Chapter 12. उपभोक्ता संरक्षण | पेज 1 Business Study class 12
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अध्याय - 12
उपभोक्ता संरक्षण
उपभोक्ता संरक्षण - इसका अभिप्राय उपभोक्ताओं को, उत्पादको तथा विक्रेताओं के अनुचित व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करना है |
उपभोक्ता संरक्षण का महत्व
A) उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से
1) उपभोक्ता अनदेखी : प्रायः उपभोक्ता अपने अधिकारों की जानकारी न होने के कारण , बाजार में हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज नहीं उठा पाते हैं | वे शोषण को बाजार का आवश्यक हिस्सा मान कर उसे स्वीकार कर लेते हैं | और चुपचाप बैठे रहते है | अतः उन्हें उनके अधिकारों की शिक्षा देना आवश्यक हो जाता है, ताकि उनमें चेतना आए और वह शोषण के विरुद्ध आवाज उठाये |
2) असंगठित उपभोक्ता : उपभोक्ताओं का असंगठित होना उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को प्रमाणित करता है | एक अकेले उपभोक्ता द्वारा शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का इतना प्रभाव नहीं होता है जितना कि समूह द्वारा | अतः उपभोक्ताओं के संगठित होने में ही उनका हित है | उपभोक्ता संरक्षण उपभोक्ताओं को संगठित होने के लिए प्रेरित करता है | और उपभोक्ता अपने हितो की रक्षा स्वयं कर पाते हैं |
3) उपभोक्ताओं का बड़े पैमाने पर शोषण : उपभोक्ता शोषण के कुछ उदाहरण निम्न हैं :
a) उपभोक्ता वस्तुओं में मिलावट करना |
b) वस्तुओं व सेवाओं की घटिया किस्म |
c) कम तोलना व कम नापना |
d) वस्तुओं की बनावटी कमी करना |
उपभोक्ताओं को इस तरह हो रहे शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अति आवश्यक है|
B) व्यवसाय के दृष्टिकोण से
1) व्यवसाय का दीर्घकालीन हित : प्रत्येक व्यवसाय लम्बे समय तक जीवित रहना चाहता है | ऐसा संभव है जबकि व्यवसायी फर्म उपभोक्ताओं को संतुष्टि प्रदान करें | ऐसा करके फर्म अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ा सकती हैं | और लम्बे समय तक जीवित रह सकती है | इस तरह फर्म उपभोक्ता संरक्षण का कार्य करने में मदद करती हैं |
2) व्यवसाय द्वारा समाज के संसाधनों का प्रयोग करना : प्रत्येक व्यवसाय अनेक संसाधनों का उपयोग करती है जो उसे समाज से उपलब्ध होते है | इस प्रकार व्यवसाय का यह दायित्व होता है की वह समाज को अच्छी वस्तुएं उपलब्ध करवाए और अपना सामाजिक दायित्व पूरा करे |
3) सामाजिक उतरदायित्व : व्यवसाय के सभी संबंधित पक्षकारों (जैसे कर्मचारी, उपभोक्ता, पूर्ति कर्ता, प्रतियोगी, सरकार, आदि ) को संतुष्टि करने के उत्तरदायित्व को व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व कहते हैं | व्यवसाय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्षकार ग्राहक होता है | इसलिए इनके हितों की सुरक्षा की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए |
4) नैतिक औचित्य : यह व्यवसाय का कर्तव्य है कि वह उपभोक्ताओं को मिलावट, घटिया किस्म, भ्रमपूर्ण विज्ञापन, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, काला-बाजार ,कम नाप-तोल, आदि रहित वस्तुएं उपलब्ध कराएं | इस प्रकार व्यवसाय उपभोक्ता संरक्षण के माध्यम से अपने नैतिक कर्तव्य को भी पूरा करता हैं |
5) सरकारी हस्तक्षेप : व्यवसाय को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहने के लिए उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान देना आवश्यक हो जाता हैं | ताकि सरकारी हस्तक्षेप से राहत के साथ- साथ व्यवसाय उपभोक्ता संरक्षण में भी भागीदारी कर सकें |
