Chapter 11. विपणन | पेज 1 Business Study class 12
Chapter 11. विपणन | पेज 1 Business Study class 12
पेज 1
अध्याय-11
वित्तीय प्रबंध
विपणन :- विपणन से अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से हैं जिसमें वस्तु के उत्पादन, इसके क्रय -विक्रय तथा बिक्री के बाद की सेवाएं शामिल होती हैं |
बाजार :- बाजार से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जहाँ क्रेता, विक्रेता प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय करते हैं |
विक्रयण :- इससे अभिप्राय उन क्रियाओं से है, जो ग्राहक के आदेश प्राप्त करने से लेकर वस्तुओं व सेवाओं की सुपुर्दगी तक में शामिल होती हैं |
विपणन की विशेषताएं
(1) आवश्यकता एवं इच्छा : विपणन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करने का कार्य करता हैं | सभी व्यक्तियों की आवश्यकताएं लगभग समान होती हैं परन्तु इच्छाएं भिन्न -भिन्न होती हैं; जैसे भूख लगना आवश्यकता है लेकिन भूख को भरने के लिए क्या खाया जाता है यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता हैं | भूख को शांत करने के लिए रोटी सब्जी, सांभर-डोसा और चावल - दाल आदि खाया जा सकता हैं, यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता हैं |
(2) एक बाजार प्रस्ताव तैयार करना : विपणन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं व प्राथमिकताओं के अनुसार, उत्पाद व सेवाओं के नाम, प्रकार, मूल्य, साईज, उपलब्धि केन्द्र, आदि जानकारियों को ध्यान में रखकर बाजार प्रस्ताव तैयार करता हैं |
(3) ग्राहक महत्व : एक क्रेता वस्तुओं को क्रय करते समय उस वस्तु की लागत और संतुष्टि की तुलना करता हैं | तथा अधिक संतुष्टि की स्थिति में उस वस्तु का क्रय करता हैं | विक्रेता को क्रेता की इस प्रवृति को ध्यान में रखा कर वस्तुओं का उत्पादन करता चाहिए, ताकि वह बाजार प्रतियोगिता में बना रह सकें |
(4) विनिमय प्रक्रिया : विनिमय का अर्थ लेन-देन से हैं | विपणन के अंतर्गत दो पक्षकार क्रेता और विक्रेता शामिल होते हैं | जिनके द्वारा विनिमय का कार्य किया जाता है | विक्रेता द्वारा वस्तुओं व सेवाओं का विक्रय क्रेता को किया जाता हैं और क्रेता द्वारा विक्रेता को धन या धन के समान कोई अन्य चीज दी जाती हैं | इस प्रकार विपणन में विनिमय का कार्य किया जाता हैं |
विपणन प्रबंध :- विपणन प्रबंध से अभिप्राय उस क्रियाओं से है जिसके अंतर्गत उपभोक्ताओं की आवश्यकतों की संतुष्टि किये जाने वाली कार्यों का नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन और नियंत्रण किया जाता हैं |
विपणन एवं विक्रयण में अंतर
अंतर का आधार |
विपणन |
विक्रयण |
(1) क्षेत्र |
विपणन का क्षेत्र अधिक व्यापक होता हैं | |
विक्रायण का क्षेत्र संकुचित होता हैं | |
(2) केन्द्र बिन्दु |
इसका केंद्र बिन्दु उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की संतुष्टि करना हैं| |
इसका केंद्र बिन्दु केवल बिक्री करना होता हैं | |
(3) क्रिया का प्रारम्भ एवं अंत |
वस्तु के विचार से उपभोक्ता की संतुष्टि को पूरा किये जाने तक विपणन क्रिया की जाती हैं | |
क्रिया का प्रारम्भ वस्तु के निर्माण से शुरू होता है और उपभोक्ता को वस्तु उपलब्ध करने पर इस क्रिया का अंत होता हैं | |
(4) लाभ की प्राप्ति |
विपणन में उपभोक्ताओं को संतुष्ट का लाभ कमाया जाता हैं | |
इसके अंतर्गत लाभ अधिकतम बिक्री द्वारा प्राप्त होता हैं | |
(5) बिक्री के बाद की सेवाएं |
इसके अंतर्गत बिक्री के बाद की सेवाएं दे जाती हैं | |
इसके अंतर्गत बिक्री के बाद की सेवाएं नहीं दी जाती हैं | |
विपणन के कार्य
(1) बाजार सूचनाओं का एकत्रीकरण एवं विश्लेषण : विपणन के अंतर्गत बाजारी सूचनाएं जैसे :- (i) उपभोक्ता कौन सी वस्तु, किस मूल्य पर, किस मात्र में, व किस स्थान पर और कब चाहता है आदि सूचनाओं का एकत्रीकरण किया जाता हैं | एकत्रित की गई सुचानाओं का विश्लेषण कर यह निर्णय लिया जाता है कि किस प्रकार की वस्तु का उत्पादन किया जाये |
