आने पर तो ये नगर अस्तित्व में आ जाते थे और राजदरबार के चले जाने पर नगर भी तेजी से समाप्त हो जाता था |
बर्नियर द्वारा नगरों का वर्णन :
(i) वह ऐसे नगरों का वर्णन करता है जो राजदरबार के आने से नगर बन जाता है और चले जाने से अस्तित्वहीन हो जाते है, इसे वह शिविर नगर कहता है |
(ii) वह और भी कई प्रकार के नगरों का वर्णन करता है जो अस्तित्व में थे जैसे - उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धर्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों
के अस्तित्व का सूचक है।
व्यापारी वर्ग : बर्नियर व्यापारी वर्ग के बारे में निम्न बातें कहता है -
(i) व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधें से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ। अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ कहा जाता था।
शहरों के व्यवसायी वर्ग : शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। जहाँ कई
राजकीय प्रश्रय पर आश्रित थे, कई अन्य संरक्षकों या भीड़भाड़ वाले बाजार में आम लोगों की सेवा द्वारा जीवनयापन करते थे।
दास और दासियाँ : बाजार में रखी अन्य वस्तुओं की तरह दास और दासियों के खरीद-बिक्री होती थी और नियमित रूप से भेंट स्वरुप दिए जाते थे | इनका निम्न उपयोग था -
(i) सुल्तान के कुछ दासियाँ संगीत में निपुण थी |
(ii) सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
(iii) दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था |
(iv) पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में इनकी सेवाएँ ली जाती थी |
(v) दासों की कीमत, विशेष रूप से उन दासियों की, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए थी, बहुत कम
होती थी |
सत्ती प्रथा :
कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्य को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।
Assignment
Q1. इब्न बतूता ने डाक प्रणाली के विषय में क्या लिखा है ?
Q2. भारतीय समाज को समझने के लिए अलबिरूनी के किन स्रोतों का सहारा लिया ?
Q3. फ्रांस्वा बर्नियर कौन था ? वह भारत कब और क्यों आया ?
Q4. इब्न बतूता ने भारत आने से पूर्व किन-किन देशों की यात्रा की ?
Q5. मार्कोपोलो का संक्षिप्त परिचय दे |
Q6. महिलाओं और पुरुषों के यात्रा करने के क्या कारण था ?
Q7. अल बिरूनी ने अपनी कृति किस भाषा में लिखी थी तथा किन लोगों के लिए लिखी थी |
Q8. किसने कुछ मुग़लकालीन नगरों को शिविर नगर बताया ? क्यों ?
Q9. किताब उल-हिन्द किसकी रचना है ?
Q10. किताब-उल-हिन्द की विशेषताएँ बताइए ?
Q11. "भारत में मध्य की स्थिति नहीं हैं |" यह कथन किसने और क्यों कहा ?
Q12. "ट्रेवल इन द मुग़ल एम्पायर" पुस्तक किसने लिखी |
4 अंक के प्रश्न :
Q1. यात्रा वृतांत किसे कहते हैं ? मध्यकालीन इतिहास लेखन में यात्रा वृतांत का महत्व लिखिए |
Q2. भारत संबंधी विवरण को समझने के लिए अल बिरूनी के समक्ष कौनसी बाधाएँ थी ? उसने उस पर विजय कैसे प्राप्त की ?
Q3. बर्नियर 17 वीं शताब्दी के नगरों के बारे में क्या कहते हैं ? उनका यह विवरण किस प्रकार संशय पूर्ण है ?
Q4. सत्ती प्रथा के विषय में बर्नियर के क्या दृष्टिकोण थे ? अबुल फजल ने भूमि राजस्व को "राजस्व का पारिश्रमिक" क्यों बताया है ?
Q5. इब्न बतूता के वृतांत के आधार पर तत्कालीन संचार प्रणाली एक अनूठी व्यवस्था थी, इस कथन का वर्णन कीजिए |
Q6. इब्न बतूता के अनुसार यात्राएँ करना अधिक असुरक्षित क्यों था ?
Q7. बर्नियर ने क्यों कहा कि निजी भूस्वामित्व का आभाव था जिससे बेहतर भूधारक वर्ग का उदय न हो सका ?
Q8. बर्नियर अपने विवरणों में यूरोपीय शासकों को क्या चेतवानी देता है ?
Q9. बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी के पश्चिमी विचारकों को किस-प्रकार प्रभावित किया |
Q10. अल बिरूनी द्वारा वर्णित वर्ण-व्यवस्था का वर्णन कीजिये |
Q11. अल-बिरूनी ने किस आधार पर अपवित्रता के मान्यता को अस्वीकार कर दिया |
Q12. बर्नियर के अनुसार भारत में राजकीय भू-स्वामित्व के क्या दुस्परिणाम थे ?
Q13. बर्नियर ने भारत का चित्रण किस प्रकार किया है ?
Q14. मुग़ल साम्राज्य के प्रति बर्नियर के क्या दृष्टिकोण थे ? वर्णन कीजिए |
Q15. बर्नियर मुग़लकालीन शहरों का वर्णन किस प्रकार करता है ?
Q16. व्यापारी तथा व्यवसायी वर्ग के विषय में बर्नियर क्या बताता है ? विस्तार में बताइए |
Q17.
Q18.
Q19.
Q20.
8 अंक के प्रश्न :
Q1. विदेशी यात्रियों के वृतांतों द्वारा 10वीं से 17 वीं सदी के इतिहास निर्माण में मदद मिलती है | उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए |
Q2. इब्न बतूता ने अपने विवरण में भारत का विवरण किस प्रकार किया है ?
Q3. बर्नियर ने अपनी पुस्तक में 'पूर्ब एवं पश्चिम' की तुलना किस प्रकार किया है ?
Q4.
Q5.
Q6.
Q7.
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History Part-2 Chapter List
Chapter 5. यात्रियों के नजरिए
Chapter 6. भक्ति सूफी परंपराएँ
Chapter 7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
Chapter 8. किसान जमींदार और राज्य
Chapter 9. राजा और विभिन्न वृतान्त
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