Chapter 6. नियुक्तिकरण Business Study class 12 exercise पेज 3
Chapter 6. नियुक्तिकरण Business Study class 12 exercise पेज 3 ncert book solution in hindi-medium
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अध्याय - 6
नियुक्तिकरण
नियुक्तिकरण - नियुक्तिकरण से अभिप्राय योग्य एंव कुशल व्यक्तियों को काम पर लगाने से है |
नियुक्तिकरण का महत्व -
1. यह विभिन्न पदों के लिए योग्य कर्मचारी खोजने में सहायता करता है |
2. यह सही व्यक्ति को सही काम पर लगाकर बेहतर निष्पादन को सुनिश्चित करता है |
3. उचित तथा अच्छा नियुक्तिकरण संगठन के निरंतर विकास को सुनिश्चित करता है |
4. यह संगठन में जरुरत के अनुसार कर्मचारियों को नियुक्त कर अधिक श्रम लागत को कम करने तथा मानव संसाधन का पूर्ण प्रयोग करने में सहायता करता है |
5. यह कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाने में सहायता करता है |
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के चरण -
1. मानव शक्ति आवश्कताओं का आकलन - सबसे पहले यह पता लगाया जाता है की संगठन में कितनी संख्या में कर्मचारी काम कर रहे है तथा किस पद पर काम कर रहे हैं | उसके बाद यह निर्णय लिया जाता है की संगठन में और कितने कर्मचारियों की आवश्यकता है |
2. भर्ती - भर्ती संभावित कर्मचारियों को संगठन में नौकरी के लिए आवेदन देने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया है | इसके अंतर्गत विभिन्न स्रोतों से आवश्यक कर्मचारियों की खोज की जाती है तथा उन्हें संगठन में नोकरी के लिए आवेदन पत्र भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है |
3. चयन - इसमें नौकरी के लिए आनेदन देने वाले व्यक्तियों में से विभिन्न कार्यो के लिए योग्य व्यक्तियों को चुना जाता है | यह परीक्षाओं, डॉक्टरी जांच आदि के माध्यम से किया जाता है |
4. अनुस्थापन तथा अभिविन्यास - सही व्यक्ति को सही कार्य पर लगाने की प्रक्रिया को अनुस्थापन कहते है | जब भी किसी नए कर्मचारी का चयन किया जाता है तो उसे काम पर लगाया जाता है | अतः नए कर्मचारी को काम पर लगाना ही अनुस्थापन है |
नए कर्मचारी को संगठन से परिचित करने की प्रक्रिया को अभिविन्यास कहते है | जब किसी नए कर्मचारी का चयन किया जाता है तो उसे संगठन के साथी कर्मचारियों, पर्यवेक्षकों आदि से निल्वाया जाता है तथा परिचय करवाया जाता है |
5. प्रशिक्षण तथा विकास - प्रशिक्षण कर्मचारिओं के कौशल, कार्य करने की क्षमता तथा योग्यता बढाने प्रक्रिया है | यह कर्मचारियों के ज्ञान एंव कौशल को बढाने में सहायता करती है | प्रशिक्षण थोड़े समय तक चलने वाली प्रक्रिया है | विकास से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्ण विकास से है | यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है |
6. निष्पादन मूल्यांकन - निष्पादन मूल्यांकन का अर्थ है यह मापना की कर्मचारियों को जो काम सौपा गया था उसे उसने पूरा किया है या नहीं | यह देखना की यदि पूरा किया है तो कितने अच्छे से किया है इसी के आधार पर कर्मचारियों को पद्दोनिती दी जाती है |
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भर्ती - यह वह प्रक्रिया है जिसमें संभावित कर्मचारियों को प्रेरित किया जाता है की वो संगठन में कार्य करने के लिए आवेदन दे | इसके अंतर्गत विभिन्न स्रोतों से आवश्यक कर्मचारियों की खोज की जाती है तथा उन्हें संगठन में नोकरी के लिए आवेदन पत्र भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है |
भर्ती के स्रोत -
1. आंतरिक स्रोत
2. बाह्य स्रोत
भर्ती के आंतरिक स्रोत - भर्ती के आंतरिक स्रोत का अर्थ है संगठन के अन्दर से कर्मचारियों को प्रेरित करना की वो नौकरी के लिए आवेदन करे |
भर्ती के आंतरिक स्रोत की विधियाँ -
