समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ मूलभूत अवधारणाएँ Macro Economics class 12 exercise page 3
समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ मूलभूत अवधारणाएँ Macro Economics class 12 exercise page 3 ncert book solution in hindi-medium
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अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं के प्रकार -
(i) अंतिम वस्तुएँ |
(ii) मध्यवर्ती वस्तुएँ |
(iii) उपभोक्ता वस्तुएँ |
(iv) पूँजीगत वस्तुएँ |
अंतिम वस्तुएँ - अंतिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है तथा उत्पादन सीमा रेखा को पार कर चुकी है |
(i) अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ - अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है तथा इनके अंतिम प्रयोगकर्ता उपभोक्ता होते है |
(ii) अंतिम उत्पादक वस्तुएँ - अंतिम उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है तथा इनके अंतिम प्रयोगकर्ता उत्पादक होते है |
मध्यवर्ती वस्तुएँ - मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार नहीं होती है तथा ये उत्पादन सीमा रेखा के अन्दर होती है |
एक ही वस्तु अंतिम तथा मध्यवर्ती दोनों हो सकती है - एक ही वस्तु अंतिम तथा मध्यवर्ती दोनों हो सकती है यह उस वस्तु के प्रयोग पर निर्भर करता है | जैसे - यदि आटे का प्रयोग एक बिस्कुट बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है तो यह एक मध्यवर्ती वस्तु है लेकिन यदि इसी आटे का प्रयोग एक परिवार द्वारा रोटी बनाने के लिए किया जाता तो यह एक अंतिम वस्तु कहलाएगी |
अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में अंतर -
अंतिम वस्तुएँ -
(i) इन्हें कच्चे माल के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता |
(ii) ये उत्पादन सीमा रेखा को पार कर चुकी होती है |
(iii) इन वस्तुओं की पुनः बिक्री नहीं की जाती है |
(iv) इन वस्तुओं के मूल्य में कोई मूल्यवृद्धि नहीं की जानी है |
(v) इन वस्तुओं के अंतिम मूल्य को राष्ट्रिय आय में शामिल किया जाता है |
मध्यवर्ती वस्तुएँ -
(i) इन्हें कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता |
(ii) ये उत्पादन सीमा रेखा को पार नहीं कर चुकी होती है |
(iii) इन वस्तुओं की पुनः बिक्री की जाती है |
(iv) इन वस्तुओं के मूल्य में मूल्यवृद्धि की जानी है |
(v) इन वस्तुओं के को राष्ट्रिय आय में शामिल नहीं किया जाता है |
उपभोक्ता वस्तुएँ - उपभोक्ता वस्तुएँ वह वस्तुएँ होती है जो मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सतुष्टि करती है |
उपभोक्ता वस्तुओं के प्रकार -
(i) टिकाऊ वस्तुएँ - टिकाऊ वस्तुएँ ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग कई वर्षो तक किया जा सकता है तथा इन वस्तुओं कीमत भी अधिक होती है | जैसे -टीवी, कार, वोशिंग मशीन आदि |
(ii) अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ - अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग एक वर्ष या उससे थोड़े अधिक समय तक किया जा सकता है तथा इन वस्तुओं कीमत कम होती है | जैसे - कपडे, क्रोकरी आदि |
(iii) गैर-टिकाऊ वस्तुएँ - गैर-टिकाऊ वस्तुएँ ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग केवल एक ही बार किया जा सकता है | इन्हें एकल प्रयोग वस्तुएं भी कहा जाता है | जैसे - दूध, पेट्रोल, डबल रोटी आदि |