(2) विपणन नियोजन : विपणन कर्ता द्वारा विपणन के उद्येश्यों की पूर्ति के लिए विपणन नियोजन का कार्य किया जाता हैं | जैसे :- यदि किसी कंपनी को 50% उत्पादन बढाना हैं तो इसको प्राप्त करने के कई विकल्प हो सकते हैं | परन्तु कई विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन करना ही नियोजन कहलाता हैं |
(3) उत्पाद डिजाइनिंग तथा विकास : एक विक्रेता को प्रतियोगी बाजार में बने रहने के लिए अपनी वस्तु को अन्य प्रतियोगी से अलग तथा आकर्षक दिखाने की आवश्यकता होती है | इसके लिए यह आवश्यक हो जाता हैं कि वह वस्तु को आकर्षक दिखाने के लिए इसकी डिजाइनिंग भी बेहतर तरीके से करें |
(4) प्रमापीकरण एवं श्रेणीकरण : विपणन के अंतर्गत वस्तुओं का प्रमापीकरण (अर्थात् वस्तु का आकार, किस्म, डिजाइन, भार, रंग, प्रयोग आदि ) में समरूपता व श्रेणीकरण (अर्थात् सामान्य क़िस्म और बेहतर क़िस्म विशेष की वस्तुओं को अलग करना ) आदि का कार्य किया जाता हैं |
(5) पैकेजिंग एवं लेबलिंग : विपणन के अंतर्गत वस्तु की पैकेजिंग का उद्येश्य वस्तु को परिवहन व अन्य परिस्थितियों में होने वाली क्षय, टूट-फूट व क्षति से बचाने तथा लेबलिंग का उद्येश्य वस्तु के विषय में जानकारी (जैसे : वस्तु की उत्पादन तिथि, मूल्य, प्रयोग की विधि, बैच नम्बर, प्रयोग की अन्तिम तिथि, वस्तु को बनाने में प्रयोग साम्रागी आदि ) देने का होता हैं |
(6) नामकरण/ब्रांडिग : किसी भी उत्पाद की पहचान उस वस्तु के बांड से होती हैं | किसी वस्तु की ब्रांडिग उसे प्रतियोगी बाजार में एक अलग पहचान देती हैं और प्रतिगोगिता बाजार में बने रहने को भी सुनिश्चित करती हैं |
(7) ग्राहक सहायक सेवा : विपणन की एक अहम् विशेषता है जो उसे बिक्री व बाजार आदि क्रियाओं से अलग करती है, वह हैं वस्तु की बिक्री के बाद की सेवाएं | जिससें उपभोक्ताओं की संतुष्टि में वृद्धि होती हैं | इसके लिए विपणनकर्ता निम्न सेवाएं प्रदान करता है ;
(i) ग्राहक शिकायत निवारण केंद्र,
(ii) विक्रेय उपरांत सेवाएं,
(iii) उधार सेवाएं,
(iv) तकनीकी सेवाएं, और
(v) देख रेख सुविधाएँ |
(8) उत्पादों का मूल्य निर्धारण : किसी वस्तु का मूल्य निर्धारण एक अहम् प्रक्रिया है क्योंकि किसी वस्तु का मूल्य ही उस वस्तु की बिक्री को निर्धारित करता हैं | मूल्य निर्धारण के समय वस्तु की लागत, लाभ की दर, प्रतियोगी वस्तु का मूल्य और सरकारी नीति आदि को ध्यान में रखा जाता हैं |
(9) संवर्द्धन : संवर्द्धन के अंतर्गत उपभोक्ताओं को वस्तुओं की जानकारी दी जाती हैं | ताकि वह उस विशेष वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित हो | संवर्द्धन के अंतर्गत विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय, विक्रय संवर्द्धन, और प्रचार आदि शामिल होते हैं |
(10) भौतिक वितरण : इसके द्वारा वस्तुओं को उत्पादन स्थान से उपभोक्ता स्थान तक पंहुचाया जाता हैं | भौतिक वितरण के अंतर्गत वस्तुओं के भण्डारण, स्टॉक मात्रा और परिवहन आदि का कार्य किया जाता हैं | इस प्रकार यह वस्तु में समय व स्थान उपयोगिता पैदा करता हैं |
(11) परिवहन : प्रायः उत्पाद का स्थान व उपभोग का स्थान अलग - अलग स्थान पर स्थित होते हैं परिवहन दोनों स्थानों को जोड़ने का कार्य करता हैं | अतः परिवहन द्वारा वस्तुओं में स्थान उपयोगिता का सृजन होता हैं |
(12) संग्रहण : प्रायः कई कारणों की वजह से वस्तुओं की उत्पादन के बाद तुरंत बिक्री संभव नहीं हो पाती हैं, ऐसी स्थिति में वस्तुओं की संग्रहण की आवश्यकता होती हैं | ताकि वस्तुओं को सुरक्षित रखा जा सकें | संग्रहण वस्तुओं को उपभोक्ताओं को सही समय पर सुपुर्द कराने में भी मदद करता हैं |
|
पेज 2
विपणन प्रबंध दर्शन
विपणन प्रबंध दर्शन में निम्निलिखित पाँच विचारधाराएँ शामिल होती हैं ;
