Chapter 8. नियंत्रण Business Study class 12 exercise पेज 3
Chapter 8. नियंत्रण Business Study class 12 exercise पेज 3 ncert book solution in hindi-medium
NCERT Books Subjects for class 12th Hindi Medium
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पाठ - 8
नियंत्रण
नियंत्रण - नियंत्रण से निष्पादन एवं मानको के विचलन का ज्ञान होता है, यह विचलनो का विश्लेषण करता है तथा उन्हीं के आधार पर उसके सुधर के लिए का करता है|
नियंत्रण की प्रकृति :-
1. नियंत्रण एक उद्देश्यपूर्ण कार्य है
2. नियंत्रण एक सर्वव्यापक क्रिया है
3. नियंत्रण सतत् कार्य है
4.नियंत्रण एक पीछे की ओर देखने की प्रक्रिया है
5.नियंत्रण एक गतिशील प्रक्रिया है
6.नियंत्रण एक सकारात्मक प्रक्रिया है
नियंत्रण का महत्व :-
1. नियंत्रण संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है : नियंत्रण नियोजन की निगरानी करता हैं | नियंत्रण वांछित व वास्तविक कार्यों के बीच विचलन का पता लगा कर ,उनकों शीघ्र दूर करता हैं और संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता हैं |
2. मानकों की यथार्थता को आँकना : नियंत्रण मानकों की यथार्थता को भी आंकनें का कार्य करता हैं | जब वास्तविक कार्य प्रगति व मानकों की तुलना की जाती हैं तो यह भी जाँच की जाती हैं कि प्रमाप सामान्य से अधिक है या कम ,तथा आवश्यकता पड़ने पर उनका पुनर्निर्माण भी किया जाता हैं |
3. संसाधन का कुशलतम प्रयोग करने में सहायता : नियंत्रण के अंतर्गत यह भी देखा जाता है कि सभी कार्य निर्धारित प्रमापों के अनुसार किए जाए | इसप्रकार व्यवसाय के कर्मचारी अनावश्यक साधनों व समय का अधिक उपयोग नहीं करते है और सभी कार्य कुशलता पूर्वक पुरे किए जाते हैं |
4. कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार : नियंत्रण व्यवस्था लागू होने से व्यवसाय के सभी कर्मचारी अपना कार्य पूरी लगन से करते हैं क्योंकि वह जानते है कि उनके कार्यों की समीक्षा की जाएगी |
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नियंत्रण प्रक्रिया :-
1. निष्पादन मानकों का निर्धारण : नियंत्रण में सर्वप्रथम मानकों का निर्धारण किया जाता है जो की व्यवसाय के कर्मचारियों को उनके लक्ष्य से अवगत करते हैं | यह वे मानक होते है जिनकी समीक्षा वास्तविक कार्यों से की जाती है जिनका अंतर विचलन कहलाता है, का पता लगाया जाता हैं | प्रमाप मात्रा, किस्म, समय, लागत, आदि में निर्धारित किए जा सकते हैं |
2. वास्तविक निष्पादन की मापन : नियंत्रण के दूसरें चरण में वास्तविक कार्यों का मापन किया जाता हैं | वास्तविक कार्यों का मापन निर्धारित कार्यों के आधार पर किया जाता है | जिससें प्रबंधक यह निर्णय लेता है कि कार्य नियोजन के अनुसार किया जा रहा है अथवा नहीं |
3. वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना : इस चरण में वास्तविक कार्यों की तुलना प्रमापित कार्यों से की जाती हैं और विचलनों का पता लगाया जाता हैं | नकारात्मक विचलनों की स्थिति में कारणों का पता लगाया जाता है ताकि भविष्य में इस प्रकार की गलती को दोहराय न जाए |