(iv) सेवाएँ - सेवाएँ ऐसी गैर-भौतिक वस्तुएं होती है जो मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि करती है लेकिन ये अमूर्त होती है | अर्थात इनको छुआ और देखा नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है |
पूँजीगत वस्तुएँ - पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक की स्थिर परिसंपतियाँ(fixed assets) होती है, जिन्हें कई वर्षो तक प्रयोग किया जाता है और इनका मूल्य भी उच्च होता है | इन वस्तुओं को प्रयोग करने से इनके मूल्य में कमी होती है अर्थ इनका मूल्यह्रास होता है | जैसे - मशीन और प्लांट |
सभी मशीने पूँजीगत वस्तुएं नहीं होती है - कोई मशीन पूँजीगत है या नहीं यह उस मशीन के प्रयोग पर निर्भर करता है की उस वस्तु का अंतिम प्रयोगकर्ता कौन है | जैसे - एक दर्जी की दुकान में रखी गई सिलाई मशीन उस दर्जी की स्थिर परिसंपति है, इसलिए यह एक पूँजीगत वस्तु | लेकिन यदि यही मशीन एक परिवार द्वारा अपने घर में परिवार के लिए प्रयोग की जा रही है तो यह पूँजीगत वस्तु नहीं है तब यह एक उपभोक्ता वस्तु है |
सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती है लेकिन सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती है - उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में होता है | सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती है क्योंकि पूँजीगत वस्तुओं का प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में होता है | अतः सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती है | जैसे - मशीन एक पूँजीगत वस्तु भी है और उत्पादक वस्तु भी |
सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती है क्योंकि पूँजीगत वस्तुओं का प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में बार - बार होता है | जैसे - कच्चा माल एक उत्पादक वस्तु क्योंकि इसका प्रयोग उत्पादक प्रक्रिया में होता है लेकिन यह एक पूँजीगत वस्तु नहीं है क्योंकि इसका प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में बार - बार नहीं होता है |
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निवेश के घटक -
(i) स्थिर निवेश - स्थिर निवेश से अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादको के स्थिर परिसंपतियो के स्टॉक में वृद्धि से है | जैसे - एक उत्पादक के पास 2016 में 8 मशीने थी तथा 2017 के दौरान उसके पास 10 मशीने है अतः वर्ष 2017 के दौरान स्थिर परिसंपतियो में निवेश 2 मशीन का है |
(ii) माल-सूची निवेश - माल-सूची निवेश से अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादको के माल-सूची(inventory) के स्टॉक में वृद्धि से है | माल-सूची में शामिल है कच्चे माल का स्टॉक, तैयार माल का स्टॉक, अर्ध-तैयार माल का स्टॉक |
मूल्यह्रास - स्थिर परिसंपतियो के मूल्य में होने वाली कमी को मूल्यह्रास कहते है | मूल्यह्रास समान्य टूट-फुट, प्रत्याशित अप्रचलन, अप्रत्याशित अप्रचलन आदि के कारण होता है |
मूल्यह्रास के कारण -
1. समान्य टूट-फूट - कभी - कभी स्थिर परिसंपतियों में समान्य तथा छोटे - बड़े टूट-फूट के कारण उनके मूल्य में कमी हो जाती है जिससे उनका मूल्यह्रास हो जाता है |
2. प्रत्याशित अप्रचलन - प्रत्याशित अप्रचलन का अर्थ है मूल्यह्रास के ऐसे कारण जिनका बाजार की स्थितियों के ज्ञान तथा अनुभव से पता लगाया जा सकता है | जैसे - प्रौद्धोगिकी में परिवर्तन तथा माँग में परिवर्तन |
(i) प्रौद्धोगिकी में परिवर्तन - प्रौद्धोगिकी में परिवर्तन के कारण स्थिर परिसंपतियो का अप्रचलन हो जाता है | जिससे उनके मूल्य में कमी हो जाती है | जैसे - black and white टीवी बनाने वाले प्लांट अप्रचलित हो गए है जब से रंगीन टीवी बनाने की प्रोधौगिकी सफल हो गई है |
