Chapter 5. भारत में पूँजी निर्माण Economics-II class 12 exercise Page 4
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मानव पूँजी निर्माण
अध्याय 5. भारत में मानव पूँजी निर्माण :
- हमें कार्याें को कुशलतापूर्वक करने के लिए अच्छे प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता होती है।
- किसी शिक्षित व्यक्ति के श्रम-कौशल अशिक्षित व्यक्ति से अधिक होते हैं।
- कोई शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति के अपेक्षा, अधिक आय का सृजन करता है और आर्थिक समृद्धि में उसका योगदान क्रमशः अधिक होता है।
- आर्थिक संवृद्धि का अर्थ देश की वास्तविक राष्ट्रिय आय में वृद्धि से होता है |
शिक्षा के लाभ :
(i) शिक्षा लोगों को उच्चतम सामाजिक स्थिति और गौरव प्रदान करती है।
(ii) यह किसी व्यक्ति को अपने जीवन में बेहतर विकल्पों का चयन कर पाने के योग्य बनाता है |
(iii) व्यक्ति को समाज में चल रहे परिवर्तनों की बेहतर समझ प्रदान करता है |
(iv) समाज में होने वाले नव परिवर्तनों को बढ़ावा देता है।
(v) शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नयी प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है।
(v) शिक्षित लोग शिक्षा के विस्तार की आवश्यकता pर बल देते हैं, क्योंकि यह विकास प्रक्रिया को तेज करती है |
शिक्षित श्रम शक्ति की विशेषताएँ :
शिक्षा समाज में परिवर्तनों और वैज्ञानिक प्रगति को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है- जिससे आविष्कारों और नव परिवर्तनों में सहायता मिलती है। इसीलिए शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाने में सहायक होती है।
मानव पूँजी निर्माण की अवधारणा:
मानव पूँजी : किसी देश में किसी समय विशेष पर पाए जाने वाले कौशल तथा निपुणता के भंडार को मानव पूँजी कहते हैं | जैसे - शिक्षक, डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, बढई आदि |
- भौतिक पूँजी की अवधारणा के आधार पर ही मानव पूँजी के वैचारिक आधार की रचना की गयी है।
- मानव पूँजी की वृद्धि के कारण आर्थिक संवृद्धि होती है।
मानव पूँजी निर्माण के निर्धारक तत्व:
(i) शिक्षा पर व्यय : एक शिक्षित व्यक्ति का श्रम-कौशल अशिक्षित की अपेक्षा अधिक होता है। इसी कारण वह अपेक्षाकृत अधिक आय अर्जित कर पाता है। दूसरी बात कि शिक्षा से सभी प्रकार के कौशल का सृजन किया जा सकता है | अत: शिक्षा पर व्यय मानव पूँजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है |
(ii) स्वास्थ्य पर व्यय : एक स्वस्थ्य व्यक्ति की उपार्जन क्षमता अस्वस्थ्य व्यक्ति से कहीं अधिक होती है | एक स्वस्थ व्यक्ति अधिक समय तक व्यवधानरहित श्रम की पूर्ति कर सकता है। इसमें एक अन्य दूसरा तथ्य यह है कि स्वास्थ्य पर व्यय से जीवन प्रत्याशा और मृत्यु दर में कमी आती है जिससे किसी देश को संसाधन के रूप में स्वस्थ्य मनुष्य प्राप्त होते है |
(iii) नौकरी के साथ प्रशिक्षण :
(iv) स्थानांतरण
(v) वयस्कों के लिए अध्ययन का कार्यक्रम :
(vi) सुचना पर व्यय
मानव पूँजी निर्माण के स्रोत:
(i) शिक्षा
(ii) स्वास्थ्य
आर्थिक समृद्धि और मानव पूँजी:
मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूँजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की संवृद्धि में सहायता मिल सकती है।
आर्थिक समृद्धि में मानव पूँजी निर्माण की भूमिका :
(i) मानव पूँजी निर्माण के कारण आर्थिक समृद्धि के भावात्मक तथा भौतिक वातावरण में परिवर्तन होता है |
(ii) लोगों के आचार-व्यवहार तथा उनकी आकांक्षाएँ विकाशशील बनती जाती है |
(iii) मानव पूँजी निर्माण से भावात्मक वातावरण का निर्माण होता है और समृद्धि में सहायक होता है |
(iv) कुशल तथा प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या में वृद्धि होगी साथ-साथ अब और भी उत्तम मानव कौशल जैसे - डॉक्टर, शिक्षक, इंजिनियर और व्यवसायीयों की संख्या में हमारे आस-पास वृद्धि होगी और वे आर्थिक समृद्धि में सहायक होंगे |
मानव पूँजी सभी पूँजीयों की जननी है :
संसार की सभी पूंजियों का उपभोग मानव ही करता है, और इन पूंजियों का निर्माण भी मानव ही करता है | मानव पूँजी में वृद्धि से भौतिक पूंजियों की उत्पादकता में वृद्धि होती है | जिससे विकास की गति त्वरित होती हैं | एक मनुष्य चाहे तो वह सभी प्रकार के पूंजियों को प्राप्त कर सकता है |
भारत में मानव पूँजी निर्माण की समस्याएँ :
भारत में मानव पूँजी निर्माण में बाधक तत्व निम्नलिखित हैं :
(i) जनसंख्या में वृद्धि :
(ii) प्रतिभा पलायन
(iii) अपर्याप्त मानव शक्ति का नियोजन
(iv) प्राथमिक क्षेत्र में काम के दौरान प्रशिक्षण की कमी