(क) स्थानांतरण - इसमें कर्मचारियों को एक जगह से दूसरी जगह भेजना शामिल है जैसे यदि संगठन के एक विभाग में कर्मचारियों की कमी है तो दुसरे विभाग से कर्मचारियों को वहां भेजना या कर्मचारी को एक कार्य से हटाकर दुसरे कार्य पर लगाना |
(ख) पदोन्नति - पदोन्नति का अर्थ है कर्मचारी को निम्न पद से उच्च पद पर भेजना | पदोन्नति में कर्मचारियों को ऐसे पद पर भेजा जाता है जो अधिक सुविधाजनक हो, जहाँ अधिक वेतन हो तथा अधिक जिम्मेदारी हो |
(ग) अस्थाई अलगाव (ले-आफ) - अस्थाई रूप से अलग किए गए कर्मचारियों को वापस कम पर बुलाना अस्थाई अलगाव कहतें है | कभी - कभी कुछ कर्मचारियों को थोड़े समय के लिए संगठन से अलग कर दिया जाता है तथा कुछ समय बाद यदि किसी पद पर कर्मचारी की जरुरत होती है तो उन्हें वापस बुला लिया जाता है इसे ही ले - आफ कहते है |
आंतरिक स्रोत के लाभ -
1. कर्मचारी अपने कार्य निष्पादन में सुधार करने के लिए प्रेरित होते है |
2. यह एक आसन प्रक्रिया है |
3. कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर समय बर्बाद नहीं होता है |
4. यह सस्ती प्रक्रिया है |
आंतरिक स्रोत की सीमाएं -
1. संगठन में नए विचार तथा नई प्रतिभाएं नहीं आ पाती |
2. कर्मचारियों के बीच प्रतियोगिता बढ़ जाती है |
3. हो सकता है कर्मचारी अपने कार्य को सही से न करे यदि उन्हें पता है की कुछ समय बाद उनकी पदोनती अवश्य हो जाएगी |
4. कर्मचारियों की लगातार स्थानांतरण से उत्पादन क्षमता घट जाती है |
5. नई संस्था भर्ती के आंतरिक स्रोतों का प्रयोग नहीं कर सकती |
बाह्य स्रोत - जब कंपनी रिक्त पदों के लिए बाहर से आवेदन प्राप्त करती है तो उसे भर्ती के बाह्य स्रोत कहते है |
भर्ती के बाह्य स्रोत की विधियाँ -
(क) प्रत्यक्ष भर्ती - संगठन के सूचना बोर्ड पर रिक्त पद से सम्बंधित जरुरी सूचना का विवरण दिया जाता है | नौकरी के इच्छुक एक निश्चित तिथि पर वहां एकत्रित होते है तथा वहीँ उनका चयन किया जाता है |
(ख) प्रतीक्षा सूचि - अनेक बड़े व्यवसायिक उपक्रम अपने कार्यालय में प्रतीक्षा सूची रखते है , आवश्यकता पड़ने पर उनको बुलाया जा सकता है |
(ग) विज्ञापन - यह भर्ती का ऐसा स्रोत है जिसमे पत्र - पत्रिकाओं में खाली पद से सम्बंधित जरुरी विवरण दे कर भर्ती की जाती है |
(घ) रोजगार कार्यालय - नौकरी तलाशने वाले इन कार्यालयों में अपना नाम दर्ज कराते है तथा जिन संगठनो को कर्मचारियों की आवश्यकता होती है इन रोजगार कार्यालयों से संपर्क करते है |
(ङ) महाविद्यालय से भर्ती - बड़े संगठन विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थाओं के साथ विभिन्न नौकरियों की भर्ती के लियें सम्पर्क रखते है |
(च) सिफारिशे - वर्तमान कर्मचारियों द्वारा सिफारिश किए गए आवेदक, अथवा उनके अपने मित्र तथा सम्बन्धी, भर्ती का अच्छा स्रोत सिद्ध होते है |
(छ) इन्टरनेट द्वारा भर्ती - कुछ संस्थाओं ने कुछ विशेष वेबसाईट विशेष रूप से बनाएँ है जो कार्य पाने के इच्छुक व्यक्तियों को नौकरी से सम्बन्षित सूचनाएं देते है |
भर्ती के बाह्य स्रोतों के लाभ -
1. यह संगठन में योग्य कर्मचारी को आवेदन देने का अवसर प्रदान करती है |
2. प्रबंधको के पास विस्तृत विकल्प उपलब्ध होते है |
3. संगठन में नए विचार तथा नए कौशल का समावेश होता है |
4. कर्मचारियों में प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है |
5. रोजगार के नए अवसरों में वृद्धि होती है |
भर्ती के बाह्य स्रोतों की सीमाएं -
1. इससे वर्तमान कर्मचारियों में असंतोष की भावना उत्पन्न होने लगती हैं |
2. यह एक महँगी प्रक्रिया है क्योंकि विज्ञापन आदि पर अधिक खर्च होता है |
3. यह एक जटिल तथा लम्बी प्रक्रिया है |
4. कर्मचारियों के प्रशिक्षण आदि पर काफी धन तथा समय बर्बाद होता है |
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प्रशिक्षण की विधियाँ
प्रशिक्षण की आवश्यकता सभी प्रकार के संगठन में होती हैं इसलिए प्रत्येक संगठन अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए विभिन्न प्रकार की विधियों का उपयोग करती हैं ; जैसे :- (i) कार्य पर प्रशिक्षण, (ii) कार्य से परे प्रशिक्षण |