उपभोक्ताओं को वैधानिक संरक्षण
(1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986: निम्न उपभोक्ता शोषण के विरुद्ध सुरक्षा :
(i) दोषमुक्त वस्तुओं,
(ii) अपूर्ण सेवाओं, और
(iii) अनुचित व्यापार व्यवहारों आदि | इस अधिनियम में उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के लाभ के लिए तीन स्तरीय तंत्र स्थापित किया गया हैं | ये हैं :- जिला स्तर पर जिला फोरम, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग | इसके अतिरिक्त उपभोक्ता संरक्षण परिषद् जो उपभोक्ता संरक्षण को बढावा देता हैं |
(2) अनुबंध अधिनियम, 1982 : यह अधिनियम अनुबंध के अंतर्गत पीड़ित पक्षकार को अनुबंध का उल्लंघन करने वाले पक्षकार के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता हैं |
(3) वस्तु बिक्री अधिनियम, 1930 : यह अधिनियम खरीदी गई वस्तुओं की शर्तों के अनुसार न होने पर क्रेता को सुरक्षा प्रदान करता हैं |
(4) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 : यह अधिनियम आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, पूर्ति एवं वितरण पर नियंत्रण, मूल्यों में वृद्धि की प्रवृति पर नियंत्रण, जमाखोरी तथा काला-बाजारी पर नियंत्रण करता हैं |
(5) कृषि उत्पाद अधिनियम,1937 : इस अधिनियम में उत्पादों की गुणवत्ता की पहचान के लिए उत्पादों को एक निश्चित प्रमापों तथा निश्चित चिन्हों के अंतर्गत अलग- अलग श्रेणी में रखा जाता हैं | जैसे :- कृषि उत्पादों की गुणवत्ता को अगमार्क से सुनिश्चित किया जाता हैं |
(6)खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम,1954 : यह अधिनियम खाद्य वस्तुओं में मिलावट के विरुद्ध उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करता हैं |
(7) बाट तथा माप प्रमाप अधिनियम,1976 : इस अधिनियम के अंतर्गत कम माप तथा कम तोलने के विरूद्ध उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान किया जाता हैं |
(8) ट्रेड मार्क अधिनियम,1999 : यह अधिनियम ट्रेड मार्क के गलत उपयोग के विरुद्ध उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान कराता हैं | जो ट्रेड एंड मर्कंदिसे मार्क्स एक्ट ,1958 के स्थान पर बनाया गया हैं |
(9) प्रतियोगिता अधिनियम, 2002 : यह अधिनियम बाजार प्रतियोगिता में बाधा डालने वाली कार्यवाहियों के विरुद्ध उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करता हैं |
(10) भारतीय मानक अधिनियम,1986 : इस अधिनियम की विशेषताएँ निम्न हैं : (i) विभिन्न उत्पादों के गुणवत्ता प्रमाप निर्धारित करना और इसके अंतर्गत ' ISI मार्क ' जारी करना ,गो उत्पाद की गुणवत्ता को निर्धारित करना हैं | (ii) ISI उत्पादों के विरुद्ध उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करना |
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986
यह अधिनियम 1जुलाई 1987 को जम्मू व कश्मीर के अतिरिक्त पुरे भारत में सभी वस्तुओं व सेवाओं पर लागू किया गया | इसका उद्येश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है | जिसके लिए उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापन की गयी हैं |
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
(1) मदों का फैलाव : इस अधिनियम में सभी वस्तुएं व सेवाएं शामिल होती हैं | जब तक किसी विशेष वस्तु व सेवाओं को केंद्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम से मुक्त नहीं किया जाता हैं |