(i) उत्पादन विचारधारा : इसके अंतर्गत एक कंपनी यह सुनिश्चित करती हैं कि उसके द्वारा उत्पादित वस्तुएं सही समय पर, सही स्थान पर, सही मूल्य पर, उसके ग्राहकों को उपलब्ध हो | कंपनी अपने उत्पाद की प्रति इकाई लागत कम करने के लिए बड़े स्तर पर उत्पादन करती हैं |
(ii) उत्पाद विचारधारा : उत्पाद विचारधारा के अंतर्गत कंपनी अपने उत्पाद की गुणवत्ता को अधिकतम करती हैं ताकि अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को उस निश्चित उत्पाद को लेने के लिए प्रेरित किया जा सकें | क्योंकि ग्राहक अच्छी गुणवत्ता की वस्तुओं को लेने के लिए अधिक प्रेरित होते हैं |
(iii) बिक्री विचारधारा : कंपनी जो इस विचार का अनुसरण करती हैं उनका यह मानना होता है कि वस्तु खरीदी नहीं जाती बल्कि उन्हें बेचा जाता हैं | दूसरें शब्दों में ग्राहकों को वस्तुएं खरीदने के लिये प्रेरित किया जाता हैं |
(iv) विपणन विचारधारा : इस विचारधारा के अंतर्गत कंपनियाँ इस मान्यता को मानती हैं कि सफलता केवल उपभोक्ता की संतुष्टि के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती हैं | इसलिए कंपनी वस्तुओं का उत्पादन उपभोक्ताओं के अनुकूल करती है न कि उपभोक्ताओं की इच्छाओं को वस्तुओं के अनुकूल ढालने की कोशिश करती हैं | इससें उपभोक्ता संतुष्टि में वृद्धि होती हैं |
(v) सामाजिक विपणन विचारधारा : इस विचारधारा की यह मान्यता हैं कि कंपनियों के द्वारा केवल उपभोक्ता की संतुष्टि को पूरा करने से बात नहीं बनती, कंपनी का समाज के प्रति भी दायित्व बनता हैं की वह समाज की भलाई के लिए कुछ कार्य करें | जैसे : प्रदूषण को कम करने के लिए समाज में जागरूकता फैलान |
विभिन्न प्रबंध विपणन दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
अंतर का आधार |
उत्पादन विचारधारा |
उत्पाद विचारधारा |
बिक्री विचारधारा |
विपणन विचारधारा |
सामाजिक विपणन विचारधारा |
(1) केन्द्र बिन्दु |
उत्पादन की मात्रा पर |
उत्पाद की गुणवत्ता पर |
ग्राहकों को आकर्षित करना |
उपभोक्ताओं की संतुष्टि पर |
उपभोक्ता कल्याण |
(2) साधन |
संतुलित मूल्य व आसान उपलब्धि |
उत्पाद में सुधार |
विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, विक्रय संवर्द्धन |
विपणन क्रियाएं |
विपणन क्रियाएं सामाजिक कल्याण के साथ |
(3) समाप्ति |
अधिकतम उत्पाद एवं लाभ द्वारा समाप्ति |
उत्पाद की गुणवत्ता द्वारा लाभ |
अधिकतम बिक्री द्वारा लाभ |
उपभोक्ता संतुष्टि द्वारा लाभ |
उपभोक्ता संतुष्टि एवं सामाजिक कल्याण से लाभ |
|
|
विपणन मिश्रण : अवधारणा
विपणन मिश्रण से अभिप्राय विपणन क्रियाओं को सफलतापुर्वक करने के लिए बनाई गई नीतियां अर्थात् उत्पाद, संवर्द्धन, स्थान और मूल्य के योग से हैं |
विपणन मिश्रण के तत्व
(1) उत्पाद मिश्रण
(2) संवर्द्धन मिश्रण
(3) स्थान मिश्रण
(4) मूल्य मिश्रण
उत्पाद मिश्रण
उत्पाद से अभिप्राय किसी भौतिक वस्तु से हैं | जैसे टीवी, फ़्रिज, बर्तन और मोबाईल इत्यादि |
उत्पाद मिश्रण से अभिप्राय उत्पाद से संबंधित लिए जाने वाले निर्णयों के योग से हैं | जैसे :- वस्तु की पैकेगिंग, लेबलिंग, ब्रांडिग, रंग, डिजाइन, किस्म, आकार, आदि के निर्णय से हैं | यह निर्णय ग्राहक को वस्तु की ओर आकर्षित करने में अहम् भूमिका निभाता हैं |
उत्पाद मिश्रण के मुख्य तत्व
(i) नामकरण/ब्राण्डिंग
(ii) लेबलिंग
(iii) पैकेजिंग
(1) नामकरण/ब्राण्डिंग : इसके द्वारा बाजार में किसी वस्तु की एक विशेष पहचान बनाई जाती हैं | ब्राण्डिंग के अंतर्गत वस्तु को एक विशेष शब्द, चिन्ह, रंग, दिया जाता हैं | जो उसे बाजार में अन्य वस्तुओं से एक अलग पहचान देती हैं |
एक अच्छे ब्रांड के गुण
(i) एक अच्छे ब्रांड की यह विशेषता हैं कि ब्रांड शब्द संक्षिप्त हो |
(ii) ब्रांड शब्द बोलने में सरल हो |
(iii) ब्रांड नाम वस्तु के गुण को बतलाएं |
(iv) ब्रांड नाम सबसे भिन्न हो |
ब्राण्डिंग के कार्य
(i) ब्रांड नाम एक वस्तु को अन्य वस्तुओं से अलग पहचानने में मदद करता हैं |
(ii) यह एक तरह से वस्तु का विज्ञापन करता हैं |
