Chapter 3. समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Political Science-I class 12 exercise भारत का अमरीका से संबंध
Chapter 3. समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Political Science-I class 12 exercise भारत का अमरीका से संबंध ncert book solution in hindi-medium
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अमरीकी प्रभुत्व
अमरीकी प्रभुत्व या एकध्रुवीय विश्व : शीतयुद्ध के अंत के बाद संयुक्त राज्य अमरीका विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा और दुनिया में कोई उसकी टक्कर का प्रतिद्वंद्वी न रहा। इस घटना के बाद के दौर को अमरीकी प्रभुत्व या एकध्रुवीय विश्व का दौर कहा जाता है।
अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत :
अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत 1991 में हुई जब एक ताकत के रूप में सोवियत संघ अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गया | इस स्थिति में अमरीकी वर्चस्व सार्वव्यापी मान्य हो गया | अन्यथा अमरीकी वर्चस्व 1945 से ही अंतर्राष्ट्रीय पटल पर विद्यमान था |
(i) खाड़ी युद्ध : अमरीका के नेतृत्व में 34 देशों की मिलीजुली और 660000 सैनिकों की भारी-भरकम फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है।
(a) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म : 1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से
उस पर कब्ज़ा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनयिक कोशिशें जब नाकाम रहीं तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे दी। संयुक्त राष्ट्रसंघ के इस सैन्य अभियान को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ कहा जाता है |
एक अमरीकी जनरल नार्मन श्वार्जकॉव इस सैन्य-अभियान के प्रमुख थे और 34 देशों की इस मिली जुली सेना में 75 प्रतिशत सैनिक अमरीका के ही थे। हालाँकि इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन
का ऐलान था कि यह ‘सौ जंगों की एक जंग’ साबित होगा लेकिन इराकी सेना जल्दी ही हार गई और उसे कुवैत से हटने पर मजबूर होना पड़ा।
(b) कंप्यूटर युद्ध : खाड़ी युद्ध के दौरान अमरीका की सैन्य क्षमता अन्य देशो की तुलना में कही अधिक थी | प्रौद्योगिकी के मामले में अमेरिका अन्य देशों से काफी आगे निकल गया है | बड़े विज्ञापनी अंदाज में अमरीका ने इस युद्ध में तथाकथित ‘स्मार्ट बमों’ का प्रयोग किया। इसके चलते कुछ पर्यवेक्षकों ने इसे ‘कंप्यूटर युद्ध की संज्ञा दी। इस युद्ध की टेलीविजन पर व्यापक कवरेज हुई और यह एक ‘वीडियो गेम वार’ में तब्दील हो गया।
खाड़ी युद्ध के बाद अमरीका की विदेश निति : खाड़ी युद्ध जीतने के बावजूद जार्ज बुश 1992 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार विलियम जेफरसन (बिल) क्लिंटन से राष्ट्रपति चुनाव हार गए | उन्होंने विदेश निति की जगह घरेलु मामलों तक सिमित कर लिया |
क्लिंटन के शासन में अमेरिकी विदेश निति :
(i) क्लिंटन सरकार ने सैन्य-शक्ति और सुरक्षा जैसी ‘कठोर राजनीति’ की जगह लोकतंत्र के बढ़ावे की निति अपनाई |
(ii) जलवायु-परिवर्तन तथा
(iii) विश्व व्यापार जैसे ‘नरम मुद्दों’ पर ध्यान केन्द्रित किया।
11 सितम्बर (नाइन एलेवन) की घटना : 11 सितंबर 2001 के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अपहरणकर्त्ताओं ने उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमरीकी व्यावसायिक विमानों पर कब्ज़ा कर लिया। अपहरणकर्त्ता इन विमानों को अमरीका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध् में उड़ाकर ले गये। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अर्लिंगटन स्थित ‘पेंटागन’ से टकराया। ‘पेंटागन’ में अमरीकी रक्षा-विभाग का
मुख्यालय है। चौथे विमान को अमरीकी कांग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन वह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘नाइन एलेवन’ कहा जाता है