(A) कार्य पर प्रशिक्षण : इस विधि के अंतर्गत प्रशिक्षार्थियों को एक मशीन व प्रयोगशाला में किसी विशेष कार्य को करने के लिए कहा जाता हैं | प्रशिक्षार्थियों को विशेषज्ञों के अंतर्गत कार्य करना, मशीन का उपयोग करना व कार्य का क्रम आदि को सिखाया जाता हैं |
कार्य पर प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ ;
(1) अभिविन्यास प्रशिक्षण : अभिविन्यास से अभिप्राय संगठन के नए कर्मचारियों को संगठन के अन्य पूर्व कर्मचारियों से और संगठन से परिचित करने से हैं | अभिविन्यास प्रशिक्षण के द्वारा नए व पूर्व कर्मचारियों में टीम भावना का विकास होता हैं जिससें वे एक साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं | अभिविन्यास के द्वारा नए कर्मचारी अपने अधिकार व उत्तरदायित्व को अच्छी प्रकार समझ पाते हैं |
(2) नवसीखुआ कार्यक्रम : इसके द्वारा कर्मचारी उच्च-स्तरीय कौशल प्राप्त करने के लिए एक विशेषज्ञ के अधीन काम करते हैं जो उन्हें कार्य के सैद्धांतिक व व्यावहारिक दोनों पहलुओं की जानकारी दी जाती हैं |
(3) संयुक्त प्रशिक्षण : संयुक्त प्रशिक्षण में प्रशिक्षार्थीयों को तकनीकी व व्यावसायिक संस्था दोनों के द्वारा संयुक्त रूप से अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता हैं ताकि कर्मचारियों को सौद्धंतिक व व्यावहारिक दोनों ही प्रकार का ज्ञान दिया जा सकें |
(B) कार्य से परे प्रशिक्षण : इस विधि का उपयोग उस संगठन के द्वारा किया जिसको केवल योग्य कर्मचारियों की आवाश्यकता हो, जो अपने संगठनात्मक वातावरण में केवल अधिक कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता को महसूस करता हैं | इस विधि में प्रशिक्षार्थियों को कार्य से अलग हट कर प्रशिक्षण दिया जाता हैं |
कार्य से परे प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ
(1) प्रकोष्ठशाला प्रशिक्षण : इस विधि में कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के उद्येश्य से एक अलग से प्रशिक्षण केंद्र की स्थापन की जाती हैं | जिसमें कर्मचारियों के कार्य की देख-रेख एक अनुभवी व प्रशिक्षित प्रशिक्षक के द्वारा की जाती हैं |
कर्मचारी विकास : कर्मचारी विकास से अभिप्राय उस प्रक्रिया से हैं जिसके अंतर्गत संगठन के अधिकारीयों व अधीनस्थों को उसके वर्तमान व भविष्य दोनों ही प्रकार की जिम्मेदारियों को प्रभावपूर्णता से पूर्ण करने के लिए तैयार किया जाता हैं |
कर्मचारी विकास की विशेषताएं
(i) प्रबंधकों से सम्बंधित
(ii) कर्मचारियों के सम्पूर्ण विकास पर जोर |
(iii) प्रशिक्षण के पर शिक्षण पर जोर |
(iv) प्रबंधकों को अधिक चुनैती पूर्ण कार्यों के लिए तैयार करना |
(v) छिपी हुई प्रतिभा को उजागर करना |
कर्मचारी विकास की आवश्यकता
(i) प्रबंधकों को अधिक उत्तरदायित्व के काबिल बनाना |
(ii) प्रबंधकों की पदोन्नति का रास्ता बनाना |
(iii) संगठन की कार्यकुशलता को अधिक करना |
(iv) प्रबंधकों के बाजार मूल्य में वृद्धि करना |
(v) प्रबंधकों को प्रभावी निर्णय लेने योग्य बनाना |
प्रशिक्षण एवं विकास में अंतर
अंतर का आधार |
प्रशिक्षण |
विकास |
(i) अर्थ |
ज्ञान व कौशल वृद्धि की प्रक्रिया | |
सीखने की प्रक्रिया | |
(ii) उद्येश्य |
इसका उद्येश्य कार्य सम्बंधित विशेष कौशल में वृद्धि करना हैं | |
इसका उद्येश्य व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व में वृद्धि करना हैं | |
(iii) क्षेत्र |
प्रशिक्षण का क्षेत्र संकुचित हैं और यह विकास का ही एक भाग | |
विकास का क्षेत्र प्रशिक्षण से अधिक विस्तृत हैं | |
(iv) प्रकृति |
प्रशिक्षण कार्य से संबंधित हैं | |
विकास का सम्बन्ध व्यक्ति हैं | |
(v) जॉब |
यह जॉब प्रधान हैं | |
यह जॉब नहीं अपितु कैरियर प्रधान हैं | |
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