(ii) माँग में परिवर्तन - माँग में परिवर्तन के कारण स्थिर परिसंपतियो का अप्रचलन हो जाता है | जिससे उनके मूल्य में कमी हो जाती है | जैसे - रबड़ के जूते बनाने वाला प्लांट तब अप्रचलित हो जाता है जब लोग चमड़े के जूते की माँग करने लगते है |
3. अप्रत्याशित अप्रचलन - प्रत्याशित अप्रचलन का अर्थ है मूल्यह्रास के ऐसे कारण जिनका पूर्वज्ञान असंभव है | जैसे - प्राकृतिक आपदाएँ और आर्थिक मंदी |
(i) प्राकृतिक आपदाएँ - प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप तथा आग आदि के कारण स्थिर परिसंपतियो को काफी पूँजीगत हानि होती है |
(ii) आर्थिक मंदी - आर्थिक मंदी के कारण परिसंपतियो के बाजार मूल्य में गिरावट हो जाती है |
मूल्यह्रास आरक्षित कोष - मूल्यह्रास आरक्षित कोष से अभिप्राय मूल्यह्रास की हानि को पूरा करने के लिए फंड्स या कोषो का प्रावधान करने है |
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स्टॉक तथा प्रवाह -
स्टॉक - स्टॉक समय के एक निश्चित बिंदु पर मापी जाने वाली मात्रा है | जैसे - 1 मार्च 2017 को आपके बैंक खाते में 500 रूपए है | यह एक स्टॉक अवधारणा है क्योंकि यह समय के एक निश्चित बिंदु से सम्बंधित है |
प्रवाह - प्रवाह, समय की विशेष अवधि में मापी जाने वाली मात्रा है | जैसे - आप रोज 100 खर्च करते है | यह एक प्रवाह अवधारणा है क्योंकि यह समय के एक विशेष अवधि से सम्बंधित है |
प्रवाह तथा स्टॉक में अंतर -
स्टॉक -
(i) स्टॉक का सम्बंध समय के एक निश्चित बिंदु से होता है |
(ii) स्टॉक का समयकाल नहीं होता है |
(iii) स्टॉक, प्रवाह को प्रभावित करता है | जैसे - पूंजी का स्टॉक जितना अधिक होता है उतना ही अधिक वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रवाह होता है |
प्रवाह -
(i) प्रवाह का सम्बंध समय की विशेष अवधि से होता है |
(ii) प्रवाह का समयकाल होता है | जैसे - प्रति घंटा, प्रतिमाह |
(iii) प्रवाह, स्टॉक को प्रभावित करता है | जैसे - मुद्रा का प्रवाह जितना अधिक होता है उतना ही अधिक मुद्रा का स्टॉक होता है |
वास्तविक प्रवाह तथा मौद्रिक प्रवाह -
वास्तविक प्रवाह - वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रो में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह से है | जैसे - उत्पादक क्षेत्र द्वारा परिवार क्षेत्र को वस्तुओं का प्रवाह |
मौद्रिक प्रवाह - मौद्रिक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रो में मुद्रा के प्रवाह से है | जैसे - परिवार क्षेत्र द्वारा उत्पादक क्षेत्र को मुद्रा का प्रवाह |
वास्तविक प्रवाह मौद्रिक प्रवाह के विपरीत है - वास्तविक प्रवाह मौद्रिक प्रवाह के विपरीत है क्योंकि वास्तविक प्रवाह के बदले ही मौद्रिक प्रवाह किया जाता हैं | जैसे उत्पादक क्षेत्र द्वारा परिवार क्षेत्र को वस्तुओं तथा सेवाओं का वास्तविक प्रवाह किया जाता है | इसके बदले परिवार क्षेत्र द्वारा उत्पादक क्षेत्र को मुद्रा का मौद्रिक प्रवाह किया जाता है |
इसी तरह परिवार क्षेत्र द्वारा उत्पादक क्षेत्र को कारक सेवाओं का वास्तविक प्रवाह किया जाता है जिसके बदले उत्पादक क्षेत्र द्वारा परिवार क्षेत्र को भुगतान किया जाता है |
आय और उत्पाद के चक्रीय प्रवाह के सिद्धांत -
(i) मौद्रिक प्रवाह वास्तविक प्रवाह के विपरीत होते है |
(ii) विभिन्न क्षेत्रो में प्राप्तियां तथा भुगतान समरूप होते है |
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