9/11 की घटना का परिणाम :
(i) इस घटना से पूरा विश्व हिल सा गया | अमरीकियों के लिए यह दिल दहला देने वाला घटना था |
(ii) इस हमले में लगभग तिस हजार व्यक्ति मारे गये |
(iii) 9/11 के जबाब अमरीका ने फौरी कदम उठाये और भयंकर कार्रवाई की।
(iv) ‘आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध’ के अंग के रूप में अमरीका ने ‘ऑपरेशन एन्डयूरिंग प्रफीडम’ चलाया।
(v) यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य
निशाना अल-कायदा और अपफगानिस्तान के तालिबान-शासन को बनाया गया।
9/11 के बाद अमरीका द्वारा बनाए गए बंदी : अमरीकी सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ कीं। अक्सर गिरफ्तार लोगों के बारे में उनकी सरकार को जानकारी नहीं दी गई। गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुपिफया जेलखानों में रखा गया। क्यूबा के निकट अमरीकी नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो बे में है। कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया। इस जगह रखे गए बंदियों को न तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमरीका के कानूनों की। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।
ऑपरेशन इराकी फ्रीडम : 2003 के 19 मार्च को अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी प्रफीडम’ के कुटनाम से इराक पर सैन्य-हमला किया। अमरीकी अगुआई वाले ‘कॉअलिशन ऑव वीलिंग्स आकांक्षियों के महाजोट)’ में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इराक पर इस हमले की अनुमति नहीं दी थी।
2003 के इराक पर हमले के उदेश्य : चूँकि इस हमले के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की अनुमति नहीं थी | सिर्फ दिखावे के लिए कहा गया कि सामूहिक संहार के हथियार बनाने के लिए इराक पर हमला किया गया है|
(i) इराक में सामूहिक संहार के हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले।
(ii) ऐसा माना जाता है कि इराक पर यह हमला इराक के तेल-भंडार पर नियंत्रण और इराक में अमरीका की मनपसंद सरकार कायम करने के उदेश्य से किया गया था ।
इराक पर अमरीकी हमले के सैन्य और राजनितिक परिणाम :
(i) इराक को ‘शांत’ कर पाने में अमरीका सफल नहीं हो सका है।
(ii) इराक में अमरीका के खिलाफ एक पूर्णव्यापी विद्रोह भड़क उठा।
(iii) अमरीका के 3000 सैनिक इस युद्ध में मारे गए जबकि इराक के सैनिक कहीं ज्यादा बड़ी संख्या में मारे गये।
(iv) एक अनुमान के अनुसार अमरीकी हमले के बाद से लगभग 50000 नागरिक मारे गये हैं।
(v) एक महत्त्वपूर्ण अर्थ में इस हमले का निष्कर्ष यह है कि इराक पर अमरीकी हमला सैन्य और राजनीतिक धरातल पर असफल सिद्ध हुआ है।
अमरीकी वर्चस्व का अर्थ
अमरीकी वर्चस्व का अर्थ : अमरीकी वर्चस्व के कई क्षेत्रों में कई अर्थ है |
(i) आर्थिक केंद्र के रूप में : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमरीका एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है |
(ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के रूप में : सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति अमरीका बचा। इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था अमरीकी हाथों में चली गई | इसे ‘एकध्रुवीय’ व्यवस्था भी कहा जाता है।
(iii) तकनीकी क्षेत्र में : हमने इराक युद्ध में देखा कि किस तरह अमरीका सैन्य एवं अन्य वैज्ञानिक तकनीकों में अन्य पश्चिमी देशों से कही आगे है |
(iv) सैन्य शक्ति के रूप में : शीतयुद्ध के बाद अमरीका एक सैन्य शक्ति के रूप में उभरा है | उसने विश्व के कई देशों में सैनिक ठिकाने बना रखा है |
अमरीकी सैन्य शक्ति : अमरीका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी बढ़ी-चढ़ी सैन्य शक्ति है। आज