(iii) एक अलग ब्रांड नाम एक वस्तु का अगल मूल्य निर्धारित करने में मदद करता हैं |
(iv) ब्राण्डिंग नई वस्तु को बाजार से परिचित में मदद करता हैं |
(v) ब्राण्डिंग क्वालिटी को सुनिश्चित करती है तथा ग्राहक का विश्वास में वृद्धि करती हैं |
(2) लेबलिंग : इसके अंतर्गत वस्तु के लिए लिबल तैयार कियें जातें हैं | जिसमें वस्तु से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती हैं | जैसे :- वस्तु का नाम, बनाने की विधि, उत्पादन की तिथि, उत्पादन की अंतिम तिथि, मूल्य, बैच नम्बर आदि |
लेबलिंग के प्रकार
(i) ब्रांड लेबल : जिस पर केवल वस्तु के ब्रांड का नाम लिखा जाता हैं |
(ii) श्रेणी लेबल : जिस पर वस्तु की क्वालिटी को निश्चित करने वाले शब्द व अंक लिखे जाते हैं |
(iii) विवरणात्मक लेबल : इस पर वस्तु के विवरण की जानकारी दी जाती हैं | जैसे :- वस्तु का नाम, किस्म, बैच नम्बर, प्रयोग की विधि आदि |
लेबलिंग के कार्य
(i) लेबलिंग वस्तु की जानकारी देती हैं |
(ii) लेबलिंग वस्तु व ब्रांड की पहचान करता हैं |
(iii) लेबलिंग वस्तु की श्रेणी की जानकरी देता हैं | अर्थात् वस्तु की गुणवत्ता की जानकारी देता हैं |
(iv) लेबलिंग एक ओर महत्वपूर्ण कार्य करता है कि यह वस्तु से संबंधित आवश्यक व क़ानूनी रूप से अनिवार्य चेतावनी भी देता हैं |
(v) यह वस्तु के संवर्द्धन में भी सहायक हैं |
पैकेजिंग : पैकेजिंग से अभिप्राय एक ऐसे आवरण से है जो उत्पाद को परिवहन व अन्य परिस्थितियों में होने वाली क्षति से बचाता हैं |
पैकेजिंग के स्तर
(i) प्राथमिक पैकेजिंग - यह पैकेज के उत्पाद के सबसे निकट होता हैं | जैसे :- माचिस की डिबिया, टूथ पेस्ट का ट्यूब आदि |
(ii) द्वितीयक पैकेजिंग - यह पैकेज उत्पाद के प्रयोग करने तक उसकी अतिरिक्त देखभाल करता हैं | जैसे :- टूथ पेस्ट का गत्ते का बॉक्स |
(iii) परिवहन पैकेजिंग - यह पैकेज उत्पाद के परिवहन, संग्रहण के लिए आवश्यक होता हैं | जैसे :- एक बड़े गत्ते का पैकेट जिसमें 50 टूथ पेस्ट के ट्यूब रखे गए हैं |
पैकेजिंग के कार्य
(i) पैकेजिंग उत्पाद को एक पहचान देता हैं : जैसे :- कॉलगेट के पैकेट से ही उसकी पहचान की जाती हैं |
(ii) पैकेजिंग उत्पाद की टूट-फूट, नमी, कीड़ें-मकोड़ों, और अन्य क्षति से बचाव करती हैं |
(iii) पैकेजिंग परिवहन को सरल बनाती हैं, पैकेट वस्तु को एक स्थान से दूसरें तक ले जाने और ले आने को सरल बनाता हैं |
(iv) पैकेजिंग वस्तुओं का संवर्द्धन में भी मदद करता हैं |
पेज 3
मूल्य मिश्रण
मूल्य मिश्रण से अभिप्राय वस्तुओं अथवा सेवाओं के मूल्य निर्धारण से हैं |
किसी वस्तु के मूल्य निर्धारण के समय निम्न बाते ध्यान रखी जाती हैं ;
(i) उत्पादन लागत : वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के समय वस्तु के कच्चे माल की लागत को ध्यान में रखा जाता हैं |
(ii) बाजार माँग : मूल्य निर्धारण के समय वस्तु की बाजार में माँग का भी गहन अध्ययन किया जाता हैं |
(iii) क्रेता की क्रय शक्ति : एक वस्तु के मूल्य निर्धारण के समय, बाजार के ग्राहकों की क्रय शक्ति को ध्यान में रखा जाता हैं |
(iv) प्रतियोगी फर्में : प्रतियोगी फर्मों की वस्तु के मूल्य पर विचार करके, अन्य प्रतियोगी अपनी वस्तु का मुल्य निर्धारित करता हैं |
(v) कंपनी उद्येश्य : एक कंपनी को किसी वस्तु के मूल्य का निर्धारण करते समय कंपनी के उद्येश्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए | यदि कंपनी का उद्येश्य अधिक लाभ कमान है, तो उसे वस्तु की कीमत अधिक रखनी चाहिए परन्तु यदि कंपनी का उद्येश्य अधिक बिक्री करना है, तो उसे वस्तु का मूल्य कम रखना चाहिए |
(vi) विपणन विधि : यदि कंपनी की विपणन विधि अधिक खर्चीली हैं तो उसे वस्तु की अधिक कीमत रखनी चाहिए | विपरीत परिस्थिति में कम कीमत रखनी चाहिए |
संवर्द्धन मिश्रण
संवर्द्धन मिश्रण से अभिप्राय विक्रेता द्वारा उपभोक्ताओं को उत्पाद की जानकारी देना और उत्पाद को खरीदने के लिए प्रेरित करना हैं |
संवर्द्धन मिश्रण के विभिन्न तत्व