(2) क्षेत्र का फैलाव : यह अधिनियम सभी क्षेत्र जैसे निजी , सार्वजनिक और सहकारी में लागू होता हैं |
(3) प्रावधानों की क्षतिपूरक प्रकृति : इस अधिनियम में उपभोक्ताओं की क्षतिपूरक अथवा अतिरिक्त मदद प्रदान किया जाता हैं |तथा उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा की जाती हैं |
(4) उपभोक्ता अधिकारों का समूह : यह अधिनियम उपभोक्ताओं को निम्न अधिकार प्रदान करता हैं :- जैसे सुरक्षा, सूचना, चयन, प्रतिनिधित्व, उपचार और शिक्षा आदि |
(5) प्रभावी संरक्षण : यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अनेक प्रकार के अनुचित व्यापार व्यवहारों से सुरक्षा प्रदान कराता हैं जैसे :त्रुटिपूर्ण पदार्थों और असंतोषजनक सेवाएं आदि |
(6) तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र : उपभोक्ताओं के शिकायतों के निवारण के लिए तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया गया है :- (i) जिला फोरम (ii) राज्य आयोग और (iii) राष्ट्रीय आयोग |
(7) समयबद्ध निवारण : इस अधिनियम की यह विशेषता हैं की इसमें शिकायतों का निवारण समय सीमा में किया जाता हैं |
(8) उपभोक्ता संरक्षण परिषद् : यह अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण परिषद् की स्थापन की गई हैं |
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के मुख्य प्रावधान
I. उपभोक्ता का अर्थ :- उपभोक्ता वह व्यक्ति जो -
(i) जो प्रतिफल के लिए वस्तुओं का क्रय और सेवाएं किराये पर लेता हैं |,
(ii) जो विक्रेता द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उपयोग करता हैं |
(iii) जो वस्तुओं तथा सेवाओं का क्रय पुनः बिक्री के लिए नहीं करता हैं |
II. शिकायत के आधार
(1) अनुचित व्यापार व्यवहार :- अनुचित व्यापार व्यवहार का अर्थ : एक व्यापारी दवारा अधिक लाभ अर्जित करने के लिए वस्तुओं/सेवाओं के बारे में गलत जानकारी देना, जमाखेरी करना , निर्धारित प्रमापों के अनुसार न होना आदि त्रुटिपूर्ण विधियों का प्रयोग करना |
(2) प्रतिबंधित व्यापार व्यवहार : प्रतिबंधित व्यापार व्यवहार का अर्थ : विक्रेता दवारा उपभोक्ता को शर्तसहित वस्तुओं और सेवाओं का विक्रेय करना | जैसे : कार क्रय करने के साथ बीमा पॉलिसी भी लेना |
(3) दोषयुक्त वस्तुएं : इस अधिनियम के अंतर्गत वस्तुओं के दोषयुक्त होने की स्थिति में उपभोक्ता इसके विरुद्ध शिकायत दायर कर सकता हैं |जैसे वस्तु की गुणवत्ता, शुद्धता, और मात्रा का शर्तों के अनुसार न होना आदि की स्थिति में |
(4) सेवाओं में न्यूनता : इस अधिनितम के अंतर्गत पीड़ित उपभोक्ता दोषपूर्ण सेवाओं के विरुद्ध शिकायत दायर कर सकता हैं | जैसे : (i) ऋण का समय पर उपलब्ध न होना ,(ii) माल की सुपुर्दगी में देरी ,(iii) बिजली विभाग दवारा गलत बिल देना |
(5) अधिक कीमत लेना : यदि किसी उपभोक्ता से वस्तु के पैकेट पर लिखे कीमत से अधिक कीमत ली जाती हैं तो उपभोक्ता इसके विरुद्ध शिकायत दायर कर सकता हैं |
(6) जोखिमपूर्ण वस्तुओं की पूर्ति : इसके अंतर्गत यदि कोई विक्रेता जोखिम पूर्ण वस्तुओं का विक्रय करता हैं तो उसे उस वस्तुओं से संबंधित आवश्यक जानकारी देना जरुरी हो जाता हैं | जैसे : बिजली यंत्र, प्रेशर कुकर इत्यादि वस्तुओं की स्थिति में |
III. तीन स्तरीय न्यायिक तंत्र
(1) जिला स्तर पर - जिला फोरम
(2) राज्य स्तर पर - राज्य आयोग
(3) राष्ट्रीय स्तर पर - राष्ट्रीय आयोग
IV. शिकायत निवारण अवधि
इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत निवारण की, सामान्य स्थिति में अवधि तीन महीने की , और विशेष स्थिति में पाँच महीने की होती हैं |