अमरीका की सैन्य शक्ति अपने आप में अनूठी है और बाकी देशों की तुलना में बेजोड़। अनूठी इस अर्थ में कि आज अमरीका अपनी सैन्य क्षमता के बूते पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है। एकदम सही समय में अचूक और घातक वार करने की क्षमता है उसके पास। अपनी सेना को युद्धभूमि से अधिकतम दूरी पर सुरक्षित रखकर वह अपने दुश्मन को उसकके घर में ही पंगु बना
सकता है।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सार्वजनिक वस्तु का सबसे बढि़या उदाहरण समुद्री व्यापार-मार्ग (सी लेन ऑव कम्युनिवेफशन्स -SLOCs) हैं जिनका इस्तेमाल व्यापारिक जहाज करते हैं।
साम्राज्यवादी शक्तियों के बल प्रयोग का लक्ष्य :
साम्राज्यवादी शक्तियों ने सैन्य बल का प्रयोग महज चार लक्ष्यों -
(i) जीतने,
(ii) अपरोध् करने,
(iii) दंड देने और
(iv) कानून व्यवस्था बहाल रखने के लिए किया है।
वैश्विक अर्थव्यस्था में मुक्त-व्यापार : वैश्विक अर्थव्यस्था में मुक्त-व्यापार अमरीकी वर्चस्व की देन है | वह इस व्यवस्था को हर हालत में बनाए रखना चाहता है | इसके लिए उसे आपेक्षिक हानि भी उठानी पड़ती है | जबकि दुसरे प्रतियोगी देश वैश्विक अर्थव्यवस्था के खुलेपन का फायदा उठाते हैं जबकि इस खुलेपन को कायम रखने के लिए उन्हें कोई खर्च भी नहीं करना पड़ता। इस व्यवस्था को कायम रखने के लिए सार्वजानिक वस्तुएँ उपलब्ध करवाने में अमरीका की महत्वपूर्ण भूमिका है, जैसे समुद्री मार्ग (सी लेन ऑव कम्युनिकेशन - SLOCs)इत्यादि |
सार्वजानिक वस्तु के उदाहरण : स्वच्छ वायु, सड़क और इन्टरनेट |
समुद्री मार्गों पर नियंत्रण : खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त-व्यापार समुद्री व्यापार-मार्गों के खुलेपन के बिना संभव नहीं। दबदबे वाला देश अपनी नौसेना की ताकत से समुद्री व्यापार-मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करता है और अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में अबाध् आवाजाही को सुनिश्चित करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश नौसेना का जोर घट गया। अब यह भूमिका अमरीकी नौसेना निभाती है जिसकी उपस्थिति दुनिया के लगभग सभी महासागरों में है।
इन्टरनेट पर नियंत्रण : इन्टरनेट एक सार्वजनिक वस्तु है जो वर्ल्ड वाइड वेव के जरिए पुरे विश्व को जोड़ता है | इंटरनेट अमरीकी सैन्य अनुसंधन परियोजना का परिणाम है। यह परियोजना 1950 में शुरू हुई थी। आज भी इंटरनेट उपग्रहों के एक वैश्विक तंत्र पर निर्भर है और इनमें से अधिकांश उपग्रह अमरीका के हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण : अमरीका दुनिया के हर हिस्से, वैश्विक अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र
तथा प्रौद्योगिकी के हर हलके में मौजूद है। विश्व की अर्थव्यवस्था में अमरीका की 28 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। यदि विश्व के व्यापार में यूरोपीय संघ के अंदरूनी व्यापार को भी शामिल कर लें तो विश्व के कुल व्यापार में अमरीका की 15 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। विश्व की अर्थव्यवस्था का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें कोई अमरीकी कंपनी अग्रणी तीन कंपनियों में से एक नहीं हो।
अमरीका द्वारा तैयार संरचनात्मक ढाँचा जो उसे आर्थिक प्रबलता देती है :
अमरीका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढाँचागत ताकत यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत से जुड़ी हुई है।
(i) ब्रेटनवुड प्रणाली (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और (b) विश्व व्यापार संगठन
(ii) एमबीए (मास्टर ऑव बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) की अकादमिक डिग्री
अमरीकी वर्चस्व - सांस्कृतिक अर्थ में :
(i) इस वर्चस्व का आशय है सामाजिक, राजनीतिक और ख़ासकर विचारधारा के धरातल पर किसी वर्ग की बढ़त या दबदबा की | अमेरिका के संबंध में इसका रिश्ता 'सहमती गढ़ने' की ताकत से हैं |
(ii) कोई प्रभुत्वशाली वर्ग या देश अपने असर में रहने वालों को इस तरह सहमत कर सकता है कि वे भी दुनिया को उसी नजरिए से देखने लगें जिसमें प्रभुत्वशाली वर्ग या देश देखता है। ऐसी क्षमता अमेरिका में बखूबी है |