(v) निम्न शैक्षिक मानक
भौतिक पूँजी और मानव पूँजी में अंतर:
भौतिक पूँजी | मानव पूँजी |
1. भौतिक पूँजी निर्माण एक आर्थिक और तकनिकी प्रक्रिया है | 2. भौतिक पूँजी में निवेश का निर्णय अपने ज्ञान के आधार लिया जाता है | 3. भौतिक पूँजी का स्वामित्व उस व्यक्ति के सुविचारित निर्णय का परिणाम होता है | 4. भौतिक पूँजी दृश्य होती है | 5. भौतिक पूँजी को बेचा जा सकता है | 6. भौतिक पूँजी को स्वामी से अलग किया जा सकता है | 7. भौतिक पूँजी से सिर्फ उसका स्वामी लाभान्वित होता है | |
1. मानव पूँजी निर्माण एक सामाजिक प्रक्रिया है | 2. मानव पूँजी निर्माण के दौरान व्यक्ति निर्णय लेने में असमर्थ होता है | 3. बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्णय उनके अभिभावक तथा समाज करता है | 4. मानव पूँजी अदृश्य होती है | 5. मानव पूँजी को बेचा नहीं जा सकता है | 6. मानव पूँजी को स्वामी से अलग नहीं किया जा सकता है | 7. मानव पूँजी से उसका स्वामी ही नहीं वरन् सारा समाज लाभांवित होता है। |
पूँजीयों का ह्रास :
- भौतिक पूँजी और मानव पूँजी दोनों ही समय के साथ साथ इनके मूल्य में ह्रास होता है |
- किसी मशीन के निरंतर प्रयोग से वह घिस जाती है और प्रौद्योगिकीय परिवर्तन उसे पुराना घोषित कर देते हैं। मानव पूँजी में आयु के अनुसार कुछ ह्रास आता है।
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की भूमिका :
मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की भूमिका :
सकल घरेलु उत्पाद में मानव पूँजी भूमिका :
शिक्षा पर सार्वजानिक/सरकारी व्यय:
कुल सरकारी व्यय में शिक्षा पर व्यय 7.92 प्रतिशत से बढ़कर 11.7 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार सकल घरेलू उत्पाद में इसका प्रतिशत 0.64 से बढ़कर 3.31 प्रतिशत हो गया है।
भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता:
शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता। इसलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है।
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी सेवाएँ :
भारत में शिक्षा क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तर पर कार्य होता है जो निम्नलिखित है |
(i) शिक्षा मंत्रालय
(ii) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्
(iii) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
(iv) अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्
स्वास्थ्य क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तरों पर कार्य होता है जो निम्नलिखित है :
(i) स्वास्थ्य मंत्रालय
(ii) विभिन्न संस्थाओं के स्वास्थ्य विभाग
(iii) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद्
भारतीय अर्थव्यस्था का श्रम से ज्ञानाधारित की ओर अग्रसर:
अब भारत में भी श्रम के बल पर अर्थोपार्जन से ऊपर उठकर ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहा है जिसका एक स्पष्ट उदाहरण है सुचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मानव पूँजी का योगदान, इस शक्ति ने सॉफ्टवेर के क्षेत्र में उत्साहवर्धक कार्य हुआ है | ग्रामीण क्षेत्रों में सुचना, प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाएँ अब काफी फल-फूल रही है जो मानव विकास का सूचक है |
भारतीय अर्थव्यवस्था के वे प्रमुख तत्व जो भारत को एक ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था में बदल सकता है |
(i) कुशल श्रमिकों का विशाल समूह
(ii) सुचारु रूप से कार्य कर रहा लोकतंत्र
(iii) विस्तृत एवं विविधतापूर्ण वैज्ञानिक और
(iv) प्रौद्योगिकीय आधारभूत संरचनाएँ
मानव पूँजी और मानव विकास में अंतर:
मानव पूँजी:
(i) मानव पूँजी की अवधारणा शिक्षा और स्वास्थ्य को श्रम की उत्पादकता बढ़ाने का माध्यम
मानती है।
(ii) मानव पूँजी का विचार मानव को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादकता में वृद्धि का है।
मानव विकास:
(i) मानव विकास इस विचार पर आधारित है कि शिक्षा और स्वास्थ्य मानव कल्याण के अभिन्न अंग हैं, क्योंकि जब लोगों में पढ़ने-लिखने तथा सुदीर्घ स्वस्थ जीवन यापन की क्षमता आती है, तभी वह ऐसे अन्य चयन करने में सक्षम हो पाते हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण मानते हैं।
(ii) मानव विकास के परिपे्रक्ष्य में मानव स्वयं साध्य भी है। भले ही शिक्षा स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता में सुधार नहीं हो किन्तु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्धन तो होना ही चाहिए।
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