Chapter 7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर History Part-2 class 12 exercise पेज 4
Chapter 7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर History Part-2 class 12 exercise पेज 4 ncert book solution in hindi-medium
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विजयनगर कि भौगोलिक स्थिति : यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था।
विजयनगर का इतिहास : विजयनगर एक शहर और एक साम्राज्य दोनों के लिए प्रयुक्त नाम था | 1565 में इस पर आक्रमण कर इसे लूटा गया और बाद में यह उजड़ गया। हालाँकि सत्राहवीं-अठारहवीं शताब्दियों तक यह पूरी तरह से विनष्ट हो गया था, पर फिर भी कृष्णा-तुंगभद्रा दोआब क्षेत्र के निवासियों की स्मृतियों में यह जीवित रहा। उन्होंने इसे हम्पी नाम से याद रखा। इस नाम का आविर्भाव यहाँ की स्थानीय मातृदेवी पम्पादेवी के नाम से हुआ था।
विजयनगर साम्राज्य के बारे में जानकारी के स्रोत :
(i) मौखिक परम्पराओं द्वारा
(ii) पुरातात्विक खोजों द्वारा
(iii) स्थापत्य के नमूनों द्वारा
(iv) अभिलेखों एवं अन्य दस्तावेजों द्वारा
कर्नल कॉलिन मकेंजी द्वारा हम्पी कि खोज : कर्नल कॉलिन मकेंजी एक अभियंता तथा पुरातत्वविद थे जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत थे | उन्होंने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया | उनके द्वारा हासिल शुरुआती जानकारियाँ विरुपाक्ष मंदिर तथा पम्पादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं। यह खोज उन्होंने 1800 ई० में की थी | 1836 से ही अभिलेखकर्ताओं ने यहाँ और हम्पी के अन्य मंदिरों से कई दर्जन अभिलेखों को इकठ्ठा करना आरंभ कर दिया। इस शहर तथा साम्राज्य के इतिहास के पुनर्निर्माण के प्रयास में इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों तथा तेलुगु, कन्नड़, तमिल और संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया।
विजयनगर साम्राज्य कि स्थापना :
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों-हरिहर और बुक्का-द्वारा 1336 में की गई थी। इस साम्राज्य की अस्थिर सीमाओं में अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले तथा अलग-अलग धार्मिक परंपराओं को मानने वाले लोग रहते थे। अपनी उत्तरी सीमाओं पर विजयनगर शासकों ने अपने समकालीन राजाओं, जिनमें दक्कन के सुलतान तथा उड़ीसा के गजपति शासक शामिल थे, उर्वर नदी घाटियों तथा लाभकारी विदेशी व्यापार से उत्पन्न संपदा पर अधिकार के लिए संघर्ष किया। साथ ही इन राज्यों के बीच संपर्क से विचारों का आदान-प्रदान, विशेष रूप से स्थापत्य के क्षेत्र में, होने लगा। विजयनगर के शासकों ने अवधारणाओं और भवन निर्माण की तकनीकों को ग्रहण किया जिन्हें उन्होंने आगे और विकसित किया।
मंदिरों का संरक्षण : इस क्षेत्र के शासकों ने निम्नलिखित मंदिरों को संरक्षण प्रदान किया -
(i) तंजावुर के वृहदेश्वर मंदिर
(ii) बेलूर के चन्नकेशव मंदिर
विजयनगर शासकों कि उपाधि : विजयनगर के शासक अपने आप को राय कहते थे |
व्यापार :
(i) यहाँ के शासक अरब तथा मध्य एशिया से घोड़ों का आयात करते थे, यह व्यापार आरंभिक चरण में अरब व्यापारियों द्वारा नियंत्रित था |
(ii) पुर्तगाली लोग जो उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर आए और व्यापारिक और सामरिक केंद्र स्थापित करने लगे |
(iii) विजयनगर मसलों, वस्त्रों और रत्नों के अपने बाजारों के लिए प्रसिद्द था |
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कृष्णदेव राय : कृष्णदेव राय विजयनगर के शासक थे जिनका तुलुव वंध से संबंध था | इस वंश का शासन 1542 तक था | कृष्णदेव की मृत्यु के पश्चात 1529 में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा।
कृष्ण देव राय के शासन की चारित्रिक विशेषताएँ :
(i) कृष्णदेव राय वेफ शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार और दृढ़ीकरण था।
(ii) इसी काल में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र (रायचूर दोआब) हासिल किया गया (1512),
(iii) उडी़सा के शासकों का दमन किया गया (1514) तथा बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया गया था (1520) |