(iii) अमेरिका सिर्फ सैन्य शक्ति से काम नहीं लेता अपितु वह अपने प्रतिद्वंद्वी और अपने से कमजोर देशों के व्यवहार-बरताव को अपने मनमापिफक बनाने के लिए विचारधरा से जुड़े साधनों का भी इस्तेमाल करता है।
(iv) दुनिया के अधिकांश लोगों और समाजों के जो सपने हैं- वे सब बीसवीं सदी के अमरीका में प्रचलित व्यवहार-बरताव के ही प्रतिबिंब हैं। अमरीकी संस्कृति बड़ी लुभावनी है और इसी कारण
सबसे ज्यादा ताकतवर है।
सोवियत संघ को सांस्कृतिक उत्पाद द्वारा मात : शीतयुद्ध के दौरान अमरीका को लगा कि सैन्य शक्ति के दायरे में सोवियत संघ को मात दे पाना मुश्किल है। अमरीका ने ढाँचागत ताकत और सांस्कृतिक प्रभुत्व के दायरे में सोवियत संघ से बाजी मारी। सोवियत संघ की केंद्रीकृत और नियोजित अर्थव्यवस्था उसके लिए अंदरूनी आर्थिक संगठन का एक वैकल्पिक मॉडल तो थी लेकिन पूरे शीतयुद्ध के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था पूँजीवादी तर्ज पर चली। अमरीका ने सबसे बड़ी जीत सांस्कृतिक प्रभुत्व के दायरे में हासिल की। सोवियत संघ में नीली जीन्स के लिए दीवानगी इस बात को साफ-साफ जाहिर करती है कि अमरीका एक सांस्कृतिक उत्पाद के दम पर सोवियत संघ में दो पीढि़यों के बीच दूरियाँ पैदा करने में कामयाब रहा।
अमरीकी वर्चस्व की सबसे बड़ी बाधा :
अमरीकी वर्चस्व को लगाम लगाने में ये तीन चीजें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है |
(i) संस्थागत बनावट : पहला व्यवधान स्वयं अमरीका की संस्थागत बनावट है। यहाँ शासन के तीन अंगों के बीच शक्ति का बँटवारा है और यही बनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बेलगाम इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का काम करती है।
(ii) अमरीकी समाज : अमरीकी समाज जो अमरीका के विदेशी सैन्य-अभियानों पर अंकुश रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।
(iii) नाटो : अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में आज सिर्फ एक संगठन है जो संभवतया अमरीकी ताकत पर लगाम कस सकता है और इस संगठन का नाम है ‘नाटो’ अर्थात् उत्तर अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन।
भारत का अमरीका से संबंध
भारत और अमरीकी संबंधों में सुधार : भारत अमरीका का प्राचीन दोस्त नहीं रहा है, शीतयुद्ध के सालों से ही भारत सोवियत संघ का करीबी दोस्त रहा है | इस अवधि में भारत अपनी अर्थव्यस्था का उदारीकरण और आर्थिक नीतियों में परिवर्तन के कारण अमेरिका से जुड़ने का एक अवसर प्राप्त हुआ | भारत की प्रभावशाली आर्थिक वृद्ध-दर के कारण भारत, अमरीका समेत कई देशों के लिए आकर्षक आर्थिक सहयोगी बन गया है।
भारत-अमरीकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं :
(i) प्रौद्योगिकी का आदान प्रदान |
(ii) अमरीका में बसे अनिवासी भारतीय |
भारत और अमरीका के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य :
(i) सॉफ्टवेर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमरीका को जाता है।
(ii) बोईंग के 35 प्रतिशत तकनीकी कर्मचारी भारतीय मूल के हैं।
(iii) 3 लाख भारतीय ‘सिलिकन वैली’ में काम करते हैं।
(iv) उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कंपनियों की शुरुआत अमरीका में बसे भारतीयों ने की है।
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Political Science-I Chapter List
Chapter 1. शीतयुद्ध का दौर
Chapter 2. दो ध्रुवीयता का अंत
Chapter 3. समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व
Chapter 4. सत्ता के वैकल्पिक केंद्र
Chapter 5. समकालीन दक्षिण एशिया
Chapter 6. अंतर्राष्ट्रीय संगठन
Chapter 7. समकालीन विश्व में सुरक्षा
Chapter 8. पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Chapter 9. वैश्वीकरण
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