(i) विज्ञापन : विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को वस्तु की जानकारी दी जाती हैं और वस्तु को खरीदने के लिए विभिन्न प्रकार के विज्ञापन (जैसे : रेडियो, पत्रिकाओं, पोस्टर, सामाचार- पत्र आदि ) द्वारा खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता हैं |
(ii) वैयक्तिक विक्रेय : इस विधि में क्रेता- विक्रेता प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने होते हैं | विक्रेता द्वारा वस्तु की विशेषता बताकर क्रेता को उसे खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता हैं |
(iii) विक्रय संवर्द्धन : इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं को वस्तु खरीदने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रलोभन दिए जाते है ; जैसे :- उपहार देना, कीमत में छूट, सैम्पल बांटना, आदि |
(iv) प्रचार अथवा लोक प्रसिद्धि : इसके अंतर्गत ग्राहकों को किसी विशेष उत्पाद की जानकरी दी जाती हैं | जिसमें उत्पादक की ओर से कोई प्रयास नहीं होता हैं | जैसे :- किसी पत्रिका द्वारा स्वंय किसी वस्तु का प्रचार करना |
स्थान मिश्रण
स्थान मिश्रण से अभिप्राय उन सभी निर्णयों के योग से है जो वस्तु को उत्पादक से उपभोक्ता तक उपलब्ध करने में किए जाते हैं | जैसे :- वस्तुओं को सही समय पर, सही स्थान पर, सही मात्रा में उपलब्ध करना |
स्थान मिश्रण में शामिल होने वाले निर्णय ;
(i) विपणन माध्यम
(ii) भौतिक विपणन
(A) विपणन माध्यम : विपणन माध्यम से अभिप्राय उन माध्यम से है जिससें होकार वस्तुएं उत्पादक से उपभोक्ता तक पंहुचाई जाती हैं | जैसे :- थोक विक्रेता, फुटकर विक्रेता, व एजेंट आदि |
वितरण माध्यम के प्रकार अथवा स्तर
(i) प्रत्यक्ष माध्यम अथवा शून्य- स्तरीय माध्यम : इसके अंतर्गत वस्तुओं को उत्पादक से सीधे उपभोक्ता को बेच जाता हैं | जैसे :- फुटकर विक्रेता द्वारा स्वयं वस्तुएं बेचना, डाक द्वारा, और इंटरनेट द्वारा वस्तुएं बेचना आदि |
(ii) अप्रत्यक्ष माध्यम : इस माध्यम के द्वारा वस्तुओं को उत्पादक से उपभोक्ता तक पंहुचानें जाने के लिए एक या अधिक माध्यमों का सहारा लिए जाता हैं | जैसे :- थोक विक्रेता का, फुटकर विक्रेता का, एजेंट आदि का सहारा लिया जाता हैं |
अप्रत्यक्ष माध्यम के प्रकार ;
(a) एक-स्तरीय माध्यम
(b) द्वि- स्तरीय माध्यम
(c) त्रि- स्तरीय माध्यम
वितरण माध्यम के चयन को प्रभावित करने वाले घटक
(1) उत्पाद संबंधित घटक
(a) यदि उत्पाद की प्रति इकाई लागत अधिक हैं तो सस्ता वितरण माध्यम को चुनना चाहिए | परन्तु यदि वस्तु की लागत कम है तो अधिक श्रेष्ठ माध्यम को चुनना बेहतर होगा |
(b) नाशवान वस्तुओं के लिए कम-से-कम माधयमों वाला वितरण माध्यम का चयन करना चाहिए |
(c) तकनीकी प्रकृति की वस्तुओं को सीधे निर्माता से उपभोक्ता को उबलब्ध करना चाहिए |
(2) कंपनी से संबंधित घटक
(a) जिस कंपनी की ख्याति बाजार में अधिक अच्छी हैं उसे वितरण माध्यमों पर आश्रित नहीं होना चाहिए |
(b) यदि कोई कंपनी अपने वितरण माध्यम पर नियंत्रण रखना चाहती हैं तो उसे प्रत्यक्ष स्तरीय वितरण माध्यम का चयन करना चाहिए |
(c) किसी कंपनी का वितरण माध्यम का चयन उसके वित्तीय व्यवस्था पर भी निर्भर करती हैं | अर्थात यदि कोई कंपनी का वित्त व्यवस्था मज़बूत है तो वह अधिक माध्यमों का सहारा ले सकता हैं |
(3) प्रतिस्पर्धात्मक घटक : एक कंपनी प्रतिस्पर्धात्मक घटक के अनुसार दो नीतियों का चयन कर सकती हैं ;
(i) कंपनी प्रतियोगी कंपनी के अनुसार वितरण माध्यम का चयन कर सकता हैं |
(ii) अथवा प्रतियोगी से अलग वितरण माध्यम का चयन कर सकती हैं |
(4) बाजार संबंधित घटक
(i) यदि किसी कंपनी के ग्राहकों की संख्या अधिक हैं तो वितरण माध्यमों का उपयोग करना बेहतर होगा | परन्तु यदि कंपनी के ग्राहक कम हैं तो कंपनी द्वारा प्रत्यक्ष स्तरीय वितरण का सहारा लेना बेहतर होगा |
(ii) यदि किसी बाजार के क्रेताओं को अधिक माल उधार पर क्रय करने की आदत हैं और निर्माता उधार बिक्री की स्थिति में नहीं हैं तो मध्यस्थों का सहारा लिया जाना चाहिए |