4. विचलन विश्लेषण : नियंत्रण के इस चरण में विचलनों का विश्लेषण किया जाता हैं अर्थात क्या प्रमाप प्राप्त हो सकें, क्या विचलन स्वीकार्य है, क्या प्रमाप स्वीकार्य है और क्या प्रमाप का पुनर्निर्माण की आवश्यकता है आदि का पता लगाना |
5. सुधारात्मक कार्यवाही करना : इसमें विचलनों व उनके कारणों का पता कर सुधारात्मक कार्यवाही की जाती हैं | इस चरण का उद्येश्य वास्तवित कार्य को प्रमापित कार्य के अनुकूल बनाना हैं | इसकें लिए दो कार्य किए जाते हैं ;
(i) वास्तविक कार्य की कमी को दूर करना |
(ii) और उस कमी को भविष्य में न दोहराना |
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नियंत्रण की सीमाएं / दोष :-
1. बाह्य घटकों पर अल्प नियंत्रण : नियंत्रण बाहरी घटकों पर पूर्णता लागू नहीं होता हैं | क्योकि नियंत्रण, नियोजन पर आधारित होता हैं जबकि नियोजन को भी बदलते वातावरण के अनुसार बदलने कि आवश्यकता पड़ती हैं |
2. कर्मचारियों से प्रतिरोध : नियंत्रण के अंतर्गत कर्मचारियों में कभी-कभार प्रतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं | क्योंकि नियंत्रण में कर्मचारियों के कार्य की बार बार समीक्षा की जाती हैं जिसे वह अपने कार्य में अवरोध समझते हैं |
3. महंगा सौदा : नियंत्रण एक मंहगा सौद भी हैं क्योंकि नियंत्रण में कई प्रक्रिया होती हैं जिसको पूरा करने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती हैं | जैसे :- मानकों का निर्धारण, मानकों की तुलना वास्तविक कार्यों से, विकल्पों को जांचा, सुधारात्मक करवाई करना आदि |
4. गुणात्मक मानकों को निर्धारण में कठिनाई : नियंत्रण के अंतर्गत गुणात्मक मानकों को मापना कठिन होता हैं | जैसे :- श्रम-परिवतर्न दर, अनुपस्थिति दर आदि |
नियोजन एंव नियंत्रण में संबंध :-
(1) नियोजन एवं नियंत्रण की एक-दूसरे पर निर्भरता
(i) नियोजन, नियंत्रण के अभाव में अर्थहीन हैं : नियोजन का कार्य तभी सफल होता हैं | जब नियंत्रण का कार्य प्रभावी तरह से हो | अगर व्यवसाय के कार्यों की तुलना प्रमापों से ही प्रकार से न की जाए और सुधारात्मक कार्यवाही को नहीं किया जाता हैं तो नियोजन में बनाए गए प्रमापों का कई महत्व नहीं हैं |
(ii) नियंत्रण, नियोजन के आभाव में अर्थहीन हैं : नियंत्रण के अंतर्गत प्रमापों की तुलना वास्तविक कार्यों से की जाती हैं | अतः यदि नियोजन के अंतर्गत प्रमापों का निर्धारण ही नहीं किया जाएगा तो नियंत्रण का कार्य भी पूर्ण नहीं किया जा सकता हैं |
(2) नियोजन व नियंत्रण में विभिन्नता
(i) नियोजन आगे देखना है जबकि नियंत्रण पीछे देखना है : क्योंकि नियोजन के अंतर्गत कार्यों के बारे में भविष्य से संबंधित निर्णय लिए जाते हैं जैसे - क्या करना है, किसके द्वारा किया जाना है, कब करना हैं और क्यों करना हैं आदि से संबंधित निर्णय लिए जाते है | जबकि नियंत्रण पीछे देखने वाली क्रिया हैं क्योंकि नियंत्रण में किए गए कार्यों की तुलना पूर्व निर्धारित प्रमापों से की जाती हैं |
(ii) नियोजन प्रबंधकीय कार्यों का प्रथम कार्य हैं जबकि नियंत्रण अन्तिम कार्य : नियोजन प्रबंध का सर्वप्रथम कार्य हैं जो प्रबंध के अन्य सभी कार्यों से पहले किया जाता हैं | जबकि नियंत्रण प्रबंध का सबसे अन्तिम कार्य हैं जिसमें यह जाँच की जाती हैं कि वास्तविक कार्य प्रमापों के अनुसार हुए हैं अथवा नहीं |
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