V. शिकायत कौन दायर कर सकता हैं ?
निम्नलिखित लोगों दवारा शिकायत दायर की जा सकती हैं |
(i) उपभोक्ताओं द्वारा, (ii) उपभोक्ता संघ द्वारा, (iii) केन्द्रीय सरकार द्वारा, (iv) राज्य सरकार द्वारा |
VI. शिकायत किसके विरुद्ध दायर की जा सकती हैं ?
(i) दोषपूर्ण वस्तुओं के विक्रेता और उत्पादक के विरुद्ध |
(ii) दोषपूर्ण सेवाएं सुपुर्द कराने वाले व्यक्ति के विरुद्ध |
VII. शिकायत फीस
प्रत्येक शिकायत के साथ निर्धारित फीस जमा की जाती हैं परन्तु न्यायालय फीस की आवश्कता नहीं होती हैं |
VIII. उपभोक्ताओं को उपलब्ध राहत
(1) वस्तुओं के दोषपूर्ण होने की स्थिति में उपभोक्ता को उस वस्तु के 'दोषों को दूर करने के आदेश ' से संबंधित अधिकार प्राप्त होते हैं |
(2) वस्तुओं के दोषपूर्ण होने की स्थिति में उपभोक्ता को दोषरहित वस्तुएं प्राप्त करने का अधिकार हैं |
(3) यदि विक्रेता की लापरवाही से उपभोक्ता को कोई हानि होती हैं तो उसे हानि की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार हैं |
(4) उपभोक्ता को यह राहत होती हैं की वह सेवा में हुई कमी को दूर करवा सकता हैं |
(5) यदि कोई उपभोक्ता किसी अनुचित/प्रतिबंधित व्यापार व्यवहार के विरुद्ध शिकायत करता हैं तो उस पर तुरंत रोक लगाईं जाती हैं |
(6) ऐसी वस्तुएं जो जोखिमपूर्ण हैं उनकी बिक्री पर रोक लगाईं जाती हैं |
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उपभोक्ताओं के अधिकार
(1) सुरक्षा का अधिकार : उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार होता हैं जो उनके स्वास्थ्य, जीवन, संपति को नुकसान पहुचाएं | जैसे : नकली वस्तुएं , घटिया और मिलावटी वस्तुएं आदि |
(2) सूचना प्राप्ति का अधिकार : उपभोक्ता को यह अधिकार होता हैं की वह क्रय की गई वस्तु से सम्बन्धित सभी सूचना जैसे : वस्तु की किस्म, मूल्य, उत्पादन की तिथि, प्रयोग की विधि, प्रमाप इत्यादि की सूचना प्राप्त कर सकता हैं |
(3) चुनने का अधिकार : उपभोक्ता को बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं में से अपनी पसंद की वस्तुओं एवं सेवाओं को चुनने का अधिकार हैं |
(4) सुनवाई का अधिकार : यदि किसी उपभोक्ता के हितों को क्षति होती है, या उसके अधिकारों की अनसुनी होती हैं तो वह इसके विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकता हैं | उपभोक्ताओं की शिकायत की सुनवाई के लिए 'उपभोक्ता सेवा विभाग' की स्थापना की गई हैं
(5) उपचार का अधिकार : इस अधिकार के अंतर्गत उपभोक्ता को विक्रेता के अनुचित व्यवहार के विरुद्ध उपचार प्राप्त करने का अधिकार होता हैं; जैसे - वस्तु की मरम्मत करना, वस्तु बदलना और वस्तु वापस लेना |
(6) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार : उपभोक्ता शिक्षा का अर्थ है की उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से अवगत कराना |
(7) आधारभूत आवश्कताओं का अधिकार : इसके अंतर्गत प्रत्येक उपभोक्ता को जीवनयापन की आधारभूत आवश्कताएं जैसे- भोजन, कपड़ा, ऊर्जा, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि प्राप्त करने का अधिकार हैं |
(8) स्वच्छ वातावरण का अधिकार : सभी उपभोक्ताओं को यह अधिकार हैं कि वह अपना जीवन स्वच्छ वातावरण में व्यतीत कर सकें | अतः उपभोक्ता वातावरण प्रदूषण के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार रखता हैं |