(iii) यदि किसी वस्तु का बाजार बहुत बड़ा हैं तो वस्तुओं को दूर-दूर तक फ़ैलाने के लिए मध्यस्थों की मदद ली जनि चाहिए |
(5) वातावरणीय घटक
(i) मंदी की स्थिति में कंपनी द्वारा छोटी वितरण माध्यमों का उपयोग कर चाहिए | इससे लागत में कमी होगी |
(ii) कंपनी के वितरण माध्यम पर सरकारी नीतियों का भी प्रभाव पड़ता है ; जैसे :- दवाइयों की पूर्ति केवल लाइसेंसधारियों द्वारा ही की जा सकती हैं |
(B) भौतिक वितरण : भौतिक वितरण से अभिप्राय वस्तुओं के परिवहन, भण्डारण, स्टॉक मात्रा व आदेश प्रक्रिया से संबंधित निर्णय लेने से हैं |
भौतिक वितरण के तत्व
(i) परिवहन
(ii) स्टॉक मात्रा
(iii) भण्डारण
(iv) आदेश प्रक्रिया |
(1) परिवहन : परिवहन से अभिप्राय उस क्रिया से है जिसके द्वारा वस्तुओं को एक स्थान से दूसरें स्थान पर ले जाया जाता हैं | किसी वस्तु की कीमत तभी अधिक होती हैं जब वह परिवहन क्रिया द्वारा सही स्थान पर सही मात्रा में उपलब्ध हो |
परिवहन के माध्यमों का चयन करते समय निम्न तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए ;
(i) गति, (ii) लागत, (iii) निर्भरता, (iv) सुरक्षा, और (v) क्षमता आदि |
(2) स्टॉक मात्रा : स्टॉक से अभिप्राय कच्चे माल, अर्द्धनिर्मित माल, और तैयार माल के कुल योग से हैं | किसी कंपनी की वितरण व्यवस्था उसके स्टिक मात्रा पर निर्भर करती हैं अर्थात किसी कंपनी में स्टॉक की मात्रा न ही बेहत अधिक होनी चाहिए और न ही बेहत कम | कंपनी में व्यवस्थित स्टॉक की मात्रा होनी चाहिए |
(3) भण्डारण : प्रायः वस्तु के निर्माण और बिक्री में कुछ समय का अंतर देखा जाता हैं इस बीच वस्तु को विभिन्न प्रकार की क्षति से बचने के लिए सुरक्षित स्थान पर रखने की आवश्यकता होती हैं जो भण्डारण द्वारा पूर्ण की जाती हैं |
भण्डारण की आवश्यकता ;
(i) सही समय पर वस्तु उपलब्ध कराने में मददगार हैं |
(ii) वस्तु के निर्माण तथा बिक्री तक वस्तुओं की सुरक्षा करना |
(iii) वस्तुओं का अलग- अलग स्थान पर सुपुर्द कराने में मददगार हैं |
(4) आदेश प्रक्रिया : आदेश प्रक्रिया से अभिप्राय ग्राहक के माल के आदेश कि पूर्ति के समय में अपनाई जाने वाली क्रियाओं से हैं | जैसे :-
(i) ग्राहक द्वारा बिक्रीकर्ता को आदेश देना |
(ii) बिक्रीकर्ता द्वारा आदेश कम्पनी को भेजना |
(iii) आदेश की प्रविष्टि करना |
(iv) ग्राहक की वित्तीय व्यवस्था को जाचं |
(v) स्टॉक जाचं और सूची बनाना |
(vi) आदेश की पूर्ति करना |
(vii) भुगतान प्राप्त करना |
पेज 4
विज्ञापन
विज्ञापन : विज्ञापन से अभिप्राय बाजार के संभावित उपभोक्ताओं को किसी विशेष वस्तु व सेवा की जानकारी देकर उसे खरीदने के लिए प्रेरित करना हैं |
विज्ञापन की विशेषताएं
(i) एक कम्पनी द्वारा उसके उपभोक्ताओं को दी जाने वाली केवल वह सूचना विज्ञापन कहलाती हैं जिस पर कंपनी ने कुछ व्यय किया हो |
(ii) विज्ञापन के अंतर्गत उपभोक्ताओं को वस्तु की सूचनाएं किसी माध्यम ( जैसे टीवी, अखबार, पत्रिका और रेडिओ आदि ) के द्वारा दी जाती हैं अर्थात अव्यक्तिगत माध्यमों के द्वारा |
(iii) विज्ञापन संदेश्वाहन का एक ऐसा साधन है जो सूचना को तीव्र गति से और अधिक दूरी तक संवाहित करता हैं |
विज्ञापन की भूमिक
(i) विज्ञापन के माध्यम से एक कंपनी को अपने नए उत्पाद को बाजार से परिचित करना सरल होता हैं |
(ii) विज्ञापन के माध्यम से निर्माता अपने वस्तु के बाजार का क्षेत्र में वृद्धि कर सकता हैं |
(iii) विज्ञापन लोगों को नई-नई वस्तुओं की जानकारी उपलब्ध करता हैं| जिससें वह नई-नई वस्तु को उपयोग करना सीखते हैं और उनका जीवन स्तर बेहतर होता हैं |
(iv) विज्ञापन रोजगार के नये-नये अवसर उपलब्ध करता हैं |
(v) विज्ञापन से प्रेरित होकर उपभोक्ता वस्तुओं की अधिक माँग करता हैं | जिससें वस्तु की प्रति इकाई लागत कम होती है और वस्तु की कीमत में कमी होती हैं |