(iv) हालाँकि राज्य हमेशा सामरिक रूप से तैयार रहता था, लेकिन फिर भी यह अतुलनीय शांति
और समृद्धि की स्थितियों में फला-फूला।
(v) कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण तथा कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में भव्य गोपुरमों को
जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव को ही जाता है।
(vi) उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप ही नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना भी की थी।
अमर-नायक प्रणाली : अमर-नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। इस प्रणाली के कई तत्त्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिए गए थे। अमर-नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य-क्षेत्र दिये जाते थे। राजा कभी-कभी उन्हें एक से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर उन पर अपना नियंत्रण दर्शाता था पर सत्राहवीं शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए।
अमर-नायकों के कार्य :
(i) वे किसानों, शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू राजस्व तथा अन्य कर वसूल करते थे।
(ii) वे राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे।
(iii) ये दल विजयनगर शासकों को एक प्रभावी सैनिक शक्ति प्रदान करने में सहायक होते थे जिसकी मदद से उन्होंने पूरे दक्षिणी प्रायद्वीप को अपने नियंत्राण में किया।
(iv) राजस्व का कुछ भाग मन्दिरों तथा सिंचाई के साधनों के रख-रखाव के लिए खर्च किया जाता था।
(v) अमर-नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और अपनी स्वामिभक्ति प्रकट करने के लिए राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे।
विजयनगर के बारे में जानकारी :
विजयनगर के राजाओं तथा उनके नायकों के बड़ी संख्या में अभिलेख मिले हैं जिनमें मन्दिरों को दिए जानेवाले दानों का उल्लेख तथा महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण है। कई यात्रियों ने शहर की यात्रा की और इसके बारे में लिखा। इनमें सबसे उल्लेखनीय वृत्तांत निकोलो दे कॉन्ती नामक इतालवी व्यापारी, अब्दुर रश्शाक नामक फारस के राजा का दूत, अफानासी निकितिन नामक रूस का एक व्यापारी, जिन सभी ने पंद्रहवीं शताब्दी में शहर की यात्रा की थी, और दुआर्ते बरबोसा, डोमिंगो पेस तथा पुर्तगाल का फर्नावो नूनिश, जो सभी सोलहवीं शताब्दी में आए थे।
कृषि क्षेत्रों की किलेबंदी : कृषि-क्षेत्रों को किलेबंद भूभाग में समाहित इसलिए किया जाता था क्योंकि
(i) अक्सर मध्यकालीन घेराबंदियों का मुख्य उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर समर्पण के लिए बाध्य करना होता था।
(ii) ये घेराबंदियाँ कई महीनों और यहाँ तक कि वर्षों तक चल सकती थीं। आम तौर पर शासक ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए किलेबंद क्षेत्रों के भीतर ही विशाल अन्नागारों का निर्माण करवाते थे। (iii) विजयनगर के शासकों ने पूरे कृषि भूभाग को बचाने के लिए एक अधिक मँहगी तथा व्यापक नीति को अपनाया।
विजयनगर में तीन प्रकार की किलेबंदी थी :
(i) कृषि क्षेत्रों की किलेबंदी
(ii) नगरीय केन्द्रों के आतंरिक भाग के चारो ओर
(iii) शासकीय केन्द्रों की किलेबंदी
विजयनगर की किलेबंदी की विशेषताएँ :
(i) इसमें खेतों को भी घेरा गया था | जिसमें जूते हुए खेत, बगीचे तथा आवास भी थे |
(ii) किलेबंदी नगरीय केंद्र के आन्तरिक भाग के चरों ओर बनी हुई थी |
(iii) शासकीय केंद्र को घेरा गया था जिसमें महत्त्वपूर्ण इमारतों के प्रत्येक समूह को अपनी ऊँची दीवारों से घेरा गया था।
(iv) प्रत्येक किले में सुरक्षित प्रवेश द्वार होते थे जो शहर को मुख्य सडकों से जोड़ते थे |
(v) प्रवेशद्वार विशिष्ट स्थापत्य के नमूने थे जो अकसर उन संरचनाओं को परिभाषित करते थे जिनमें प्रवेश को वे नियंत्रित करते थे।
इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली :
विजयनगर के दुर्ग के प्रवेशद्वार विशेष स्थापत्य के नमूने थे जो अकसर उन संरचनाओं को परिभाषित करते थे जिनमें प्रवेश को वे नियंत्रित करते थे | किलेनाब्द बस्ती में जाने के लिए बने प्रवेश द्वार पर बनी मेहराब और साथ ही द्वार के ऊपर बनी गुम्बद तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य के चारित्रिक तत्व माने जाते थे | कला-इतिहासकार इस शैली को इंडो-इस्लामिक कहते हैं क्योंकि इसका इसका विकास विभिन्न क्षेत्रो की स्थानीय स्थापत्य की परम्पराओं के साथ संपर्क से हुआ है |
समान्य लोगों के आवास (पुर्तगाली यात्री बरबोसा के वर्णन) :
"लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृढ़ हैं, और व्यवसाय के आधार पर कई खुले स्थानों वाली लंबी गलियों में व्यवस्थित हैं।"
विशिष्ट संरचनाएँ : इस क्षेत्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं का नामकरण भवनों के आकार और साथ ही उनके कार्यों के आधार पर किया गया है।
इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच है -
(i) सभा मंडप : पूरा क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है। सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तंभों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंशिल, जो इन स्तंभों पर टिकी थी, तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी। स्तंभों के एक दूसरे से बहुत पास-पास होने से बहुत कम खुला स्थान बचता होगा और इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि यह मंडप किस प्रयोजन के लिए बनाया गया था।
(ii) महानवमी डिब्बा : शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित "महानवमी डिब्बा" एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊँचाई तक जाता है। ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिनसे पता चलता है कि इस पर एक लकड़ी की संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से पटा पड़ा है |
महानवमी डिब्बे से जुड़े अनुष्ठान :
(i) इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान, संभवतः सितंबर तथा अक्टूबर के शरद मासों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्यौहार, जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में) तथा नवरात्रि या महानवमी नामों से जाना जाता है, के महानवमी के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे |
(ii) इस अवसर पर विजय नगर शासक अपने रुतबे ताकत तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे |
(iii) इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठानों में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व की पूजा, तथा भैंसों और अन्य जानवरों की बलि सम्मिलित थी।
(iv) नृत्य, कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा साज लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा और साथ ही प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे।
उत्सवों या अनुष्ठानों के सांकेतिक अर्थ :
इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे। त्यौहार के अंतिम दिन राजा अपनी तथा अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोह में निरीक्षण करता था। इस अवसर पर नायक, राजा के लिए बड़ी मात्रा में भेंट तथा साथ ही नियत कर भी लाते थे।
लोटस महल : राजकीय केन्द्रों के सबसे सुंदर भवनों में एक लोटस महल (कमल महल) है, जिसका यह नामकरण उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने किया था। हालाँकि यह नाम निश्चित रूप से रोमांचक है, लेकिन इतिहासकार इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि यह भवन किस कार्य के लिए बना था।
=> यह परिषदीय सदन था जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था |
मंदिरों का कार्य/उपयोग :
(i) विजयनगर शासन में मंदिर लोगों के धार्मिक केन्द्रों के साथ-साथ राजकीय केद्र का भी कार्य करते थे |
(ii) आमतौर पर शासक अपने आप को ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे - अकसर देवता को व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप से राजा से जोड़ा जाता था।
(iii) मन्दिर शिक्षा के केन्द्रों के रूप में भी कार्य करते थे।
(iv) शासक और अन्य लोग मन्दिर के रख-रखाव के लिए भूमि या अन्य संपदा दान में देते थे। अतएव, मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केन्द्रों के रूप में विकसित हुए।