उपभोक्ताओं के उत्तरदायित्व
(1) उपभोक्ता को कभी भी वस्तुओं खरीदने समय अपने अधिकारों का प्रयोग करना आना चाहिए | जैसे : सूचना का अधिकार, चुनने का अधिकार आदि |
(2) एक उपभोक्ता का उत्तरदायित्व हैं की वह वस्तुओं को खरीदने समय वस्तु की मात्रा, शुद्धता, मूल्य और उपयोगिता आदि के प्रति सावधानी बरते |
(3) उपभोक्ता का यह दायित्व है कि यदि कोई वस्तु में कुछ दोष हो तो वह उसकी शिकायत एक उचित समय सीमा में कराये, ताकि उस पर सुनवाई की जा सकें |
(4) उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह जो भी वस्तुएं खरीदता हैं उसे उनके निर्धारित मानकों के आनुसार ख़रीदे ताकि दोषपूर्ण होने की स्थिति में शिकायत की सुनवाई जल्दी हो सकें | जैसे :- कृषि उत्पाद के लिए अगमार्क, बिजली उपकरणों के लिये ISI मार्क |
(5) किसी भी वस्तु को खरीदते समय एक उपभोक्ता का उत्तरदायित्व होता हैं कि यह उस वस्तु की रसीद और कैश मिमों आवश्यक रूप से विक्रेता से प्राप्त करें |
(6) उपभोक्ताओं का यह दायित्व हैं कि वह कोई भी समान को जल्दीबाजी में क्रय न करें, उसे वस्तुओं को सही प्रकार से जाँच ओर परख कर लेना चाहिए |
उपभोक्ता संरक्षण के उपाय एवं साधन
(1) व्यवसाय दवारा स्वय उपभोक्ता संरक्षण का कार्य करना : प्रत्येक फर्म अपने उपभोक्ताओं की संतुष्टि को अधिकतम करने के लिए विभिन्न प्रकार से उपभोक्ता संरक्षण का कार्य करनी हैं; जैसे :- उपभोक्ता सेवा एवं शिकायत केन्द्र की स्थापना की जाती है ताकि उपभोक्ता की शिकायत को सुना जा सकें |
(2) व्यवसायिक संघ : व्यवसायिक संघ दवारा बनाए गये आचार संहिता के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा की व्यवस्था की जाती हैं |
(3) उपभोक्ता जागरूकता : उपभोक्ता संरक्षण के माध्यम से उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक किया जाता हैं ताकि वह अनुचित व्यापार व्यवहार के विरुद्ध शिकायत दायर कर सकें |
(4) उपभोक्ता संगठन : उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को संगठित करने का कार्य करता हैं, ताकि उनकी शिकायतों की सुनवाई हो सकें | उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को शिक्षित करने का भी कार्य करता हैं |
(5) सरकार : सरकार की ओर से भी उपभोक्ता संरक्षण में अहम् भूमिका निभाई जाती हैं; जैसे सरकार दवारा बनाए गए निम्न अधिनियम :-
(i) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
(ii) तीन स्तरीय न्यायिक तंत्र आदि |
इस अधिनियमों की सहायत से उपभोक्ताओं की शिकायतों को सरलता से, तेजी से और न्यूनतम लागत दूर किया जाता हैं |
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तीन स्तरीय न्यायिक तंत्र अथवा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपचार एजेंसियां
A. जिला फोरम : एक राज्य में प्रत्येक जिले में एक या अधिक जिला फोरम स्थापित कर होती है | जिला फोरम की मुख्य विशेषता :
(i) जिला फोरम के सदस्य - एक अध्यक्ष सहित तीन अध्यक्ष ( जिसमें एक महिला सदस्य अनिवार्य होती हैं ) | अध्यक्ष की नियुक्ति जिला न्यायाधीश करता हैं |
(ii) इसके अंतर्गत रुपए 20 लाख तक के विवादों का समाधान किया जाता हैं |
(iii) वस्तु के दोषपूर्ण होने की स्थिति में जिला फोरम निम्न आदेश दे सकती हैं ;