(vi) विज्ञापन से जागरुक उपभोक्ताओं का विक्रेताओं द्वारा शोषण का डर खत्म होता हैं |
विज्ञापन के आलोचनाएँ
(i) विज्ञापन से हुए खर्चे वस्तु की लागतों में वृद्धि करते हैं, जिससें वस्तु की कीमत में वृद्धि होती हैं |
(ii) कई बार विज्ञापन अधिक बड़ा-चड़ा कर दिखाए जाते हैं | जो उपभोक्ताओं को भ्रमित करते हैं और सामाजिक दृष्टि से अनुचित हैं |
(iii) विज्ञापन कभी-कभी घटिया वस्तुओं का प्रचार कर, उन वस्तुओं को लेने के लिए उपभोक्ताओं को प्रेरित करता हैं |
(iv) कई बार विज्ञापन के रुचिकर न होने की स्थिति में वे अभ्रद प्रतीत होते हैं | और कई बार यहउपभोक्ताओं के भावनओं को ठेस पहुचाते हैं |
व्यक्तिगत विक्रेय
व्यक्तिगत विक्रेय :इसके अंतर्गत ग्राहकों को वस्तुओं अथवा सेवाओं का विक्रेय, विक्रेता तथा ग्राहक के बीच व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करके किया जाता हैं |
व्यक्तिगत विक्रेय की विशेषताएं ;
(i) वस्तुओं एवं सेवाओं का विक्रय विक्रयकर्ता द्वारा |
(ii) व्यक्तिगत विक्रेय द्वारा विक्रेयकर्ता और क्रेता के बीच व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं |
(iii) व्यक्तिगत विक्रेय द्वारा वस्तु की जानकारी से संबंधित समस्याओं का तुरंत समाधान किया जाता है |
(iv) व्यक्तिगत विक्रेय की द्वारा क्रेता को अतिरिक्त सूचना की प्राप्ति भी होती हैं |
एक अच्छे विक्रेयकर्ता की विशेषताएं
(i) एक अच्छे विक्रेयकर्ता की यह विशेषता है कि वह शारीरिक रूप से तंदुरुस्त हो और अधिक परिश्रमि हो |
(ii) एक अच्छा विक्रेयकर्ता अपने ग्राहकों से मित्रीपूर्ण व सहनशीलता के साथ व्यवहार करता हैं |
(iii) एक अच्छे विक्रेयकर्ता को अपने उत्पाद की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए | ताकि वह ग्राहकों को उत्पाद के बारें में सभी आवश्यक सूचना दे सकें |
(iv) विक्रेयकर्ता को अपने व्यवहार में ईमानदारी व कुशलता को लाना चाहिए |
(v) विक्रेयकर्ता को उपभोक्ता के साथ विनम्रता के व्यवहार करता चाहिए |
(vi) विक्रेयकर्ता में उपभोक्ता को प्रोत्साहित करके उनके विश्वास को जितने की क्षमता होनी चाहिए |
विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय में अंतर
अंतर का आधार |
विज्ञापन |
व्यक्तिगत विक्रय
|
(1)प्रारूप |
यह अव्यक्तिगत है |
यह संवर्द्धन का व्यक्तिगत प्रारूप हैं | |
(2) समय |
विज्ञापन के द्वारा कम समय में अधिक लोगों को वस्तु जानकारी दी जा सकती हैं | |
इसके द्वारा अधिक समय में केवल कुछ लोगों को वस्तु की जानकारी दी जा सकती हैं | |
(3) पंहुच |
विज्ञापन की पंहुच अधिक लोगों तक होती हैं | |
इसकी पंहुच कम लोगों तक होती हैं | |
(4) लागत |
विज्ञापन प्रक्रिया कम खर्चीली हैं | |
व्यक्तिगत विक्रय अधिक खर्चीली प्रक्रिया हैं | |
(5) माध्यम |
विज्ञापन के अंतर्गत टीवी, रेडियो और समाचार-पत्र आदि माध्यमों का उपयोग किया जाता हैं | |
इसमें केवल व्यक्तिगत विक्रेता ही माध्यम होता हैं |
|
(6) प्रतिपुष्टि |
विज्ञापन में तुरंत प्रतिपुष्टि नहीं प्राप्त होती हैं | |
व्यक्तिगत विक्रय में तुरंत प्रतिपुष्टि प्राप्त होती हैं | |
(7) लोचकता |
विज्ञापन में लोचकता का अभाव होता हैं | |
यह लोचकता पूर्ण होता हैं | |
(8) भूमिका |
यह ग्राहक में वस्तु के प्रति रूचि उत्पन्न करता हैं | |
यह वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित करता हैं | |
विक्रय संवर्द्धन
विक्रय संवर्द्धन से अभिप्राय उस प्रक्रियाओं से है जो क्रेता को वस्तुएं तुरंत क्रय करने के लिए प्रेरित करती है; जैसे छूट, कटौती, गिफ्ट, लक्की ड्रा, और नमूने आदि |
विक्रय संवर्द्धन की विधियाँ
(1) छूट : वस्तुओं को घटें हुए मूल्यों पर बेचना |
(2) वापसी : उत्पाद मूल्य का कुछ अंश, खरीद का प्रमाण दिखाकर ग्राहक को वापस कर दिया जाता हैं |
(3) कटौती : उत्पाद को उसके सूचित मूल्य से कम मूल्य पर बेचना कटौती कहलाता हैं | जैसे :-किसी दीवार घड़ी को 40% की कटौती पर बेचना |