(v) शासकों के दृष्टिकोण से मन्दिरों का निर्माण, मरम्मत तथा रखरखाव, अपनी सत्ता, संपत्ति तथा
निष्ठा के लिए समर्थन तथा मान्यता के महत्त्वपूर्ण माध्यम थे।
विजयनगर के शासकों के लिए मंदिरों का महत्व :
(i) विजयनगर के स्थान का चयन वहाँ विरुपाक्ष तथा पम्पादेवी के मन्दिरों के अस्तित्व से प्रेरित था। यहाँ तक कि विजयनगर के शासक भगवान विरुपाक्ष की ओर से शासन करने का दावा करते थे।
(ii) विजयनगर के शासकों ने पूर्वकालिक परंपराओं को अपनाया, उनमें नवीनता लाई और उन्हें आगे विकसित किया।
(iii) शासकों द्वारा राजकीय प्रतिकृति मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रदर्शित की जाने लगीं और राजा की मन्दिरों की यात्राओं को महत्त्वपूर्ण राजकीय अवसर माना जाने लगा जिन पर साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नायक भी उसके साथ जाते थे।
विजय नगर का पतन :
(i) इस राज्य की सारी शक्ति राजा के हाथ में थी | शासन में प्रजा का कोई योगदान नहीं था | इसलिए संकट के समय प्रजा ने राजा का साथ नहीं दिया |
(ii) इस राज्य में राज-सत्ता या सिंहासन को पाने के लिए गृह-युद्ध चलते रहते थे | इन युद्धों ने राज्य की शक्ति नष्ट कर दी थी |
(iii) कृष्णदेव राय के बाद के सभी शासक निर्बल थे |
(iv) इस राज्य को बहमनी राज्य से युद्ध करने पड़े | इन युद्धों में विजयनगर राज्य को बड़ी क्षति उठानी पड़ी |
(v) तलिकोती की लड़ाई में विजयनगर का शासक मारा गया | इस लड़ाई के तुरंत बाद यह राज्य पूरी तरह पतन हो गया |
(vi) शहर पर आक्रमण के पश्चात विजयनगर की कई संरचनाएँ विनष्ट हो गई थीं |
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विजय नगर के शासकों द्वारा अमरनायकों पर नियंत्रण :
अमर नायकों पर नियंत्रण बनाने के लिए समय-समय पर उन्हें एक स्थान से दुसरे स्थान पर स्थान्तरित किया जाता था | परन्तु शासकों की यह निति पूरी तरह सफल नहीं रही | 17 वीं शताब्दी में कई अमरनायकों ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था |
विजयनगर के बारे में जानकारी के स्रोत :
(i) फोटोग्राफ
(ii) नक्शा
(iii) संरचनाओं के खड़े रेखाचित्र
(iv) मुर्तिया
महलों, मंदिरों तथा बाजारों का अंकन :
(i) मैकेंजी द्वारा किए गए आरंभिक सर्वेक्षणों के बाद यात्रा वृत्तांतों और अभिलेखों से मिली जानकारी को एक साथ जोड़ा गया।
(ii) बीसवीं शताब्दी में इस स्थान का संरक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा किया गया।
(iii) 1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली। तदोपरांत 1980 के दशक के आरंभ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से, व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से,
विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारंभ किया गया।
(iv) लगभग बीस वर्षों के काल में पूरे विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकठ्ठा और
संरक्षित करने का कार्य किया।
(v) हजारों संरचनाओं के अंशों-छोटे देवस्थलों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक-को पुनः उजागर किया गया। उनका प्रलेखन भी किया गया। इस सबके कारण सड़कों, रास्तों और बाजारों आदि के अवशेषों को पुनः प्राप्त किया जा सका है।
जॉन एम. फ्रिट्ज, जॉर्ज मिशेल तथा एम. एस. नागराज राव द्वारा लिखी गयी बात :
जॉन एम. फ्रिट्ज, जॉर्ज मिशेल तथा एम. एस. नागराज राव जिन्होंने इस स्थान पर वर्षों तक कार्य किया, ने जो लिखा वह याद रखना महत्त्वपूर्ण हैः विजयनगर के स्मारकों के अपने अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं-स्तंभ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अंदरूनी भाग तथा मीनारों-की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है जो प्लास्टर से सजाए और संभवतः चटकीले रंगों से चित्रित थे |"
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History Part-2 Chapter List
Chapter 5. यात्रियों के नज़रिए
Chapter 6. भक्ति सूफी परंपराएँ
Chapter 7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
Chapter 8. किसान, जमींदार और राज्य
Chapter 9. राजा और विभिन्न वृतांत
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