(a) वस्तु के दोष को दूर करने का |
(b) उपभोक्ता को वस्तु का मूल्य लौटना |
(c) क्षति के लिए उपभोक्ता को हर्जाने का भुगतान करना |
(iv) यदि पक्षकार जिला फोरम के निर्णय से संतुष्ट नहीं तो वह 30 दिन के अंदर राज्य आयोग के समक्ष अपील कर सकता हैं |
B. राज्य आयोग : राज्य आयोग दवारा स्थापित किया जाता हैं | इसकी विशेषताएं निम्न हैं ;
(i) राज्य आयोग के सदस्य - एक अध्यक्ष सहित तीन सदस्य (एक महिला सदस्य ) न्यायाधीश की योग्यता वाले व्यक्ति को अध्यक्ष नियुक्त किया जाता हैं |
(ii) इसमें रुपए 20 लाख से अधिक तथा रुपए 1 करोड़ तक के विवादों का समाधान जाता किया हैं |
(iii) इसके अंतर्गत भी पक्षकार असंतुष्टि की स्थिति में 30 दिन के अंदर राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता हैं |
C. राष्ट्रीय आयोग : केंद्रीय सरकार दवारा स्थापित किया जाता हैं | इसकी विशेषताएं ;
(i) राष्ट्रीय आयोग के सदस्य - एक अध्यक्ष सहित पाँच सदस्य ( एक महिला सदस्य ) | राज्य आयोग के समान अध्यक्ष की नियुक्ति |
(ii) इसके अंतर्गत रुपए 1 करोड़ या उससे अधिक मूल्य के विवादों का समाधान किया जाता हैं|
(iii) इसमे भी राज्य आयोग के समान एक या अधिक आदेश दिए जाते हैं |
(iv) पक्षकारों की असहमति की स्थिति में, पक्षकारों दवारा 30 दिन के अंदर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जा सकती हैं |
उपभोक्ता संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका
(1) उपभोक्ताओं को शिक्षा प्रदान करना : उपभोक्ताओं को करने के लिए उपभोक्ता संगठन के निम्न प्रयास ;
(i) उपभोक्तावाद की शिक्षा देना |
(ii) पत्रिकाओं, पुस्तकों और लेख के दवारा उपभोक्ता अधिकारों की प्रति जागरूक करना |
(iii) सम्मलेन, गोष्ठियां व कार्य शालाएं दवारा शिक्षित करना |
(2) उपभोक्ताओं के लिए मुक़दमा दायर करना : उपभोक्ता संगठन पीड़ित उपभोक्ताओं को उनकी शिकायत दायर कराने में मदद करता हैं |
(3) मिलावट आदि के विरुद्ध आवाज उठाना : उपभोक्ता संगठन बाजार में हो रही वस्तुओं में मिलावट, जमाखोरी, चोर बाजारी और कम तोल आदि के विरुद्ध आवाज उठता है अतः यह उपभोक्ता संरक्षण में अहम भूमिका निभाता है |
(4) शैक्षणिक संस्थाओ की सहायता करना : शैक्षणिक संस्थाओ द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के लिए किस प्रकार के पाठ्यक्रम तैयार किये जाये का निर्णय लिया जाता है |
(5) उपभोक्ता संगठनों के जाल को विस्तृत करना : उपभोक्ता संगठन अपनी संख्या में वृद्धि करने के लिए सभी क्षेत्रो में, राज्यों में, जिलो ने अपने संघ की स्थापना करता है |
(6) सरकार की सहायता करना : उपभोक्ता संगठन अनुचित व्यापार व्यवहार की जानकारी सरकारी एजेंसी को देकर सरकार को उन पर कार्यवाही करने में मदद करता है |
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Business Study Chapter List
Chapter 1. प्रबंध की प्रकृति एवं महत्व
Chapter 2. प्रबंध के सिद्धांत
Chapter 3. व्यावसायिक पर्यावरण
Chapter 4. नियोजन
Chapter 5. संगठन
Chapter 6. नियुक्तिकरण
Chapter 7. निर्देशन
Chapter 8. नियंत्रण
Chapter 9. व्यावसायिक वित्त
Chapter 10. वित्तीय बाज़ार
Chapter 11. विपणन
Chapter 12. उपभोक्ता संरक्षण
Chapter 13. उद्यमिता विकास
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