(4) मात्रा गिफ्ट : इसके अंतर्गत उत्पाद की ही कुछ मात्रा गिफ्ट के रूप में दी जाती हैं |
(5) लक्की ड्रा : इसके अंतर्गत निश्चित समय के अंदर माल खरीदने वाले क्रेताओं में से विजेताओं को उपहार बांटे जाते हैं | विजेताओं का चयन ड्रा के माध्यम से होता हैं |
(6) उत्पाद संयोग : इस विधि के अंतर्गत मुख्य उत्पाद के साथ कोई अन्य उत्पाद गिफ्ट के रूप में दिया जाता हैं | जैसे :- कॉलगेट टूथ पेस्ट के टूथ ब्रश फ्री |
(7) तत्काल ड्रा एवं उपहार देना : इसके अंतर्गत किसी वस्तु को खरीदने पर उसी समय एक कार्ड खुरचने के लिए कहा जाता हैं ओर उस पर लिखी वस्तु उपहार में दी जाती हैं |
(8) प्रयोग करने योग्य लाभ : इसके अंतर्गत विक्रेता की ओर से क्रेताओं को कूपन बांटें जाते हैं | जो क्रेता को अन्य ख़रीद पर कूपन में लिखे मूल्य जितनी छूट प्रदान करती हैं |
(9) 0% पर पूरा वित्त प्रदान करना : इस विधि के द्वारा वस्तु को बिना ब्याज के किस्तों में उपलब्ध कराया जाता हैं |
(10) नमूने : इसमें उपभोक्ताओं को वस्तु के नमूने बांटें जाते हैं | ताकि वे वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित हो |
(11) प्रतियोगिताएं : कुछ कम्पनियाँ अपने उत्पाद को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन करने हैं, और विजेता को ईनाम दिया जाता हैं |
प्रचार/जन-संपर्क/सार्वजनिक संबंध
प्रचार/जन-संपर्क/सार्वजनिक सम्बन्ध से अभिप्राय उस सन्देश प्रवाह से है जो बिक्री रहित होता हैं | जिसका प्रवाह व्यवसाय से ग्राहकों की ओर होता हैं |
सार्वजनिक सम्बन्ध की विशेषताएं
(1) व्यवसाय द्वारा जनता से अच्छे सार्वजनिक सम्बन्ध स्थापित करना, व्यवसाय को जनता का सहयोग प्रदान करता हैं |
(2) अच्छे सार्वजनिक सम्बन्ध एक व्यवसाय के सभी पक्षकारों ( जैसे :- ग्राहक, कर्मचारी, अंशधारी, पूर्तिकर्ता आदि ) की संतुष्टि में वृद्धि करता हैं |
(3) एक व्यवसाय को अपने संबंधित पक्षकारों से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता होती हैं | ताकि व्यवसाय लम्बे समय तक जीवित रहें सकें |
(4) यदि एक व्यवसाय अपने साख को अच्छा रखना चाहता है तो उसे अपने पक्षकारों से लागातार संवाद करते रहना चाहिए |
(5) आज के समय में जन सम्पर्क भी एक विशिष्ट क्रिया बन चुका हैं जिसके लिए प्रत्येक बड़े संगठन सार्वजनिक सम्बन्ध विभाग की स्थापना करते हैं |
सार्वजनिक सम्बन्ध स्थापित करने की विधियाँ
(1) घटनाएँ : कम्पनियाँ समय-साम्य पर घटनाओं के रूप में कई सम्मलेन जैसे :- नए कार्यालय, फैक्टरी भवन, आदि के उद्धघाटन का आयोजन करना |
(2) सामाचार : कम्पनिओं द्वारा समय-समय पर कई सूचनाएं सार्वजनिक सम्बन्ध विभाग को दी जाती हैं जो की उसके द्वारा सामाचार पत्र में छपवाये जाते हैं | इससे जनता को कंपनी के बारें में जानकारियाँ प्राप्त होती रहती हैं |
(3) भाषण : सार्वजनिक सम्बन्ध विभाग के अधिकारीयों द्वारा कंपनी के विभिन्न पक्षकारों को कंपनी के प्रगति से अवगत किया जाता हैं |
(4) सार्वजनिक सेवा क्रियाएं : कंपनी सार्वजनिक सेवा क्रियाओं से जुड़ कर जनता की संतुष्टि में वृद्धि करने का कार्य करता हैं | जिससें जनता के बीच कंपनी की छवि में सुधार होता हैं |
Share this Notes to your friends:
Business Study Chapter List
Chapter 1. प्रबंध की प्रकृति एवं महत्व
Chapter 2. प्रबंध के सिद्धांत
Chapter 3. व्यावसायिक पर्यावरण
Chapter 4. नियोजन
Chapter 5. संगठन
Chapter 6. नियुक्तिकरण
Chapter 7. निर्देशन
Chapter 8. नियंत्रण
Chapter 9. व्यावसायिक वित्त
Chapter 10. वित्तीय बाज़ार
Chapter 11. विपणन
Chapter 12. उपभोक्ता संरक्षण
Chapter 13. उद्यमिता विकास
Select Class for NCERT Books Solutions
NCERT Solutions
NCERT Solutions for class 6th
NCERT Solutions for class 7th
NCERT Solutions for class 8th
NCERT Solutions for class 9th
NCERT Solutions for class 10th
NCERT Solutions for class 11th
NCERT Solutions for class 12th
sponder's Ads